देश को जब अपनी नजर से देखता हूँ तो पाता हूँ कि यहाँ मात्र दो तरह के लोग रहते हैं- एक तो वो जो आम हैं और दूसरे वो जो आम नहीं हैं. आम तो खैर आम ही हैं- कच्चे हुए तो चटनी बनी और पके हुए हों तो चूसे गये. मगर जो आम नहीं हैं वो होते हैं खास. जिनका काम है चटखारे लेकर आम की चटनी खाना या फिर आम को चूस कर मस्त रहना.
आम की क्या औकात कि खुद को बांटे या बंटाये मगर खास की परेशानी यह तय करना रहती हैं कि उनमें से कौन चटनी खाये, कौन चूसे, कौन टुकड़े बना कर कांटे से खाये और कौन आम का मिल्कशेक पिये, गुठली किसके हिस्से जाये और गूदा किसके तो उन्होंने आम न होने की वजह से खास होने के बावजूद अनेक वर्ग इस खास वर्ग के भीतर ही बना डाले जैसे ब्राह्मण- जो कि यूँ भी श्रेष्ठ नवाजे गये मगर चैन कहाँ तो कोई सरयूपारणी ब्राह्मण तो कोई कान्यकुब्ज ब्राह्मण तो कोई कुछ हो श्रेष्ठ में श्रेष्ठतम के गुणा भाग में लग गये.
तो खास में कुछ तो वो हो गये जो खास हैं, कुछ वो हो गये जो खासों के खास हैं, कुछ वो जो खासमखास हैं और उन सब के उपर वो जो इसलिए सुपर खास हैं क्यूँकि वो उस परिवार में जन्में हैं जहाँ से खासों की पैदावार की ट्यूबवैल में पानी छोड़ा जाता है. वहाँ से पानी की सप्लाई बंद तो दो मिनट में खास की फसल झूलस कर खाक में मिल जाये और वो खास तो क्या, आम कहलाने के काबिल भी न रहे और फिर जिस लोक में मात्र दो वर्ग हों- एक तो वो जो आम है और दूसरे वो जो आम नहीं हैं, उसमें ऐसे लोगों को क्या कहा जायेगा जो दोनों में ही न हों- अब मैं क्या बताऊँ.
खुद को दूसरे से बेहतर बताना, दूसरे को नीचे गिरा कर खुद को ऊँचा महसूस करना, चटनी खाने वाले वर्ग के होते हुए भी मौका ताड़ कर दूसरे का आम चूस लेने की हरकत- चलो, लालच के चलते इसे नजर अंदाज भी कर दें तो आम के मिल्कशेक वाले वर्ग का चुपचाप चटनी चाट लेना और पकड़े जाने पर आँखें दिखाना और फिर ढीट की तरह मक्कारी भरी हँसी– यह सब भरे पेट की नौटंकियाँ हैं और उन्हीं को सुहाती भी हैं जो आम नहीं हैं.
वे ही राजा हैं, वे ही राज करते हैं, वे ही आम के भविष्य निर्धारक हैं कि चटनी बनाई जाये या चूसा जाये या मिल्कशेक बने. वो लगभग भगवान टाइप ही हैं आम लोगों के लिए. हालांकि ये आम लोग ही उन लोगों में से पसंद करते हैं जो आम नहीं हैं कि इस बार इनमें से कौन तय करेगा कि हमारी चटनी बनाई जाये या फिर हमें चूसा जाये या कुछ और. मगर चुनना होता है उनमें से ही जो आम नहीं हैं.
बाड़े के इस पार ये सब खेल तमाशे करने की अनुमति नहीं हैं अर्थात तुम्हारा काम है चुनना तो बस चुनो. चुने जाने की हसरत कभी दिल में न पालो. इस तरह के सपने देखना ठीक वैसा ही सपना है जैसा कि हमारे राष्ट्र को भ्रष्टाचार मुक्त देखना. ऐसा नहीं कि ऐसे सपनों को देखने की घटनायें होती ही नहीं हैं मगर विद्वानों नें इसे नादानी की श्रेणी में रखा है और नादानी का हश्र तो जगजाहिर है ही. करना चाहे तो करे कोई मगर खायेगा अपने मुँह की. और ऐसी हरकत करने वाला आम जब यह सोचता है कि मेरी इस जुर्रत से वो डर गया जो आम नहीं है तो इसका साफ अर्थ हैं कि वो उनको और उनके नाटकों को अभी समझ ही नहीं पाया है. यही शातिराना अदाज तो उन्हें उस श्रेणी में रखता है जिसे हम कहते हैं कि वो आम नहीं हैं.. वो ऐसे में इन आमों की नादानी पर बंद कमरों में हँसते हैं, मजाक उड़ाते हैं और ये आम कुछ दिन कूद फांद कर अपने मुँह की खाकर चुपचाप बैठ जाते हैं.
शास्त्रों में आमों की इस तरह की हिमाकत को बौराना की संज्ञा दी गई है. ये वो बौर नहीं है जिनसे आम आते हैं, इसका अर्थ होता है – पगलाना या जैसे कई शब्द अंग्रेजी में अपना ज्यादा अच्छा अर्थ बता देते हैं तो अंग्रेजी में इस कृत्य को स्टूपिडिटी कहते हैं और कर्ता को स्टूपिड और थोड़ा बिना बुरा लगाये कहना हो तो क्रेजी.
और फिर बौराई हुई नादानी में गल्तियाँ न हो ये कैसे हो सकता है वरना तो समझदारी ही कहलाती. तो ऐसे में बौराया हुआ आम यह तक भूल जाता है कि आम में स्त्री और पुरुष दोनों ही होते हैं. आम आम होता है मगर पुरुष चाहे आम हो या आम न हो, कहीं न कहीं अपनी पुरुष प्रधानता वाली और पुरुष सत्ता वाली मानसिकता की मूँछ तान ही देता है और बौराई हुई इस हरकत में एकाएक कह उठता है कि ’मैं आम आदमी हूँ’
अगर सोच में विस्तार दिया जाता और पुरुष मानसिकता से उपर उठने का समय निकाल पाते तो शायद कह देते कि ’मैं आम जनता हूँ’
वही हाल प्रकाश झा की आने वाली फिल्म ’चक्रव्हूय’ के विवादित गाने में देख रहा हूँ कि ’आम आदमी की जेब हो गई है सफाचट’ – इसमें भी महिलाओं को भुला दिया गया. मगर नारी- समर्पण और समर्थन के भाव देखिये कि गाने की शुरुवात में फिर भी नाचीं- जस्ट टू सपोर्ट. जबकि गाने के हिसाब से तो उनकी जेब भी सफाचट नहीं हुई. ऐसे में महिलाओं को भूल जाना- कितनी बुरी बात है.
इसी गाने में टाटा, बिड़ला, अम्बानी और बाटा को भी लपेटा है. नारी तो चुप है अभी मगर बिड़ला ने तो कानूनी नोटिस भेज भी दिया है. कल को अम्बानी भी भेजेंगे , परसों टाटा भी लेकिन बाटा तो गाने की तुकबंदी मिलवाने में जबरदस्ती लपेटे में आ गये वरना तो वो बेचारे तो भारत के हैं भी नहीं. कहाँ चेक रीपब्लिक की कम्पनी और घराना, कहाँ स्विटजरलैण्ड में हेड ऑफिस और कहाँ भारत के गाने में देश को काटने का आरोप.
मुझे लगता है एक नोटिस अगर नारी समुदाय की तरफ से उपेक्षा करने के उपलक्ष्य में थमा दिया जाये तो वो भी साथ साथ ही जबाब पा जाये.
वो सब कहाँ है जो नारी सशक्तिकरण की आवाज उठाते थे. जो नारी की तनिक उपेक्षा पर दहाड़े लगाया करतीं थी. जागो जी, हमें किसी से कोई दुश्मनी तो है नहीं बस, जो दिख जाये वो लिख जाये, सो धर्म निभाया.
यूँ भी नारी उपेक्षित रहे इस बात को यह कलम कैसे बर्दाश्त करे.
चलते- चलते:
इस इन्सां के दिल में कुछ है इस इन्सां ने बोला कुछ
गिने गये जो दुख में चुप थे अधिक मिले सुख में भी चुप
सच छुपता है झूठ के अंदर या झूठ गया था सच में छुप
जो कहता था सच ही हरदम, उस दर्पण का आगाज़ भी चुप
समीर लाल ’समीर’
...जल्द ही हमें भी कोई चूसेगा !
जवाब देंहटाएंसही कहा अब ससुरे शादी के नये पुरानी होने पर भी टिपिया रहें हैं समीर भाई..
जवाब देंहटाएंआम और ख़ास के मस्त विवेचन में आपकी कुछ चिंतायें जायज लग रही हैं !
जवाब देंहटाएंआम जनता तो वाकई आम ही है चूसो और फ़ेंक दो और रोंदते आगे बढ़ जाओ.
जवाब देंहटाएंन आम , न खास - बेनाना ( केला )होना कैसा रहेगा !:)
जवाब देंहटाएंआम तो आम आपने तमाम कर दिया !
जवाब देंहटाएंचिर कालिक व्यवस्था पर चोट करती हुई सामयिक घटनाओं पर तीखी टिपण्णी से युक्त रचना, आपकी संवेदनशीलता और बुद्धिमत्ता दोनों को जाहिर करती है. साधुवाद.
जवाब देंहटाएंअब तक चार बार पढ़ लिया है .आप अपनी सोच को कितनी कुशलता से लिख लेते हैं .कलम के जादूगर हैं आप .
जवाब देंहटाएंbadhiya chikoti kati dadda aapne....
जवाब देंहटाएंpranam.
इतना होने के बाद भी आम को भारत का राष्ट्रिय फल घोषित किया गया है . मेरे हिसाब से भारत में जिस में भी राष्ट्रिय शब्द जुड़ा और उसकी दुर्गति चालू ... जैसे - हाकी , बाघ , गंगा , गाँधी जी , सत्यमेव जयते ........
जवाब देंहटाएंआपने सबको लपेटे में ले लिया...चाहें वो आम आदमी हों या खास आदमी...खासकर ये कि-
जवाब देंहटाएं"आम के मिल्कशेक वाले वर्ग का चुपचाप चटनी चाट लेना और पकड़े जाने पर आँखें दिखाना और फिर ढीट की तरह मक्कारी भरी हँसी– यह सब भरे पेट की नौटंकियाँ हैं और उन्हीं को सुहाती भी हैं जो आम नहीं हैं."
सटीक विवेचना !
जवाब देंहटाएंचिंतनीय बिन्दुओं पर सक्रियता की आवश्यकता !
हम तो सूख सूख कर अमरस बन चुके हैं।
जवाब देंहटाएंसमीर जी ,जब तक आम के साथ अम्बियों का साथ ना होगा इंकलाब ना आयेगा...आप सही कह रहे हैं घोर उपेक्षा की गई है इनकी...अगर ये जोश मे भर कर बाहर निकल आयें तो कुछ परिवर्तन की संभावना बन सकती है....या फिर आम और अम्बियां ये हठ करले की भले ही पड़े-पडे सड़ -गल जाएं...लेकिन इन खास के किसी काम नहीं आयेगी...लेकिन ये असंभव ही लगता है;((
जवाब देंहटाएंसटीक चिंतन है समीर जी आप का ...
जवाब देंहटाएंकुछ मेरी तरफ से भी ...आम आम हैं और खास ख़ास...यदि आम ख़ास हो गया तो आम का अस्तित्व ही ख़त्म हो जायेगा ...हाँ आम..खास और खास..आम हो जाये तो बात बन सकती है आम और खास दोनों का अस्तित्व बच जायेगा ...लेकिन अपने देश में ऐसा होने वाला नहीं ...क्योंकि आम..खास बनते ही बौरा जाता है ..
बहुत सही लिखा है आपने समीर जी ..
जवाब देंहटाएंआम रिश्वत से दूर है!
जवाब देंहटाएंइसीलिए उनको चूसा जाता है!
बस आम ही बने रहना नसीब है अब :(
जवाब देंहटाएंआम और ख़ास आदमी का सुन्दर विश्लेषण !!!बधाई
जवाब देंहटाएंआम और ख़ास आदमी का सुन्दर विश्लेषण !!!बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सही.
जवाब देंहटाएंऊ का कहते हैं. टोटल झक्कास पोस्ट. शुरुआती ई लाइनें तो ज़बरदस्त हैं "देश को जब अपनी नजर से देखता हूँ तो पाता हूँ कि यहाँ मात्र दो तरह के लोग रहते हैं- एक तो वो जो आम हैं और दूसरे वो जो आम नहीं हैं. आम तो खैर आम ही हैं- कच्चे हुए तो चटनी बनी और पके हुए हों तो चूसे गये. मगर जो आम नहीं हैं वो होते हैं खास. जिनका काम है चटखारे लेकर आम की चटनी खाना या फिर आम को चूस कर मस्त रहना."
जवाब देंहटाएंबस एक ही बात कहनी है 'आम आदमी' में मर्द और औरत दोनों आ जाते हैं क्योंकि आदमी जेंडर न्यूट्रल शब्द है.
बात सामयिक तो है ही, तीखी और धरदार भी है। बस, 'ठीक जगह' तक पहँच जाए तो बात बने।
जवाब देंहटाएंतो खास में कुछ तो वो हो गये जो खास हैं, कुछ वो हो गये जो खासों के खास हैं, कुछ वो जो खासमखास हैं और उन सब के उपर वो जो इसलिए सुपर खास हैं...
जवाब देंहटाएं-----------
आपका ये कटाक्ष आम खास के चलते "बहुत ही खास "बन गया है और हम भी खास हो गये क्योंकि खास लेखक समीर जी का खास लेख जो पढ़ने को जो मिला। हार्दिक बधाई....
कुछ दिनों पहले पढ़ा था आपका लिखा की हम तो सुई जात है . वाकई चुभा चुभा कर लिखते हैं !
जवाब देंहटाएंसुन्दर विश्लेषण ....
जवाब देंहटाएंवैसे तो आम 'आम' पे नज़रे फिसलती है!
जवाब देंहटाएंअब खास-खास पर भी निगाहें है आम की !!
http://aatm-manthan.com
@ देश को जब अपनी नजर से देखता हूँ तो पाता हूँ कि यहाँ मात्र दो तरह के लोग रहते हैं- एक तो वो जो आम हैं और दूसरे वो जो आम नहीं हैं. आम तो खैर आम ही हैं- कच्चे हुए तो चटनी बनी और पके हुए हों तो चूसे गये. मगर जो आम नहीं हैं वो होते हैं खास. जिनका काम है चटखारे लेकर आम की चटनी खाना या फिर आम को चूस कर मस्त रहना........
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है इस देश में आम और खाश के मध्य एक और वर्ग का उदय हो चुका है जिसकी अभी पहिचान बांकी है,
कमल की प्रस्तुति.......आभार.
Fabulous.....
जवाब देंहटाएंआमों की किस्मत है चूसा जाना, चटनी बनना या मिल्कशेक के लिये पिसना । मरना तो उसे हर हाल में है किसी खास के लिये खासम खास के लिय या सुपर खास के लिये ।
जवाब देंहटाएंसामयिक सटीक और जबरदस्त ।
nice..
जवाब देंहटाएंप्रस्तुतीकरण में जनवादी विवेचना के लिए आपका साधुवाद|
जवाब देंहटाएंभला हो वडेरा जी का। आम आदमी को मैंगो मैन बना कर थोड़ी अंग्रेजी तहजीब सिखा दी!
जवाब देंहटाएंCongrats ~ Found your blog on Google while searching for a related topic, your site came up, it looks good, keep them coming !
जवाब देंहटाएंहाहाहाह..सोच रहा हूं केजरीवाल जी तक ये बात पहुंचा दी जानी चाहिए औऱ टोपी पर लिखे शब्द बदलवा देने चाहिए।
जवाब देंहटाएंआम होता है ऐसा है जिस पर सभी के नज़र रहती है ..अब चाहे वह आम आदमी हो या राजनेता नज़र तो नज़र है बस ...
जवाब देंहटाएं...आम के लिए बहुत सुन्दर सार्थक विश्लेषण .....आभार
क्या बात है,समीर जी.
जवाब देंहटाएंआपकी शैली रोचक और लाजबाब है.
आपने हम आम को भी आम की स्वादिष्ट चटनी
चखा दी है.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का हार्दिक आभार जी.
क्या अभी भी सेन फ्रांसिस्को में ही हैं आप?
बेहद लाजवाब .. क्या बात है ..आम और आम न होने पर इतनी पैनी दृष्टि ... पर महिलाओं की जेब नहीं कटी गाने मे उपेक्षित रही महिलायें ..वाह क्या मजाक से मारा व्यंग .. :)
जवाब देंहटाएंबहुत जबर लिखे है... आपको पढना हमेशा जोश भर देता है... हमने भी फिर से शुरू किया है...कभी मौका मिले तो नजर मारिये
जवाब देंहटाएंआम और आम न होने का विश्लेशण लाजवाब हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकृपया आप इसे अवश्य देखें और अपनी अनमोल टिप्पणी दें
यात्रा-वृत्तान्त विधा को केन्द्र में रखकर प्रसिद्ध कवि, यात्री और ब्लॉग-यात्रा-वृत्तान्त लेखक डॉ. विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’ से लिया गया एक साक्षात्कार
"bauraane" ka concept bada mast laga.. :D
जवाब देंहटाएंQuite an interesting read Sir. Common man will nod in agreement.
जवाब देंहटाएंगजब का तीर मारा है, बिल्कुल सटीक. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अम के आम गुठलियों के दाम्\ आम के बहाने बहुत कुछ कह दिया। यही तो आपकी कलम की खासियत है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं