सोमवार, मई 08, 2017

कड़ी निंदा


उनको इतना समझाया था कि चाहे भड़काऊ भाषण देकर देशद्रोह कर लो या कंपनी खोलकर करोड़ों का घोटाला कर लो या  बैंक से दूसरों की कमाई का हजारों करोड़ पैसा लेकर देश से भाग जाओ या नहीं तो गोरक्षक सेना में ही शामिल होकर गुंडागीरी कर लो..
इतना भी न बन पड़े तो लव जेहाद के नाम पर प्रेमी युगलों को मारो...या फोकट में  आते- जाते एयरलाईन के कर्मचारियों को जूते से पीट लो  कोई कुछ नहीं कहेगा. .. ज्यादा से ज्यादा कुछ माह की जेल हो जायेगी फिर छूट जाओगे ..
या फिर चाहो तो सेना के जवानों को थप्पड़ मारो या पत्थर से मारो, बदले में प्लास्टिक की गोली से गुदगुदा दिये जाओगे, बस्स!
ये भी न चले और ज्यादा ही कुछ करने का मन हो तो बलात्कार कर लो..नाबालिग हुए तो तीन साल में छूट जाओगे वरना सात साल में..या ज्यादा से ज्यादा फाँसी चढ़ा दिये जाओगे..मगर कोई कुछ कहेगा नहीं...
इन्सान सब झेल सकता है मगर अपना अपमान नहीं.... और किसी ने ज़रा सा कुछ कह दिया तो मान की हानि यानि घोर अपमान हो सकता है
इसीलिए मना किया था कि कभी ऐसा हमला न करना जिसमें बड़े लोग नाराज हो जायें और नाराज हो कर अपमानित कर दें.
बड़े लोग नाराज होते हैं तो ऐसा हिकारत भरा चेहरा बना कर कड़ी निंदा करते हैं कि लगने लगता है अरे सर!! प्लीज..गोली मार दो मगर निंदा न करो. और उस पर इतनी कड़ी निंदा..
जब जब भी ऐसी नाराजगी की बात होती है तो बड़े लोग तुरन्त बयान जारी कर कृत्य की कड़ी निंदा तो करते ही है..साथ में इतनी जोर की आवाज में मुँह तोड़ जबाब देने की चेतावनी देते हैं कि चाहे नक्सली हो या आतंकवादी, भीतर तक दहल जाता है...कड़ी निंदा से अपमानित हो अवसाद से भर कर आत्महत्या कर लेने का मन बना बैठता है.
मगर बड़े लोगों की नाराजगी की क्या कहें कड़ी निंदा पर भी नहीं रुकते...हर बार कहते हैं कि अगर अब भी न समझे...तो यहाँ तो मारेंगे ही..घर में घूस कर भी मारेंगे.
बाप रे बाप!!! इसके बाद भला वो अपने घर में रुकेंगे क्या? घर ही बदल देते होंगे पक्का!! वैसे कभी न इस पार मारा न कभी उस पार घूस कर..अतः जमीनी हकीकत का अंदाज तो है नहीं कि घर बदल देते होंगे कि नहीं?
वैसे एक बात तो है इन बन्दों की रिकवरी रेट अर्थव्यवस्था की रिकवरी रेट से बहुत तेज है.
नोटबंदी के बाद दावा था कि अब न पत्थर फिंकवाने के लिए पैसे बचे हैं प्रायोजकों के पास और न नक्सलियों के पास गोली बारुद खरीदने के...अर्थ व्यवस्था को तो खैर पूर्वावस्था में आने में अभी बरसों लगेंगे मगर ५ महिने में जिस तरह से यह पत्थरबाजी के प्रायोजक और नक्सलवादी  पूर्वावस्था को प्राप्त हुए हैं..चौंका देने वाला है. उनका अर्थ व्यवस्थापिक ग्रोथ !!
इनकी इस त्वरित रिकवरी की कड़ी निंदा होना चाहिये और इस रिकवरी को मुँह तोड़ जबाब दिया जाना चाहिये.
वैसे ज्यादातर बड़े लोग कड़ी निंदा करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है. हालातों की समीक्षा के लिए तुरंत समय नहीं रहता है इसलिए १५ दिन बाद की बैठक बुलाई जाती है.
निंदा,मुँह तोड़ जबाब की धमकी और समीक्षा बैठक के बाद फाईल बंद कर दी जानी है हमेशा की तरह..एक नई घटना के इन्तजार में.


-समीर लाल ’समीर’

#JugalBandi #जुगलबंदी
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5 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

वाह भाईजी
अब लगता है नए सिरे से बात कहना सीखना होगा,

Arun sathi ने कहा…

करारा प्रहार


हमेशा की तरह

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

कबीर कह गये हैं -निंदक नियरे राखिये ,अँगना कुटी छवाय .
अत्यंत निरापद वस्तु है .

Unknown ने कहा…

बहुत खूब कहा

Unknown ने कहा…

बहुत खूब । मुहतोड़ जबाब हम कब देगे ।। कृपया मुझे भी पढ़े और अच्छा लगे तो follow करे ।।