शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

मैं हूँ न!!

रात देर गये अपने बिखरे कमरे को सहेजता हूँ, इधर उधर सर्वत्र बिखरी तुम्हारी यादों को उठा उठा कर एक दराज में जमाता हूँ  और फिर आ बैठता हूँ खिड़की से बाहर आसमान ताकते अपने पलंग पर. आसमान में आखेट करते चंद तारे हैं और उनके बीच मुझे मुँह चिढ़ाता चाँद.

आज अपने सामने बैठे खुद को पाता हूँ नाराज, रुठा हुआ खुद से.

मुस्कराता हूँ मन ही मन उसकी इस नादानी पर.

वो सोचता है तुम्हारा बिछुड़ जाना उसकी गल्ती है. वह नहीं जानता कि यही जमाने का चलन है. एक अफसोस सा होता है दुनिया से इतर उसकी सोच पर.

आज की इस व्यवसायिक दुनिया में एक सच्चे प्यार की आस लगाये बैठा है, मूरख.

जाने क्यूँ उसकी मुर्खता पर एक प्यार सा उठता है और बाँहों में समेट लेता हूँ खुद को अपने आप में.

भींच लेता हूँ कस कर, खुद को अपने होने का अहसास कराने-और धीरे से बुदबुदाता हूँ खुद ही खुद के कानों में- मैं हूँ न!!

आज लगा कि खुद को खुद ही सच्चा अहसास रहा हूँ बहुत अरसों बाद वरना तो खुद से मिलने के लिए भी एक मुखौटा धारण करना पड़ता है आज के जमाने में. एक आदत जो लाचारी बन गई है. यही चलन भी है.

आईना भी तो देखा देखी न जाने कब से झूठ बोलना ऐसा सीखा कि सच बोलना ही भूल चुका है. वो भी वही दिखाता है जो हम देखना चाहते हैं.

अपने साथ अपने खुद के होने का अहसास तसल्ली भरा लगता है और सो जाता हूँ मैं खुद से लिपट एक चैन की नींद-कल सुबह जाग एक नये सबेरे के इन्तजार में.

काश! पहले जान पाता तो कम से कम खुद से खुद तो ईमानदार रहा होता....

self

कल जाग
सारी रात
दिल के दराज से
पुरानी बिखरी
बातों और यादों को सहेज
एक कागज पर उतारा,

फिर कान में खुसे
इत्र के फुए से
कुछ महक उधार ले
मल दिया था
उस कागज पर उसे...

करीने से मोड़
लिफाफे में बंदकर
रख दिया है उसे
डायरी के पन्नों के बीच

जहाँ हल्की हल्की
साँसे ले रहे हैं
तुमको लिखे मेरे
सारे खत!!!
कभी तुम तक
पहुँचने की
एक जिन्दा
आस लिए...

सोचता हूँ
ये मैं हूँ
या
मेरे खत!!!

-समीर लाल ’समीर’

84 टिप्‍पणियां:

  1. ''आईना भी तो देखा देखी न जाने कब से झूठ बोलना ऐसा सीखा कि सच बोलना ही भूल चुका है.''

    वो आजकल झूठ बोलता ही नहीं।
    उसके घर में कोई आईना ही नहीं

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  2. और सो जाता हूँ मैं खुद से लिपट एक चैन की नींद-कल सुबह जाग एक नये सबेरे के इन्तजार में. काश! पहले जान पाता तो कम से कम खुद से खुद तो ईमानदार रहा होता
    समीर लाल जी , खुद को इमानदार साबित करने जरुरत नहीं है अज का विषय बिलकुल नया है और अच्छी तरह निभाया भी है | बहुत बहुत बधाई

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  3. धन्यवाद मित्र, अनुग्रह आपका,
    आपने सोचने को एक नयी दिशा दी..

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  4. आदरणीय समीर जी
    सादर सस्नेह अभिवादन !

    मैं हूं न ! बिना आत्मविश्वास के इतना भर कह कर किसी को आश्वस्त् करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता …

    शीर्षक ही आकर्षित कर रहा है …

    आईना भी तो देखा देखी न जाने कब से झूठ बोलना ऐसा सीखा कि सच बोलना ही भूल चुका है. वो भी वही दिखाता है जो हम देखना चाहते हैं. कितनी ईमानदारी है इस कथन में … !
    बहुत ख़ूब !

    और आपके निराले अंदाज़ में प्रस्तुत लघु कविता भी कमाल है …
    डायरी के पन्नों के बीच…
    हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए... सोचता हूँ
    ये मैं हूँ
    या
    मेरे खत!!!

    बहुत भावपूर्ण !

    इतनी व्यस्तताओं में भी इन एहसासात , इन कोमल जज़्बात को सहेजे हुए हैं यह काबिल-तारीफ़ है ।

    आज की सुबह सार्थक हो गई आपके यहां आ'कर …शुक्रिया !

    हार्दिक शुभकामनाएं … … …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. आदरणीय समीर लाल जी
    नमस्कार !
    सारी रात
    दिल के दराज से
    पुरानी बिखरी
    बातों और यादों को सहेज
    .शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  6. बेहतरीन लिखा है, पढ़कर आननद आ गया।
    ......शानदार रचना

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  7. आजकल इतना सैड-सैड सा क्यों लिखा जा रहा है ):

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  8. मुबारक हो ये खुद से मुलाक़ात का मौका

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  9. बहुत प्रेरक आलेख, उतनी ही अच्छी एक कविता। एक शे’र याद आ गया। शेयर कर लूं ...
    सब सा दिखना छोड़कर खुद सा दिखना सीख
    संभव है सब हो गलत, बस तू ही हो ठीक

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  10. कल जाग
    सारी रात
    दिल के दराज से
    पुरानी बिखरी
    बातों और यादों को सहेज
    एक कागज पर उतारा,

    बहुत सुंदर तरीके से उतरा ना ...अब कुछ बाकी न बचे कहने के लिए ...अंतिम पंक्तियाँ सब कुछ कह जाती है ...आपका आभार

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  11. खूबसूरत विचार और उतनी ही खूबसूरत कविता..

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  12. khud se imaandaar rahna bahut zaruri hai. aina to kya hai ahi dikhata hai jo hum dekhna chahate hain. sahaj shabdon mein baton ko kahan koi aapse seekhe...maza aa gaya.

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  13. मैं जानता हूं के तू ग़ैर है मगर यूंही,
    कभी-कभी मेरे दिल में ख़्याल आता है...

    जय हिंद...

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  14. यह तो आप ही हो जी,,

    सुन्दर अहसास लिए अच्छी रचना।

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  15. खुद को खत बना देने की कवायद?
    लेकिन उसे उस तक पहुँचा देने से इतना दूर क्यों?
    अनजान सच का इतना भय?
    भय को तो जीतना होगा।

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  16. खुद का खुद से संवाद और मिलन अच्छा लगा ।
    प्रेरणात्मक प्रसंग ।

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  17. bahut khub sameer sir ji...
    umda shabdon ka istemal kiyehain...
    aabhar ke sath dhanyawaad,,

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  18. ये मैं हूँ
    या
    मेरे खत!! iske aage aur kuch socha hi nahi gaya.

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  19. सोचता हूँ कि यह मैं हूँ या मेरा खत। बढिया विचार।

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  20. बहुत खूब ....शुभकामनायें आपको !

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  21. वो जो खत तूने मोहब्बत में लिखे थे मुझको,
    बन गए आज वो साथी मेरी तन्हाई के!

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  22. khoobsurat ehsaas piroye hain aapne apni is rachna me

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  23. आज की इस व्यवसायिक दुनिया में एक सच्चे प्यार की आस लगाये बैठा है, मूरख.

    satya vachan ....

    jai baba banaras.......

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  24. फिर कान में खुसे
    इत्र के फुए से
    कुछ महक उधार ले
    मल दिया था
    उस कागज पर उसे...

    क्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना.

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  25. खतों में हृदय को उड़ेल देने से खत ही हृदय लगने लगते हैं।

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  26. बहुत सी सुन्दर कविता, पढ़कर आनन्द आ गया।

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  27. सोचता हूँ ये मैं हूँ या मेरे खत !

    खत रुपी इन धरोहर में भी मैं ही तो हूँ कभी खुद को अभिव्यक्त करता हुआ.

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  28. करीने से मोड़
    लिफाफे में बंदकर
    रख दिया है उसे
    डायरी के पन्नों के बीच !

    कुछ यादों को बस यूँ ही दिल की दराज़ में रख दिया जाता है.......

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  29. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...
    ---अपनी लहरों के साथ बहा ले जेनेवाली नज़्म....
    ---देवेंद्र गौतम

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  30. नमस्कार समीर जी....बहुत ही खुबसुरत अहसासों से भरी रचना...हम युवाओं को तो दिवान ही बना देगी ये खुबसुरत भावपूर्ण..प्रेम के साथ ही जीवन का यथार्थ बयां करती कविता और आपका आलेख...बहुत बहुत धन्यवाद।

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  31. ज़िन्दगी की इस भागदौड़ में खुद से ही दूर होते जा रहे हैं हम लोग.... बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति!!!

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  32. खुद से खुद की पहचान करा गये आप ,आभार !

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  33. उस कागज पर उसे... करीने से मोड़
    लिफाफे में बंदकर
    रख दिया है उसे
    डायरी के पन्नों के बीच जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए... सोचता हूँ

    बहुत ही सुंदर

    "मैं हूँ न"

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  34. "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर" "हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम" "ब्लॉग की ख़बरें" और"आज का आगरा" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को " "भगवान महावीर जयन्ति"" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

    सवाई सिंह राजपुरोहित

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  35. हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...

    waah

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  36. बहुत सुन्‍दर


    ये मैं हूं
    या
    मेरा खत...

    जवाब देंहटाएं
  37. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए..
    क्या बात है..एकदम अलग अंदाज़...बढ़िया आलेख और सुन्दर नज़्म

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  38. जब भी ये दिल उदास होता है
    जाने कौन आस पास होता है!!

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  39. पन्‍ना-पन्‍ना जि़ंदगी.

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  40. पोस्ट और रचना आपकी जिन्दादिली का प्रमाण हैं!

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  41. भावनाओं की मखमली चादर में लिपटी रचना.
    शब्दों ने मात्राओं से कहा "मैं हूँ न!!"

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  42. "जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...

    सोचता हूँ
    ये मैं हूँ
    या
    मेरे खत!!! "

    क्या बात है ... बहुत बढ़िया दादा ... काफी कुछ कह दिया आपने !

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  43. सोचता हूं कि यदि यादें ना होतीं, तो क्या होता !!!

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  44. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...

    खुद से खुद की मुलाकात ...अच्छी लगी

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  45. 'सोचता हूँ
    ये मैं हूँ
    या
    मेरे खत!!!'
    कागज़ पर जो उतार दिया वह एहसास तो हमेशा वही रहेगा - उतारनेवाला भले ही इधर-उधर हो जाये !

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  46. दिल की डायरी तो हम भारत छोडते वक्त ही कही फ़ेंक आये थे.... बहुत सुंदर लेख ओर अति सुंदर कविता दिल के पास

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  47. सत्य वचन समीर जी.. आजकल खुद के लिए ही वक़्त नहीं है और ऊपर से खुद को देखने के लिए भी मुखौटे का सहारा! विडम्बना है.. भारी विडम्बना है..

    तीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
    आभार

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  48. Naya se naya vishay talash karna
    aapkee visheshta hai . aapkee
    medhaa kee taareef kartaa hoon.

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  49. डायरी के पन्नों के बीच जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!

    एक जागा सा ख्वाब ....
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना ....!!

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  50. बहुत धमाकेदार और आँखें खोलने वाला चिंतन....पहले तो गद्य से लठियाया फिर पद्य से सहलाया !
    आप धन्य हैं जो अपने को पा गए,यहाँ तो पूरी उमर गुजर जाती है और हम अपने को पहचान नहीं पाते,अपने से मिल नहीं पाते !
    एक बार फिर आपके गले लगता हूँ !

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  51. सोचता हूँ कि यह मैं हूँ या मेरा खत.....

    ऐसी परिस्थितियाँ अपने आप से मिलवा देती हैं..... बहुत ही सुंदर

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  52. आईना भी तो देखा देखी न जाने कब से झूठ बोलना ऐसा सीखा कि सच बोलना ही भूल चुका है. वो भी वही दिखाता है जो हम देखना चाहते हैं.


    सच है समीर साहब,देखती तो हमारी आँखे हैं,और सोचता हमारा दिमाग है.फिर आईने का क्या कसूर ?क्या सच में इतने भावुक हैं आप अपने उनके लिए?

    आप मेरे ब्लॉग पर आये तो सुखद समीर बह गई .

    एक बार फिर रामजन्म पर आपको सादर न्यौता है.

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  53. सोचता हूँ
    ये मैं हूँ
    या
    मेरे खत ।

    ख़त की जगह स्वयं को देखना एक अद्भुत अहसास है।

    भावों को अभिव्यक्त करने का यह निराला अंदाज़ बहुत अच्छा लगा।

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  54. एक सुकून दायक सुबह की इंतजार में तो जिन्दगी निकाली जा सकती है।

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  55. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...
    Phir ekbaar aapne nishabd kar diya!

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  56. आसमान में आखेट करते चंद तारे हैं और उनके बीच मुझे मुँह चिढ़ाता चाँद.

    सुंदर भावों का सयोजन बहुत ही सुन्दर कविता और सुंदर प्रस्तावना, पढ़कर आनन्द आ गया. आभार.

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  57. कल जाग
    सारी रात
    दिल के दराज से
    पुरानी बिखरी
    बातों और यादों को सहेज
    एक कागज पर उतारा, ....


    दिल के दराज...शानदार प्रयोग...
    बहुत ही सुंदर...

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  58. सारी रात
    दिल के दराज से
    पुरानी बिखरी
    बातों और यादों को सहेज

    बहुत सुन्दर रचना

    बस इतनी सी .....

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  59. प्यारे लाल साहब,
    सच में, जो हो आप ही आप हो ना। बहुत ही सुन्दर कहा हमेशा की तरह।

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  60. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...
    bahut khoob....

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  61. पुरानी बिखरी
    बातों और यादों को सहेज
    एक कागज पर उतारा

    बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ।

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  62. देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
    मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?

    मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
    आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

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  63. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    kya khoob kaha hai
    bdhaai ho
    kundliya

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  64. चाचू आपको इतना तनाव है..और आप अपना सारा प्यार लाड़ और टेंशन कागज पर उडेल कर मुक्त हो लेते हैं। कभी कागज के बारे में सोचा है। बेचारा...

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  65. जनाब खुद की तलाश बहुत भारी है और उस पर लिखना और भी मुश्किल. आपने प्रोस और पोइट्री दोंनो में ही सुंदर सोच दी है खास तो पर मुझे तो
    बहुत सकून मिला पढ़ कर साधुवाद

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  66. डायरी के पन्नों के बीच…
    हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!

    बहुत भावपूर्ण !

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  67. बहुत सुंदर

    आपका आभार

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  68. वाह, क्या विरह के शब्द फूटे है जनाब ! I'm sure भाभीजी आजकल अपने पोते के पास यूके में होंगी !:)

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  69. "और बाँहों में समेट लेता हूँ खुद को अपने आप में.
    भींच लेता हूँ कस कर, खुद को अपने होने का अहसास कराने-
    और धीरे से बुदबुदाता हूँ खुद ही खुद के कानों में- मैं हूँ न!! "

    बहुत खूबसूरती से अपने होने का एहसास दिलाया है आपने !

    "कल जाग
    सारी रात
    दिल के दराज से
    पुरानी बिखरी
    बातों और यादों को सहेज
    एक कागज पर उतारा,"

    किसी के याद से महकते आज भी कुछ पल,कुछ लम्हे...
    किसी और के होने का एहसास दिलाती खूबसूरत सी ये नज़्म...
    किसकी तारीफ करूँ..मुश्किल में हूँ..
    दोनों के लिए ही मुबारकबाद क़ुबूल करें..

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  70. अपने आप से बातचीत बड़ा सुकून देती है.... ख़ूबसूरत चित्रण....

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  71. जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    "saans lete khat bolne lge hain"

    regards

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  72. करीने से मोड़
    लिफाफे में बंदकर
    रख दिया है उसे
    डायरी के पन्नों के बीच

    जहाँ हल्की हल्की
    साँसे ले रहे हैं
    तुमको लिखे मेरे
    सारे खत!!!
    कभी तुम तक
    पहुँचने की
    एक जिन्दा
    आस लिए...
    अति सुन्दर ! आपसे एक शिकायत है , मेरे ब्लॉग पर आना छोड़ दिया आपने , आपकी टिप्पणियां हमारा संबल है . आखिर Don की अनुमति के बिना कुछ कहाँ संभव है !

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  73. शानदार रचना...
    सुन्दर अहसास लिए अच्छी कविता।

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  74. शानदार रचना...
    सुन्दर अहसास लिए अच्छी कविता।

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  75. बढ़िया लिखा है सर!

    सादर

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