कहते हैं कि दर्द अपनों संग बांट लेने से कम हो जाता है, सो बांट ले रहे हैं वरना बांटने जैसा कुछ है नहीं.
कुछ माह पूर्व भारत से फोन आया था. उस तरफ से आवाज आई कि कैसे हैं भाई साहब..ठीक थे सो बता दिया कि ठीक हैं. उसने बताया कि वो भारत में मेरे पड़ोस वाले शर्मा जी का भतीजा है और कनाडा आ रहा है तीन चार दिन रह कर चला जायेगा फिर चार महिने बाद परिवार को लेकर आयेगा. कोई आश्चर्य नहीं हुआ. अधिकतर लोग ऐसा ही करते हैं. फिर शर्मा जी तो पुराने मित्र ठहरे हमारे तो औपचारिकतावश हमने इनसे कह दिया कि अब तीन चार दिन के लिए कहाँ भटकोगे. घर पर ही रुक जाओ. उसने भी उतनी ही औपचारिकतावश थोड़ा सकुचाते हुए बात मान ली. कहता था कि आपकी बात नहीं मानूँगा तो चाचा जी गुस्सा हो जायेंगे. सिर्फ आपको ही जानता हूँ कनाडा में.
फिर अन्य बातों के बाद उसने कहा कि आपके घर तक आऊँगा कैसे? उनके कनाडा पहुँचने का दिन रविवार था तो हमने कह दिया कि एयरपोर्ट पर हम आ जायेंगे आपको लेने. बहुत खुश हो गया वह, उसकी बाँछे खिल गई. यूँ भी ऐसे न जाने कितने ऐसे मेहमानों को एयरपोर्ट से ला चुका हूँ जिनसे पहली बार एयरपोर्ट पर ही मिला हूँ...अब उसकी बारी थी- पूछने लगा कि आपके लिए कुछ लाना है क्या भाई साहब या भाभी से पूछ लिजिये, उनके लिए कुछ लाना हो तो. अब क्या कहते- कह दिया कि नहीं, कुछ विशेष तो नहीं चाहिये. सोचा कि दिल्ली से डोडा मिठाई और ड्यूटी फ्री से बॉटल तो खुद ही लोग समझ कर ले आते हैं, उससे ज्यादा क्या बोलना. हमेशा ही तो गेस्ट आते हैं. कभी बोलना कहाँ पड़ता, अपने आप ही लेते आते हैं बेचारे....सो फोन बन्द और हमारा इन्तजार शुरु रविवार का.
ईमेल से उसने फोटो और अपनी फ्लाईट वगैरह बता दी थी, तो रविवार को उसे एयरपोर्ट पर देखते ही पहचान गये.एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही साकेत (यही नाम है उसका) ठंड से कांपने लगा. मैने उससे कहा कि गर्म जैकेट निकाल लो अपने सामान से. ठंड बहुत है.
वो कहने लगा कि दिल्ली में तो बहुत गर्मी थी और यहाँ इतनी ठंड का अंदाजा नहीं था.. तो गरम कपड़े लाया ही नहीं है. खैर, कार में हीटिंग तेज कर दी. सोचा कि कल उसे बाजार लेते जायेंगे तो खरीद लेगा.
घर पहुँचते ही उसने भाभी जी को पैर छूकर और सुन्दर बता कर प्रसन्न कर दिया. बातूनी ऐसा कि पूछो मत!! लगातार बात करता जाये. एक बार जो शुरु हुआ तो बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहा था..तुरंत घुलमिल गया. भाभी जी मैं प्याज काट देता हूँ. मैं चिकन बना देता हूँ और न जाने क्या क्या..प्याज तो क्या कटवाते मगर उस चक्कर में चिकन तुरंत बनाना पड़ा क्यूँकि पत्नी ने तो शर्मा जी सुनकर शाकाहारी भोजन बनाया था.
उनको कमरा दिखा दिया गया. बाथरुम दिखा दिया. नहाने घुसा तो पूरे एक घंटे नहाता रहा और जब वो निकला तो मुझे लगा कि शैम्पू और बॉडी वाश से मानो नहाया न हो, पी गया हो. एकदम नई नई बोतलों में आधे से भी ज्यादा समाप्त. मेहमानों के बाथरुम में वैसे भी नया ही रखा जाता है. शैविंग क्रीम भी बंदे ने तबीयत से लगाई और ऑफ्टर शेव से तो जैसे डुबकी लगा कर निकला हो. पूरा बाथरुम गमक रहा था. खुद से मेरे ड्रेसिंग रुम में आकर परफ्यूम लगा लिया वो भी वो वाला जो मैं खुद भी कभी कभार पार्टी आदि में जाने के लिए इस्तेमाल करता हूँ.
फिर टहलते हुए पहुँच गया मेरे बार तक. अरे वाह, आप तो बहुत शौकीन हैं भाई साहब. कौन कौन सी रखे हैं? और बस, ब्लैक लेबल की बोतल उठाकर प्रसन्नता से गिलास बनाने लगा. मुझसे भी पूछा कि आपके लिए भी बनाऊँ? बनाना तो था ही हाँ कर दी. फ्रिज से बरफ, सोडा निकाल कर शुरु हो गये.
यहाँ वैसे भी ड्रिंक्स के साथ ज्यादा स्नैकिंग की आदत नहीं होती मगर अब वो- भाभी जी, जरा दो चार अंडे की भुर्जी बना दिजिये तो मजा ही आ जाये. क्या बढ़िया खाना महक रहा है. इतनी खुशबू से ही पता लग रहा है कि आप बहुत अच्छा खाना बनाती है और फिर भाई साहब की काया तो खुद गवाही दे रही है कि आप कितना लजीज बनाती होंगी. ये लो, बात बात में हमें मोटा भी बोल गया.
उधर उनकी भाभी जी अपनी तारीफ सुनकर भरपूर प्रसन्न. कौन महिला न होगी भला. खूब रच कर अंडे की भुजिया बनी. तब तक उन्हें ड्रिंक्स के साथ भारत में पकोड़े खाते थे, भी याद आ गया सो वो भी मांग बैठे. प्याज, मिरची, पालक के पत्ते की भजिया तली गई.
शाम ७ बजे से पीना शुरु किया तो रात ग्यारह बज गये. हम तो दो से ज्यादा पी नहीं पाते मगर वो मोर्चा संभाले रहे जब तक की बोतल में बस हमारे अगले दिन के लिए दो ही पैग न बचे रह गये.
तब खाना खाया गया. तारीफ कर करके भरपूर खाया. पत्नी ने भी तारीफ सुन सुन कर घी लगा लगा कर गरम गरम रोटियाँ खिलाईं. तब वो सोने चले.
अगले दिन की मैने छुट्टी ली हुई थी. जब तक मैं सो कर उठा वो ठंड में ही बाहर टहलने निकल गया था. मैने सोचा कि इतनी ठंड में कैसे निकल पाया होगा बेचारा मगर वो लौटा तो मेरा ब्रेण्ड न्यू, खास पार्टियों के लिए खरीदा स्पेशल जैकेट पहने था. साथ में ही मेरी गरम टोपी, और दस्ताने भी पहने हुए थे. आते ही पूछा भाभी, कैसा लग रहा हूँ? भाई साहब मोटे दिखते जरुर हैं मगर उनका जैकेट देखिये मुझे कितना फिट आया है. खुद को मोटा तो वो कहने से रहा.
फिर नाश्ता- भाभी जी, बस, अंडा पराठे बना दो तो मजा आ जाये. साथ में दूध कार्नफ्लेक्स. फिर मैने उससे पूछा कि बाजार चलें. कुछ तुमको खरीदना हो तो खरीद लो. मुझे लग रहा था कि जैकेट परफ्यूम वगैरह तो खरीदना होगा ही उसे. मगर वो कहाँ जाने वाले. कहने लगा कि अब दो दिन को तो हैं मात्र. क्या खरीदें, क्या बेचें. यूँ भी यहाँ सब इतना मंहगा होता है कि हम यहाँ खरीदने लगे तो दीवाला ही निकल जायेगा.
रात देर हो गई थी तो उम्मीद थी सुबह बैग वगैरह खोलेगा- तब मिठाई ड्रिंक वगैरह निकालेगा. मगर सुबह क्या दिन भर खाते, हमारे साथ जगह जगह घूमते शाम हो गई, कहीं कॉफी पी गई तो कहीं बर्गर तो कभी आईसक्रीम मगर उनका पर्स नहीं निकला- उस पर से तुर्रा यह कि कितना मँहगा है, हम तो बर्बाद हुए जा रहे हैं. दुनिया में दाम खर्चने की बजाय मात्र सुनकर बर्बाद होते उस पहले शक्स को देखा - सब जस का तस. उस पर से तारीफ भी करते जाये कि आप लोगों ने भारत की संस्कृति को बचा कर रखा है यहाँ भी. मेहमान को तो पे ही नहीं करने देते. अरे, करोगे, जब न करने देंगे कि छीन कर पे कर दें??
रात वोडका की बोतल उठा ली कि रोज स्कॉच पीना ठीक नहीं. आज वोदका पीते हैं. मैने तो वो ही बची स्कॉच के दो पैग किनारे कर लिए. और इन्होंने पुनः पूरी श्रृद्धा और लगन से बोतल खत्म करते हुए दो पैग हमारे लिए छोड़ दिये. कभी हरी मटर तल कर तो कभी कोफ्ता तो कभी मटन कबाब- जैसे कि मेनु घर से बनाकर निकला हो- डिमांड और तारीफ कर कर बनवाता रहा और छक कर खाता रहा.
अगले दिन मेरे बाथरुम से आकर शैम्पू भी ले गया कि वहाँ खत्म हो गया है.
चार दिन चार महिने से गुजरे. चौथे दिन मन तो किया कि बस से एयरपोर्ट भेज दूँ मगर जैकेट मेरी पहने था. सोचा कि एयरपोर्ट में घुसने के बाद तो जरुरत रहेगी नहीं तो लौटा देगा वरना गई जैकेट हाथ से. चलते चलते मफलर भी लपेट लिया जो पत्नी ने शादी की सालगिरह पर मुझे दिया था. दस्ताने और टोपी तो खैर पहने ही था मेरी वाली. पत्नी उसके लिए गिफ्ट खरीद लाई थी. उसे भी कार में रख हम दोनों चल पड़े उसे छोड़ने.
एयरपोर्ट पर सामान चैक इन कराया. चरण स्पर्श - वंदन और ये चले साकेत शर्मा जी. हमें ठगे से उनको जाते देखते रहे और दूर तक नजर आती रही मेरी वो प्यारी जैकेट. छोड़ कर लौटने लगे तो देखा कि गिफ्ट तो पत्नी ने उसे दिया ही नहीं. हाथ में ही पैकेट थामी थी.
मैने पूछा तो बता रही थी कि सोचा था कि अगर जैकेट और मफलर वापस दे जायेगा तो ही दूँगी. मैं भी उसकी होशियारी पर प्रसन्नता जाहिर करने के सिवाय क्या करता. कुछ तो बचा. मुझे मालूम है जब भारत जाऊँगा-तब भी उसका पर्स जब्त ही रहेगा कि भाई साहब, अब आपके डालर के सामने हम क्या निकालें. यूँ भी आप बाहर से आये हैं, हमें पे थोड़े न करने देंगे.
विदेश में रहने वालों के लिए यह मंजर बहुत आम है- यहाँ वो आयें तो अतिथि और हम वहाँ जायें तो डॉलर कमाने वाले!! दोनों तरफ से लूजर और यूँ भी अपनी जमीन से तो लूजर हैं ही!!!
बस, घर लौट कर कुछ यूँ अपने आप रच गया:
मैं उस पर ज़रा क्या मेहरबान हो गया
अपने ही घर में खुद का, मेहमान हो गया
वो झूम झूम कर नहाया ऐसे सुबह सवेरे
कतरे भर पानी के लिए मैं परेशाँ हो गया.
अंडे की भुर्जी खाने की जिद थी नाश्ते में
डायटिंग का फैसला मेरा यों कुरबान हो गया
खाने की प्लेट देखिये, सदियों की भूख हो
देखा जो ये नजारा, तो मैं हैरान हो गया
वो जब चला तो सूट भी मेरा पहन चला
खातिरदारी में ’समीर’ आज नीलाम हो गया..
-समीर लाल ’समीर’