शुक्रवार, जुलाई 20, 2012

वो वाली गज़ल..

पिछले आलेख के साथ वादा था कि गज़ल पूरी सुनाऊंगा तो पढ़िये पूरी…और हाँ. मेरी आवाज में सुनना हो तो कमेंट करो..अगली पोस्ट में गा कर सुनायेंगे एक अलग अंदाज में..मगर कहो तो::

 

2012-07-13 19.48.21

 

दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.

 

भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को

हर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..

 

रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से

भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..

 

दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर

अब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...

 

जिसकी शिरकत देख के, अब जा छुपा है ’समीर’

कह रहा है वो मेरा, सम्मान होना चाहिये..

 

-समीर लाल ’समीर’

87 टिप्‍पणियां:

  1. aap kaa janam din aanae waala haen so pehlae badhii swikaar kar lae
    phir gazal sunaaye

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  2. दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर

    अब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...

    jvaab nahi...or han intjaar rahega gaakar bhi sunaiye na!

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  3. बेनामी7/20/2012 12:29:00 am

    khubsurat laajabaab aavaaj sunne ko mil jaaye to subhaanallaah

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  4. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.



    बहुत बढ़िया भाव .... आभार

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  5. "इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये" क्या बात कही है. इरशाद (गाके)

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  6. बहुत बढ़िया ग़ज़ल.... हर शेर बढ़िया बना है.... "भूख उनको न लगे.. वरदान होना चाहिए..." सबसे उम्दा...

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  7. वाह ज़बरदस्त ग़ज़ल... आपके मुंह से सुने तो और मज़ा आये...

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  8. काहे रुलाते हो भाई
    रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये.

    अदभुत ग़ज़ल

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  9. हिंदी ग़ज़ल में किया है आपने अच्छा प्रयोग 'समीर',
    अब इस ग़ज़ल का बाकायदा गान होना चाहिए :)

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  10. बहुत सुन्दर....
    पढ़ तो ली अब सुनेगे भी...
    :-)

    सादर
    अनु

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  11. भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को,
    उसको भी इस बात पर गुमान होना चाहिए..
    " वो वाली" गजल के लिए आभार ..........

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  12. बहुत सुन्दर ग़ज़ल . अब तो सुनने के लिए बेचैन हैं भाई .

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  13. बहुत ही दमदार है, अब गान होना चाहिये।

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  14. वाह वाह...खूबसूरत ग़जल ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति! आभार .

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  15. चलिए सुना ही दीजिए :)

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  16. भाव अच्छे हैं,थोडा और जोर लगाते तो ग़ज़ल और अच्छी बन जाती !

    ...आपसे हमेशा उत्तम की उम्मीद !

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  17. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.

    क्या बात है समीर जी.सुन्दर ग़ज़ल है.

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  18. सारी पंक्तियां बेहद प्रभावशाली हैं उडन जी । हर इंसान के भीतर एक इंसान होना चाहिए ..वाह कितनी गहरी बात कह गए आप

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  19. दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर
    अब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...

    मानवीय संवेदनाएं लिए पंक्तियाँ....

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  20. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

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  21. भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को

    हर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..

    खुबसूरत

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  22. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  23. भावो का सुन्दर समायोजन.

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  24. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से

    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..

    क्या बात...बढ़िया ग़ज़ल..

    लीजिये कमेन्ट कर दिया अब जल्दी ही अपनी आवाज़ में सुनवाइये

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  25. भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को
    हर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..
    ..यह शेर जोरदार है मगर गज़ल से उलट भाव रखता है।

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  26. आपकी लेखनी के तो हम पहले से की कायल है :)बहुत ही उम्दा गजल है समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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  27. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
    सब शेर अच्छे हैं मुबारक हो ........

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  28. इस सुन्दर गज़ल को सुनना और अच्छा लगेगा .
    हाँ तो ,शुरू करिये ..!

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  29. दूर कर दे भाई को, माँ बाप के प्रस्थान पर

    अब नहीं ऐसा कहीं, स्थान होना चाहिये...
    Ye bhee kaisi gahan baat kahee hai aapne!

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  30. बहुत सुन्दर....समीर जी ..
    रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये.
    पढ़ तो ली अब आपकी आवाज मे सुनने की तमन्ना है !

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  31. बहुत सुन्दर....समीर जी ..
    रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये.
    पढ़ तो ली, अब आपकी आवाज मे भी सुनने की तमन्ना है!

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  32. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
    क्या बात है ।

    सुनाइये गज़ल ।

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  33. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..
    क्या बात है ।

    सुनाइये गज़ल ।

    जवाब देंहटाएं
  34. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये. wah! Sir, let us hear your voice

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  35. वाह, उम्दा ग़ज़ल है!न न गाने की जरुरत नहीं है हम खुद गुनगुना लिए ! :-)

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  36. इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.

    बहुत गहन ...और सुंदर भाव ...
    लगता है जबलपुर की मिट्टी मे दम है ...हमारी भी फरमाइश ...ज़रूर गा के सुनायें ....

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  37. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.

    होना तो यही चाहिए मगर इंसान के अन्दर से भेड़िये और लोमड़िया तो ऐसी निकलती हैं जैसे जादूगर के झोले से अजीबोगरीब चीजें !

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  38. आलेख का तो पता नहीं किन्‍तु गजल अच्‍छी है। इसे दो-तीन बार पढा जासकता है। अच्‍छी और सामयिक बातें बडे सलीके से कही गई हैं।

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  39. बहुत बढ़िया गजल..
    अब गीत में भी सुनना चाहेंगे..
    :-)

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  40. समीर जी ....मुबारक हो !
    दिल से कही ..दिल तक पहुंची ....
    शुभकामनाये!

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  41. बस सुना ही दीजिये, वैसे बहुत सुंदर और दिल को छूने वाली ग़ज़ल है और जब कानों में पड़ेगी तो उसकी गहराई भी समझ आने लगेगी.

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  42. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..

    सुंदर गजल ...
    बहुत खूब ..
    आपकी आवाज में सुनने का भी इंतजार रहेगा ...

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  43. ही..ही...

    ईन्सान के अंदर ईन्सान होना चाहीए,
    हर गलती पर अब यहां समसान होना चाहीए :)

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  44. काशःहो सके ऐसा! आशा बिना जीना भी अधूरा है.

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  45. भूल जाते हम सदा ही दुश्मनों के वार को

    हर गली में अब यहाँ, शमशान होना चाहिये..

    बहुत लाजवाब...पर शमशान किसके लिये? दुश्मनों के लिये ही ना?:)

    रामराम

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  46. इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.

    बहुत खूबसूरत रचना :
    अब जो रहा नहीं भीतर
    वह होना चाहिये ही तो
    हो जाता वहाँ है
    मजे की बात है नहीं
    क्या जिसको जहाँ होना
    चाहिये वो अब वहाँ
    जाता कहाँ है!!!

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  47. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..

    यह वरदान सो सारे संसार की समस्यायें समाप्त कर सकता है.

    हां जी अनुरोध है कि आपकी आवाज़ में गज़ल सुने.

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  48. कौन टाइप के हो लाल साब आप ?

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  49. Bahut hi khubsurat ....
    Aapki aawaz me sunne ko dil betab hai..

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  50. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.

    सुदर रचना ..

    सुना भी दीजिए ..

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  51. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से
    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..

    वाह समीर भई ... क्या जोरदार बात कह दी है ... काश ऐसा हो जाय ..आधे झगडे खत्म ...

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  52. असल में समाज के मूल्य बने रहें, हम सभी चाहते हैँ, पर सभी जानते हैं कि बदलाव होगा ही।

    गज़ल बदलाव और बेहतर बदलाव पर होनी चाहिये।

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  53. A K Shrivastava7/23/2012 11:46:00 pm

    अति सुन्दर समीर जी.

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  54. समीर जी मेरी टिप्पणी कहाँ गयी? शुभकामनायें। अगली पोस्ट मे सुनते हैं।

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  55. उड़नतश्तरी चचा को प्रणाम.. इतने दिनों बाद इधर आया और क्या सुन्दर गज़ल पढ़ने को मिली... :)

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  56. सुना ही दीजिए, पढ़कर भाव ही समझ में नहीं आता। वैसे भी हाथ तंग है... ;)

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  57. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
    .
    बहुत ही सुदर शब्द | काश ऐसा हो सकता?

    जवाब देंहटाएं
  58. दर्द सबका हर सके वो मुस्कान होना चाहिये...

    इंसान के भीतर भी इक इंसान होना चाहिये.
    .
    बहुत ही सुदर शब्द | काश ऐसा हो सकता?

    जवाब देंहटाएं
  59. सम्मान भी जरुरी हैं :)))

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  60. every line is with a new color.. gud one
    achhcchaa laga pad kr..

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  61. @ मगर कहो तो::

    लो जी कह दिया ....:))

    फिलहाल तो कष्ट मिटावो यज्ञ में
    अपना मुफ्त का पास होना चाहिए...:))

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  62. गजल बहुत ही अच्छा लगा। मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है।

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  63. चचा, दर्द तो बस मुस्कान ही हरती है, दर्दे-दिल पर दवा कहां असर करती है?

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  64. हर एक के जीवन से जुड़ी बात कह दी है गज़ल में ... बहुत शानदार गज़ल ... अब सुना कब रहे हैं ?

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  65. बेनामी7/31/2012 09:09:00 pm

    I'd have to go along with with you one this subject. Which is not something I usually do! I enjoy reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!

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  66. बेनामी8/01/2012 10:11:00 am

    This is really interesting…
    saadepunjab.com

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  67. रोज मरते हैं हजारों, मंहगाई की इस मार से

    भूख उनको ना लगे, वरदान होना चाहिये..

    AAPKA JABAB..NAHI......KHOOB..

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  68. आंसू हमारे देखकर वो खिलखिलाकर हंस दिए
    चीखें हमारी दब सकें वो मकान होना चाहिए

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  69. ...आंसू हमारे देखकर वो खिलखिलाकर हंस दिए
    चीखें हमारी दब सकें वो मकान होना चाहिए

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  70. प्रभु या तो आप ग़ज़लें लिखते नहीं और जब लिखते हैं तो सबकी बोलती बंद कर देते हैं...अब इस ग़ज़ल को लें...कितनी सरल सीधी ज़बान में आपने कितना कुछ कह दिया है...आनंद आ गया...हम धन्य हैं जो आपको पढने का मौका पा रहे हैं...आप लिखते रहें हम पढ़ते रहेंगे...

    नीरज

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  71. बेहतरीन गज़ल समीर साहब आनन्दित किया .आभार

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  72. क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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