सोमवार, अगस्त 01, 2016

दूर जलता...एक उम्मीद का दीपक..




उन अँधेरों को अब तलक एक आस बाकी तो है
दूर कहीं दूर इक दिये की लौ झिलमिलाती तो है
यूँ अब अपनों से कोई हिमायत की उम्मीद नहीं
पर गैरों में अब भी इन्सानियत नजर आती तो है..
कि कल शायद इक हाथ उजाले का बढ़ायेगा कोई..
इन अँधेरों को फिर इक नई सुबह दिलायेगा कोई...
-समीर लाल ’समीर’
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