पिछले आलेख के साथ वादा था कि गज़ल पूरी सुनाऊंगा तो पढ़िये पूरी…और हाँ. मेरी आवाज में सुनना हो तो कमेंट करो..अगली पोस्ट में गा कर सुनायेंगे एक अलग अंदाज में..मगर कहो तो::
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को
हर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर
अब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...
जिसकी शिरकत देख के, अब जा छुपा है ’समीर’
कह रहा है वो मेरा, सम्मान होना चाहिये..
-समीर लाल ’समीर’
aap kaa janam din aanae waala haen so pehlae badhii swikaar kar lae
जवाब देंहटाएंphir gazal sunaaye
दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर
जवाब देंहटाएंअब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...
jvaab nahi...or han intjaar rahega gaakar bhi sunaiye na!
khubsurat laajabaab aavaaj sunne ko mil jaaye to subhaanallaah
जवाब देंहटाएं:):):)
जवाब देंहटाएंpranam.
bahut sundar har sher ..gaa ke jarur sunaiye .intjar rahega
जवाब देंहटाएंदर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
बहुत बढ़िया भाव .... आभार
"इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये" क्या बात कही है. इरशाद (गाके)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल.... हर शेर बढ़िया बना है.... "भूख उनको न लगे.. वरदान होना चाहिए..." सबसे उम्दा...
जवाब देंहटाएंवाह ज़बरदस्त ग़ज़ल... आपके मुंह से सुने तो और मज़ा आये...
जवाब देंहटाएंकाहे रुलाते हो भाई
जवाब देंहटाएंरोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये.
अदभुत ग़ज़ल
हिंदी ग़ज़ल में किया है आपने अच्छा प्रयोग 'समीर',
जवाब देंहटाएंअब इस ग़ज़ल का बाकायदा गान होना चाहिए :)
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंपढ़ तो ली अब सुनेगे भी...
:-)
सादर
अनु
भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को,
जवाब देंहटाएंउसको भी इस बात पर गुमान होना चाहिए..
" वो वाली" गजल के लिए आभार ..........
WAH...KYA KHOOB SHER KAHE HAI'N AAPNE...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल . अब तो सुनने के लिए बेचैन हैं भाई .
जवाब देंहटाएंबहुत ही दमदार है, अब गान होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंवाह वाह...खूबसूरत ग़जल ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति! आभार .
जवाब देंहटाएंचलिए सुना ही दीजिए :)
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह!
जवाब देंहटाएंachchi bhavnaon se bhri pyaari gazal
जवाब देंहटाएंभाव अच्छे हैं,थोडा और जोर लगाते तो ग़ज़ल और अच्छी बन जाती !
जवाब देंहटाएं...आपसे हमेशा उत्तम की उम्मीद !
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
क्या बात है समीर जी.सुन्दर ग़ज़ल है.
सारी पंक्तियां बेहद प्रभावशाली हैं उडन जी । हर इंसान के भीतर एक इंसान होना चाहिए ..वाह कितनी गहरी बात कह गए आप
जवाब देंहटाएंदूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर
जवाब देंहटाएंअब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...
मानवीय संवेदनाएं लिए पंक्तियाँ....
बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंभूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को
जवाब देंहटाएंहर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..
खुबसूरत
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
भावो का सुन्दर समायोजन.
जवाब देंहटाएंरोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
क्या बात...बढ़िया ग़ज़ल..
लीजिये कमेन्ट कर दिया अब जल्दी ही अपनी आवाज़ में सुनवाइये
भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को
जवाब देंहटाएंहर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..
..यह शेर जोरदार है मगर गज़ल से उलट भाव रखता है।
आपकी लेखनी के तो हम पहले से की कायल है :)बहुत ही उम्दा गजल है समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
सब शेर अच्छे हैं मुबारक हो ........
इस सुन्दर गज़ल को सुनना और अच्छा लगेगा .
जवाब देंहटाएंहाँ तो ,शुरू करिये ..!
दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर
जवाब देंहटाएंअब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...
Ye bhee kaisi gahan baat kahee hai aapne!
बहुत सुन्दर....समीर जी ..
जवाब देंहटाएंरोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये.
पढ़ तो ली अब आपकी आवाज मे सुनने की तमन्ना है !
बहुत सुन्दर....समीर जी ..
जवाब देंहटाएंरोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये.
पढ़ तो ली, अब आपकी आवाज मे भी सुनने की तमन्ना है!
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
क्या बात है ।
सुनाइये गज़ल ।
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
क्या बात है ।
सुनाइये गज़ल ।
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये. wah! Sir, let us hear your voice
वाह, उम्दा ग़ज़ल है!न न गाने की जरुरत नहीं है हम खुद गुनगुना लिए ! :-)
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन ...और सुंदर भाव ...
लगता है जबलपुर की मिट्टी मे दम है ...हमारी भी फरमाइश ...ज़रूर गा के सुनायें ....
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
होना तो यही चाहिए मगर इंसान के अन्दर से भेड़िये और लोमड़िया तो ऐसी निकलती हैं जैसे जादूगर के झोले से अजीबोगरीब चीजें !
आलेख का तो पता नहीं किन्तु गजल अच्छी है। इसे दो-तीन बार पढा जासकता है। अच्छी और सामयिक बातें बडे सलीके से कही गई हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गजल..
जवाब देंहटाएंअब गीत में भी सुनना चाहेंगे..
:-)
समीर जी ....मुबारक हो !
जवाब देंहटाएंदिल से कही ..दिल तक पहुंची ....
शुभकामनाये!
बस सुना ही दीजिये, वैसे बहुत सुंदर और दिल को छूने वाली ग़ज़ल है और जब कानों में पड़ेगी तो उसकी गहराई भी समझ आने लगेगी.
जवाब देंहटाएंरोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
सुंदर गजल ...
बहुत खूब ..
आपकी आवाज में सुनने का भी इंतजार रहेगा ...
ही..ही...
जवाब देंहटाएंईन्सान के अंदर ईन्सान होना चाहीए,
हर गलती पर अब यहां समसान होना चाहीए :)
काशःहो सके ऐसा! आशा बिना जीना भी अधूरा है.
जवाब देंहटाएंभूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को
जवाब देंहटाएंहर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..
बहुत लाजवाब...पर शमशान किसके लिये? दुश्मनों के लिये ही ना?:)
रामराम
इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना :
अब जो रहा नहीं भीतर
वह होना चाहिये ही तो
हो जाता वहाँ है
मजे की बात है नहीं
क्या जिसको जहाँ होना
चाहिये वो अब वहाँ
जाता कहाँ है!!!
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
यह वरदान सो सारे संसार की समस्यायें समाप्त कर सकता है.
हां जी अनुरोध है कि आपकी आवाज़ में गज़ल सुने.
सुन्दर शेर
जवाब देंहटाएंकौन टाइप के हो लाल साब आप ?
जवाब देंहटाएंBahut hi khubsurat ....
जवाब देंहटाएंAapki aawaz me sunne ko dil betab hai..
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
सुदर रचना ..
सुना भी दीजिए ..
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
वाह समीर भई ... क्या जोरदार बात कह दी है ... काश ऐसा हो जाय ..आधे झगडे खत्म ...
असल में समाज के मूल्य बने रहें, हम सभी चाहते हैँ, पर सभी जानते हैं कि बदलाव होगा ही।
जवाब देंहटाएंगज़ल बदलाव और बेहतर बदलाव पर होनी चाहिये।
अति सुन्दर समीर जी.
जवाब देंहटाएंWah!Wah! Bahut Sundar.
जवाब देंहटाएंसमीर जी मेरी टिप्पणी कहाँ गयी? शुभकामनायें। अगली पोस्ट मे सुनते हैं।
जवाब देंहटाएंvery nice sir!
जवाब देंहटाएंउड़नतश्तरी चचा को प्रणाम.. इतने दिनों बाद इधर आया और क्या सुन्दर गज़ल पढ़ने को मिली... :)
जवाब देंहटाएंसुना ही दीजिए, पढ़कर भाव ही समझ में नहीं आता। वैसे भी हाथ तंग है... ;)
जवाब देंहटाएंwaah.....aap o kamaal kr gye. :D
जवाब देंहटाएंदर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
.
बहुत ही सुदर शब्द | काश ऐसा हो सकता?
दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...
जवाब देंहटाएंइंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
.
बहुत ही सुदर शब्द | काश ऐसा हो सकता?
सम्मान भी जरुरी हैं :)))
जवाब देंहटाएंbahut sunder gazal.....
जवाब देंहटाएंevery line is with a new color.. gud one
जवाब देंहटाएंachhcchaa laga pad kr..
@ मगर कहो तो::
जवाब देंहटाएंलो जी कह दिया ....:))
फिलहाल तो कष्ट मिटावो यज्ञ में
अपना मुफ्त का पास होना चाहिए...:))
गजल बहुत ही अच्छा लगा। मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है।
जवाब देंहटाएंचचा, दर्द तो बस मुस्कान ही हरती है, दर्दे-दिल पर दवा कहां असर करती है?
जवाब देंहटाएंहर एक के जीवन से जुड़ी बात कह दी है गज़ल में ... बहुत शानदार गज़ल ... अब सुना कब रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंI'd have to go along with with you one this subject. Which is not something I usually do! I enjoy reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!
जवाब देंहटाएंThis is really interesting…
जवाब देंहटाएंsaadepunjab.com
रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
जवाब देंहटाएंभूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
AAPKA JABAB..NAHI......KHOOB..
NICE ONE....
जवाब देंहटाएंHAPPY FRIENDSHIP DAY....!!!!!!!
आंसू हमारे देखकर वो खिलखिलाकर हंस दिए
जवाब देंहटाएंचीखें हमारी दब सकें वो मकान होना चाहिए
...आंसू हमारे देखकर वो खिलखिलाकर हंस दिए
जवाब देंहटाएंचीखें हमारी दब सकें वो मकान होना चाहिए
samayik prastuti....bhukh unko na lage...marmi bhaw
जवाब देंहटाएंsamayik prastuti....bhukh unko na lage...marmik bhaw
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..!!
जवाब देंहटाएंप्रभु या तो आप ग़ज़लें लिखते नहीं और जब लिखते हैं तो सबकी बोलती बंद कर देते हैं...अब इस ग़ज़ल को लें...कितनी सरल सीधी ज़बान में आपने कितना कुछ कह दिया है...आनंद आ गया...हम धन्य हैं जो आपको पढने का मौका पा रहे हैं...आप लिखते रहें हम पढ़ते रहेंगे...
जवाब देंहटाएंनीरज
बेहतरीन गज़ल समीर साहब आनन्दित किया .आभार
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ