शनिवार अप्रेल २, २०११ को दैनक जनवाणी, मेरठ मे प्रकाशित मेरा आलेख
पहले हल्ला मचाया. शेर जाग उठा है. कंगारुओं को दौड़ाया. १२ साल के विजेता को जमीन चटाई. अब पाकिस्तान की खैर नहीं. आँधी आये या तूफान, टीम इंडिया खड़ी है सीना तान. और भी जाने क्या क्या चिंगारीनुमा.
आग भड़की. वो तो यूँ भी भड़कना ही थी. मगर सेहरा इन चिंगारियों को बंधा. लोग उत्साहित हो उठे, पाकिस्तान के साथ सेमी फायनल, खेल न होकर इज्जत आबरु का मसला हो गया. हिन्दु मुसलमान का मामला हो गया. राम रहीम मैदान में उतर आये. हरा भगवा लहराने लगे, ललकारने लगे.
सारा काम धाम रुक गया, मानो युद्ध घिर आया हो. खेल प्रेमी उत्साहित होते तो बात अलग थी. ऐसे लोग भी, जो क्रिकेट का अ ब स द लिखने में पैन की निब तोड़ दें, उत्साहित हो उठे. घर घर, गली मोहल्ले, पान ठेले से लेकर दफ्तर, रेलगाड़ी, रिक्शे वाले, कुली सभी क्रिकेटमय हो गये. जो कल तक यह भी नहीं जानते थे कि कितनी टीमें खेल रहीं हैं. कौन कप्तान है, वो भी रातों रात विशेषज्ञ हो गये. सलाह दी जाने लगी कि धोनी को ऐसा करना चाहिये, सचिन को वैसा और अफरीदी को बीमारी का बहाना बना कर भाग जाना चाहिये.
सड़क छाप विशेषज्ञ चाय पीते पीते यहाँ तक आँकने लगे कि कौन सा खिलाड़ी कितने में बिकेगा और पूरी टीम खरीदने में क्या खर्चा आयेगा. कौन खरीदेगा और इस खरीद फरोक्त में फायदा किसका होगा. कई ने तो सौदा अपनी आँखो से देखने का दावा किया कि फलाना खिलाड़ी बिक गया. ऐसा लगा जैसे वह खुद अपनी साईकिल से रुपये पहुँचा कर आया हो.
राजनितिक पहलुओं पर चर्चा का भी बाज़ार गरम हो उठा. जरदारी के आने का कारण क्या हो सकता है? हाई लेवल एजेन्डा रिक्शे वाले से डिस्कस करते लोग राज्य परिवहन की बस पकड़ कर काम से निकल गये. मनमोहन सिंह कहीं उन्हें तोहफे में मैच ही न दे दें, भारी चिन्ता का विषय बना रहा. यहाँ तक तय कर लिया गया कि क से क का सौदा होने जा रहा है. क से कप तुम ले लो और क से कश्मीर हमें दे दो.
खूब कार्टून बने, बँटे, फेसबुक से लेकर बज़्ज़ तक हर जगह सटाये गये. कुल मिला कर ऐसा माहौल बन गया कि जापान का सुनामी और परमाणु लिकेज मामला हल्का पड़ बगलें झांकने लगा. सुनामी लाने वाला समुन्दर और लिकेज लाने वाला रियेक्टर आपस में मिलकर खूब रोये कि एक तो जगह पहले ही गलत हो गई थी जहाँ वो आये और इस मैच के कारण टाईमिंग भी गलत हो गया. क्या फिर से कहीं और, फिर जल्द आना होगा. वैसे उन्हें मौके तो हम देते ही जा रहे हैं, उसकी कोई कमी नहीं बस शरम लिहाज जो उनमें है, सो ही बचाये है.
जरदारी नया सूट पहन कर आये मगर हमारे सरदार जी पुरानी पगड़ी मे ही डटे रहे. एक इन्च जानी पहचानी सदाबहार मुस्कान पूरे मैच के दौरान उनके चेहरे पर बनी रही. उन्होंने मैच के दौरान न तो युवराज की चिन्ता की और न उनकी मम्मी की. वो अलग से बैठे और बैठीं. जरदारी को लगा होगा कि सरदार जी इन्डिपेन्डेन्ट हो गये हैं ठीक उसी तरह जैसे कि इस मैच को देखे बिना आप यह कह उठें कि भारतीय टीम बहुत ताकतवर हो गई है, कंगारुओं के बाद अब पाकिस्तान को पछाड़ दिया. अगले मैच में श्री लंकनस की खैर नहीं. किसी ने इसकी चिन्ता नहीं की कि भारत जीता कि पाकिस्तान हारा. जीत तो आपको यूँ भी हासिल हो सकती है अगर अगला हार जाये. मगर यह इस प्रकरण का विषय ही नहीं बन पाया. विषय वही बनता है जो हमें सुहाता है. बाकी तो विषय होकर भी आऊट ऑफ सिलेबस हो जाता है.
जब कुली, मवाली, ठेलावी से लेकर रिक्शा चालक, गुंडा, नेता, व्यापारी, साहित्यकार, कवि, ब्लॉगर, बज़्ज़िया, फेसबुकर, सट्टाबुकर, ट्विटर, आर्कुटिया, चिरकुटिया, छात्र, मात्र, नौकरानी, देवरानी, जेठानी, बहुरानी सब बोलें तो भला लगातर बोलने वाले ज्योतिष कैसे चुप रह जायें. हमेशा की तरह ५०% ने बताया कि भारत जीतेगा. ५०% ने पाकिस्तान की जीत का तो दावा नहीं किया मगर कहा कि भारत हारेगा. टॉस तक बता गये कि कौन जीतेगा. बड़े नाम वाले ज्योतिष सेफ खेले. कुछ अखबारों को बताया कि भारत जीतेगा गणेष जी कृपा से और कुछ चैनलों को बताया कि भारत नहीं जीतेगा शनि की वक्र दृष्टि के कारण. कहीं न कहीं तो सही बैठ ही जायेगा. उतने क्लाईंटस की आस्था के आगे, बाकी की सुनेगा कौन. आस्था की आवाज डंका होती है और नास्तिक फुसफुसाते हैं. इसीलिए ये साधु संत फलते जाते हैं. यही सिद्ध फार्मूला है.
फिल्म स्टार भी मैच देखने पहुंचे. कैमरे उन पर तने रहे. मूंछ का हाव भाव गेंद के हिसाब से बदलता रहा. पूरा स्टेडियम रण क्षेत्र, पूरा भारत सजग, तैनात, जज्बाती, ज्ञानी और पारखी हो उठा.
सट्टेबाजी खुल कर हुई. फोन लाईनें व्यस्त रहीं. भाव हर गेद के साथ बदले. कोई जीता कोई हारा मगर रुपयों का क्या, मैच तो भारत जीता. वही सबको चाहिये था, सो हो गया. मनमोहना मुस्काये, मम्मी ने ताली बजाई, युवराज ने मुस्करा कर डिम्पल दिखाये. जरदारी क्या करते, अतः ताली बजाने लगे. वही हाल कश्मीर मसले पर है कि जब कुछ नहीं सुझता तो ताली बजाने लगते हैं. उनकी क्या गलती अगर टीम के ब्यॉज अच्छा नहीं खेले. इसे तो अफरीदी तक ने माना.
जीत के जश्न में पटाखे फूटे, गुलाल लगाया गया बस पतंग उड़ाना और राखी बाँधना रह गया मगर फिर भी त्यौहार तो मन ही गये.
मौहाली हॉट स्पॉट बन गया. सारे होटल बुक हो गये. सारे होटल को चलाने वाले बुक हो गये. सारे होटल में चलने वाले बुक हो गये.
तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना...का फार्मुला लेकर मिडिया को चमकाया गया तो वो सब बुद्ध हो गये.
जो कल तक चिंगारी लगा रहे थे वो कहते मिले कि खेल को खेल भावना से लो. इसे युद्ध न समझो.
डर तो सबको लगता है प्रशासन को भी. तो संवेदनशील इलाकों में सतर्कता बरतना पड़ा. यहाँ संवेदनशीलता का मानक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र रहा क्योंकि मैच पाकिस्तान के साथ था. दफ्तर बंद रहे. अघोषित छुट्टी के वातावरण में गर्मागरम माहौल में पुलिस थाने शांत रहे.
आज चोरियाँ, लूटपाट, बालात्कार, भ्रष्ट्राचार, भूत प्रेत, साँप सपेरा और बोरवेल में बच्चा गिरने के कम मामले सामने आये. कम से कम चैनल और अखबार देखकर तो यही समझ आया.
काश!! ऐसा मैच रोज हो. ज्यादा टेंशन नित के इन्हीं सब मामलों से होती है. सरकारी दफ्तर बंद भी रहेंगे तो चलेगा. खुले भी होते हैं तो कौन सा काम हो जाता है.
जनमानस तो लगता है अपने मानस से यह बिसरा ही बैठा है कि यह क्रिकेट विश्व कप, २०११ का सेमी फायनल था और अभी एक पायदान बाकी है जिसे श्री लंका को परास्त करके ही पूरा किया जा सकता है. फायनल मैच के लिए कहीं भी उस तरह कर उन्माद, उत्सव या उत्साह नहीं दिख रहा है जैसा कि भारत और पाकिस्तान के मैच को लेकर रहा. इस से बड़ा काम कर गुजरे, जब आस्ट्रेलिया को हराया, पर वो जोश नजर ही नहीं आया.
सेमीफायन वाले भी पड़ोसी ही थे और फायनल वाले भी पर पड़ोसी पड़ोसी का अन्तर आमजन का व्यवहार बता जाता है.
देखते हैं फायनल में कौन जीतता है- भारतीय टीम या श्रीलंकन टीम- अब कप किसी को भी मिले, भारत तो जीत गया.
(आलेख यहाँ तक आया उससे पहले भारत कप जीत चुका-बधाई)