गुरुवार, सितंबर 13, 2012

सूक्ष्म कथायें: कौव्वी की आधी चोंच

इधर फिर कुछ झैन कथायें पढ़ने का संयोग बना. तीन लाईन की कहानी, २५ लाईन के विचार देती. जो पढ़े, वो पढ़े कम, समझे ज्यादा और फिर अलग अलग मतलब लगाये अपनी बुद्धि के अनुरुप और खुश रहे. भीषण दर्शन. बस, मन किया कि फिर से कुछ उसी तरह की कोशिश की जाये.

 

पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान एक सरकारी भवन की खिड़की से ली गई कौव्वों की तस्वीर

kw

भाग-१

नीम के पेड़ की डाली पर एक कौव्वा और एक कौव्वी- कई बरसों से बसेरा करते थे.

एक रोज सुहाने मौसम से वशीभूत दोनों चोंच चोंच खेल रहे थे.

कौव्वी की चोंच खेल खेल में टूट गई.

कौव्वे ने उसे देखकर मूँह बनाया और उड़ गया.

(इति)

भाग-२

उदास तन्हा कौव्वी यहाँ वहाँ फिरती और अकेलेपन के दुख में चिल्लाती. मिथिला के एक आंगन में एक चंदन के पेड़ पर चिल्लाती कौव्वी की आवाज़ सुनकर विरहिणी कहती है कि यदि आज पिया आ गए तो मैं तुम्हारी चोंच सोने से मढ़वा दूंगी. मंत्री पिया को आना ही था सो पटना एक्स्प्रेस से सुबह सुबह आ गये. साथ नई डील में बनाये कुछ खोके भी लाये. विरहणी नें बताया कि मोबाईल नेटवर्क बंद होने के दौरान इसी कौव्वी नें तुम्हारे आने की शुभ सूचना दी थी. चूँकि वादा मंत्री जी का नहीं बल्कि उनकी पत्नी का किया हुआ था अतः वादे के अनुरुप कौव्वी की आधी वाली चोंच सोने से मढ़वा दी गई. कौव्वे के पास जब उड़ते उड़ते यह खबर पहुँची तो कौव्वा उड़ कर वापस आ गया और कौव्वी के साथ पुनः रहने लगा.

(इति)

भाग -३

सोने से मढ़ी कौव्वी की चोंच देखते हुए एकाएक कौव्वे को अपनी चतुराई वाले स्वभाव की याद हो आई. कौव्वे ने अपनी योजना कौव्वी को कान में कह सुनाई. फिर कौव्वे ने खरोंच खरोंच कर कौव्वी की चोंच से सोना निकाल लिया और पेड़ की खोह में छिपाकर नई विरहणी की तलाश में दोनों निकल पड़े. खूब उड़े और खूब उड़े. पल पल जमाना बदला नज़र आता रहा. अब न तो कोई विरहणी मिलती और न किसी अंगना चंदन का पेड़.

नये जमाने के सक्षम औरत आदमी आज अपनी ही चोंच सोने से मढ़वाये घूम रहे हैं और कौव्वा कौव्वी अचरज से उन्हें देख रहे हैं.

(इति)

45 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! अद्भुत दर्शन!!!....बदले जमाने की कथा आपकी पारखी नज़र से ...

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  2. बड़े भाई,
    यह तो धमाकेदार/जोरदार लिख दिया आपने!..वाह! कमेंट पढ़ने फिर आयेंगे।

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  3. वाह क्या कहानी है सोने की चोंच लिये घूम रहे लोग हा हा हा

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  4. वाह.......
    नतमस्तक हूँ आपके आगे...
    कमाल की कथा....गहरे छिपी हुई व्यथा...

    सादर
    अनु

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  5. अहा, सच में गहरे उतार दिया यह दर्शन..

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  6. :-)

    ज़बरदस्त कटाक्ष किया है आपने आज के समाज पर....

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  7. नये जमाने के सक्षम औरत आदमी आज अपनी ही चोंच सोने से मढ़वाये घूम रहे हैं और कौव्वा कौव्वी अचरज से उन्हें देख रहे हैं.
    बहुत सुंदर .....

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  8. सदा प्रासंगिक रहने वाले भाव ....एकदम सटीक व्यंग

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  9. पुराने वाले मंत्रीजी के यहां फिर चले चले जायें। अगर उन्होने एयरलांस का बिजनेस खोल लिया होगा तो कई विरहणियां पटी पड़ी होंगी।

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  10. बहुत अच्छा कटाक्ष है ज़माने पर ..
    kalamdaan

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  11. वाह समीर भाई ... विषय भी कहाँ कहाँ से खोज लाते हो ...
    मज़ा आ गया उस्ताद जी ...

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  12. हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें ...

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  13. छोटी सी कहानियां बहुत कुछ कह गईं...नये जमाने के सक्षम औरत आदमी आज अपनी ही चोंच सोने से मढ़वाये घूम रहे हैं और कौव्वा कौव्वी बेचारे जाने कहाँ खो गए...

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  14. वक्त बदल रहा हैं ....सोच बदल रही है ...और सब उसकी के मुताबिक खुद को बदलते जा रहे हैं...बहुत बढिया

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  15. बड़ी सहजता से कही गंभीर बात शत शत नमन .

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  16. अब न तो कोई विरहणी मिलती और न किसी अंगना चंदन का पेड़.
    Kitna sahee kaha....zamana tezee se badal raha hai! Waise yahee baat blog jagat ke liye bhee lagu padtee hai....pathakon kee sankhya din-b-din ghat hee rahee hai!

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  17. बहुत ही कम मगर आसान शब्दों में बहुत कुछ गहन कह गए आप...

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  18. अद्भुत कथा .सत्य को उद्घाटित करती .

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  19. bahut khoobsurti ke sath badi gambheer baat kahi hai.....

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  20. टूटी चोंच देख कर छोड़ गया ,सोने से मढ़ी देख फिर आ गया -कौआ है कि आदमी ?
    और कव्वी भी बेवकूफ़ -लालच हई बुरी बलाय!

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  21. aaj k pariwesh par kitne sadhe shabdo se aapane kataaksh kiya hai , logon ko aapse seekhna chahiy k ek lekhak ko kaise apanee baat apni bhaawnaaye wyakt karanee chahiy, k sabdon k maryaada bhi bhang naa ho aur wicharo mai koi milaawat bhi naa ho...
    thanks sir ji

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  22. अद्भूत दर्शन... उफ़ ये परिवर्तन... कि हर कोई अपना नया वर्जन बनाने को विवश !

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  23. आपका लिखा हमेशा कुछ सोचने को और मुस्कुराने को बाध्य कर ही देता है ..सितम्बर के महीने में आपके तीन लेख आ गए हैं.पुराने दिन लगता है वापिस आ रहे हैं यूँ ही लिखते रहिये :)

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  24. BHAIYA , MAZAA AA GYAA HAI PADH KAR.

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  25. Aapne jo ktaksh kiya hai uska javab nahi...shubkamnayen..

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  26. तीखी बात सोने की चोंच के साथ......

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  27. तीखी बात सोने की चोंच के साथ......

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  28. ज़ेन-दर्शन समयातीत है,परंतु इस कलयुग का
    कोई सानी नहीं जहां सब कुछ सोने की चोंच
    का प्रितिबिम्ब हैं,क्या विरह क्या विहरणी,

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  29. ज़ेन-दर्शन समयातीत है,परंतु इस कलयुग का
    कोई सानी नहीं जहां सब कुछ सोने की चोंच
    का प्रितिबिम्ब हैं,क्या विरह क्या विहरणी,

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  30. लाजवाब....सुपर्ब...


    प्रेम पर, राजनीति पर, सामाजिक व्यवस्था पर एक साथ एक ही वार में गहरी चोट कर दी आपने...


    सुहाना...सार्थक व्यंग्य..

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  31. sona madhva kar log chonch deekha rahe:-D
    kya bhaiya jee aapka bhi jabab nahi:)

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  32. महीनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ... समझ में आया कि एक नियमित ब्लॉगर होना भी एक उपलब्धि से कम नहीं...



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  33. तीन कहानियों को मिलाकर जो एक बनी इन तीनों में एक अलग अलग सन्देश मिला और अंत में जो सम्पूर्ण कथा का सारांश कह गया वह तो काबिले तारीफ है. व्यंग्य से मढ़ा यथार्थ इसी को कहते हें.

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  34. तीनों कहानियों से एक ही बनती है पर अलग अलग भी वे सक्षम है ।
    सुख के सब साथी ।
    प्रतिदान
    हर दिन लड्डू न न न ।

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  35. बहुत सुन्दर कथा /अच्छी पोस्ट |ब्लॉग पर आने हेतु आभार |

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  36. और आज तो सोने की चोच या तो कोई रेडी बंधु बनवा सकता या फिर जिनहे कोयले के ब्लॉक मिले वो , आम आदमी के तो अपनी ह चोंच सलामत रखने के लाले पड़े हैं। सार्थक लेख ।

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  37. सटीक ...गागर मे सागर ...!!

    आभार ....

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  38. बहुत सुन्दर कहानी ....... गुरदेव

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