रविवार, जनवरी 20, 2013

आहिस्ता आहिस्ता!!

past

सफ़हा दर सफ़हा

लम्हा दर लम्हा

बरस दर बरस

दर्ज होता रहा

किताब में मेरे दिल की

तुम्हारे मेरे साथ की

यादों का सफर

और मैं

अपने दायित्वों का निर्वहन करता

चलता रहा इस जीवन डगर पर

लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर

पढ़ कर उन यादों को

किश्त दर किश्त

आहिस्ता आहिस्ता!!

-समीर लाल ’समीर’

51 टिप्‍पणियां:

  1. सफर उम्‍मीदों भरा और साथ, जगमगाती, राहें रोशन करती यादों का। आराम से ही नहीं, उमंग और उत्‍साह से कटता है सफर।

    आज की सुबह में अतिरिक्‍त ताजगी घोल दी इन पंक्तियों ने।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह समीर भाई वाह आते ही छा गये

    जवाब देंहटाएं
  3. शब्दों का साथ और सहेजी गयीं यादें ...... मुस्कुराहटें देंगीं ही.....

    जवाब देंहटाएं



  4. कभी फुरसत में मुस्करा लूँगा
    फिर पढ़ कर उन यादों को
    किश्त दर किश्त
    आहिस्ता आहिस्ता!!


    वाऽह !

    क्या बात है समीर जी !




    जवाब देंहटाएं
  5. कौन कहता है, ये जीवन दौड़ है,
    कौन कहता है, समय की होड़ है,
    हम तो रमते थे स्वयं में,
    आँख मूँदे तन्द्र मन में,
    आपका आना औ जाना,
    याद करने के व्यसन में,
    तनिक समझो और जानो,
    नहीं यह कोई कार्य है,
    काल के हाथों विवशता,
    मन्दगति स्वीकार्य है।

    जवाब देंहटाएं
  6. कट जाए यह सफ़र भी आहिस्ता अहिस्ता ....

    जवाब देंहटाएं
  7. गली के मोड़ पे सूना सा एक दरवाजा,
    तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा,
    निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी,

    करोगे याद तो हर बात याद आएगी,
    गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी,

    करोगे याद तो...

    जवाब देंहटाएं
  8. कि कभी फुरसत में

    मुस्करा लूँगा फिर

    पढ़ कर उन यादों को

    किश्त दर किश्त

    आहिस्ता आहिस्ता!!

    सुन्दर रचना है ....सच में थोडा सुकून दे ही जाती है यादे !

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर रचना..यादों से सच्चा साथी कौन.

    जवाब देंहटाएं
  10. एक निश्चित सफ़र के बाद यही कुछ विकल्प तो बाकी रह जाते है !

    जवाब देंहटाएं
  11. किश्त दर किश्त शुभकामनाएं भी ले लीजिये हुजूर उन अनुभवों के लिए!

    जवाब देंहटाएं
  12. कि कभी फुरसत में
    मुस्करा लूँगा फिर
    पढ़ कर उन यादों को
    किश्त दर किश्त......wah....badi khoobsurat linen hain.....

    जवाब देंहटाएं
  13. जिन यादों को जिया हो साथ साथ उन्हें फिर कुआ जीना ... नई यादें नहीं बनानी हैं क्या ...

    जवाब देंहटाएं
  14. बस उसी फुर्सत के इंतज़ार में सारी ज़िन्दगी बीत जाती है ......दायित्व ख़त्म नहीं होते ....और मुस्कुराने की ख्वाइश यूहीं दबी रह जाती है ......

    जवाब देंहटाएं
  15. माँ कहती है हमेशा ...
    हर पल ज़िन्दगी का एक पन्ना है ...
    संभल कर जियो हर पल ...
    हर पल से एक इतिहास बनना है ...

    कल सुकून की ज़रूरत पड़ेगी दवा के साथ ...
    तब याद करना कोई पुरानी बात ...
    कई बार पुराने ख्यालों में सबको रहना है ...
    भविष्य को खुद के बनाए इतिहास में हीं बहना है ...
    माँ कहती है हमेशा ...
    माँ कहती है हमेशा ...

    बहुत खूब सर ... दिल को छू गया!

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत दिनों बाद आप आये...
    जिन्दगी की किताब है ये... यूं ही पढ़ी जायेगी.

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

    जवाब देंहटाएं
  21. यूँ ही कट जाता है सफर, अहिस्ता अहिस्ता.
    बहुत खूब .

    जवाब देंहटाएं
  22. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 22/1/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  23. वाह बहुत गजब लिखा, शायद यही जिंदगी है.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  24. सुहानी यादें --- यादों में और भी सुहानी लगती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  25. सुहानी यादें --- यादों में और भी सुहानी लगती हैं।

    जवाब देंहटाएं
  26. और मैं

    अपने दायित्वों का निर्वहन करता

    चलता रहा इस जीवन डगर पर

    लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...

    कि कभी फुरसत में

    मुस्करा लूँगा फिर

    पढ़ कर उन यादों को

    किश्त दर किश्त

    आहिस्ता आहिस्ता!!

    यादें जिसे भुलाना मुश्किल

    जवाब देंहटाएं
  27. फुर्सत ही तो नहीं मिलती ..... बहुत सुंदर भावों से रची सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  28. बहुत सुन्दर .सार्थक रचना.

    जवाब देंहटाएं
  29. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  30. कि कभी फुरसत में

    मुस्करा लूँगा फिर

    जवाब देंहटाएं
  31. फुरसत में पढ़ लेंगे ये सोच कर कई बार हम इतनी देर कर देते हैं कि बाद में पछताव होता है कि देर क्यों कर दी।

    जवाब देंहटाएं
  32. सोचकर तो यूँ ही चलते हैं
    पर आँखों का क्या भरोसा - पिघलकर बरसने लगते हैं

    जवाब देंहटाएं
  33. कि कभी फुरसत में

    मुस्करा लूँगा फिर

    पढ़ कर उन यादों को

    किश्त दर किश्त

    आहिस्ता आहिस्ता!!

    ....बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  34. बड़े दिन बाद आज इत्मिनान से सबके ब्लॉग पढ़ रहा हूँ...आपका ब्लॉग तो शायद एक दो महीने से नहीं पढ़ा था...बड़ा अच्छा लग रहा है आपको फिर से पढना चचा!

    जवाब देंहटाएं
  35. सुंदर यादों का सफर और रोजमर्रा जीवन की आपाधापी. सुंदर प्रस्तुति.

    गणतंत्र दिवस की आप सभी को बधाइयाँ और शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  36. फिर पढ कर उन यादों को किश्त दर किश्त,सफहा दर सफहा लफ्ज़ दर लफ्ज़ । फुरसत ही तो नही मिल रही । थोडी भागम भाग कम करनी होगी ।

    जवाब देंहटाएं
  37. कि कभी फुरसत में

    मुस्करा लूँगा फिर
    पढ़ कर उन यादों को
    किश्त दर किश्त
    आहिस्ता आहिस्ता!!

    ...सच कुछ अच्छे से बीतें पलों को फुर्सत में किश्तों में याद करना मन को अच्छा लगता है ..
    बहुत बढ़िया रचना

    जवाब देंहटाएं
  38. और वे फुर्सत के क्षण कभी मिलते ही नहीं...सुंदर प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  39. सुंदर, सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  40. आदरणीय भाई समीर जी बहुत ही सुन्दर कविता |

    जवाब देंहटाएं
  41. यही जिन्दगी है और इसमें सोच कर फुरसत मिला नहीं करती की और ऐसे पलों के लिए कभी नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  42. फ़ुरसत मिले तो घर आना ज़रूर तुम
    बरसों हुए हैं यार से मशवरा किये हुए

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.