सफ़हा दर सफ़हा
लम्हा दर लम्हा
बरस दर बरस
दर्ज होता रहा
किताब में मेरे दिल की
तुम्हारे मेरे साथ की
यादों का सफर
और मैं
अपने दायित्वों का निर्वहन करता
चलता रहा इस जीवन डगर पर
लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...
कि कभी फुरसत में
मुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
-समीर लाल ’समीर’
इसी का नाम दिनचर्चा है मित्रवर!
जवाब देंहटाएंसफर उम्मीदों भरा और साथ, जगमगाती, राहें रोशन करती यादों का। आराम से ही नहीं, उमंग और उत्साह से कटता है सफर।
जवाब देंहटाएंआज की सुबह में अतिरिक्त ताजगी घोल दी इन पंक्तियों ने।
वाह समीर भाई वाह आते ही छा गये
जवाब देंहटाएंशब्दों का साथ और सहेजी गयीं यादें ...... मुस्कुराहटें देंगीं ही.....
जवाब देंहटाएंकभी फुरसत में मुस्करा लूँगा
फिर पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
वाऽह !
क्या बात है समीर जी !
कौन कहता है, ये जीवन दौड़ है,
जवाब देंहटाएंकौन कहता है, समय की होड़ है,
हम तो रमते थे स्वयं में,
आँख मूँदे तन्द्र मन में,
आपका आना औ जाना,
याद करने के व्यसन में,
तनिक समझो और जानो,
नहीं यह कोई कार्य है,
काल के हाथों विवशता,
मन्दगति स्वीकार्य है।
कट जाए यह सफ़र भी आहिस्ता अहिस्ता ....
जवाब देंहटाएंगली के मोड़ पे सूना सा एक दरवाजा,
जवाब देंहटाएंतरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा,
निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी,
करोगे याद तो हर बात याद आएगी,
गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी,
करोगे याद तो...
कि कभी फुरसत में
जवाब देंहटाएंमुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
सुन्दर रचना है ....सच में थोडा सुकून दे ही जाती है यादे !
सुन्दर रचना..यादों से सच्चा साथी कौन.
जवाब देंहटाएंएक निश्चित सफ़र के बाद यही कुछ विकल्प तो बाकी रह जाते है !
जवाब देंहटाएंकिश्त दर किश्त शुभकामनाएं भी ले लीजिये हुजूर उन अनुभवों के लिए!
जवाब देंहटाएंकि कभी फुरसत में
जवाब देंहटाएंमुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त......wah....badi khoobsurat linen hain.....
जिन यादों को जिया हो साथ साथ उन्हें फिर कुआ जीना ... नई यादें नहीं बनानी हैं क्या ...
जवाब देंहटाएंबस उसी फुर्सत के इंतज़ार में सारी ज़िन्दगी बीत जाती है ......दायित्व ख़त्म नहीं होते ....और मुस्कुराने की ख्वाइश यूहीं दबी रह जाती है ......
जवाब देंहटाएंमाँ कहती है हमेशा ...
जवाब देंहटाएंहर पल ज़िन्दगी का एक पन्ना है ...
संभल कर जियो हर पल ...
हर पल से एक इतिहास बनना है ...
कल सुकून की ज़रूरत पड़ेगी दवा के साथ ...
तब याद करना कोई पुरानी बात ...
कई बार पुराने ख्यालों में सबको रहना है ...
भविष्य को खुद के बनाए इतिहास में हीं बहना है ...
माँ कहती है हमेशा ...
माँ कहती है हमेशा ...
बहुत खूब सर ... दिल को छू गया!
बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आप आये...
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की किताब है ये... यूं ही पढ़ी जायेगी.
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
यूँ ही कट जाता है सफर, अहिस्ता अहिस्ता.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 22/1/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंवाह बहुत गजब लिखा, शायद यही जिंदगी है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुहानी यादें --- यादों में और भी सुहानी लगती हैं।
जवाब देंहटाएंसुहानी यादें --- यादों में और भी सुहानी लगती हैं।
जवाब देंहटाएंऔर मैं
जवाब देंहटाएंअपने दायित्वों का निर्वहन करता
चलता रहा इस जीवन डगर पर
लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...
कि कभी फुरसत में
मुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
यादें जिसे भुलाना मुश्किल
फुर्सत ही तो नहीं मिलती ..... बहुत सुंदर भावों से रची सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .सार्थक रचना.
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंकि कभी फुरसत में
जवाब देंहटाएंमुस्करा लूँगा फिर
फुरसत में पढ़ लेंगे ये सोच कर कई बार हम इतनी देर कर देते हैं कि बाद में पछताव होता है कि देर क्यों कर दी।
जवाब देंहटाएंसाधू साधू
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएं---
अग्नि मिसाइल: बढ़ती पोस्ट चोरियाँ और घटती संवेदनशीलता, आपकी राय?
सोचकर तो यूँ ही चलते हैं
जवाब देंहटाएंपर आँखों का क्या भरोसा - पिघलकर बरसने लगते हैं
कि कभी फुरसत में
जवाब देंहटाएंमुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
....बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति..
बड़े दिन बाद आज इत्मिनान से सबके ब्लॉग पढ़ रहा हूँ...आपका ब्लॉग तो शायद एक दो महीने से नहीं पढ़ा था...बड़ा अच्छा लग रहा है आपको फिर से पढना चचा!
जवाब देंहटाएंसुंदर यादों का सफर और रोजमर्रा जीवन की आपाधापी. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की आप सभी को बधाइयाँ और शुभकामनायें.
फिर पढ कर उन यादों को किश्त दर किश्त,सफहा दर सफहा लफ्ज़ दर लफ्ज़ । फुरसत ही तो नही मिल रही । थोडी भागम भाग कम करनी होगी ।
जवाब देंहटाएंकि कभी फुरसत में
जवाब देंहटाएंमुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!
...सच कुछ अच्छे से बीतें पलों को फुर्सत में किश्तों में याद करना मन को अच्छा लगता है ..
बहुत बढ़िया रचना
बहुत सुन्दर सृजन!
जवाब देंहटाएंऔर वे फुर्सत के क्षण कभी मिलते ही नहीं...सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंयादों की गठरी
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंwaah sameer ji ..bahut sunder
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई समीर जी बहुत ही सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंयही जिन्दगी है और इसमें सोच कर फुरसत मिला नहीं करती की और ऐसे पलों के लिए कभी नहीं।
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत मिले तो घर आना ज़रूर तुम
जवाब देंहटाएंबरसों हुए हैं यार से मशवरा किये हुए
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएं