मेरा ननिहाल और ददिहाल दोनो ही गोरखपुर, उ.प्र., है मगर मै पैदाईश से लेकर हमेशा जबलपुर, मध्य प्रदेश मे रहा. हमेशा दादी के मुँह से भोजपुरी सुनते थे या माँ पिता जी से, जब वो दादी से बात करें या कोई रिश्तेदार गहन यू.पी. से आया हो.जब कभी गोरखपुर जाना हुआ, तब थोडा और सुना.बस, इतना ही जानता हूँ भोजपुरी के बारे मे. मगर है यह मेरी भाषा, और मुझे अच्छी भी लगती है. अब जितनी भी जानकारी है और जैसी भोजपुरी (हिन्दी मिक्स) मै बोल सकता हूँ, के आधार पर, बस सोचा क्यूँ ना कुछ अलग सा किया जाये और फ़िर उठाई कलम, और शुरु.बतायें, कैसा रहा यह प्रयास:
नज़रन के तुहरे तीर
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नज़रन के तुहरे तीर इहर दिलवा मा लगेला
धडकन मे भईल पीर बरत जियरा सा लगेला
ठुमका लगावत चाल की है बात का कहिन
वनवा मे नाचत जेसन कौनो मयूरा सा लगेला
छतियन पे खडी टिकुर टिकुर ताकती रहिन
रतिया मे वो चमकत कौनो चंदरा सा लगेला
जुल्फ़ि उडत हवाओं मा हररहरर करत रहिन
बदरी उठी है किल्लोल कौनो बदरा का लगेला
खुशबु तोहरे बदन की यूँ छितरात जा बसिन
गेंदा चमेली से सजत कौनो गज़रा सा लगेला
नाम सुन 'समीर' का भौं सिकोड सी लिहिन
हमका तो बुझात तुहार कौनो नखरा सा लगेला.
--समीर लाल 'समीर'
मंगलवार, अप्रैल 25, 2006
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6 टिप्पणियां:
क्या वो पुराना गीत - दिलीप कुमार वाला-
नैन लड जईं हैं तो मनवा मा कसक हुई बे करी,
प्रेम का फ़ुटिहै पटाखा तो धमक हुई बे करी...!!
भोजपूरी है??
विजय भाई
जी, लगता तो भोजपुरी ही है।
समीर लाल
आपका अनूठा प्रयास बहुत भाया दिल को। साधुवाद।
अतुल भाई
बहुत धन्यवाद आपका
समीर लाल
समीर भाई,
बहुत ही अच्छा लिखते है आप, हमेशा इंतज़ार रहता है आपकी नई पोस्टिंग का।
धन्यवाद, जगदीश भाई.
समीर लाल
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