जब चपरासी रामलाल जाले हटाता, धूल झाड़ता कबाड़घर के पिछले हिस्से में गाँधी जी की मूर्ति को खोजता हुआ पहुँचा तो उड़ती धूल के मारे गाँधी जी की मूर्ति को जोरो की छींक आ गई. अब छड़ी सँभाले कि चश्मा या इस बुढ़ापे में खुद को..चश्मा आँख से छटक कर टूट गया. गुस्से के मारे लगा कि रामलाल को तमाचा जड़ दें मगर फिर वो अपनी अहिंसा के पुजारी वाली डीग्री याद आ गई तो मुस्कराने लगे. सोचने लगे कि एक चश्मा और होता तो वो भी इसके आगे कर देता कि चल, इसे भी फोड़ ले. मेरा क्या जाता है? जितने ज्यादा चश्में होंगे, उतने ज्यादा लंदन से नीलाम होंगे. मुस्कराते हुए बोले- कहो रामलाल, कैसे आना हुआ? पूरे साल भर बाद दिख रहे हो?
गाँधी जी की मूर्ति को सामने बोलता देख रामलाल बोला-चलो बापू साहेब, बुलावा है. नई पार्टी बन रही है. नये मूल्यों के साथ- नये जमाने की-नये लोग हैं- नया इस्टाईल है-गाते बजाते हैं-हल्ला मचाते हैं-एक अलग तरह की पार्टी बना रहे हैं जिसमें पार्टी के भीतर ही पार्टी का लोकपाल होगा. आज आपका जन्म दिन है, आपके सामने आपका नाम लेकर बनायेंगे. नहा लो, नये कपड़े पहने लो और चलो, फटाफट. बहुत भीड़ लगने वाली है. आपको नई पार्टी की योजनाओं, प्रत्याशियों और भविष्य को शुभकामनाएँ देनी हैं. याद आया आपको - ये वो ही लोग हैं जिनका कल तक आपके नाम से आंदोलन चलता था और आपका एकदम खास भक्त इनका नेता था- अब थोड़ा आपके भक्त से खटपट हो चली है. कुछ चंदे वगैरह का हिसाब किताब और कुछ महत्वाकांक्षा की उड़ान. खैर, आप तो जानते ही हो कि ऐसा ही होता आया है हमेशा. आपके लिए भला नया क्या है- आप तो हमेशा से ऐसी घटनाओं के साक्षी रहे हो- साबरमती के संत!
गाँधी जी बोले, देख भई रामलाल. एक तो तू ज्यादा चुटकी न लिया कर ये संत वंत बोल कर. बस, आज का ही दिन तो होता है जब मैं थोड़ा बिजी हो जाता हूँ. हर सरकारी दफ्तर से लेकर हर भ्रष्ट से शिष्ट मंडल तक लोग मेरी पूछ परक करके अपने इमानदार और कर्तव्यनिष्ट होने का प्रमाण देते हैं. ऐसे में ये एक और...कह दो भई इनसे कि कल रख लेंगे कार्यक्रम. नई पार्टी ही तो है- आज नहीं जन्मी तो क्या- कल जन्म ले लेगी. रंग तो २०१४ में ही दिखाना है. एक दिन में क्या घाटा हो जायेगा? मेरा भी एक के बदले दो दिन मन बहला रहेगा.
रामलाल उखड़ पड़ा. कहने लगा एक तो साल भर आपको कोई पूछता नहीं. चुपचाप यहाँ पड़े रहते हो. आज पूछ रहे हैं तो आप भाव खा रहे हो कि आज नहीं कल. तो सुन लिजिये- यह कोई आपसे निवेदन या प्रार्थना नहीं है. बस, बुलाया है और आपको चलना है. आदेश ही मानो इसे.
सारे भारत की जनता से उन लोगों ने पार्टी बनाने के लिए पूछ लिया है और सबने उनसे पर्सनली कह दिया है कि आप पार्टी बनाईये- आपकी जरुरत है. इसके बावजूद आप हैं कि नकशे ही नहिं मिल रहे- हद है बापू!!
गाँधी जी ने परेशान होते हुए पूछा कि सारी जनता से कैसे पूछ लिया भई उन्होंने वो भी बिना वोट डलवाये?
रामलाल ने मुस्कराते हुए कहा कि बापू, आप तो बिल्कुले बुढ़ पुरनिया हो गये. इतना भी नहीं जानते कि उन्होंने फेसबुक से बताया था और खूब लोगों नें लाइक चटकाया. आजकल तो ऐसे ही पूछा जाता है. अब तो एस एम एस का फंडा भी बासी हो गया.
गाँधी जी सकपका गये. कहने लगे- मैं क्या जानूँ? मेरा तो फेसबुक एकाउन्ट है नहीं- चल भई, तू कहता है तो चलता हूँ. मगर मेरा चश्मा तो बनवा दे. वरना उनका घोषणा पत्र पढ़े बिना उन्हें कैसे आशीर्वाद दूँगा?
रामलाल हँसने लगा- अरे बापू, इतनी जल्दी भला कोई घोषणा पत्र बनता है. अभी चार दिन पहले तो बात हुई पार्टी बनाने की जब आपके खास वाले से मतभेद हुआ. सब कार्यक्रम पहले से तय है. आप वहाँ मंच पर विराजमान रहेंगे. आपका माल्यार्पण होगा. ततपश्चयात वो आपको घोषणा पत्र (कोरे कागज का पुलिंदा) पकड़ायेंगे. आप अपना बिना शीशे का चश्मा पहने उसे देखने का नाटक करियेगा और फिर कह दिजियेगा कि मुझे इससे बहुत उम्मीद है इनसे. मैं इन्हें आशीष देता हूँ. ये एक नव भारत का निर्माण करेंगे. अब अच्छा या बुरा- ये तो आपने कहा नहीं- होगा तो नव ही. आप सेफ रहोगे और पूजे जाते रहोगे तो नो टेंसन- बस, चले चलो- मैं हूँ न!!
दूर बैठी जनता को क्या समझ आयेगा कि घोषणा पत्र भी कोरा है और आपके चश्में में भी शीशा नहीं है.
गाँधी जी बोले कि रामलाल ऐसा तो मैं सभी पार्टियों के साथ करता आया हूँ मगर तू तो कह रहा था कि यह नई पार्टी है- नये मूल्यों के साथ- नये जमाने की-एक अलग तरह की जिसमें पार्टी के भीतर ही पार्टी का लोकपाल होगा.
अरे बापू, सभी तो एक न एक दिन नये थे. सभी कुछ नया ही करने आये थे..वो तो धीरे धीरे पुराने हो जाते हैं. ये भी हो जायेंगे.
बस, इनमें एक नई चीज आपने सही पकड़ी- पार्टी के भीतर ही पार्टी का लोकपाल होगा. आपन दरोगा- आपन थाना- अब डर काहे का!!
गाँधी जी रामलाल को देख मुस्कराये. रामलाल उन्हें देख कर एक आँख दबाता है...और चल पड़ते हैं गाँधी जी नई धोती पहने...बिना शीशे का चश्मा ..एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ से रामलाल का कँधा थामे...पार्टी घोषणा स्थल की ओर. कोशिश रही कि कोई टूटा चश्मा न देख ले.
चलते चलते:
कुछ तारे आकाश में चुप हैं, कुछ तारे पाताल में चुप
कुछ तारों का हाल देखकर, हम भी चुप और तुम भी चुप...
-समीर लाल ’समीर’
bahut hi karara.....
जवाब देंहटाएंbahut hi karara....
जवाब देंहटाएंबेचारे गांधी जी -अब जायें तो जायें कहाँ !
जवाब देंहटाएंकुछ तारों का हाल देखकर तुम भी चुप... हम भी चुप !!
जवाब देंहटाएंखूब बोल कर देख लिया जंतर मंतर से आजाद मैदान तक , अब करे भी क्या !!
आप सबका यह हाल देख कर हम भी चुप..
जवाब देंहटाएंबात तो सही है...
जवाब देंहटाएंकुछ तारे आकाश में चुप हैं, कुछ तारे पाताल में चुप
जवाब देंहटाएंकुछ तारों का हाल देखकर, हम भी चुप और तुम भी चुप...
BHAIYA JI PRANAM
फिकर न करें गांधीजी। वहां जो हैं, सब अंधे हैं। कोई न देख पायेगा कि चश्मा टूटा है।
जवाब देंहटाएंटूटे चश्मे से भी गाँधी जी का ही लाभ है...वर्ना घोषणापत्र पढ़ कर उन्हें लगता अभी तक वो काम अधूरे हैं...जिन्हें वो आज़ादी के कुछ वर्षों बाद पूरा होते देखना चाहते थे...साठ सालों में मुद्दे वही हैं...
जवाब देंहटाएंwah dadda, kya gandhi ji ki ot se manja hai iac ko...sunder
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंगांधी जयंती की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
बहुत अच्छी पोस्ट |
जवाब देंहटाएंलेख की तरह शीर्षक भी बढिया है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कटाक्ष.
जवाब देंहटाएंसब चुप रहने में ही भलाई समझते हॅं। जो बोले तो भंडाफोड़ ही होता है सीधा।
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ कि गाँधी जी का चश्मा टूट गया. कम से कम अपने सपनों के भारत की दुर्दशा तो नहीं दिखेगी. इस अहसास से तो बच जायेंगे कि नाथू ने सिर्फ उनके भौतिक शरीर की हत्या कि लेकिन उनके उत्तराधिकारी उनके मानस उनकी विचारधारा की ही हत्या कर चुके हैं. अपने मानस शरीर का शव देखने से तो बच जायेंगे बापू.
जवाब देंहटाएंWAAH ! KAMAAL HAI !!
जवाब देंहटाएंसच आज गांधी जीवित होते तो क्या होता , वे क्या सोचते , क्या कहते , क्या प्रतिक्रिया देते , हम भी यही सोच रहे हैं । ॥
जवाब देंहटाएंलेकिन यदि आपका ईशारा अरविंद केजरीवाल अन्ना हज़ारे की तथाकथित नई पार्टी की तरफ़ है या उनसे जोडकर है तो हम कतई सहमत नहीं है गुरूदेव काहे से कि अभी तक उनके कहे सोचे और किए से सीधा सीधा असफ़लता का परिणाम निकालना अभी जल्दबाज़ी होगी , बल्कि उनकी अब तक की असहमतियों /विचारों के टकराव अलगाव दुराव का आकलन करना भी अभी ठीक नहीं होगा । देखें कि आगे क्या होता है , हालांकि एक विकल्प की दरकार तो रहेगी ही हमेशा ।
रामलाल मुस्तैद रहना चाहिए हमेशा :)
और कोई चारा नहीं बचा ...बढ़िया लिखा है ...!!
जवाब देंहटाएंजोरदार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया कटाक्ष....
जवाब देंहटाएंबापू पर पोस्ट भी लोग एक ही दिन डालते हैं..बाकी दिन चाँद ,तारे,ख्वाब,हरसिंगार,सागर, मोती से परे कुछ कहाँ सोचते हैं(हम जैसे) ...
सादर
अनु
जवाब देंहटाएंआपकी नायाब पोस्ट और लेखनी ने हिंदी अंतर्जाल को समृद्ध किया और हमने उसे सहेज़ कर , अपने बुलेटिन के पन्ने का मान बढाया उद्देश्य सिर्फ़ इतना कि पाठक मित्रों तक ज्यादा से ज्यादा पोस्टों का विस्तार हो सके और एक पोस्ट दूसरी पोस्ट से हाथ मिला सके । । टिप्पणी को क्लिक करके आप सीधे बुलेटिन तक पहुंच सकते हैं और अन्य सभी खूबसूरत पोस्टों के सूत्रों तक भी । बहुत बहुत शुभकामनाएं और आभार । शुक्रिया
लाजवाब पोस्ट...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सही बात..!!
जवाब देंहटाएंएक दिन तो सभी आते हैं कुछ नया करने .... फिर पुराने के रंग में रंग जाते हैं .... बढ़िया व्यंग्य
जवाब देंहटाएंbahut gahan kataksh ...aabhaar..
जवाब देंहटाएंबहुत सही व्यंग्य है...
जवाब देंहटाएंकुछ तारे आकाश में चुप हैं, कुछ तारे पाताल में चुप
जवाब देंहटाएंकुछ तारों का हाल देखकर, हम भी चुप और तुम भी चुप......ekdam hatke......kya vyang likhe hain.
Dua karungee ke Bapu gar padhare bhee to unhen koyi gadbad ghotala dekhna na pade!
जवाब देंहटाएंआज हम सब के अंदर कहीं ना कहीं एक रामलाल जरुर है...बाकी पोस्ट तो बड़ा ही गजब का है...रोचक...कटाक्ष...देश की दिशा और दशा ..सबकुछ का बेजोड़ संगम |
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंगात्मक पोस्ट....
जवाब देंहटाएंbadhiya vyangy
जवाब देंहटाएंसमीर जी...सटीक व्यंग्य रचना ....शायद जब देश की आज़ादी के लिए बापू के पहले कदम उठे होंगे तब भी किसी ने अवश्य ही ऐसी सामयिक व्यंग्य रचना अवश्य लिखी होगी ...बस फर्क इतना रहा होगा कि बापू के किरदार में उस समय कोई अन्य ऐतिहासिक बापू रहा होगा ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त लेखन ... आभार
जवाब देंहटाएंकुछ तारे आकाश में चुप हैं, कुछ तारे पाताल में चुप
जवाब देंहटाएंकुछ तारों का हाल देखकर, हम भी चुप और तुम भी चुप...
ye chuppi hi to dam nikal leti hai .
JADOO, SIR JI AAPKI LEKHNI ME JADOO HE..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
बहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
आइना दिखाती पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
sameer bhaiya on fire:))
जवाब देंहटाएंvakayee me badi tej dhar
जवाब देंहटाएंजोरदार समीर जी । बापू भी चुप हैं कि एक दिन सभी को पुराना होना है ।
जवाब देंहटाएंलाख दुखों की एक दवा है गॉंधी। उसके नाम पर कुछ भी कर लो, कोई नहीं बोलेगा, किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा।
जवाब देंहटाएंजोरदार चिकोटी काटी है आपने। काश! बात 'उन' तक पहुँचे।
कुछ कहने लायक बचा ही नहीं है। हालांकि इस पर कुछ लिखने से पहले कुछ जानना जरुरी है मेरे लिए। जानना तब होगा जब मिलना होगा..मिलना तब होगा जब लगेगा जरुरी है..जरुरी तब लगेगा जब लगेगा कि कुछ राह बनी है....राह तब बनेगी जब लगेगा कोई चलने को तैयार है....सच में इतना काम है कि अभी कुछ कह नहीं सकता ..कुछ लिख नही सकता।
जवाब देंहटाएंdekhte hain kya hota hai... filhaal to parivartan chahiye.... bura hi sahi... warna India ko Sierra-Leone hone me der na lagegi...
जवाब देंहटाएंअगर आपकी टिप्पणी केजरीवाल है तो यह आपकी जल्दबाजी है। विचारोँ मेँ विरोधाभास गाँधी जी से भगतसिँह, सुभाषचन्द्र आदि का भी था। विरोधाभास यहाँ पर भी है, पर दोनोँ का उद्देश्य सम्मान है।
जवाब देंहटाएंwww.yuvaam.blogspot.com