पापा,
आप खुशियाँ मनाइये
एक उत्सव सा माहौल सजा
कि आपने मुझे खत्म करवा दिया था
भ्रूण मे ही
मेरी माँ के
वरना शायद आज मैं भी
जूझ रही होती....
जीवन मृत्यु के संधर्ष में...
अपनी अस्मत लुटा
उन घिनौने पिशाचों के
पंजों की चपेट में आ..
रिस रिस बूँद बूँद
रुकती सांस को गिनती
ढूँढती... इक जबाब
जिसे यह देश खोजता है आज
असहाय सा!!!
कितना अज़ब सा प्रश्न चिन्ह है यह!!
कोई जबाब होगा क्या कभी!!
कि निरिह मैं..
छोड़ दूँगी अंतिम सांस अपनी
एक जबाब के तलाश में!!!
और तुम कहते
बेटी तेरा देश पराया
बाबुल को न करियो याद!!
-समीर लाल ’समीर’
कितना कटु सत्य है
जवाब देंहटाएंदुखद , शर्मसार हूँ मे भी इसी समाज का हिस्सा हूँ ।
जवाब देंहटाएंSahi hai asmat luta k ghut kar jine se pahle ma k kokh me hi marna par kiya unko koi haq nai hai is duniya me aane ki
जवाब देंहटाएंkiya ye duniya shirf mardo k liye hai
agar isi tarah betion ko marte rahenge to is shristi ka kiya hoga kabhi chintan kiya humne.
बालिका भ्रूण हत्या का ठीकरा रह रह के दहेज के नाम फूटता है आपने सही कहा दहेज तक पहुँचने के लिए गलियों कूचों से हो कर गुज़रना होगा और हर पल भय में जीना होगा कि कौन घड़ी किसी दरिंदे के हत्थे चढ़ जाओ. बहुत सामयिक रचना.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद.
Peace,
Desi Girl
...ओह !
जवाब देंहटाएंआज की ज्वलंत समस्या तो यही कहती है की सब लड़कियां भ्रूण में ही मार दी जाये ? फिर कोई कैसे किसी का बलात्कार करेगा ---नारी जाति की एक और आम समस्या .....
जवाब देंहटाएंआज की ज्वलंत समस्या तो यही कहती है की सब लड़कियां भ्रूण में ही मार दी जाये ? फिर कोई कैसे किसी का बलात्कार करेगा ---
जवाब देंहटाएंनारी जाति की एक और आम समस्या ..... "औरत को जनम दिया मर्दों ने .....
DARD HE.....AADMI KE HAIBAN HONE KA
जवाब देंहटाएं:'(
जवाब देंहटाएं:'(
जवाब देंहटाएं:'(
जवाब देंहटाएं:'(
जवाब देंहटाएंबास करना है अब तो
जवाब देंहटाएंhttp://www.nukkadh.com/2012/12/blog-post_19.html
पूरा वातावरण बोझिल कर दिया है।
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित प्रश्न का बोलता उत्तर..
जवाब देंहटाएंएक कड़वा सच ......बहुत दर्दनाक है
जवाब देंहटाएंपैदा होने से पहले अपने मार देते हैं और बडी होने पर समाज
जवाब देंहटाएंबेटियों की यही कहानी
एक कड़वा सच...जो हिला जाता है भीतर तक..
जवाब देंहटाएंऐसा लिखने की मजबूरी ओर पढ़ने की मजबूरी से शर्मशार हैं सब ...
जवाब देंहटाएंआक्रोश उठता है मन में पर बेबस हो जाते हैं...
इन हालात में तो लगता है बेटियाँ यही कहेंगी ... उनकी पीड़ा को सशक्त शब्द दिए आपने .....
जवाब देंहटाएंउफ्फ..एक कटु सत्य...
जवाब देंहटाएंalas! very sad
जवाब देंहटाएंएक दर्द है पर कटु सत्य भी है,,,
जवाब देंहटाएंछोड़ दूँगी अंतिम सांस अपनी
जवाब देंहटाएंएक जबाब के तलाश में!!!
Samir ji,
जवाब देंहटाएंNamaskar!
Your poem is really very touching. Actually this is a harsh reality.
By the way your blog is really wonderful. Congrats.
EK KADWA SACH.....
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएं:(
:(
:(
सोच को अपने परिवार और आस पास के लोगों से ही बदलना होगा.. यह हर एक इंसान की जिम्मेवारी है.. दुःख तो बहुत है पर दुःख के समय हम सब को एकजुट हो कर आगे बढते रहना होगा..
जवाब देंहटाएंकितना अज़ब सा प्रश्न चिन्ह है यह!!
जवाब देंहटाएंकोई जबाब होगा क्या कभी!!
कि निरिह मैं..
छोड़ दूँगी अंतिम सांस अपनी
एक जबाब के तलाश में!!!
और तुम कहते
बेटी तेरा देश पराया
बाबुल को न करियो याद!!
एक शर्मनाक सच
मर्मान्तक पीडादायक है सब कुछ।
जवाब देंहटाएंAah...
जवाब देंहटाएंकटु सत्य....
जवाब देंहटाएंबुधवार, दिसम्बर 19, 2012
जवाब देंहटाएंखुशियाँ मनाइये कि मेरा रेप नहीं हुआ!!!
पापा,
आप खुशियाँ मनाइये
एक उत्सव सा माहौल सजा
कि आपने मुझे खत्म करवा दिया था
भ्रूण मे ही
मेरी माँ के
वरना शायद आज मैं भी
जूझ रही होती....
जीवन मृत्यु के संधर्ष में...
अपनी अस्मत लुटा
उन घिनौने पिशाचों के
पंजों की चपेट में आ..
रिस रिस बूँद बूँद
रुकती सांस को गिनती
ढूँढती... इक जबाब
जिसे यह देश खोजता है आज
असहाय सा!!!
कितना अज़ब सा प्रश्न चिन्ह है यह!!
कोई जबाब होगा क्या कभी!!
कि निरिह मैं..
छोड़ दूँगी अंतिम सांस अपनी
एक जबाब के तलाश में!!!
और तुम कहते
बेटी तेरा देश पराया
बाबुल को न करियो याद!!
-समीर लाल ’समीर’
एक ही दंश है आज भारत देश का उसी को मुखातिब है आज चर्चा मंच .बेहतरीन रचना ,हालाकि हम इस बात से सहमत नहीं है ,आपकी प्रस्तावना ,गर्भपात करवाओ गर्भस्थ कन्या का वरना बड़े होने पर बलात्कृत हो सकती है .क्यों सोच सके आप ऐसा .तीस साल पहले एक डॉ .ने कुछ ऐसे ही उदगार प्रकट किये थे आज आप समीर लाल ....
ram ram bhai
जवाब देंहटाएंमुखपृष्ठ
बृहस्पतिवार, 20 दिसम्बर 2012
Rapist not mentally ill ,feel they can get away'
'Rapist not mentally ill ,feel they can get away'
माहिरों के अनुसार बलात्कारी शातिर बदमॉस होतें हैं जो सोचते हैं उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है वह साफ़
बच
निकलेंगें .इस नपुंसक व्यवस्था के हाथ उस तक नहीं पहुँच सकते .
तस्दीक की जानी चाहिए यह बात कि बलात्कार एक इरादतन अदबदाकर किया गया हिंसात्मक व्यवहार है
http://veerubhai1947.blogspot.in/
कन्या भ्रूण हत्या तो उचित नहीं है पर यह बात भी सही है कि हमारे देश में महिला को सम्मान से जीने भी नहीं दिया जाता है। वे हमेशा प्रताड़ित तो होती ही है फिर बलात्कार जैसी घटनाओं का शिकार भी होती है।
जवाब देंहटाएंकन्या भ्रूण हत्या तो उचित नहीं है पर यह बात भी सही है कि हमारे देश में महिला को सम्मान से जीने भी नहीं दिया जाता है। वे हमेशा प्रताड़ित तो होती ही है फिर बलात्कार जैसी घटनाओं का शिकार भी होती है।
जवाब देंहटाएंइस एक मोर्चे पर बेटियां हार जाती हैं...विडम्बना है ये.
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ. आपकी पंक्तियों ने बहुत कुछ कह दिया है .और तुम कहते बेटी तेरा देश पराया बाबुल को न करियो याद!!.....इन्हें पढ़कर गला रुंध गया और आंसू तैर गए है .. अब कुछ न कहा जा सकेंगा .
जवाब देंहटाएंkatu satya,jis ko kabhi badlanahi ja sakta.jab tak hay samaj tab tak rona hi hay bhai........
जवाब देंहटाएंमैं आप की इस सोच से सहमत नहीं हूँ ....अगर हम माँ बाप ही कुछ संभाल कर चले तो ऐसी बहुत सी घटनायों को होने से रोक सकते है ....एक और हम भूर्ण हत्या को रोकने की मुहीम छेड़ रहें है ...वही आपकी ये कविता उसे ठीक ठहरा रही है ये सोच गलत है ...
जवाब देंहटाएंहम सबको गुस्सा आता है किन्तु कई बार प्रश्न उठता है इतने लेख ,इतनी मार्मिक कविताये ,इतने कानून इतने विचार विमर्श ,इतनी सामाजिक संस्थाए इतने नेता ,इतने अभिनेताओं की पहल के बावजूद भी कोई समाधान
जवाब देंहटाएंनजर नहीं आता जैसा दहेज प्रथा विरोधी कानून बनने के बाद दहेज ज्यादा लिया दिया जाना लगा है ।
रचना तो बेहद सुंदर बन पडी है. पर आज के युग को भ्रूण हत्याओं, ब्लातकारों का युग कहें या कि, क्या हम वापस पाषाण युग में जा रहे हैं?
जवाब देंहटाएंरामराम.
शब्द-शब्द में दर्द से भरी हुई प्रस्तुति।।। साथ ही एक गहरा कटाक्ष।।।
जवाब देंहटाएंdrad bhara hai.
जवाब देंहटाएंpanktiyo me..
aur mai ab aahat hu
kyonki
jod diya gaya hu
abhiyaan se k beti bachao
roz kar raha hu swagat un maao ka jo janti hai betiyan
khush hota hu ke aaj fir beti ne janam liya kisi maa ki god me
rakhta hun khwaahish taki aabaad rahe ye jahaan
magar pishaachon ki is duniya me khamoshi se karte kaam mahsoos raha hun dard
raj ji apne hila dala mujhe
naya saal fir ummeedo ke saath age badhega ashaanvit hu.......
सामाजिक सोच से उद्भूत एक अच्छी कविता |
जवाब देंहटाएंलड़कियों पर ऐसे अत्याचार आखिर कब तक. सब्र की भी सीमा होती है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक रचना ! शर्म आती है कि हमने व्यवस्था को इतना चरमराने दिया।
जवाब देंहटाएंसाथ ही युवा शक्ति को नमन !
कटु सत्य .सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
जवाब देंहटाएंaapne apni is kavita men ek satya ko badi saphalta se udhghatit kiya hai jo kabile tareeph hai.bahut sundar,badhai.
जवाब देंहटाएंexcellent post sameer ji
जवाब देंहटाएंhttp://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/12/blog-post_26.html
एक कटु सत्य...मार्मिक रचना...
जवाब देंहटाएंप्रभावी लेखन,
जवाब देंहटाएंजारी रहें,
बधाई !!
सब के दिल का दर्द कहती है यह कविता ।
जवाब देंहटाएंमैं शर्मिदा हूँ क्योकि मेरी ही कोख से पुरुष ने जनम लिया ..और पुरुष भी शर्मिंदा है की हमारी जात में कोई नामर्द पैदा हुआ ..
जवाब देंहटाएंयह तो ऐसा तमाचा है जिसकी गूँज सभी को सुनाई दे रही होगी।
जवाब देंहटाएंमन को व्यथित करती समसामयिक रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
अशेम्ड!
जवाब देंहटाएंढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस
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♥सादर वंदे मातरम् !♥
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पापा, आप ख़ुशियां मनाइए...
सच तो यह है कि शोक का विषय है ...
अत्यंत मर्मांतक और पीड़ादायक स्थिति है !
आदरणीय समीर जी
गर्भ में ही भ्रूण-हत्या का शिकार हो चुकी बेटी के मुंह से वर्तमान परिप्रेक्ष में बेटी की असुरक्षित स्थिति का चित्रण अन्य किसी की कविता में पढ़ने को नहीं मिला ...
विषय ऐसा है कि मन उदास हो रहा है ...
लेकिन आपकी प्रभावशाली लेखनी की प्रशंसा में कुछ न कहूं तो मन और भी बेचैनी महसूस करेगा ...
सार्थक सृजन के लिए साधुवाद !
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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peedadayak......
जवाब देंहटाएंस्त्रियों की पीड़ा की करुण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं