शनिवार, मई 04, 2019

चुनावी तूफान - जनता पर किसका बस चला है!!

देश में चक्रवाती तूफान आया है. ऐसा नहीं है कि बिना बताये चुपचाप से चला आया हो. मौसम विभाग को पूरी जानकारी होती है. कितने बजे आयेगा. कहाँ से शुरु होगा, किन राहों से गुजरता हुआ कहाँ पर खत्म होगा. कितनी रफ्तार से गुजरेगा. सभी जानकारी दे दी जाती है. तैयारियाँ भी भरपूर की जाती हैं. शीर्षस्थ नेता शीर्षस्थ अधिकारियों से बैठक करके तैयारियों का जायजा लेते हैं. आजकल तो जायजा लेते हुए फोटो भी खिंचवा कर मीडिया का दे देते हैं ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये. वरना बाद में लोग सबूत मांगते हैं कि जायजा लिया भी था या नहीं?
सारी तैयारियों के बाद संपूर्ण मुश्तैदी और चाक चौबंद व्यवस्था की घोषणा कर दी जाती है कि आँधी आये या तूफान, हम खड़े हैं सीना तान. तब शुरु होता है स्थितियों पर नजर बनाये रखने का दौर. मीडिया का तूफान की राह में पलक पावड़े बिछाये इन्तजार शुरु हो जाता है. जब तक तूफान आ नहीं जाता तब तक तूफानों के बारे में ज्ञान का तूफान बांटा जाता है. उनका इतिहास बताया जाता है. पिछले तूफानों के विडिओ और तस्वीरें दिखाई जाती हैं. तब तूफान आता है.
हर बार की तरफ फिर वो तबाही मचाता है. कारें लुढ़काता है. बिल्डिंगों के काँच तोड़ता है. बड़े बड़े पेड़ गिराता है. छत उड़ा ले जाता है. बिजली के खंबे गिरा देता है. बड़ी बड़ी क्रेन, जिसे हटाना शायद तैयारी का हिस्सा नहीं था, को गिराता है जिसके गिरने से आस पास के मकान जो चुपचाप खड़े थे, वो भी बैठ जाते हैं. जान माल की हानि करता हुआ तूफान आगे निकल जाता है और फिर निर्धारित समय में तूफान रुक जाता है.
इस प्रक्रिया में आजकल एक तूफान और आकर जुड़ गया है. सबका साथ सबका विकास का तो क्या हुआ पता नहीं!! मगर बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, मंहगाई और अन्य किसी भी समस्याओं से अप्रभावित ’हर हाथ कैमरे के साथ’ का माहौल बुलंद है. उस तूफान की राह में जिसे देखो वो ही विडिओ बनाने में जुटा है. सामने तबाही का मंजर है और उसके बीच ये विडिओ पीर!! छत पर खड़े, खिड़की से चिपके, दरवाजे से झांकते – जाने कहाँ कहाँ से विडिओ निकाल रहे हैं. सब तबाह हो रहा है. खंबे गिर जा रहे हैं. बिजली गुम है मगर नेटवर्क चालू. दनादन फॉरवर्ड. व्हाटसएप, ट्विटर, फेसबुक पर उस ओरीजनल तूफान से भी बड़ा तूफान उनके हजारों विडिओ और उनके साथ सेल्फियों का है.
फोटोऑप का जमाना है. कोई एक पल नहीं चूकना चाहता और एक होड़ सी मची है कि सबसे पहले मैं ही. फिर जिसे भेजा जाता है उसको भी फॉरवर्ड करने की उतनी ही जल्दी. वो भी तुरंत आगे बढ़ाता है. सभी विडिओ सभी ग्रुपों में सैकड़ों बार घूमते हैं चक्रवात की तरह.
इधर चुनाव का मौसम है. शहर शहर नेताओं की सभाओं और रोड शो की आँधी आई हुई है. इनकी मचाई तबाही की तो खैर एक अलग गाथा है किन्तु अब हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट की सुनामी उन तूफान से ग्रसित शहरों पर से जायजा लेने को गुजरेगी. सच्चे झूठे राहतों को पैकेज घोषित किये जायेंगे. कितने ही टन घड़ियाली आँसूओं की बारिश होगी.
इस तूफान का नाम फानी था. कोई फणि, कोई फानी, कोई फनी, कोई फ़ानी बोल रहा है. कुछ खास लोगों का तो यह भी मानना हो चला है कि इस तूफान का नाम फ़ानी (उर्दु शब्द) है इसलिए इतनी तबाही मचा गया. इसका नाम बदल कर तुरंत पानी या जल कर दिया जाना चाहिये. ताकि भविष्य में जब ये आवे तो तबाही न मचावे.
फिर नाम बदलने से जब शहर स्मार्ट हो सकता है. शहर मुसलमान से हिन्दु हो सकता. शहर सहिष्णु हो सकता है तो फिर तूफान की क्या मजाल. नाम बदलने के बाद आकर तो देखे? लिंचिंग मास्टर दौड़ा दौड़ा कर मारेंगे. लेकिन फिर जैसा कि हमेशा होता आया है कि इन खास लोगों का मानना बस इनकी सोच का अंजाम होता है असल बात कुछ और ही होती है.
दरअसल इस तूफान का नाम फणि अर्थात बंगाली में सर्प के नाम पर बांग्लादेश से पड़ा, जिसे बांगला में फोनी उच्चारित करते हैं. वही भारत़ में आते आते बंगाली टू अंग्रेजी टू मीडिया की खास हिन्दी ने फानी में बदल दिया. फ़ानी तो बस इन खास लोगों के दिमाग की उपज है.
बाकी तो जो तूफान को करना होगा, वो करेगा ही!! मदर नेचर पर किसका बस चला है.
वैसे तो चुनावी तूफान में भी क्या होगा, कौन जाने!! जनता पर भी किसका बस चला है!
-समीर लाल ’समीर’

डिसक्लेमर: इस बार फानी में प्रशासन की मुस्तैदी ने ११ लाख लोगों की विस्थापित करके एक जबरदस्त काम किया है, उड़ीसा के प्रशासनिक अधिकारियों को सलाम!! इस व्यंग्य का उद्देश्य उन्हें कमतर आंकना कतई नहीं है.

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मई ५, २०१९ को:



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6 टिप्‍पणियां:

Gyan Vigyan Sarita ने कहा…

समीर जी,

तूफान के चलते तत्कालीन मानसिकता का आपके लेख में सुन्दर सचित्रीकरण है | साथ ही जो अपने लिखा है "इन खास लोगों का मानना बस इनकी सोच का अंजाम होता है असल बात कुछ और ही होती है..." बहुत सटीक है

यह विकृत मानसिकता को मैं शिक्षा के अवमूल्यन और व्यवसिक्ता का प्रभाव कहूंगा जहाँ शिक्षा का अर्थ सिर्फ मोती तन्ख्वाह , सुन्दर-धनी जीवन साथी और लुभावने साधन रह गया है , सोच और विवेक के विकास से कोई लेना-देना नहीं ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को "आग बरसती आसमान से" (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

वाणी गीत ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन के आज के अंक में आपका ब्लॉग भी शामिल है... सादर सूचनार्थ

वाणी गीत ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, हिंदी ब्लॉगिंग अंतर्जाल युग की एक उल्लेखनीय उपलब्धि“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Nitish Tiwary ने कहा…

फानी तूफान के लिए सरकार पहले से तैयार थी और बहुत शानदार तरीके से इससे निपटा गया है। खुद संयुक्त राष्ट्र ने सरकार के प्रयासों की अनुशंसा की है।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com

मन की वीणा ने कहा…

सामायिक विषय पर शानदार चिंतनशील रचना।