मित्रों
ताली पुराण की मुण्ड़लियाँ लिखते समय मेरे दिल में यह ख्याल कतई नहीं था कि जब हम कविता पाठ करें तो लोग तालियां बजायें. यह तो मैने महज इसकी उपयोगिता और फायदों को मद्दे नजर रख कर जनहित मे लिखी है. यह एक ऐसा साज है कि जिस किसी के भी दोनों हाथ सलामत हैं, वो इसे बजा सकता है. और आजकल तो अगर एक खास तरीके से आप इसे बजाना सीख जायें तो पटना नगर निगम में नौकरी भी मिल सकती है. तो चलिये सुनते हैं, इस गुणों की खान, मुफ्त में उपलब्ध और बिना खास रियाज के बजने वाले इस वाद्य, ताली का पुराण:
ताली पुराण
नेता, कवि, महात्मा कि गायक गीत सुनाय,
बिन ताली सब सून है, रंग न जमने पाय.
रंग न जमने पाय, ताली से मच्छर हैं मरते
डेंगू, गुनिया, मलेरिया, पास आने से डरते.
गुरु मंत्र लो; तुम डिप्रेशन को दूर भगाओ
सुन कर मेरे कवितायें, ताली खुब बजाओ.
हाथों में गर हो झुनझुनी, ताली से मिट जाय
गठिया वात के रोग में, झट ही आराम लगाय.
झट ही आराम लगाय कि औषधी है ये गुणकारी
डॉक्टर साहब बतलायेंगे, तो दवा न बिके बेचारी
जड़ी बुटियां और कितनी भी कसरत करते जाओ
सब मर्जों की बस एक दवा है, ताली खुब बजाओ.
ताली के अंदाज में, हैं छुपे हुये कई राज
किसकी भद्द उतार दे, किसको दे दे ताज.
किसको दे दे ताज, इसको मै शीश नवाता
ताली बजती जाये, सोच कर गीत सुनाता
सन्नाटे का राज हो, अगर यह धर ले मौन
इसका बस है आसरा, वरना हमको पूछे कौन.
खैनी कभी मत खाईये, बिन ताली मारे आप
कितना भी हो घिस चुके, आता नहीं वो स्वाद
आता नहीं वो स्वाद, ताली करवाती सब काज
बच्चा हो या बड़ा कोई, रहा ताली का मोहताज
हम जो लिख कर लाये हैं, वो कैसा लगा श्रीमान
जब ताली की आवाज उठे, तब हम भी लेंगे जान.
याददाश्त पर आपकी, हमको पूरा है विश्वास
मानव ही तो हैं आप भी, थकने का इतिहास
थकने का इतिहास कि इसकी चिंता न करना
हाथ हिला कर बतलाऊँगा कब ताली है भरना
कहते है कविराय कि तुम बस डूब के सुनना
जब मजा बहुत आ जाये, तब तुम ताली धुनना.
ताली का विस्तार देखिये, सारे जग में आज
भाषा का मोहताज नहीं, ऐसा है यह साज
ऐसा है यह साज कि हर धुन में बजता है
बच्चे, बुढ़े और जवान, सबहि पर फबता है
कहे समीर, इस बाजे में लागे न एक भी पैसा
खुल कर खुब बजाईये, इसमें शरमाना कैसा.
सदियों का इतिहास है, इस पर हमको नाज
मानव की पहली खोज में, आता है यह साज
आता है यह साज कि हरदम मंदिर में बजता
भजन, कीर्तन या आरती, जब भक्त है करता
इसकी ही सुर ताल है जो सबको रखे जगाये
वरना अखंड रामायण में, भक्त सभी सो जाये.
चुन्नु का है बर्थ-डे, अब इसकी महिमा देख
ताली की आवाज बिन, कभी न कटता केक
कभी न कटता केक , न ही कोई फीता कटता
शिलान्यास का मौका हो, तब भी यह बजता
बिन इसके नहीं कोई बंदर भी नाच नाचता
फिर मेरी कहाँ बिसात जो मैं लिखा बांचता.
सरदी लगती आपको, ताली से गरमी आये
निपट अकेले जो आप हों, डर को दूर भगाये
डर को दूर भगाये कि बहुत ही है हितकारी
गूँगों की आवाज भी, यही तो बनी बिचारी
कहे समीर कविराय कि कितनी महिमा गाऊँ
खुद बजा कर देखिये, मैं भी क्या क्या बतलाऊँ.
--समीर लाल ‘समीर’
// अब यहाँ ब्लाग पर ताली का मतलब टिप्पणी होता है, यह तो सभी सुधीजनों को विदित ही है.//
सोमवार, नवंबर 20, 2006
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15 टिप्पणियां:
लीजिये हमारी ओर से तालियों की गड़गड़ाहट स्वीकार कीजिये!
बढ़िया दे ताली पर ताली मिलें आपको हर जगह.
वाह, वाह्। तालियों की गड़गड़ाहट की कल्पना करिये।
सुंदर, अति सुंदर । बहुत खूब ।
आप सुन रहे हैं ना? मैं पीट रहा हुँ।
ताली!!
साथ में कह रहे हैं ताली बजाओ, और पटना नगर निगम में नौकरी भी पाओ ....!;)
खैर फिर भी कविता की तारीफ में ताली.....!
वाह वाह के साथ खुब तालियाँ पीटी है, आप तक आवाज पहुँची होगी.
बढ़िया ताली पुराण है !
लो ठोक रहें ताली हम भी नौकरी मिल जाय
ताली पुराण है क्या खूब गुरूदेव रहे बतलाय
गुरूदेव रहे बतलाय ताली की महिमा न्यारी
प्रशन्नचित रखे सदा दुःख दर्द हर लेय सारी
कम शब्दों मे यों समझें क्या है ताली पुराण
लाख दुःखों की एक दवा को शत् शत् प्रणाम
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बहुत खूब गुरूदेव!
सभी टिप्पणीकारों की तालियों की गड़गड़ाहट में हमारी आवाज (ताली की) को भी शामिल समझें।
एक हाथ...दूसरे हाथ की ओर...तेज़ रफ्तार के साथ.....उत्साह के साथ....
मेरा जन्म हुआ...
मैं ताली हूँ...
आपकी इस पोस्ट के खातिर....
मेरे खानदान के लिए आपने जो किया मैं अहसानमंद रहूँगी ।
ताली बजाते-2 हाथ दुख गये, bवैसे क्या आप को मेरी तालियाँ सुनाई दी।
गज़ब लिखा है। ताली पुराण
ताली तो ताली हंसी ठहाके भी गूंज रहे हैं यहां तो
ये रही हमारी तालियां
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