कल विश्व मधुमेह दिवस था। मैं शाम भाभी जी के घर पहूँचा तो बड़ी खूश नजर आ रहीं थी। मेरे पहुँचते ही तपाक से बोलीं, “हैप्पी मधुमेह दिवस, भाई साहब।“
और फिर एक प्लेट में सजी मिठाई इस दिवस के उपलक्ष्य में मेरी तरफ बढ़ा दी गई।
मैने दोनो हाथ जोड़कर क्षमायाचना की और कहा, “भाभी जी, अफसोस कि मै आपकी खुशी में शामिल नहीं हो पा रहा हूँ, जबकि यह त्यौहार विश्व स्तरीय है। मेरी अपनी मजबूरियाँ हैं, मुझे डॉक्टर ने मधुमेह की वजह से ही मिठाई न खाने की हिदायत दे रखी है।“
भाभी जी के चहेरे पर मुस्कान की जगह वाया उदासी, आश्चर्य ने ले ली। कहने लगीं, “जरुर किसी इंडियन डॉक्टर के चक्कर में हैं, आप?”
मैने कहा, “जी, हैं तो वह भारतीय ही, मगर फिर भी है काबिल।“ वैसे यह भी उनके लिये आश्चर्य की ही बात थी, मगर इस वक्त विषय वस्तु मिठाई थी, न कि डॉक्टर।
बोलीं, “अरे भाई साहब, इनको कुछ नहीं मालूम। आजकल डाईट (लो शुगर) मिठाईयाँ आने लगी हैं, और ये सब हिन्दुस्तानी डॉक्टर इससे बेखबर हैं, बस मिठाई खाने को मना कर देते हैं।“
मन में आया कि कह दें, “वो डॉक्टर है, हलवाई नहीं।“
खैर, मैने भी शरमाते हुये और अंदर ही अंदर घबराते हुए मिठाई ले ली और बात का सिलसिला आगे बढ़ा. भाभी जी ने बताया कि कैसे उनके क्लब में मधुमेह दिवस पर विशेष गोष्ठी का आयोजन किया गया था और उसी में ‘शंकर मिठाईवाले’ ने लो शुगर पर कुछ रेसिपिस भी बताईं और अपनी दुकान पर विश्व मधुमेह दिवस के उपलक्ष्य मे लो शुगर की मिठाईयों की सेल भी लगाई थी. खुब जम कर बिक्री हुई.
मैने भी उन्हें नई तरीके की मिठाई सीख जाने की बधाई दी. भाभी जी ने मुस्कराते हुए बताया कि “उन्हें भी पिछले छः माह से मधुमेह है।“
उनका चेहरा देख कर लग रहा था कि मानो, कोई बड़ी उपलब्धी हासिल की हो, इस मधुमेह को पाल कर.
मैने सांत्वना जताई तो एकाएक लगभग भड़क सी पड़ी,” कैसी बात करते हैं आप भी। इसमें कोई दुख की बात थोड़े ही है।“
फिर सामान्य होते हुये, चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट और विजय भाव लाते हुए आगे कहने लगीं,“ आजकल तो मधुमेह का फैशन है, यहाँ पर। मुझे तो जब नहीं था, तब ही मैने क्लब में बता रखा था कि मुझे है, ताकि मैं कहीं ऑड-मेन-आऊट न हो जाऊँ। मैं तो तभी से लो-केलोरी डाइट और शूगर फ्री चाय अपने लिये आर्डर करती थी।“
“इसके कई फायदे हैं-आप किसी के घर जायें तो भी आपकी अलग से खातिर की जाती है। चाय अलग से बन कर आती है। आपको यह राजसी रोग है, यही आपको सोसाईटी में ऊँचा स्थान दिलाता है और साथ ही अगर रक्तचाप भी हो, तो क्या कहने, सोने में सुहागा” उन्होंने अपनी बात आगे जारी रखते हुए, एक आँख हल्की सी दबाते हुए, कहा, “ आप अभी भारत से नये आये हैं, थोड़ा समय लगेगा फिर यहाँ पर भारतीय समाज के भी चाल चलन समझ जायेंगे।“
मैने कहा, “सो तो लग रहा है। जल्दी जल्दी सीख भी रहा हूँ।“
भाभी जी की बात अभी पूरी नहीं हुई थी, सो आगे बोलीं,” वैसे हम यहाँ रहकर भी किसी आम भारतीय से कम भारतीय नहीं हैं। बल्कि यूँ कहें कि ज्यादा ही हैं। हम अपने सारे भारतीय त्यौहार इन्क्लूडिंग करवा-चौथ और छ्ट भी क्लब में सेलिब्रेट करते हैं, और विश्व स्तरीय जैसे यह मधुमेह दिवस और वैलेंटाईन डे आदि भी।“
मैने कहा, “आप जैसों पर ही हमें गर्व है, जो भारतीयता को जिंदा रखें हैं। वरना तो यह कब की दफन हो जाती। आपका बहुत साधुवाद। अब चलता हूँ, इजाजत दें।“
भाभी जी ने भी मुस्कुराते हुये नमस्ते किया और कहा, “ये आपको न्यू ईयर पार्टी का आमंत्रण भिजवा देंगे, आइयेगा जरुर, समाज के बाकी लोगों से भी आपका परिचय हो जायेगा।“
अपनी स्विकारोत्ति देकर मैं चल पड़ा मगर रास्ते भर यह प्रश्न मेरे दिमाग में गुंजता रहा; यह कैसा भारत के भारतियों से ज्यादा भारतीय समाज है, जो १४ नवम्बर को विश्व मधुमेह दिवस तो मनाता है, मगर नेहरु जी के जन्म दिन-बाल दिवस भूल जाता है।
खैर, जैसा भी है, अब तो मै भी उसी क्लब का सदस्य होने जा रहा हूँ, शायद मुझे देख और सुनकर भी कोई नया आया भारतीय कुछ सालों बाद यही प्रश्न उठाये।
बुधवार, नवंबर 15, 2006
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6 टिप्पणियां:
आधा किलो जलेबी खायें फिर मधुमेह दिवस मन जाये
क्या हासिल हो पाता है यदि बाल दिवस को कोई मनाये
केक पेस्ट्री, चाकलेट या हलवाई की सजी दुकानें
इसी बहाने एक बार फिर कोइ तो त्यौहार मनाये
कुरकुरा और चटपटा लेख, और साथ में भाभी जी की सुगर फ्री मिठाईयां - पेट भर गया! आपने कोला और पानी पिलाना बंद कर दिया है क्या?
:)
बहुत खुब!
अरे नहीं नहीं. हम तो भाभीजी के लिए कह रहे है. ऐसी संनारीयो से ही भारतीयता जीवित है. :)
बाकी लेख तो सुगर बढ़ाने वाला है, आजकल हम डॉ. की सलह से सुगर फ्री लेख ही पढ़ते हैं. :)
समीरलालजी चलिए इस बहाने ही सही भारतीयों ने अपनी त्यौहार मनाने की परंपरा तो कायम रखी
वैसे आपको भी मधुमेह दिवस की शुभकामनायें
:-)
यह कैसा भारत के भारतियों से ज्यादा भारतीय समाज है, जो १४ नवम्बर को विश्व मधुमेह दिवस तो मनाता है, मगर नेहरु जी के जन्म दिन-बाल दिवस भूल जाता है।
खैर, जैसा भी है, अब तो मै भी उसी क्लब का सदस्य होने जा रहा हूँ, शायद मुझे देख और सुनकर भी कोई नया आया भारतीय कुछ सालों बाद यही प्रश्न उठाये।
व्यंग्य बाणों के पश्चात इन अंतिम पंक्तियों में तो आपने रक्तविहीन कर दिया, ऐसा लग रहा है जैसे "चिकनगुनियाँ" हो गया है।
खैर आपकी ये पंक्तिया सर्वाधिक घातक रही, बाकी पूरा आलेख ही हमेशा की तरह असरदार तो था ही।
बढ़िया लिखा है। हम भारतीयों को हर तरह के दिवस मनाने अच्छे लगते हैं, खासकर जो फैशन में हो। नेहरू दिवस का और नेहरू का फैशन तो ख़त्म हो चुका है। मैं पिछली बार भारत गया तो एक सिख त्यौहार की छुटटी थी जो पहले कभी नहीं होती थी क्योंकि अब मनमोहनसिंह का फैशन है।
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