सुबह सुबह उठे, नहाये, पूजा किये और कंम्प्युटर पर आ गये. अभी ठीक से लोग इन भी नहीं किये थे और न ही गणेश जी वाला वाल पेपर लोड हो पाया था कि डिंग डांग.... "क्या हो रहा है, मै, पंकज बैगाणी 'तरकश'."
हम थोड़ा घबराये. इस तरह वो पहले कभी अवतरीत नहीं हुए थे. हमने कहा, " मैं समझ गया कि आप पंकज हैं. गुगल चैट में दिखता है कि किसने मैसेज भेजा."
वे बोले, " पंकज नहीं, पंकज बैंगाणी 'तरकश' कहो, आज से यही नाम है. और हाँ, यह मत समझना कि हमने 'सहारा ग्रुप' या अमर सिंग से कोई समझौता किया है. यह हमारा अन्नु मलिक की तरह मौलिक प्रयास है और आप, चूँकि कोर टीम में हैं, तो आप भी अपने नाम के आगे तरकश लगाया करें. नये कार्ड छपवायें और अपना नाम रखें, समीर लाल 'तरकश'. संजय और बाकी सदस्यों को भी बता दिया गया है."
और चेतावनियों का दौर जारी रहा कि कल से यह नमस्कार, प्रणाम आदि न सुनाई दे, बस 'तरकश सलाम'.
हम तो घबराये थे सो हाँ करते चले गये.
लेकिन पंकज बैंगाणी 'तरकश' तो बस तीर की तरह चलते रहे और रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.
अगला तीर आया कि "कोर टीम में पोस्ट लेते समय तो बड़ॆ खुश दिख रहे थे, कोई सरकारी कापरेटिव समझ रखा है क्या. कि बस अध्यक्ष बन गये, लाल बत्ती की गाड़ी मिल गई, अब ऐश करो, काम करने की क्या जरुरत."
बोले, "हमारे यहाँ ऐसा नही चलेगा, काम करोगे तो ही प्रसाद मिलेगा. न तो लिखते हो और न ही लिखने वालों को लाते हो.सब कुछ क्या मेरी जिम्मेदारी है? एक तो मेरी लाल बत्ती की गाड़ी ले गये, विदेश घुम रहे हो और जवाबदारी के नाम पर, 'बड़ा शून्य'."
हमने कहा, 'चिंता न करें, जल्दी ही लिख कर कुछ भिजवाते हैं."
बोले, " क्या भिजवाते-भिजवाते लगा रखा है. अरे, और लोगों को जोड़ो. नये लोगों को लाओ. तुम्हारा लिखा तो भगवान का रचा है. न जाने क्या क्या लिखते हो. वो ख्वाबों की रानी, न जाने क्या लिख कर चैंप दिया, एक्को टिप्पणी नहीं आई. ऐसा ही लिखते रहे तो एक दिन भजिये की दुकान में भजिया तलते नजर आओगे. मैं हितैषी हूँ सो बता भी दे रहा हूँ, वरना आज की दुनिया में कौन बताता है. आगे से इस तरह के पर्सलन मैटर घर में ही सुलटाया करो, पब्लिक में लाने की जरुरत नहीं है. इसके लिये नहीं दी है आपको लाल बत्ती की गाड़ी."
हम तो भाव विभोर हो गये. आँख से आँसू टपक गये. चैट पर ही पैर पड़ लेने का मन हुआ, मगर मुआ स्क्रिन आड़े आ गया.
मैने हिम्मत जुटा कर कहा, "महाराज, हम अकेले थोड़े ही हैं, जो लाल बत्ती लिए घुम रहे हैं, आप संजय को तो कुछ नहीं कहते. और तो और न निधी जी, न सागर, न शुएब, न रवि, सब ऐश कर रहे हैं और जवाबदारी सिर्फ हमारी. यह तो गलत बात है."
बोले, "अभी सब की क्लास ले रहा हूँ, तुम पहले हो वैसे कोई बचने न पायेगा."
मैने कहा, "और आप खुद? आपको कौन कुछ कहेगा."
कहने लगे, "ज्यादा न बोला करो, और कई छिपी चीज जिस पर हम दिन रात जुटे रहते हैं, वो भी देखा करो. जाओ, देखो, कैसा मध्यांतर मस्ती में विभिन्न प्रकार के खेल लाये हैं हम, सुडोकु और शतरंज और अभी एक मेहमान लेखक कॉलम भी ला रहे हैं, एक से एक ब्लागर उसमें लगे हैं लिखने को."
हम तो उनके प्रयास पर नतमस्तक हो गये, अब आप लोग भी देखें और तरकश के लिये भी लिखें, अपने ब्लाग के सिवाय भी.
अब देखिये, परसों ही यह बात हुई और सबकी क्लास ली गई, तो संजय 'तरकश' और रवि 'तरकश' तुरंत हाजिर हुये अपनी बेहतरीन प्रस्तुति के साथ और हम यहाँ, हाजिर ही समझो. भईया, डंडे से खुदा डरता है मगर हमारा शुएब नहीं डरा. अब तक कुछ नहीं भेजा और न ही निधी और सागर ने.
अब चलते हैं, सबको 'तरकश सलाम'.
-समीर लाल 'तरकश'
गुरुवार, नवंबर 16, 2006
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10 टिप्पणियां:
आपको हेड मास्टर होना चाहिए था. :)
अच्छी मौज ली है.
तरकश सलाम !
अरे राम मैरे... :(
काहे बामपंथी बना रहे हो मालिक। :)
स्साला, मुझे तो पता ही नहीं था मेरा करेकटर ऐसा है! :)
बापु लाल सलाम हों मालिक।
तरकश सलाम !
क्या करें समीर जी वक्त ही नही मिलता और ना ही कुछ लिखने का आईडिया है - और तरकश पर लिखने की ज़िम्मेदारी भी तो लिखना ही पडे आखिर अपना तरकश है और उसे सजाने संवारने मे मिल जुल कर काम करना है - आप मैं और पंकज भाई तो लिखते ही है और बाकी ममबर्स कहां है। पंकज भाई तो इस वक्त चैट पर नही हैं जैसे ही मिलें मैं खुद उनकी क्लास लेता हूं ;)
तरकश सलाम !
खुलेआम शोषण हो रहा है आपका. लाल बत्ती की गाड़ी दे कर आपका लाल खून चूसा जा रहा है. वही मैं कहूं कि जब से आपने यह नौकरी पकड़ी है आप इतने दुबले क्यों होते जा रहे हैं.
इनके आफिस के सामने 'मुर्दाबाद' के नारे लगाने हों तो बताइयेगा, नारेबाजी और तोड़फोड़ का 'टर्न की' ठेका लेने का ठेका लिया है हमने. :-)
सुबह जैसे ही आप को छोडा तो फ़ौरन पंकज मिल गये, अब जब आपने कह ही दिया था कि बेचारे की क्लास मत लेना , बडा क्यूट बच्चा है , तो भाई छोड दिया । अगर दोबारा कोई आपकी शान मे गुस्ताखी करे तो बताइयेगा.....एक-2 को देख लूगाँ :)
अरे भाई साहेब क्या आज उठते ही मेरी तस्वीर का दर्शन हो गया था क्या , नही तो इतनी दुर्गती नही हो सकती थी
अगर यही हुआ है तो मैं पंकज को बोलता हु की भांजे सुबह सुबह एक भले मानुष कि ऐसी दुर्गती नही करते , उस पिड़ा को तुम क्या जानो जब किसी कि लाल बती कि गाड़ी छीन जाती है (विश्वास नही होता तो हमारे अटल जी से पुछो)
वैसे ये कलयुगी भांजे मेरे जैसे सत्युगी मामा की बात सुनेंगे लगता तो नही ।
क्या करु आपको तो सांतवना देना मै अपना परम कृत्वय समझा इसलिये आपको ही लिखने मे भलै समझी पंकज को बोलकर अपनी दुर्गती नही कर्वनी है
आपका शुभचिंतक (अपने मियाँ मिठू बनने मे क्या हर्ज है
मनोज सेखानी
आपकी हँसाती तो कभी गुदगुदाती ये प्रविष्टि बेहद पसंद आई ! :)
तरकश सलाम चौकस सलाम या सहारा प्रणाम की तरह लगता है-करे रहो समीर भाई.
Devnagri mein na likhne ke liye kshmaa prarthi hoon.
Kal ek mitr ne youtube per ek kavi sammelan ka link forward kiya tha.
Khol ker dekhne laga to aapko kavita padhte dekh ker man atyant prasann ho gaya.
Mein vyastata ke kaaran agle 2 mahine tak Hindi blogging ko stahgit kar raha hoon.
Per aap sabke (Bengani brothers, Jitu, fursatiaji, aur narad ke sabhi chithhon) chithhon ko niymit roop se padhta hoon.
Is gurutar karya mein apna yogdan dene ke liye aap sabhi to sadhuvaad.
Neeraj,
समीर जी,
भैया जी, ख़्वाबों की रानियाँ बड़ी ख़तर्नाक होती हैं। कहीं ख़्वाब से निकल के आ गई तो साधना जी को क्या बताओगे। कहीं सोते सोते उसका नाम बुदबुदा दिया तो क्या होगा? "राही राही सँभल सँभल पद धरना" पंकज आप के भले की बात कर रहे हैं। मस्ती लेते रहो, नहीं तो जीने का मज़ा ही क्या है।
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