बन जाओ मेरी
पुस्तक का शीर्षक....
जो है ३६५ पन्नों की...
वर्ष के दिन की गिनती
और
यह संख्या..
जाने क्यूँ एक से हैं...
लगे है ज्यूँ करती हों
दिल की धड़कन
और हाथ घड़ी में
टिक टिक चलती
सैकेंड की सुई
जुगलबंदी...
और इसका हर पन्ना...
खाली...
मगर भरा भरा सा
अलिखित इबारतों से..
फिर भी..
कुछ लिखे जाने के इन्तजार में...
खूब बिकेगी यह पुस्तक...
हाथों हाथ
बिक पाना ही चाहत है
और बिक जाना ही मंजिल..
वही तब बन जाता है मानक
उसकी लोकप्रियता का..
कि कितना बिक पाये..
हर हिन्दुस्तानी
जोड़ सकेगा
खुद को इससे...
और पढ सकेगा
हर पन्ने पर
अपनी कहानी....
जो कभी लिखी न गई...
मगर पढ़ी गई है लाखों बार
और अब भी इन्तजार मे है
अपने लिखे जाने के...
बोलो..
बनोगी..
मेरी पुस्तक का शीर्षक??
हाँ कहो
तो
शीर्षक रख दूँगा....
तुम!!!
-समीर लाल ’समीर’
घना शीर्षक है अपनत्व से भरा
जवाब देंहटाएंआजकी सफलता का मापदंड ऐसे ही नापा जाता है, बिक गए तो सफल. खूबसूरत कविता इशारों इशारों में बहुत कुछ कह जाती है.
जवाब देंहटाएंआभार.
वाह समीर जी...
जवाब देंहटाएंबिकना ही मानक है - सत्य.
प्रेम की पुस्तक एक लिखता है तो सिर्फ एक ही और पढ़ पाता है, वही जिसके लिये लिखी गयी हो....
सुन्दर ... बढ़िया...
...क़ाश,हम भी बनते टाइटल कभी !
जवाब देंहटाएंवाह......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
मगर "तुम" को कोई और पढ़ेगा तो ज़रा सा दर्द होगा मुझे कहीं :-)
सादर
अनु
सुंदर!
जवाब देंहटाएंपोस्ट के साथ दी हुई तस्वीर इंगित करती है कि आपने पुस्तक भी लिख ली है और शीर्षक भी चुन लिया है !
जवाब देंहटाएंउसी के मद्दे नज़र इरशाद है कि:.....
'साधना' पुस्तक बनी, शीर्षक बनी,
जिंदगी जीने का इक मक्सद बनी.
हर दिन इक सफहा लिखा, सफहा पढ़ा,
इक धड़कता दिल बनी, धड़कन बनी.
हाथ पर बन कर घड़ी सी बंध गयी,
प्रेरणा, रचना बनी, पुस्तक बनी.
http://aatm-manthan.com
बिकने के लिये शीर्षक का आकर्षण भी कम नहीं होता !
जवाब देंहटाएं३६५ पन्ने हर वर्ष नये होते रहें, शीर्षक भी वही बना रहे...शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंसच कह रहे हो समीर भाई ,
जवाब देंहटाएंवे ही इस योग्य हैं..
बधाई !
बेहद गहन भाव लिए सशक्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर
कविता अच्छी है और तस्वीर बहुत अच्छी. आपदोनों बहुत प्यारे लगते हैं :)
जवाब देंहटाएंशीर्षक में ही इतना आकर्षण है कि झट से पढ़ गए ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबोलो..
जवाब देंहटाएंबनोगी..
मेरी पुस्तक का शीर्षक??
हाँ कहो
तो
शीर्षक रख दूँगा....
तुम!!!
अब इसके आगे कहने को क्या बचा ? बहुत सुन्दर उद्गार
''तुम ''
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरती से लिखा गया है हाले दिल ...एक जीवन ..जिसे जीने के लिए अपनों का साथ जरुरी हैं ||
यह प्यार यूँ ही बना रहे .
जवाब देंहटाएंआज भाभी जी का जन्मदिन है क्या !
वाह बहुत बढ़िया ,,,तुम ...कब पब्लिश होगी यह किताब :)
जवाब देंहटाएंजो लिखी ही नहीं गयी वो ही पढ़ी जाती है अनगिनत बार .... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंBILKUL ALAG DHANG KEE HRIDAYSPARSHEE KAVITA .
जवाब देंहटाएंये चलेगा क्या :- Not a bissextile year ( not a leap year ) अलीप वर्ष :)
जवाब देंहटाएंबन जाओ मेरी कविता का शीर्षक तुम!!
जवाब देंहटाएं------------------------------------
कई बार शब्दों से अधिक चित्रों की जुबानी सुनी जा सकती है..............
हाँ कहने में इतनी देर क्यों लग रही है...मेरे हाँ कहने से कोई फर्क भी नहीं पड़ता...बहरहाल दिल से लिक्खी चीजें हाथों हाथ बिकतीं है...पढ़ने वाले भी दिल के हाथों मजबूर होते है...शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंशीर्षक रख दूँगा....
जवाब देंहटाएंतुम!!!kya baat hai.....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंPravhavpurn rachna tum shirashak acchha rahega
जवाब देंहटाएंरख ही दीजिए शीर्षक.....हिंदुस्तानी तो अपने से जोड़ के देखेगा आराम से....क्या करे बेचने की आदत है उसे...जाने कितने सालो से..।
जवाब देंहटाएंजो कभी लिखी न गई...
जवाब देंहटाएंमगर पढ़ी गई है लाखों बार
bahut umda rachna sundar bhavpurn....
पुस्तक का यह शीर्षक वर्षों पूर्व ही लिख गया ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
"tum" chhota magar bahooooot gahra sheershak hai sab samaya hai isme ,hai ki nahiin:)
जवाब देंहटाएंपूरी कविता में ये दो पंक्तियॉं अपने आप मे एक सूत्र जैसी लगीं -
जवाब देंहटाएंबिक पाना ही चाहत है
और बिक जाना ही मंजिल..
आपकी कविता रूपी <> पहेली के क्या-क्या अर्थ लगाये जा रहे है ! आप ही ख़ुलासा कीजिए जनाब.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता अच्छे अंदाज में लिखी गयी |
जवाब देंहटाएंबिक पाना ही चाहत है
जवाब देंहटाएंऔर बिक जाना ही मंजिल..
वही तब बन जाता है मानक
उसकी लोकप्रियता का..
कि कितना बिक पाये..
अपनत्व से भरा
टिक टिक चलती
जवाब देंहटाएंसैकेंड की सुई
जुगलबंदी...
और इसका हर पन्ना...
खाली...
मगर भरा भरा सा
अलिखित इबारतों से..
फिर भी..
कुछ लिखे जाने के इन्तजार में...
बहुत हौले हौले से प्यारी प्यारी प्यारी सी बयार सी बहती हुई कविता। यह आप ही कह सकते हैं। बहुत ही सुन्दर। शीर्ष पर भौजी सा शीर्षक आनंदित कर रहा है।
टिक टिक चलती
जवाब देंहटाएंसैकेंड की सुई
जुगलबंदी...
और इसका हर पन्ना...
खाली...
मगर भरा भरा सा
अलिखित इबारतों से..
फिर भी..
कुछ लिखे जाने के इन्तजार में...
बहुत हौले हौले से प्यारी प्यारी प्यारी सी बयार सी बहती हुई कविता। यह आप ही कह सकते हैं। बहुत ही सुन्दर। शीर्ष पर भौजी सा शीर्षक आनंदित कर रहा है।
Bahut khub....
जवाब देंहटाएंkya baat hai....
जवाब देंहटाएंkya baat hai....
जवाब देंहटाएंमन आनंदित हो गया
जवाब देंहटाएंना भी बिके पढी जरूर जायेगी । यह अनलिखी अन कही मौन इबारत ।
जवाब देंहटाएंहर किसी की (का) एक तुम जो है ।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंदीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
म्यूजिकल ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें,
अनकही /अनदेखी इबारत से लिखी पुस्तक !
जवाब देंहटाएंशीर्षक ही कह देगा सब बातें...
.............
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
खूब कहा कविवर ! बढ़िया प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंदीपावली की अनंत शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंनया पोस्ट.. प्रेम सरोवर पर देखें।
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
हिन्दी के क्षेत्र में अभी Publicist क़ौम का आना हुआ ही नहीं है
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा |
जवाब देंहटाएंஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
वाकई शीर्षक महत्वपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंरामराम