शनिवार, अक्तूबर 31, 2020

हर अभियान पूर्ण समर्पण माँगता है..

 

हाल ही में तिवारी जी को प्रदेश नशा मुक्ति अभियान का संयोजक नियुक्त किया गया। बड़ा पद है। राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है। जैसा की होता है ऐसे पदों पर आकर लोग किताबें लिखने लग जाते हैं। कोई जन आंदोलन पर लिखता है तो कोई स्वराज पर। अतः तिवारी जी भी ‘नशा एवं समाज पर उसके दुष्प्रभाव’ नाम से किताब लिखने लगे हैं. . .  

पद पर रहते हुए किताब लिखने का फायदा यह रहता है कि किताब के न बिकने की संभावना बिल्कुल समाप्त हो जाती है एवं ऊपर वाले की कृपा से यदि कार्यकाल बढ़ता गया तो हर बार एक नया संस्करण भी आता जाता है और न सिर्फ आता है बल्कि आते ही बिक भी जाता है। अब चूंकि विभाग वही है तो ठेकेदार और सप्लायर भी आमूमन वही होते हैं। मगर इसके बावजूद भी हर बार नया संस्करण वो ही ठेकेदार और सप्लायर पुनः न सिर्फ उसी ऊर्जा के साथ खरीदते हैं बल्कि दुगनी ऊर्जा के साथ पढ़कर और लेखक की लेखन क्षमता पर गदगद होकर पुनः बधाई भी देते हैं। लेखक महोदय भी हर बार उसी किताब के लिए उन्हीं लोगों से नई बधाई लेकर अपने लेखन को माँ शारदा का आशीष बताते हैं।

आजकल तिवारी जी सुबह से शाम तक जगह जगह नशा बंदी पर सेमीनार करने और अनेक ऐसे ही कार्यक्रमों की अध्यक्षता करने में व्यस्त रहते हैं। निजी सचिव भी मिला है। आदत छूटने में समय लगता है अतः अपने निजी सचिव जो कि सरकारी सेवा से पदस्त किया गया है, उसे अक्सर सर बोल देते हैं और उसके आने पर कभी कभी प्रणाम करते हुए खड़े भी हो जाते हैं। उनके इस व्यवहार को उनके आस पास के लोग उनकी विनम्रता बताते हैं।

निजी सचिव जो भाषण लिख कर हर समारोह के लिए देता है, उसे वह एक फाइल में सहेज रहे हैं। फाइल का नाम उन्होंने अपने हाथ से ‘किताब’ लिखा है। आज वह एक वृद्धा आश्रम का उदघाटन करने गए थे। लौट कर उसका भाषण भी ‘किताब’ फाइल में फाइल करने जा रहे थे। फिर निजी सचिव के मना करने पर फाइल नहीं किया। इन पॉलिटिकल नियुक्तियों वालों की एक बात तो खास होती है कि भले किसी की सुनें या न सुनें, अपने निजी सचिव की और अंगरक्षक की जरूर सुनते हैं।

बहरहाल नशा मुक्ति अभियान चलाते चलाते और भाषण देते देते तिवारी जी को एक तो पॉवर का, दूसरा किताब जल्दी से जल्दी छपवा कर अपने आपको बुद्धिजीवी साबित करवा लेने का नशा सा लग गया है। दिन रात उसी नशे में डूबे डूबे नशा मुक्ति अभियान चला रहे हैं। जैसे गरीबों को गरीबी से मुक्त करके अमीर बनाते बनाते नेता जी खुद और अमीर हो जाते हैं और गरीब वहीं का वहीं रह जाता है।

इसी भागा दौड़ी में तिवारी जी रोज इतना थक जाते कि जहाँ पहले दो पैग पीकर अच्छी नींद आ जाया करती थी, वहीं आजकल चार चार पैग पीकर भी ठीक से नहीं सो पाते हैं। हर वक्त नशा मुक्ति अभियान को सफल बनाने की चिंता खाए जाती है।

आज बहुत दिनों बाद मेरी उनसे देर शाम घर पर मुलाकात हुई। थके हारे अभियान की सफलता को लेकर चिंतित अभी अभी शहर के लिकर किंग जयसवाल जी की बेटे की शादी की दावत से लौटे थे। पद का सम्मान करते हुए शादी में उन्हें कोक में मिला कर शराब परोसी गई थी – आखिर जयसवाल जी उनके एकदम नए खास मित्र जो ठहरे। सबको पता था किन्तु जो भी तिवारी जी से दावत में मिल रहा था, उसे तिवारी जी जरूर बताते कि कोक पी रहे हैं।

चलते चलते जयसवाल जी ने उनकी गाड़ी में दो क्रेट शराब रखवा दी थी। तिवारी जी ने अपने लिए ग्लास बनाते हुए मुझे भी ऑफर किया। मेरे मना करने पर मेरे लिए बनाए ग्लास की भी अपने ग्लास में मिला ली।

मैंने जानना चाहा कि आप दिन भर नशा मुक्ति पर बोलते हैं। इसी पर किताब लिख रहे हैं।  इस अभियान की सफलता हेतु जितना चिंतित रहना चाहिए, उससे कई गुना ज्यादा चिंतित रह रहे हैं। फिर भी आपका शराब का उपभोग दूना हो गया है पहले से। यह तो ठीक नहीं।

तिवारी जी ने बुद्धिजीवियों वाली गंभीर मुद्रा से मेरी तरफ देगा। एक बड़ा घूंट गटकाया और बोले – गूगल करके देखो तो जरा कि जब से गोरक्षा अभियान ने जोर पकड़ा है, तब से आजतक बीफ का निर्यात कितना गुना बढ़ गया है? जब से किसानों की चिंता में उनकी भलाई के लिए सरकार अभियान चला रही है, किसानों की आत्महत्याओं में कितना गुना इजाफा हुआ है?

तुम समझते नहीं हो, इसी तरह तो अभियान चलाए जाते हैं। इतना कह कर तिवारी जी ने अपना अगला ग्लास बना लिया और मैं उन्हें नशा मुक्ति अभियान के प्रति उनके समर्पण भाव हेतु साधुवाद देकर घर वापस चला आया।

-समीर लाल ‘समीर’             

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार नवम्बर १,२०२० के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/56052451



#Jugalbandi

#जुगलबंदी

#व्यंग्य_की_जुगलबंदी

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

#Hindi_Blogging

 


Indli - Hindi News, Blogs, Links

शनिवार, अक्तूबर 17, 2020

आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स और मशीन लर्निंग से बदलती दुनिया

 



पान की दुकान पर मुफ्त अखबार के अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने को अगर विश्व विद्यालय किसी संकाय की मान्यता देता तो तिवारी जी को निश्चित ही डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा जाता। डॉक्टरेट बिना मिले भी वह पान की दुकान पर प्रोफेसर की भूमिका का निर्वहन तो कर ही रहे थे। जो कुछ भी अखबार से ज्ञान प्राप्त करते, पान की दुकान पर उन्हीं की तरह फुरसत बैठे लोगों को अपना छात्र मानते हुए उनके बीच ज्ञान सरिता बहाते रहते। सब कुछ व्यवस्थित है, एक मान्यता को छोड़ कर। मान्यता नहीं है, इसलिए तो प्रोफेसर तिवारी को इस हेतु कोई तनख्वाह मिलती है और ही छात्रों से कोई शुल्क लिया जाता है।

छात्रों की हाजिरी भी तिवारी जी बस मुस्कराते हुए ऐसे लेते किजिंदा हो? कल दिखे नहीं’? छात्र का मन हो तो जबाब दे वरना पान सुरती दबाए चुप खड़ा मुस्कराता रहे। बस इसी मामले में इनकी कार्यशैली और व्यवहार सरकारी विद्यालयों से मिलता है।

आज तिवारी जी हाल ही में हुए विश्व स्तरीय सम्मेलनआर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में भातर के विश्वगुरु बनने की संभावनापर व्याख्यान दे रहे थे। यह विषय तो उपस्थित छात्रों के लिए एकदम अनजाना था। अतः तिवारी जी बिना व्यवधान के खुद की समझ के अनुसार सही गलत जैसा भी हो, बोल रहे थे। अनजाने विषय में यह सुविधा रहती है। जिस तरह हमारे शहरी नेता कभी CAA तो कभी NRC तो कभी कृषि बिल पर जनता को समझाने लगते हैं जबकि पता उन्हें भी कुछ नहीं होता।

तिवारी जी बता रहे हैं कि भविष्य वर्तमान से एकदम अलग होगा। अब तक तो निरबुद्ध चालाक लोग आपको बुद्धू बनाते थे किन्तु इस योजना के तहत असली बुद्धि वाले लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स (कृत्रिम बुद्धि) वाली मशीनें बनाएंगे जो इंसानों की तरह काम करने लगेंगी। उनके अंदर इंसानों की तरह ही अनुभव और माहौल से नित सीखते जाने की क्षमता (मशीन लर्निंग) भी होगी।

इंसान को गलतियों का पुतला माना गया है। इंसान के जोड़ घटाने में गलती हो सकती है इसीलिए केलकुलेटर से जोड़ कर उसे सत्यापित किया जाता है। इस सत्यापन की विधि से तो कुछ लोग आज भी इतना प्रभावित हैं कि कंप्यूटर  से जुड़ कर निकले बिल को पहले जुबानी जोड़ते हैं और फिर केलकुलेटर से जोड़ने के बाद ही उसे सही मानते हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स वाली मशीन और इंसानों में यही फरक है। वो भी पहले पहल ऐसा ही करेगी। फिर वो सीख जाएगी कि कंप्यूटर  से निकला जोड़ बार बार सही रहा है अतः उसे आगे से सही मानकर पुनः सत्यापित करने की आवश्यकता नहीं हैं।

सम्मेलन में बताया गया कि कैसे और कब चीन विश्व का मैन्युफैक्चरिंग हब बना। अब भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स का हब बनने की काबिलियत रखता है। अगले २० से २५ साल के अंदर ऐसा हो जाने की संभावना है।  हालांकि जो कुछ पिछले -  बरसों में हो जाने की संभावना थी, उसमें से क्या हुआ और क्या नहीं, उसके ट्रेक रिकार्ड को खंगालने की आवश्यता नहीं है। सदैव आगे देखो और चलते रहो की नीति पर चलना ही विश्व गुरुतत्व प्राप्त करने का मार्ग है।

इतना ज्ञान पटकने के बाद तिवारी जी ने अपनी वाणी को विराम दिया और नया पान मुँह में भर कर गलाने लगे।

लोगों के दिमाग में तरह तरह के प्रश्न रहे थे कि जब हर तरफ मशीनें काम करने लग जाएंगी तो हमारे रोजगार जो बिना इनके हुए भी खत्म होते जा रहे हैं, उनका क्या होगा। कोई सोच रहा था  कि माना मशीन गल्तियों का पुतला हो तो भी गलती तो कर ही सकती है। कहीं गलती हो गई और मिसाईल वगैरह छोड़ दी तब?   

अब बारी तिवारीजी के सबसे मेधावी छात्र घंसू की थी। घंसू जानना चाहता है कि इसमें भिन्न क्या है?

आज असली बुद्धिमान इंसान याने कि मास्साब अपने असली छात्रों की बुद्धि में असली ज्ञान का भंडार भरते हैं और तब असली बुद्धि वाले अपने ही द्वारा निर्मित मशीनों की कृत्रिम बुद्धि में असल ज्ञान भर रहे होंगे।

असली छात्र बुद्धिमानी लेने के साथ साथ अपने आसपास के माहौल और तौर तरीकों से सीखता हुआ समाज में अपनी दक्षता के हिसाब से स्थापित हो जाता हैकोई अधिकारी बनाता है। कोई कामगार तो कोई नेता और कोई ज्ञान गुरु बाबा। कोई व्यापारी बन जाता है तो कोई अभिनेता। कोई चोर तो कोई डकैत। कोई ईमानदार तो कोई भृष्ट।

कृत्रिम बुद्धि वाली मशीनें भी अपने आस पास के माहौल से सीखेते सिखाते समाज में इन्हीं को तो रिप्लेस करेंगी और उन्हीं बातों को अंजाम देंगी। बल्कि बिना गलती के और आज से अधिक तेजी से।

आज जब सरकारी कछुआ चाल ने इतने सालों में सोने की चिड़िया को एक विलुप्त प्रजाति बना दिया है और दूध की नदियों का दूध पानी में बदल दिया है। तब घंसू सोच रहा है कि जब यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स वाली मशीनें इंसानों को रिप्लेस कर देंगी, तब सोने की चिड़िया को स्मृति से भी विलुप्त होने में और नदियों के दूध से बदले पानी को भाप हो कर गुम जाने में कितने दिनों का वक्त लगेगा?

अरे अगर कुछ बनाना ही है तो ऐसा कुछ बनाओ जो आज के असंवेदनशील हो चले समाज की बुद्धि में कुछ ऐसा भर दे कि उसकी संवेदनाएं पुनः जागें। वो एक बार फिर सहिष्णु हो जाये। इंसान जब सुबह उठ कर आईना देखे तो उसमें उसे इंसान ही नजर आए -हैवान नहीं।   

तिवारी जी ने इतनी देर से मुँह में गलता पान, स्वच्छता अभियान में अपने योगदान स्वरूप एक जोरदार पीक के साथ सड़क पर थूका और अपने घर की राह पकड़ी।

कल फिर जो हाजिर होना है अखबार से अर्जित अगले ज्ञान के साथ।

-समीर लालसमीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अकतूबर १८, २०२० के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/55742528

 

 

#Jugalbandi

#जुगलबंदी

#व्यंग्य_की_जुगलबंदी

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

#Hindi_Blogging  

Indli - Hindi News, Blogs, Links