शनिवार, फ़रवरी 08, 2025

इससे बड़ा सेलेब्रिटी स्टेटस भला और कौन सा होगा

 

अब तिवारी जी को अफसोस हो रहा है कि वो समय पर क्यूँ नहीं चेते। उनके चेहरे पर चिंतन, अफसोस और गुस्से की त्रिवेणी बह रही है। अफसोस का विषय भी त्रिवेणी से ही संबंधित है अतः त्रिवेणी अकारण ही नहीं है चेहरे पर।

उनके क्षोभ के केंद्र में उनके पिता जी हैं जिनको गुजरे हुए भी 30 बरस हो चुके हैं। दरअसल उनके पिता जी ही नहीं, दादा जी भी इसी शहर की उन्हीं गलियों में बड़े हुए जिसमें तिवारी जी स्वयं बड़े हुए। इस मामले में यह शहर उनका पुश्तैनी शहर है। छोटा है मगर है तो पुश्तैनी शहर। दादा जी की तरह ही तिवारी जी के पिता जी को भी इस बात का गर्व था और वही पुश्तैनी गर्व तिवारी जी को भी विरासत में मिला था जिसे वह अब तक सर पर बैठा कर रखते थे। जवानी में कोई कहता भी कि किसी बड़े शहर में जाओ और कुछ बड़े काम को अंजाम दो, तो तिवारी जी तमतमा जाते। कहते कि होते होंगे नमकहराम लोग मगर हम चंद सिक्कों की ख्वाहिश में अपने प्यारे शहर को कभी नहीं छोड़ेंगे। फिर वो नोसटॉलजिक हो जाते।

कैसे छोड़ दें यार इस शहर को। यहाँ की सड़कें, यहाँ की गलियां यहाँ के लोग, इस शहर की आबो हवा -सब तो अपनी हैं। आज तक जो भी पहचान मिली है, जो भी मुकाम हासिल किया है- सब इसी शहर की तो देन है और लोग कहते हैं कि किसी बड़े शहर चले जाओ? ये भी क्या बात हुई? बड़े शहर में भी खाएंगे तो रोटी दाल ही तो वो तो यहाँ भी मिल ही रही है, फिर किसलिए पैसे के पीछे भागें?

खैर यह तो तिवारी जी कह रहे हैं मगर जानने वाले तो जानते ही हैं कि पहचान के नाम पर सिर्फ चौराहे पर पान की दुकान पर फोकट में ज्ञान बांटना और मुकाम के नाम पर नित घर से निकल कर पान की दुकान और रात में दारू पी कर घर वापसी से आगे कुछ भी हासिल न हुआ ताजिंदगी।

थोड़ा बहुत जो पैसा आता है वो या तो दलाली से या किराये से- एक कमरे की दुकान जो एक कमरे के घर के नीचे विरासत में मिली। दलाली भी नगर निगम के कामों की किया करते क्यूंकी पार्षद उनका शागिर्द रहा हमेशा से। उसे भी ऐसे ही खाली लोगों की जरूरत रहती है चुनाव जीतने के लिए। लोग बताते हैं कि बंद कमरे में ये पार्षद महोदय के पैर छूते हैं मगर चौराहे पर उनकी अनुपस्थिति में उन्हें अपना चेला और शागिर्द बताते हैं ताकि दलाली चलती रहे।

तिवारी जी की महारत जिंदा लोगों को मरे का सर्टिफिकेट दिलाने में थी। इसमें मोटा पैसा भी था। प्रधानमंत्री रोजगार योजना में एक लाख का कर्ज लेकर उसे माफ कराने का एक मात्र तरीका था कि ऋणधारी की मृत्यु हो जाए। बस यही महीन शब्दों में लिखी जानकारी तिवारी जी के हाथ लग गई थी। तब से प्रधान मंत्री से ज्यादा इस योजना का प्रसार प्रचार तिवारी जी करने लग गए। सबसे कहा करते कि सरकार तुम्हें कर्ज देगी, मैं तुम्हें कर्ज माफी दिलाऊँगा। 25% दलाली पर भला कौन न मान जाता वो भी ऐसे शहर के वाशिंदे -जहां कर्ज ही एक मात्र पूंजी है लोगों की। वरना विकास के नाम पर ब्याज का ही विकास होता आया है।

खैर, तिवारी जी के अफसोस का विषय आज यह रहा कि इनके पिता जी बचपन में इनको लेकर मुंबई या दिल्ली क्यूँ नहीं चले गए? कुछ ढंग का काम करते। बच्चों को पढ़ाते लिखाते। तो तिवारी जी भी ऐरोस्पेस साइंस में आईआईटी कर लेते और आज इस दिव्य कुम्भ में आईआईटी वाले बाबा बन कर सेलेब्रिटी स्टेटस पा गए होते।

अब तिवारी जी को कौन समझाए कि दिल्ली मुंबई में भी 12 वीं फेल बच्चे बैठे हैं- सब बच्चे आईआईटी में नहीं चले जाते हैं। छोटे छोटे कस्बों से भी बच्चे आईआईटी में जाते हैं। साथ ही हर आईआईटी पास कर लेने वाला बच्चा बाबा नहीं बन जाता और हर बाबा आईआईटी वाला नहीं होता।

और जहां तक सेलेब्रिटी स्टेटस की बात है तो वह तो आप गाँव में चाय बेच कर और 12 वीं फेल होकर भी पा सकते हैं। जरूरत है जज्बे की। महा जन नायक से बड़ा सेलेब्रिटी स्टेटस भला और कौन सा होगा।

-समीर लाल ‘समीर’    

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार 9 फरवरी, 2025 के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/15907

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