चित्र साभार: रिपुदमन पचौरी, हमारे खास मित्र
मैं जो भी गीत गाता हूँ, वही मेरी कहानी है
मचल जो सामने आती, वही मेरी जवानी है
मैं ऐसा था नहीं पहले, मुझे हालात ने बदला
कोई नाजुक बदन लड़की, मेरे ख्वाबों की रानी है.
नहीं उसको बुलाता मैं, मगर वो रोज आती है
मेरी रातों की नींदों में, प्यार के गीत गाती है
मेरी आँखें जो खुलती हैं, अजब अहसास होता है
नमी आँखों में होती है, वो मुझसे दूर जाती है.
मगर ये ख्वाब की दुनिया, हकीकत हो नहीं सकती
थिरकती है जो सपने में, वो मेरी हो नहीं सकती
भुला कर बात यह सारी, हमेशा ख्वाब देखे हैं
न हो दीदार गर उसके, तो कविता हो नहीं सकती.
--समीर लाल ‘समीर’
16 टिप्पणियां:
बहुत खूब , समीर जी, अब दिल की बातें रफ़्ता-2 खुल रही हैं, भाभी जी को मत दिखायीगा, नही तो समस्या हो जायेगी।
यह आपको क्या हो गया है लालाजी? तबियत तो बराबर चल रही हैं ना. ;)या भाभीजी से कहें चिकित्सक के पास ले जाए तथा सपने न आने की कोई दवा (दारू) करवाए.
सुबह-सवेरे पी सी ओन किया तो आपकी पोस्ट का टाइटल सबसे उपर था. बिना लेखक का नाम पढ़े झट से पहुंचे चिट्ठे पर. कहीं देर हो जाती और हम मोहतरमा के दर्शनो से वंचित ना रह जाएं.
फिर देखने की कोशिष की कि कौन भाग्यशाली ऐसे ऐसे ख्वाब देख रहा हैं, एक आध हम भी उधार माँग कर देख ले, तो पता ये चला कुण्डली किंग हैं.
देखो भाई खुब ख्वाब देखो. प्रेरणा लो और कविता करो, हम उसे ही पढ़ कर संतुष्ट हो लेंगे.
नहींह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..............
आप पागल हो गए... पागल हो गए........... या मैं.............
नहींह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
समीरजी इसी तरह सपने देखते रहिए और अच्छी-अच्छी कविताएं लिखते रहिए
क्या बात है भाई साहब बड़े रोमांटिक मूड में हो.....कहीं कुछ चक्कर वक्कर तो नहीं?
वैसे गीत बड़ा सुहाना है।
मगर ये ख्वाब की दुनिया, हकीकत हो नहीं सकती
थिरकती है जो सपने में, वो मेरी हो नहीं सकती
भुला कर बात यह सारी, हमेशा ख्वाब देखे हैं
न हो दीदार गर उसके, तो कविता हो नहीं सकती
बहुत सुंदर लगी ये पंक्तियाँ ।
लगता है समीर जी का ब्लॉग हेक होगया
ये बहकी बहकी मीठी मीठी बातें
उफफफफफ समीर जी आपको दुबई के मौसम का हाल कैसा पता चला?
सम्मर के खतम होते ही आजकल यहां कुछ ऐसे ही मंज़र हैं ;)
उसी के ख्याल आँखों में कभी जब मुस्कुराते हैं
अधर पर आ उतरते गीत बन कर गुनगुनाते हैं
मेरे अस्तित्व पर छाई हुई जादूगरी उसकी
दिवस-निशि बस उसी के स्वप्न बन कर बीत जाते हैं
सभी को यूँ लगा, शायद नशा कुछ हो गया होगा
तभी ये ख्याल मन में आपके कुछ बो गया होगा
नहीं पहचानते,दिल की तहों से बात निकली है
जो ये दुश्वारियों का गम, घड़ी भर सो गया होगा
समीर जी और राकेश जी, आप को बहुत बहुत धन्यवाद!
अब ऐसे मौके पे जहाँ सब को अचरज हो रहा है, मै आप दोनो कविजनों को अग्रिम धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँ, इसलिये कि आप दोनो कृपया २ दिनो के लिये इस रचना को टिप्पणी सहित Copyleft कर दीजिये ताकि मै इसका सदुपयोग कर सकूँ|
आपका आभारी रहूँगा।
ज्यादा कुछ नही बस बढिया है। :)
On 11/3/06, Rajeev Tandon rajeev.tandon AT gmail.com wrote:
समीर भाई,
अब चिट्ठाकार न हो कर मात्र पाठक होने के कारण, मैं आपके नवीनतम चिट्ठे
कोई नाजुक बदन लड़की
पर टिप्पणी करने का अधिकारी तो नहीँ हूँ पर मन नहीँ माना और यह ई-मेल लिख रहा हूँ।
वास्तव में रचना सुन्दर है और मनीष जी ने तो उसके श्रेष्ठतम भाग में निहित फ़लसफ़े को भी चिन्हित कर दिया है।
न केवल कविता मात्र, अपितु, चिट्ठे में प्रयुक्त रेखाचित्र भी सुन्दर है, और कविता के भाव और रस के साथ पूर्ण सामंजस्य रखता है।
आप और आपके मित्र पचौरी जी को धन्यवाद।
--
राजीव
डॉक्टर साहब
अब तो सारी बातें खुल ही गयी हैं, और आपकी तसल्ली को बताता चलूँ कि आपकी भाभी को ब्लाक कर रखा है इस ब्लाग पर. वरना हमारी क्या मजाल कि ऐसी बातें हम यहां लिखते, भले दिल मे लिये लिये आपकी बनाई फोटो हो जाते मगर मूँह न खोलते. :)
रचना पसंद करने का धन्यवाद.
संजय भाई,
अरे भईये, काहे भाभी जी के थ्रू चिक्तसक के पास भेज रहे हो, मरवाने का पूरा इंतजाम करवाना है क्या? हम तो जब मन भर जायेगा, तो डॉक्टर टंडन को दिखाकर मीठी गोली खायेंगे, न मर्ज जायेगा और न इलाज न कराने का गिला रह जायेगा. :) ध्न्यवाद आपकी शुभकामनाओं का.
पंकज
सही कह रहे हो, फोटो तो देखो!! क्या हेंची है रिपुदमन ने, कोई भी पागल हो गुनगुनाने लगेगा. अब तुम भी फंसो, दवाई लो, तभी मर्ज जायेगा.
भुवनेश जी
आपकी शुभकामनाओं के लिये आभार, और आगे आगे देखिये होता है क्या!!
सागर भाई
अरे भईया, अब न तो उम्र रही और न शरीर, चक्कर तो क्या चकरा भी न चले. :)
गीत मे सुहानगी तलाश लेने का बहुत बहुत शुक्रिया.
मनीष जी
चलो, लगता है मध्य प्रदेश की यात्रा से थके मन को कुछ सुकुन मिला इन पंक्तियों से. बहुत आभार, आपने रचना पसंद की.
शुएब
मै तो तुम्हारे ही मंजर बयां करने के चक्कर में इतने लफ़डे में फंस गया, और तुम मजे ले रहे हो, ठीक है भाई, जमाना इसी का है.
धन्यवाद भाई, बातें भले बहकी हुई सी हो, मगर आपको मीठी लगीं, बस मजा आ गया.
राकेश भाई
आपकी दोनों टिप्पणियों ने तो चार चांद लगा दिये रचना में, मैने तो र च मिश्र जी को आपकी टिप्पणी के राईट भी दे दिये हैं, लगता है उनका इस्तेमाल ज्यादा उमदा रहेगा, हम तो सपनों मे रह गये, मिश्र जी हकीकत में इस्तेमाल करेंगे.
धन्यवाद राकेश भाई, आपसे बहुत उत्साह और सहारा रहता है, ऐसा ही स्नेह बनाये रखें.
मिश्र जी
आप तो यह मानें कि हमने आपके लिये ही लिखा है, खुल कर इस्तेमाल करें और जब बात बन जाये तो बताना जरुर, नमक मिर्च लगाकर. :)
धन्यवाद, आपने ध्यान से पढ़ा और आपको काम का लगा हमारा लेखन!! :)
महाशक्ति माननीय प्रमेन्द्र जी
आप आये, वो ही खुब, फिर ज्यादा नहीं कम सही, बढ़िया लगा, सो धन्यवाद. आते रहो, सरहाते रहो. :)
राजीव भाई
आपका खुब धन्यवाद, आपने रचना की तारीफ में अलग से ईमेल करने का कष्ट उठाया किन्तु किंचित कारणॊं से नान ब्लागर्स के लिये इसे खोलना उचित न होगा. वैसे आप हिन्दी में इतना बेहतरीन लिखते हैं तो ब्लाग पर क्यों नही एक एकाऊंट बना कर शुरु होते, आईये, मजा आयेगा. सब मिल बांट कर सुख दुख बांटेंगे. इंतजार रहेगा. कोई भी मदद, ब्लाग शुरु करने में, हमेशा हाजिर है. :)
पचौरी जी की तरफ से भी आपका धन्यवाद.
बढिया है!
भई, ये पंक्तियां तो ग़ज़ब की हैं-- जीओ.. आप भी सौंदर्य के उपासक लगते हैं.
''मगर ये ख्वाब की दुनिया, हकीकत हो नहीं सकती
थिरकती है जो सपने में, वो मेरी हो नहीं सकती
भुला कर बात यह सारी, हमेशा ख्वाब देखे हैं
न हो दीदार गर उसके, तो कविता हो नहीं सकती.''
क्यों ना इस बेहतरीन नज़म को सुन लिया जाए जो कुछ आपकी ही तरह की बात कह रही है.. शुक्रिया अदा करते हुए ये पेश करता हूं समीर जी.
http://www.musicindiaonline.com/p/x/cAfpXacSRS.As1NMvHdW/
ज़रूर सुने हुज़ूर
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