यह एक नया युग है। आप चाहें तो इस युग को उत्तर प्रदेश की भाषा में भौकाल का युग भी कह सकते हैं। भौकाल युग कई अर्थों में महाकाल के युग से बड़ा हो गया है। सचमुच का कोई युग हो तो उसकी सीमा रेखाएं होती हैं। मगर जिस युग में बस भौकाल काटा जाता हो उसकी भला क्या सीमा। जो जहाँ तक सोच पाए वो वहाँ तक कर जाए और जितना चाहे उतना कमा जाए।
इस युग के प्रारम्भिक काल
में सुनने में आया था कि अमेरिका कनाडा के फ्यूनरल होम में इलेक्ट्रिक फ़रनेस में
इतनी हीट और प्रेशर से मृत शरीर को गुजारते हैं कि उसकी अस्थियाँ दूसरी तरफ से
हीरा बन कर निकलें। पत्नी अपने मृत पति को हीरे के रूप में अपनी अंगूठी में जड़वाकर
सदा साथ होने का अहसास लिए बाकी का जीवन सुखमय गुजारे।
जीते जी जिसे हीरे की अंगूठी
की उम्मीद में हमेशा अपनी ऊँगलियों के इशारों पर घुमा घुमा कर परेशान कर डाला, वो
अब स्वयं हीरा बन कर अंगूठी में जड़ा उसकी उंगली पर ताजिंदगी घूमेगा – इससे बड़ा
भौकाल और कौन काट सकता है? इसके लिए तो जो भी कीमत चुकानी पड़े वो कम है और इस बात
को फ्यूनरल होम ने बखूबी समझा और कमाई का जरिया बनाया।
वहीं दूसरी तरफ श्राद्ध में
पितरों की आत्मा की शांति के लिए कौव्वों को भोजन कराने की परंपरा रही है। जैसे
जैसे शहर पेड़ों के बदले कोंक्रीट के जंगलों में परिवर्तित हुए, कौव्वा इस परंपरा
से अनिभिज्ञ धीरे धीरे शहरों के लिए विलुप्त प्रजाति होता गया। पुनः कुछ भौकालियों
को कौव्वों की इस विलुप्तता की आपदा में अवसर नजर आया और वो सचमुच के जंगल से
कौव्वा पकड़ कर शहर ले आए और श्राद्ध के मौसम में श्रद्धा अनुसार चढ़ावा लेकर सभी के
पितरों की आत्मा को शांति पहुंचा कर भौकाल काटने लगे। परंपरा बनी थी यह सोच कर कि
मृत आत्मा कौव्वे के रूप में आकर भोजन गृहण करेगी किन्तु इस भौकाली युग में एक ही
कौव्वे में कई पितर पैकेज डील में चले आ रहे हैं और उस कौव्वे को पिंजरे में कैद
कर उसका मालिक मोटी कमाई कर रहा है वरना कौव्वा कब किसी पिंजरे का पंक्षी रहा है-
यह बस इस भौकाली युग में ही संभव है।
इधर मृत आत्माओ के नाम
कौव्वे से लोगों को कमाता देख इसी मृत आत्मा इंडस्ट्री से जुड़े अन्य लोग भी भौकाली
काटने के उपाय सोचने लगे। किसी को विचार आया कि आज जिस हिसाब से युवाओं में
पश्चिमी देशों में जाकर बस जाने की होड लगी है चाहे लीगल या इललीगल डंकी तरीके से –
इन युवाओं को भला कब समय मिलेगा या ईललीगल जा बसे लोगों को क्या रास्ता बचेगा कि
जब उनके माँ बाप गुजरें तो आकर उनका अंतिम संस्कार कर पाएं। ऐसे में नया प्रचलन शुरू
हुआ कि हम अंतिम संस्कार से लेकर पाँच नदियों में अस्थि विसर्जन और ब्राह्मण भोज का
इंतजाम करते हैं – अलग अलग पैकेज हैं। सब ही कर्म कांडों के वीडियो और कुछ एक्स्ट्रा
पेमेंट में आपकी फोटो एआई के माध्यम से ओवरले करके ताकि ऐसा नजर आयें कि आप ही सब
संस्कार कर रहे हैं। पैकेज खूब चल निकला और बड़ी कमाई का जरिया बना – भौकाल ही तो
है। न आप हैं और न ही आपके संस्कार। मगर कैमरा और एआई आपको परम संस्कारी दिखाकर
मानेगा- वाह रे यह भौकाल का युग। क्या क्या न हो जाए।
आज सुना कि प्रयागराज में
लगे महा कुम्भ में पाप काटने के लिए आपको जाना जरूरी नहीं है। एक स्टार्ट अप खुली है।
आप उसे अपनी तस्वीर भेज दें। वो उसे प्रिन्ट करके संगम में न सिर्फ डुबकी लगवा
देंगे बल्कि उसकी वीडियो बनाकर आपको वापस भी भिजवाएंगे और अपने सोशल मीडिया से
अपने फॉलोवर्स को भी भेजेंगे उसे वायरल कराने। आप फिर उसे अपने सोशल मीडिया से
वायरल कर लें। कीमत मात्र 1100 रुपये। लोग फोटो भेज रहे हैं, वो उनको डुबकी लगवा
कर पुण्य दिलवा रहे हैं – अब इससे बड़ा भौकाल और क्या कटेगा, यह तो आने वाला समय ही
बतलाएगा।
हर युग अपने आप में एक कमाल
का युग होता है तो मजे लीजिए इस भौकाली युग के जिसमें आप जी रहे हैं।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे के रविवार फरवरी 23, 2025 के अंक में:
https://epaper.subahsavere.news/clip/16168
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