आपने बहुत से दानी देखे और सुने
होंगे। कर्ण को तो खैर दानवीर की उपाधि मिली
हुई थी। उनको दानवीर कर्ण के नाम से ही जाना जाता था।
बहुत साल पहले जब मैं मुंबई
में रहता था तब एक सज्जन से मुलाकात हुई थी। वह अपने व्यापार को अपने बच्चों को
सौंप कर दिन भर दान धर्म में जुटे रहते। वह सुबह सुबह बॉम्बे अस्पताल के नीचे दवा
की दुकान के पास आकर खड़े हो जाते। जब भी कोई दवा खरीदने आता और उसके पास या तो
पैसे नहीं होते या कम होते तब यह सज्जन चुपचाप उसका पैसा भर कर उसे दवा दिलवा
देते। न कभी किसी से अपना नाम बताते और न ही कभी किसी से अपना काम बताते। वह दवा
की दुकान मेरे मित्र की थी और मैं अक्सर वहाँ बैठा करता इसलिए इनको जान गया था।
सुबह से शाम तक में न जाने कितने लोगों की मदद कर जाते।
वहीं आजकल ऐसे दानवीर पैदा
हो गए हैं कि दान देने के पहले अपने नाम की घोषणा सुनिश्चित कर लेते हैं। किस
पत्थर पर उनका नाम खोदा जाएगा और फिर उसे भवन में कहाँ जड़ा जाएगा, यह जानना दान से
अधिक जरूरी होता है उनके लिए।
वो रकम दान के लिए नहीं नाम
के लिए देते हैं। हमारे मोहल्ले में एक हनुमान मंदिर बन रहा था। मोहल्ला सेठ ने उस
जमाने में 5000 रुपये दान की घोषणा कर दी जबकि पूरा मंदिर ही 50000 रुपये में बन
जाने वाला था। जमीन कब्जे की सरकारी, लेबर मिट्टी भक्तों की। सेठ जी का नाम भव्य
शिला पर खोद कर ऐसे लगाया गया कि हनुमान जी का नाम एकदम छोटे अक्षरों में नजर आता।
कई बार तो कन्फ़्युजन हो जाता कि यह सेठ जी का मंदिर है जिसे हनुमान जी ने दान देकर
बनवाया है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में निश्चित ही सेठ जी ही मुख्य अथिति रहे और
हनुमान जी के जयकारे से ज्यादा उनके जयकारे लगाए गए। बाद में पता चला कि मंदिर का
पंडित साल भर तक सेठ जी के घर के चक्कर लगाता रहा मगर सेठ जी ने घोषित दान के 5000
रुपये कभी दिए ही नहीं। जब पंडित ने ज्यादा जोर लगाया तो उन्हें दान पेटी से चोरी
के इल्जाम में थाने में पहले पिटवाया और फिर मंदिर से निकाल दिया। नया पंडित आया
तो उसे पुराना किस्सा तो कुछ पता नहीं था, दान की बात भी खत्म हो गई। वो दान शिला
पर सेठ जी का नाम पढ़ता और हनुमान जी से ज्यादा सेठ जी की भक्ति में नतमस्तक रहता।
दानियों की केटेगरी में एक
केटेगरी रक्त दानियों की भी है। एक बार खून दान करेंगे और बिस्तर पर लेटे टेनिस
बॉल पकड़े रक्त दान की तस्वीर सोशल मीडिया पर इतनी बार चढ़ाएंगे कि लगने लगता है
पूरे हिंदुस्तान के हर प्राणी की रगों में इनका ही खून दौड़ रहा है। जैसे लंगर में
खाना बंटते देखकर भूख न भी लगी हो तो भी खाने का मन कर ही जाता है। वैसे ही इनको रक्त दान करता देख लगने लगता है कि
चलो, एक बोतल चढ़वा ही लेते हैं। थोड़ा एक्स्ट्रा ही खून हो जाएगा तो कोई नुकसान तो
करेगा नहीं।
चुनाव सामने है और आजकल मत दानियों
की बहुत पूछ हो रही है। हर नेता हाथ जोड़ कर मतदान के लिए निवेदन कर रहा है।
बहुतेरे मतदानी एक बोतल और कंबल में मतदान करने को तैयार हैं तो बड़े वाले दानी
हवाई अड्डे के ठेके की एवज में चुनावी दान करने को तैयार हैं। हर दान की कुछ न कुछ
कीमत लगाई जा रही है।
दान के मायने ही बदल गए हैं।
कुम्भ हो या कोई और धार्मिक स्थल- भगवान का वरदान भी आमजन के लिए अलग और वीआईपी जमात
के लिए अलग।
इनसे अच्छा तो हमारे तिवारी
जी का ही हिसाब है – शहर का कोई भिखारी ऐसा नहीं होगा जिसे तिवारी जी ने दान न
दिया हो मगर वो दान उधार में देते आए हैं हमेशा। हर भिखारी को कहते हैं -हमारी तरफ
से दस रुपये। जब भिखारी पैसे माँगता है तो कहते हैं खाते में लिख ले-कहीं भागे
थोड़े ही जा रहे हैं। किसी दिन आराम से हिसाब
कर लेंगे। दान के बाजार का एक ऐसा नायाब हीरा हैं तिवारी जी जैसा पहले कभी नहीं
देखा गया। पूछने पर तिवारी जी बताते हैं कि वो भिखारी के अंदर व्यापारी वाली फ़ील
डालना चाहते हैं कि वो भी उधार दे सकता है। कितनी उच्च सोच है तिवारी जी की।
और एक हमारी सरकार है जो
व्यापारियों के अंदर भिखारियों वाली फील डालने में व्यस्त है और चुनावी दानियों के
चलते जीत के लिए आश्वस्त भी।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे के मंगलवार 02 फरवरी, 2025 के अंक में:
https://epaper.subahsavere.news/clip/15788
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