सोमवार, मार्च 17, 2025

जगाओ कुछ सीखने की ललक अपने अंदर भी

 


कौन कब क्या किससे सीख ले कुछ कहा नहीं जा सकता है। कहते हैं कि अगर कुछ सीख लेने की सच्ची ललक मन में ठान लो तो गुरु स्वयं प्रकट हो जाता है। यही प्रकृति का नियम है। कई बार तो गुरु प्रकट होता है और वो सिखाने से मना कर देता है, तब पर भी सच्चा सीखने वाला छिप छिप कर सीख लेता है। जैसे कि एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से सीख लिया था। हालांकि छिप छिप कर सीखने की ट्यूशन फीस में अंगूठा काट कर देना पड़ा। आजकल के जमाने में तो सामने सामने एग्रीमेंट करके सिखाओ तो भी ट्यूशन फीस की वसूली का काम वसूली एजेंसी को देना पड़ता है।

इधर घँसू को यही ज्ञान तिवारी जी ने दे दिया। घँसू को यह बात बहुत जंची। उसने ठान लिया कि वो भी अपने अंदर सीखने की सच्ची ललक जगाएगा और सीख कर मानेगा। मुश्किल बस यह थी कि उसे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उसे सीखना क्या है? बहुत दिन इसी उधेड़ बून में गुजर गए मगर इस यक्ष प्रश्न का कोई हल न मिला। अतः इसी प्रश्न के साथ घँसू पुनः तिवारी जी शरण में पहुंचे। तिवारी जी ने बताया कि यह तो गहन विमर्श का विषय है, शाम को इंतजाम से आओ तब विचार करते हैं।

तिवारी जी यूँ तो सारा दिन पान की दुकान पर बैठे देश और विश्व की हर तरह की समस्याओं पर ज्ञान देते रहते हैं कि आर्थिक मंदी हटाने के लिए सरकार को क्या करना चाहिए। रोजगार की समस्या का क्या निदान है। रूस यूक्रेन युद्ध कैसे रोका जा सकता है। उनके लिए यह सब मामूली समस्याएं है, जिनके निदान के लिए गहन विमर्श की आवश्यकता नहीं है। वैसे अगर गहरे उतर कर देखें तो वाकई में इन समस्याओं के निदान की बागडोर जिन हाथों में सौंप कर हम सब इनके हल का इंतजार कर रहे हैं, वो खुद अधिकतर बारहवीं पास हैं। ध्यान भटकाने और आपस में लड़वाने की कला में महारथ हासिल करने के सिवाय वो भी तो तिवारी जी की तरह ही ज्ञान बाँट रहे हैं। सौ तीर चलाओ, एक तो निशाने पर लग ही जाएगा। कभी नोट बंद, कभी वोट बंद और कभी किसानों के लिए रोड बंद – सब बंद हो लिया मगर समस्याओं का सिलसिला न बंद हुआ और न बंद होगा। राजनीति की दुकान ही समस्याओं से चलती है – अगर समस्याएं ही न रहीं तो दुकान कैसी?

बहरहाल वापस घँसू की समस्या पर आते हैं। उसे पता था कि तिवारी जी गहन विमर्श की अवस्था में शाम को दो पैग लगाने के बाद आते हैं। अधिकतर लोग इसी अवस्था में पहुँच कर अथाह ज्ञान बांटने में सक्षम हो पाते हैं और वो भी अंग्रेजी में। एक बार तो किसी ने तिवारी जी को रिकार्ड कर लिया था। उनके बोले अंग्रेजी के शब्द ऑक्सफोर्ड डिक्शनेरी में तक नहीं थे। यह बात जब तिवारी जी को अगली शाम पुनः विमर्श अवस्था में बताई गई तब उन्होंने बताया कि अभी ऑक्सफोर्ड डिक्शनेरी वर्क इन प्रोग्रेस है – धीरे धीरे ही उनकी अज्ञानता के बादल छटेंगे। ऑक्सफोर्ड वाले अच्छा काम कर रहे हैं। धीरे धीरे प्रगति पथ पर अग्रसर हैं – मुझे उनसे बहुत उम्मीद है और मैं उन्हें उनके कार्य हेतु साधुवाद देता हूँ। रोम भी एक दिन में नहीं बना था - अतः उन्हें वक्त दो।

शाम तय समय पर घँसू बोतल, भुना मुर्गा आदि जरूरी सामग्री लेकर हाजिर हो गए। तिवारी जी यूँ तो पूर्ण शाकाहारी हैं – उन्हें याद नहीं कि कभी भी उन्होंने मांसाहार लिया हो। मगर दो पैग के बाद की अन्य बात भी उन्हें कब याद रही है। अतः दो पैग के बाद मुर्गा भी चला और ज्ञान का प्रवाह भी। विमर्श चाय बनाना सीख कर चाय की दुकान खोलने से शुरू हुआ और बढ़ते बढ़ते राजनीति में कदम रखने तक पहुँच कर रुका नहीं। चौथा पैग मुख्य मंत्री की कुर्सी और पाँचवा -अहा! देश प्रधान – छठा – विश्व गुरु!!

सुबह जब घँसू जागे तो सब क्लियर था – राजनीति सीखना है। और यह ऐसा विषय है कि कोई सिखाने को तैयार होगा नहीं तो छिप कर सीखना होगा।    

अब घँसू छिप छिप कर – ताक झांक कर सीख रहे हैं। बड़े बड़े राजनीतिज्ञों की हरकतों को छिप छिप कर देख रहे हैं – कभी सर्किट हाउस की खिड़की से तो कभी किसी होटल के कमरे में – नोटस बना रहे हैं। अभी तक घूसखोरी, योन शोषण, झूठ बोलना, मक्कारी, दोगलापन आदि पर काफी अच्छे नोटस तैयार हो गए हैं। आशा है कि अगर इसी लगन के साथ घँसू सीखते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस विधा में महारत हासिल कर एक दिन वो इस देश को दिशा दिखा रहे होंगे और हम सब रेडियो में कान गड़ाए घँसू की मन की बात सुन रहे होंगे।

उम्मीद है कि आज आप में भी कुछ सीखने की ललक जाग ही गई होगी। वरना अपने आस पास वाले किसी तिवारी जी को खोजिए- हर जगह तो हैं वो!!

-समीर लाल ‘समीर’           

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के सोमवार मार्च 17, 2025 के अंक में:

https://epaper.subahsavere.news/clip/16654


 

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2 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 24 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

निसंदेह मनुष्य में कुछ अच्छा सीखने की ललक हमेशा रहनी चाहिए