मेरे अंग्रेजी के सबसे पसंदीदा कवि Robert Frost की एक और कविता "Devotion" ने फ़िर दरवाज़ा खटखटाया. १९२८ मे ४ लाईन मे यह लिख गये. देखा, पढा, फ़िर से पढा और फ़िर से पढा-संदेशा तलाशा और 'समीर' चल पडे आपको बताने. मात्र मेरी समझ या नज़रिया है, गहराई मे छिपे संदेशों को खोजने की.इसी लिहाज़ से कविता पढता हूँ कि भईया आखिर क्या कहना चाह रहे हैं, क्या अंर्तद्वंद चल रहा था, उस वक्त उनके मन मे.
Devotion
The heart can think of no devotion
Greater than being shore to the ocean--
Holding the curve of one position,
Counting an endless repetition.
--Robert Frost
अब मेरा नज़रिया देखें(चेतावनी: सहमत होना आवश्यक नही है):
महातपी (महा तपस्वी)
महासागर के तट से जाना
महातप क्या कहलाता है.
लहरों का तांता लगता है
हर व्यथा नई सुनाता है.
सबके दुख को आत्मसात कर
हँसना उन्हे सिखाता है
जीने का विश्वास दिला कर
घर वापस भिजवाता है.
तटस्थ महातपी सागर का तट
जीवन सुख इसमे पाता है.
मानव इससे कुछ तो सिखो
'समीर' हूंकार लगाता है.
--समीर लाल 'समीर'
अपना नज़रिया बताना ना भूलें, कि आप Devotion की चार लाइनों मे छिपे संदेश पर क्या सोचते है.
गुरुवार, अप्रैल 06, 2006
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
ये रचना पढ कर सीधे सीधे अग्येय जी की पंक्तियां याद आ गई....
"मैने देखा,
एक बूद सहसा,
उछली सागर के झाग से,
पल भर में रंगी गई
ढल्ते सूरज की आग से"
आपकी कविता की सबसे सशक्त पंक्तियां है<
महासागर के तट से जाना
महातप क्या कहलाता है.
सबके दुख को आत्मसात कर
हँसना उन्हे सिखाता है
बहुत बढिया पंक्तियां सुनाई आपने अग्येय जी की.
आभार रेणु जी.
समीर लाल
एक टिप्पणी भेजें