आज़कल जब भी कुछ पढता हूँ, दिमाग दिशा ही बदल लेता है.अब देखिये, आज़ स्नान ध्यान कर के सोचा कुछ ऊँचा साहित्य पढूँ और लगा पढने "अमीर खुसरो" को. देखिये, क्या मैने पढा:
अब दिमाग तो दिमाग, चल पडा अपनी रफ़्तार से, बहुत समझाया, नही माना. आप भी देखें कि बिल्कुल हाथ से निकला जा रहा है और क्या क्या लिखता है कुण्डलियाँ टाईप, कुण्डलियाँ इसलिये नही कि मात्रा का टोटल (सही मात्रा की जानकारी के लिये यहाँ http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/Chhand.htm देखें, बडी सरलता से समझाया है पूर्णिमा जी ने) नही बैठ पा रहा है(वैसे ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ ही नही हो रहा, अच्छे अच्छे दिग्गजों के साथ यही हुआ है)...बस वहीं चुक गये. :):
//१//
कनाडा की ठंड
खुसरो दरया प्रेम का उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डुब गया जो डुबा सो पार
जो डुबा सो पार हम तो तैर ना पायें
नाव खडी हो पास तबही डुबकी लगवायें
कहे 'समीर' कविराय इस मौसम मे उतरो
ठंड नही क्या वहां जहां रहते हैं खुसरो.
//२//
हेयर स्टाईल
गोरी सोवय सेज पै मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने सांझ भइ चहुं देस
सांझ भइ चहुं देस यहाँ तो भया सबेरा
अमरीका है भाई नही ये देस वो तेरा
कहे 'समीर' कविराय लगे है देसी छोरी
छोटे रखते केस यहां तो सबहिं गोरी.
//३//
खीर की चाह
खीर पकाइ जतन से चरखा दिया जला
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा
तू बैठी ढोल बजा और मै गाऊँ गाना
फ़िर कब खीर बनाओगी बतलाओ जाना
कहे 'समीर' कविराय कि तेरी कोहू न समझे पीर
कुत्ते ने जो छोडी है उसहि से गटका ले कुछ खीर.
//४//
नुस्खा
खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग
तन मेरो मन पीउ को दोऊ भये एक रंग
दोऊ भये एक रंग पढहिं हम गोरी से ब्याहे
जागत हर एक रैन रंग श्यामल ही पाये
कहे 'समीर' कविराय रंग ऐसे ना उजरो
धरे और कोई नुस्खा हो तो दे दो खुसरो.
बस, बहुत हो गया...तो मैने किताब बंद कर दी..नई किताब खोली और अबके हाथ लगे 'कबीर'..हर दोहा पढूँ और एक ताजी खबर याद आये और बने एक और कुण्डली..पढें:
अब ताज़ा हेड लाईन्स के साथ कुण्डली:
//१//
योगा महात्म
कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय.
बहरा हुआ खुदाय उन्हे हरिद्वार भिजाओ
बिन दवा के योगा से उपचार कराओ.
कहे 'समीर' कविराय कि ऐ भोले शंकर
जो योगा ना कर पाये उसे तुम मारो कंकर.
(// योगा=योग का अंग्रेजी स्वरुप//)
//२//
बुश की भारत यात्रा
जाति न पुछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का पडा रहने दो म्यान.
पडा रहने दो म्यान ये अब ना काम करेगी
अमरीकी मिसाईल से आखिर कहाँ लडेगी
कहे 'समीर' कविराय कि भुनाओ अपनी पाती
साहब से तुम डील कराओ ना पूछो जाति.
//३//
मेरठ मे मज़नू
पोथी पढ पढ जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय.
पढे सो पंडित होय नही तो रोते रहना
जो रस्ते मिल जाये उसी से इलू कहना
कहे 'समीर' कविराय कि कथा मेरठ की होती
तब मै भी कहता कि बेटा तू पढ ले पोथी.
(// इलू=I love you..://))
//४//
बनारस मे बम धमाका
ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोये
अपना तन शीतल करे औरन को सुख होए.
औरन को सुख होए इसी से लूटिया डुबी
हिम्मत इतनी बढी कि बम बन कर के फूटी
कहे 'समीर' कविराय कि ये हरकत है जैसी
आतंक भी कंप जाये सजा दो इनको ऐसी.
और लिख्नना था मगर दोहा कहाँ कहाँ से लाऊँ.कुछ गैरत ने भी झकझोरा कि कब तक उधार लेते रहोगे, मन कहने लगा:
दोहे खुद के सीखिये, कब तक लिखें कबीर
खुसरो भी अब ना रहे,अब का करें समीर.
अब का करें समीर कि अब खुद ही सीखेंगे
यहाँ वहाँ से टीप कछहु तो लिख ही लेंगे
कहे 'समीर' कविराय तबहि हम मनहिं लोहा
कुण्डलियां जब लिखें लगा कर अपना दोहा.
अब आगे से खुद के दोहे भी लिखूँगा, झेलने तैयार रहिये.
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बचाव कवच: इस पोस्ट से अगर किसी की भावना को ठेस पहुँची हो ( मय बुश के) तो माफ़ करियेगा. बिना माफ़ी मांगे गुजारा भी तो नही है.
बस अब आज के लिये इतना ही .बाकी फ़िर कभी.
शनिवार, अप्रैल 08, 2006
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14 टिप्पणियां:
समीर जी बहुत बढ़िया लिखा है, प्रयास पूर्णतः सफल है।
कुंडलियों के नियम तो मालूम नहीं लेकिन पढनें में बहुत मज़ा आया । बस इसे ही कविता की सार्थकता समझो तो 'पूर्णत: सफ़ल' हुई ।
और इन्तज़ार रहेगा ..
बढ़िया कुंडलियां लिखी हैं।
कुण्डलियों के नियम का बढ़या पालन करते हुए समीर जी एक बार फिर काव्य जगत पर छा गए हैं। मैंने एक बात अनुभव की है कि कम लोग यह जानते हैं कि कुण्डलियों में पहला और आखिरी शब्द एक ही होना चाहिए। बहुत सी कुण्डलियों में यह अशुद्धि पाई जाती है। जैसे यह देखें,
डाक्टर बाबू कह रहे सुबह सवेरे जाग,
बिस्तर बिखरा छोड़ के चार मील तू भाग,
चार मील तू भाग छोड़ दे घी और शक्कर,
सेब संतरा चाप लगा गाजर के चक्कर,
अंग्रेज़ों की तरह यदि उबला खाएगा,
दो महीनें में बिल्कुल ही दुबला जाएगा।
यह नियमानुसार अशुद्ध है, परंतु कविता हिट है। हमनें अनेक रचनाकारों को इस प्रकार लिखते देखा है, ऐसा जानकारी के आभाव के कारण होता है। खैर समीर जी, आपको बहुत शुभकामनाएँ, इतनी आनन्दमयी कुण्डलियाँ पढ़वाने हेतु। आशा है कि शीघ्र ही आपके स्वर में यह हमें सुनने को भी मिलेंगी।
आफिस माचिस संग ले कुण्डली दई बनाय,
खुसरो और कबीर पे मन्द समीर बहाय,
मन्द समीर बहाय कि पढ़नेवालो होयो खुश,
बुरा नहीं मानेंगे इसका कौनू मिस्टर बुश,
गूँज रही यह बात चलेगी अब ना साज़िस,
रोक नहीं पाएगा कविताई को आफिस।
समीर जी, शीघ्र १५१ कुण्डलियाणाँ पूर्ण कर पुस्तक का स्वरूप तैयार कीजिए। यह दोहों का रूपांतरण अच्छा प्रयोग है।
अनूप जी, आपका धन्यवाद कि हमको यह सूत्र आपने भेजा।
अभिनव
प्रेमलता जी, अनूप जी, शुक्ल जी,
बहुत बहुत धन्यवाद हौसला अफ़जाई के लिये.
समीर लाल
अभिनव भाई
आपकी पुस्तक के विमोचन के दौरान आपके बारे मे सुना था और आज़ देख कर सुखद अनुभव हुआ. प्रशंसा के लिये एवं उत्साहवर्धन के लिये बहुत धन्यवाद.
ऎसे ही प्रोत्साहन मिलता रहेगा, तो जरुर लिखेंगे और किताब भी निकालेंगे.
आपकी कुण्डली भी बहुत पसंद आई.
अनूप भार्गव जी का बहुत आभार, इस सूत्र को आप तक भिजवाया.
समीर लाल
very good kundalini naresh !
mogambo khush hua.
ध्न्यवाद, कालीचरण भाई.
अच्छा लगा मुगाम्बो को खुश देख कर.
समीर लाल
शानदार है भई, छा गये आप तो। मजा आ गया।
बहुत खुब, कसम से मजा आ गया. तो अगला कुण्डली पाठ कब कर रहें हैं.
समीर जी,
आनन्द आ गया आपकी कुंडलियाँ पढ कर.
हिन्दी साहित्य की बहुत सारी बातें तो हमें यहीं आकर पता चली हैं, वाकयी बहुत उपयोगी जानकारी मिलती है.
आपको बहुत शुभकामानाऐं.
और हम भी लठ्ठ घुमा दिये हैं थोडा सा--
देख सबको लिखता हमें भी आया जोश,
पर लिखने कि जोश में खो बैठे थे होश,
खो बैठे थे होश मगर अब सब समझ गये हैं,
ब्लाग की दुनियाँ में यारों हम तो नये नये हैं,
अब भले ही निकालो तुम ढेरों मीन मेख,
हम तो यूँ ही लिखेंगे तू रोक के तो देख।
जीतू भाई
बहुत धन्यवाद कि आपको पसंद मेरा ये नया प्रयास.
संजय भाई
बहुत धन्यवाद, अब आदेश हुआ है, तो जल्द ही अगला पाठ सुनाते हैं.हम तो इन्तजार मे ही थे कि कोई कहे और हम शुरु. :)
विजय भाई,
धन्यवाद,
बहुत बढिया, लठ्ठ घुमाते रहें, मीन मेख की चिन्ता न करें, बस लिखते रहें, अच्छा लिखे हैं.
बधाई.
समीर लाल
क्या लिखा है!!!
बहुत धन्यवाद,पंकज भाई.
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