बुधवार, जुलाई 08, 2009

बाज़ार से गुजरा था, खरीदार नहीं था -विल्स कार्ड भाग ४

पिछले दिनों विल्स कार्ड भाग १ , भाग २ और भाग ३ को सभी पाठकों का बहुत स्नेह मिला और बहुतों की फरमाईश पर यह श्रृंख्ला आगे बढ़ा रहा हूँ.

(जिन्होंने पिछले भाग न पढ़े हों उनके लिए: याद है मुझे सालों पहले, जब मैं बम्बई में रहा करता था, तब मैं विल्स नेवीकट सिगरेट पीता था. जब पैकेट खत्म होता तो उसे करीने से खोलकर उसके भीतर के सफेद हिस्से पर कुछ लिखना मुझे बहुत भाता था. उन्हें मैं विल्स कार्ड कह कर पुकारता......)

आज उन्हीं विल्स कार्डों में से कुछ और, एक साथ एक पुराने रबर बैण्ड से बँधे निकाले. शायद एक ही मूड के होंगे इसलिये एक साथ बाँध दिया होगा.

हमारी यादों की दराज भी तो ऐसी ही होती है, एक मूड की यादें एक बस्ते में बंद एक दराज के अंदर.

मैं मुम्बई में गिरगांव रोड, ओपेरा हाऊस के सामने चर्नी रोड पर रहा करता था एक हॉस्टल में. दक्षिण मुम्बई का व्यापारिक इलाका, मुख्य चौपाटी से लगा हुआ. जो लोग बम्बई के भूगोल से वाकिफ हैं वो समझ जायेंगे कि मैं किस इलाके में रहता था और कुछ ही दूर पर बम्बई का नजारा क्या हैं. फॉकलैण्ड रोड, पीला हाऊस, कांग्रेस हाऊस का मुज़रा, ग्राण्ट रोड़, नाज़ सिनेमा के पास लेमिंग्टन रोड का बदनाम इलाका..सब मानो मेरे हॉस्टल को घेरे ले रहे हो. टहलने निकलो तो गाड़ियों की चिल्ल पौं के बीच तबलों की थाप और घुंघरुओं की छनक.

एकदम नजदीक से देखा है -द कांग्रेस हाऊस-कैनेडी ब्रिज से लगे कोठे और उस ब्रिज पर पर घूमते दलाल, आपको आपकी हैसियत से उपर का अहसास दिलाते- क्या साहब!! एन्जॉय करना मांगता क्या? ए क्लास गर्ल!! एक अजब सा अहसास होता...गिजगिजा सा..गर्ल-ए क्लास..ये कैसी डेफिनिशन..ईश्वर ने तो ऐसे नहीं गढ़ा था.हम मानव अपनी सुविधा से कैसा वर्गीकरण कर देते हैं और सब समझने भी लगते हैं..

अब जब सब आस पास है तो कैसे न सामना हो..कभी कुछ और कभी कुछ वजह मगर काफी करीब से जाना. एक पूरा अलग सा फलसफा है इस तरह की जिन्दगी का, गर समझो तो.

हॉस्टल के करीब जो कोठा था, उसकी मालकिन से तो उस राह से आते जाते एक पहचान सी हो गई..एक अपनापन सा..उसकी ढ्योरी चढ़ने की हम हॉस्टल में रहने वालों को इजाजत न थी. वो हम हॉस्टल के लड़कों को अपना बेटा मानती. इन्सान ही तो थी, दिल रखती थी एक अलग सा..धंधे से जुदा. जाने क्यूँ और कब सब अड़ोसियों पड़ोसियों की तरह उसे मौसी बुलाने भी लगा-गंगा मौसी. मेरी नजर में तो वो बस मौसी थी और बस मौसी..एक आदरणीया..जो प्यार देना जानती थी अपने बच्चों को!!

आज भी याद करता हूँ अक्सर उस गंगा मौसी को..जाने कहाँ होगी वो. उस बाजार में अस्तित्व की उम्र बहुत थोड़ी होती है.

उसी दौरान बहुत कुछ अहसासा-कभी यूँ ही गुजरते, कभी यूँ ही सोचते और अहसास शब्द बन उतरे विल्स कार्ड पर जबकि मौसी तो हमेशा रोकती थी सिगरेट पीने को. मगर वो यादें उन्हीं विल्स कार्डों पर सहेजी गईं, शायद मौसी भी ये न जानती थी वरना कभी मना न करती.

उसी माहौल और वातावरण को मद्दे नजर रख उस दौरान लिखे गये कुछ कार्ड, चौंकियेगा मत इस अँधेरे को देख कर!! अक्सर ही उजाले में खड़े हो लोग इस अँधेरे की तरफ देखने से कतराते हैं.

अहसास करिये पाक आत्मा की भावनाओं की उसी तह को जिनसे ये उभरी हैं:

आत्मा तो हमेशा पाक होती है..
ये मुए कर्म हैं
जो परिभाषित होते हैं -
सतकर्म और दुष्कर्म में.


खिड़कियों से झांकती आँखें

और

एक जिन्दगी यह भी

*१*

कारों के चलने की आवाज
बसों की घरघराहट
उनके भोपूंओं का चिल्लाना
समुन्दर की लहरों की हुंकार
और उनके बीच
गुम होती
उस लड़की की चीख...
इस शहर में एक अजब
दम घोटूं
सन्नाटा है!!


*२*

वो
कातर निगाहें
जाने किस आशा से
खिड़की पर खड़ी
मुझे देखती रहीं ..
और
मैं
पूर्ण स्वस्थ
युवा
एकाएक
कर पाया
अपनी नपुंसकता का अहसास!!

*३*

कुछ सपने
वहाँ भी दिखते होंगे
कुछ अरमान
वहाँ भी जगते होंगे
जो दम तोड़ते होंगे
उस ६ बाई ६ के कमरे में
हर नये ग्राहक के
बोझ तले दब कर!!

हाय! कितनी छोटी उम्र है...

उन सपनों की
उन अरमानों की
बिल्कुल
उस ६ बाई ६ के
कमरे की तरह!!


*४*

वो
तबलों
और
हारमोनियम के साथ
थिरकते घुंघरुओं की आवाज..

वो फूलों की महक
और
इत्र की तीखी खुशबू..

वो खामोश उदासी..

वो मजबूरी की सड़ांध...

-बाज़ार से गुजरा हूँ आज!!


*५*

मजबूरियों की बेडियाँ

लोहे की बेडियों से

मजबूत देखी है मैने..

खिड़कियों से झांकती

कितनी ही आँखें

मजबूर देखी हैं मैने..

*६*

सोचती है

कहीं कुछ

रियाज़ में कमी होगी..

वरना

उसकी अदाओं से रीझे

सब चले आते हैं..

नहीं आती तो बस

मुई!! मौत नहीं आती...

रियाज़ कुछ बढ़ाना होगा!!


*७*


वो नाम बताती है

शमा!!

दूसरी वाली

शन्नो!!

तीसरी

लाजो!!

ये वो बाज़ार है

जहाँ तन बिकता है...

नाम में क्या रखा है?

शेक्सपीअर याद आते हैं!!

*

चित्र साभार: गुगल

106 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्तो का अहसास दिमाग से नही दिल से होता है और रिश्तो का अहसास ही रिश्तो को मजबूत करता है

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  2. "हम मानव अपनी सुविधा से कैसा वर्गीकरण कर देते हैं"
    "कुछ सपने
    वहाँ भी दिखते होंगे"
    मर्मांतक दास्तान --

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  3. आपकी यादों के दौर से गुजर कर हम भी भावुक हो गए। यह संवेदनात्‍मक पोस्‍ट बहुत अच्‍छी है। कृपया विल्‍स कार्ड की इस श्रृंखला को जारी रखें।

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  4. रियाज बढाना होगा, क्या बात है, सारा दर्द एक ही लाईन में, केवल कवि ही ऐसा कर सकता है।

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  5. १. सन्नाटे कि चीख सुन पा रहे है हम भी

    २, गिरतों को नहीं उठा पाने कि असमर्थता, नपुंसकता का ही बोध कराती है

    ३. आसमान का क्या है, वो कहीं भी आजाता है, सपनो कि तरह

    ४. मजबूरी कि सड़ांध उन्हें भी तो आती है, तभी तो इतर कि शीशियाँ उंडेली जाती हैं

    ६. मौत तब आती है, जब अदा चली जाती है, और रियाज़ ? वो इस लायक ही नहीं रहती कि आ सके

    समीर जी, आपकी रचना को क्या नाम दूँ, आपके शब्द, अहसास में बदल कर मेरे ज़हन में चल रहे हैं, और मैं उनका सिरसिराना महसूस कर रही हूँ, आपकी इस भावाभिव्यक्ति के लिए पास शब्द नहीं हैं इस रचना के लिए बधाई जैसा शब्द बहुत ही छोटा है.....

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  6. "अक्सर ही उजाले में खड़े हो लोग इस अँधेरे की तरफ देखने से कतराते हैं."

    भावनात्मक प्रस्तुति,
    आगे की प्रस्तुति की प्रतीक्षा है

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  7. कितने कम लोग होंगे इस दुनिया में जो इस अंधेरे को दिखाने का साहस कर पायें. आपने किया. घबराये तो जरुर होंगे आप. यह एक ऐसी साहित्यिक कृति है जिस पर कम ही साहित्यकार लिखने की जुर्रत कर पाये हैं आज तक वो भी इतने सधे शब्दों में. मानो उनकी पीड़ा उतार दी हो आपने अपने पन्ने पर. आप साधुवाद के पात्र हैं. अगर सही आंकलन हो तो यह पन्ना बहुत आगे जायेगा और न जाने कितनों को पीछे छोड़ जायेगा. यह कालजयी पृष्ट है आपके ब्लॉग का.

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  8. बहुत बढ़िया संस्मरण, इंसानियत संवेदनाओं की क़द्र के लिए आपको मेरा सलाम

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  9. आपने तो बस चन्द लाईनों में मुम्बई का जो जुगराफिया बयां कर दिया हाय मैं वहां दो साल रह कर न जान पाया -मुए किसी ने बताया भी नहीं .

    मगर मगर ये विल्स कार्ड पर उकेरी लाईनें तो एंटी क्लायिमैक्स हो चलीं ...
    ओह !

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  10. 'बाजार में अस्तित्व की उम्र बहुत थोड़ी होती है'
    behad sanjeeda sansmaran, kavita, vishleshan ---- sab kuchh 'all in one' sir

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  11. समीर जी आपकी कविताएं संवेदनाओं से भरपूर हैं । मेरे विचार में हर कोई कुछ न कुछ बेच कर अपना और अपने परिवार का पेट पालता है । जो गुणी है वो हुनर बेचता है । जो ज्ञानी है वो ज्ञान बेचता है । जिसके पास बेचने को कुछ नहीं होता है वो अपना शरीर बेचता है । आपकी जानकारी के लिये बता दूं कि एक जमाने में राजाओं और महाराजाओं के बेटों को तवयफों के कोठों पर शिक्षा के लिये भेजा जाता था । तहजीब की शिक्षा देने के लिये । दरअसल में इन कोठों में रहने वाली तवायफें इतनी तहजीब वाली होती थीं कि वे राजकुमारों को भी तहजीब सिखाती थीं । एक लम्‍बे समय तक हमने महिलाओं को शिक्षा से दूर रखा, ये बात केवल भारत की ही नहीं है विश्‍व भर में यही हालत रही है । महिलाओं को दोयम दर्जे का माना गया । इसी कारण ये होता था कि बिना पुरुष की महिला के पास अपना पेट पालने के लिये शरीर बेचने के अलावा कोई चारा नहीं होता था । महिलाओं ने एक लम्‍बा संघर्ष किया है । आज भारतीय उपमहाद्वीप में तो लगभग सारे देशों में महिलाएं उच्‍च पदों पर पहुंच गई हैं लेकिन तथाकथित सभ्‍य राष्‍ट्रों में अभी तक देश के सर्वोच्‍च पद पर महिला को असीन करने का साहस नहीं आया है । स्‍त्री ने जो दुख सहे हैं उनको लिखने के लिये सारे संसार की स्‍याही कम पड़ जायेगी । सीता से लेकर द्रोपदी तक स्‍त्री की कहानी दुखों की ही तो कहानी रही है । स्‍त्री को केवल एक ही निगाह से देखा गया शरीर की निगाह से । स्‍त्री का अर्थ हमेशा कुछ खास अंग रहे और कुछ नहीं । ये सोच कर आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि किस प्रकार एक जीवित स्‍त्री को पति की चिता के साथ जिंदा जला दिया जाता था । आज भी जब उन स्‍त्रियों का विलाप सुनता हूं तो अपने पुरुष होने पर शर्म आती है ।
    हमलों में लूटमार होती थी तो दौलत और स्‍त्री दो ही चीजों की लूटमार होती थी । आज भी दंगों में ये ही दो चीजें लूटी जाती हैं । आपकी ये कविताएं उस पूरे दर्द को ठीक प्रकार से अभिव्‍यक्‍त करती हैं जो स्‍त्रियों ने पिछले हजारों सालों में भोगा है ।
    कुछ सपने
    वहाँ भी दिखते होंगे
    कुछ अरमान
    वहाँ भी जगते होंगे
    जो दम तोड़ते होंगे
    उस ६ बाई ६ के कमरे में
    हर नये ग्राहक के
    बोझ तले दब कर!!
    ये कविता पीड़ा की कविता है, ये उस घनीभूत पीड़ा की कविता है जो पलकों के पीछे उमड़ती तो है लेकिन कभी बरस नहीं पाई । इस प्रकार की कविताएं लिखना एक वास्‍तविक साहित्‍य है । क्‍योंकि साहित्‍य का अर्थ ही है जो स हित हो जो हित के लिये हो जो समाज के हित के लिये हो । इस प्रकार की कविताएं पढ़कर यदि एक भी व्‍यक्ति की धारण बदलती है तो आप सफल हैं ।
    मेरी बधाई और शुभकामनाएं ।
    ( ये पूरी टिप्‍पणी अपने अग्रज श्री ओम व्‍यास ओम जी की स्‍मृति को समर्पित )

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  12. मैं बार-बार यह क्यूँ सोच रहा हूँ कि मैं सिगरेट क्यूँ नहीं पीता.....!!....कम-से-कम सपने में ही सही....!!

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  13. मैं बार-बार यह क्यूँ सोच रहा हूँ कि मैं सिगरेट क्यूँ नहीं पीता.....!!....कम-से-कम सपने में ही सही....!!

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही जबरदस्त.. अंतिम पंक्तिया रोमांच और बढा देती है ... ये विल्स कार्ड तो गजब ढा रहे है

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  15. सच बताऊँ....??बहुत ही कोमल और गहरी कवितायें हैं ये....एक संवेदनशील ह्रदय से निकली हुईं मर्मस्पर्शी कवितायें....!!

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  16. bahut hi sundar chitran va prastuti
    ke liye dhanyavad. is sharankhla ko jaari rakhen.

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  17. अक्सर ही उजाले में खड़े हो लोग इस अँधेरे की तरफ देखने से कतराते हैं

    इस श्रृंखला को कृप्या जारी रखें

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  18. sach hi to kaha tha nirbhya haathrasi ne.....
    KA yaani kalpanaa !
    VI yaani vichaar !
    TA yaani taalmel !
    jab kalpanaa aur vichaar me taalmel hota hai toh kavita ka janm hota hai.........

    sameerlalji,
    aapne, apni yaadon waali khidki khol kar bada upkaar kiya hai hum par........aapne maanveeya samvedna aur karuna ka jo divya itra hamaari aantrik chetnaa tak pahunchaaya hai .........shaayad uski mahak ganga mausi tak bhi pahunchi hogi !
    kuch sach aise hi hote hain jinhen ishwar ne koi soorat nahin dee lekin kavi lagataar koshish karta raha hai ki uska chitra ban jaaye aur log dekhlen
    chitra bana ya nahin bana..is par domat ho sakte hain ..lekin ismen koi sandeh nahin ki aapne jo dikhaane ka prayaas kiya hai usmen poorna safal hue hain
    LAKH LAKH BADHAAI !
    BAAR BAAR BADHAAI !

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  19. समीर लाल जी।
    विल्स कार्ड गर लिखी गयीं कविताएँ,
    धारदार भी हैं और स्मृतियाँ भी।
    "उन सपनों की
    उन अरमानों की"
    दूर-देश में रह कर भी
    आपका दिल खालिस
    हिन्दुस्तानी है।

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  20. विल्स कार्ड को ब्राण्ड बना दिया आपने.

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  21. आत्मा तो हमेशा पाक होती है..बहुत ही सही कहा आपने, बहुत ही सजीव लेखन बधाई ।

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  22. आपने कितनी भावनात्मक यादें पिरोया है ,
    पढ़ कर मेरा दिल रोया है,
    सामाजिक उलहनों की शिकार उन लोगों को.
    अपने यादों की दुनिया मे संजोया है.

    आपकी विल्स कार्ड एक अनमोल साहित्य हो गयी..
    4 -6 लाइन ही सही दिलोदिमाग़ पर छा जाती है.
    भावनात्मक रचना हर एक को भा जाती है.

    अद्भुत ,बहुत सुंदर!!!!

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  23. आज की पोस्ट ने तो पूरा एक दौर ही आंखों के सामने से गुजार दिया. याद आया वो लेमिंगटन रोड नाज सिनेमा का हमारा आफ़िस..जहां से आपकी पोस्ट ने एक लम्बा दौर आंखो से कब गुजर गया? पता ही नही चला..

    बस आज तो आपको नमन ही करना चाहुंगा...यही अनुभव हर बंबईकर के हैं पर उनको विल्स कार्ड पर उतार लेना एक कला है, जो आपके हिस्से आई है. इसी तरह इन कार्ड्स की कहानी आगे भी आती रहे. यही शुभकामनाएं हैं.

    रामराम.

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  24. @ अरविंद मिश्रा जी,

    बडा अफ़्सोस हुआ कि आपको दो साल के बंबई प्रवास मे भी यह सब देखने को नही मिला?

    आगे आपने कहा कि किसी मुए ने बताया नही? तो ये दो मुए (समीरजी और हम) भी वहीं थे..आपको संपर्क करना चाहिये था.:)

    पर अफ़्सोस ब्लागिंग उस जमाने मे नही थी वर्ना तो आप मिल ही चुके होते.:)

    रामराम.

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  25. wills ke in cardon ko shukria,
    warna ab to chijen chaltee train ho gayee hain.

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  26. भाई, बहुत सुंदर... और कुछ कहते नहीं बनता.

    जवाब देंहटाएं
  27. जिन्हें नाज़ पर हिंद पर वो कहाँ हैं...ग़ज़ब की पोस्ट लिखी है आपने...अब आपकी लेखनी की प्रशंशा करते करते हाथ दुखने लगे हैं...आप हैं की लिखे चले जा रहे हैं बेहतर से और भी बेहतर....
    नीरज

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  28. क्या अंदाज है...बहुत खुब..

    जवाब देंहटाएं
  29. आत्मा तो हमेशा पाक होती है..
    ये मुए कर्म हैं
    जो परिभाषित होते हैं -
    सतकर्म और दुष्कर्म में.

    सच कहा आपने.....ये कर्म ही हैं जो कभी तो इस आत्मा को महानता की श्रेणी में खडा कर देते हैं ओर कभी इसे दागदार करने से भी नहीं चूकते!!

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  30. अरे, यहां आया तो एक नई पोस्ट पढी़!!

    जीवन की कडवी सच्चाई को आपने बखूबी अपने काव्यात्मक शब्दों में ढाला है.

    रियाज़ बढा़ने वाली बात तो एकदम नई है.

    धन्यवाद..

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  31. बेनामी7/09/2009 04:09:00 am

    sameer bhai
    aapki jawaani
    wills : kya chahat kah sakta hun ?
    aur ghumakkadpan aur awargi sab kuchh to hai chahat patr par
    ha ha hee hee

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  32. waah.जी....... kiski tarif karun और kiski n karun ...सभी shbd chitra एक से badh कर एक हैं ....

    ..
    और
    मैं
    पूर्ण स्वस्थ
    युवा
    एकाएक
    कर पाया
    अपनी नपुंसकता का अहसास!!.....waah.....!!

    हर नये ग्राहक के
    बोझ तले दब कर!!

    lajwaab abivyakti.....!!

    और ये एक pankti दर्द में भी kmaal कर गयी ....

    -बाज़ार से गुजरा हूँ आज!!

    मजबूरियों की बेडियाँ

    लोहे की बेडियों से

    मजबूत देखी है मैने..

    kitani gahri बात कुछ shbdon में .....!

    Sameer जी sare के sare shbd chitra दिल ko chu गए ....dheron bdhai ....!!

    जवाब देंहटाएं
  33. क्या कहें समीर जी।
    आत्मा तो हमेशा पाक होती है..
    ये मुए कर्म हैं
    जो परिभाषित होते हैं -
    सतकर्म और दुष्कर्म में.

    ........

    जवाब देंहटाएं
  34. मै आज तक इन गलियो की तरफ़ नही गया,लेकिन इन गलियो को ले कर दिल मे एक दर्द है, आंक्रोश है... कि क्या इंसान इतना गिर सकता है कि किसी की जिन्दगी को कुछ पेसो मे खरीद ले, किसी की हंसी को अपने आराम ओर सुख के लिये बेचे, केसे होगे वो लोग जो इन जिस्मो का, इन आत्माओ का व्यापार करते होगे ?? मेने आज तक किसी का दिल नही दुखाया, क्योकि मुझे ज्यादा दुख होता हैबाद मै. ओर यह लोग.....
    आप का लेख पढ कर ओर मोसी के बारे मै पढ कर एहसास होता है कि इन लोगो मै भी प्यार,दिल भावानये ओर हम जेसे एहसास है फ़िर केसे लोग वहां जाते होगे? क्या उन्हे इन मै अपनी बेटियां ,बहिन ओर मां नही दिखती होगी... आज बहुत भावूक कर दिया आप ने ध्न्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  35. बहुत ख़ूब! मण्टो की याद आ गई।

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  36. sameer bhai .............. nevi cut vills ke kagaz ka isse behtar istemaal ho ho nahi saktaa..............
    sach kahoon to vils ka kagaz to bas man की bhaavnon ko nikaalne ka ik maadhyam hai.......... ek andaaz hai par uske peeche chipe dil ke gahre jjbaaton ko samajhna aur kagaz par utaarna aap jaisa dksh hi kar saktaa hai.......... bahoot ho gahri, sach aur hakeekat se jhoojhti rachnaayen hain .................. sochne ko vivash karti huyee

    जवाब देंहटाएं
  37. मजबूरियों की बेडियाँ

    लोहे की बेडियों से

    मजबूत देखी है मैने..

    खिड़कियों से झांकती

    कितनी ही आँखें

    मजबूर देखी हैं मैने..

    gagar mai sager si hoti hai apki post...thore mai hi bahut kuchh kah deti hai...

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  38. " BAZAR SE GUZRA HOON KHAREEDAAR
    NAHIN HOON" MISRE PAR KYA ZORDAAR
    SANSMARAN LIKHAA HAI AAPNE,SAMEER JI!IDHAR AAPKE KUCHHEK LEKH PADHEN
    HAIN MAINE.NUMBER 1 HAI YE LEKH.
    TAAREEF KARUN KYA USKEE JISNE AAPKEE LEKHNEE KO BANAAYAA HAI.
    WAAREE-WAAREE JAAOON AAP AUR
    AAPKEE LEKHNEE DONO PAR.

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  39. बहुत सुन्दर मानवीय भावनाओं की प्रस्तुती सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक

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  40. इन संवेदनाओं के आगे निशब्द हू बहुत बडिया पोस्ट है बधाई

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  41. बेनामी7/09/2009 06:37:00 am

    keep the flow going
    Rachna

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  42. पढ़कर भावों के जो ज्वार उठे उसमे समस्त शब्दों को लील लिया.......निःशब्द निस्तब्ध खादी थी की क्या कहूँ.....तभी पंकज भाई के टिपण्णी पर नजर पडी और लगा भावों को ये शब्द दिए जा सकते हैं....सो उनके स्वर में ही अपने स्वर मिला रही हूँ.....

    अपनी ओर से नतमस्तक हूँ आपके सामने....इन जैसी और भी न जाने कितने स्थल हैं,जहाँ सिसकियों के अम्बार पड़े हैं,उन्हें शब्द देना ही मानवता और साहित्य की सच्चे अर्थों में सेवा है....

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  43. उफ! कितनी कातर निगाहें रहीं होंगी, कितनी बेबसी रही होगी.

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  44. संवेदनाओं की अचानक आई बाढ़ से निश्शब्द....! कुछ कहने में असमर्थ..!

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  45. आपके एक एक शब्द रिश्तो की भावनाओं को व्यक्त करते है ।

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  46. ise kahte rishte ka anubhav.insaniyat ka ahsaas, insaani jajbaato ka ullekh.
    sachmuch gazab ke likhaad he aap../
    mumbai ke vo din ab nahi he..ab 'us' jesa kuchh nahi he jnhaa aapko ghunghruo ki aavaaz mile yaa tablo ki thaap.../ bahut kuchh badal chuka he,, sab kuchh aadhunik.// kher..//
    bahut achhi rachna. 100% dil ko chhuti hui.

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  47. इस बार तो आपने कमाल ही कर दिया है। इस पोस्ट के लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  48. खूबसूरत एहसास के सामने लेखन के तारीफ कर दूं तो एहसास का अपमान होगा। लेखन में फिर भी चालाकी और बनावट हो सकती है मगर एहसास में नहीं...

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  49. समीर जी, आपकी इस श्रृंखला को पढ़कर यह जरुर कहूँगा कि इसे जारी रखना. यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आपकी सशक्त लेखनी से वास्तविक साहित्य लिखा जा रहा है. हिंदी प्रेमियों के लिए 'उड़न तश्तरी' एक प्रेरक ब्लॉग बन चुका है.
    आपके संस्मरण केवल संस्मरण नहीं हैं, एक दिन हिंदी साहित्य में सदैव यादगार की तरह रखे जायेंगे. गंगा मौसी का थोड़े से शब्दों में बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है, पढ़ कर दिल भर आया और गंगा मौसी के आगे नत-मस्तक हो जाता है.
    मजबूरियों की बेडियाँ
    लोहे की बेडियों से
    मजबूत देखी है मैने..
    खिड़कियों से झांकती
    कितनी ही आँखें
    मजबूर देखी हैं मैने..
    बहुत ही सुन्दर शब्दों से भावों को सजाया है.
    फोटो देकर तो सारा ही लेख और कवितायेँ सजीव हो उठी हैं.
    बधाई हो.

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  50. निशब्द कर देने वाली रचनाये हैं ...नाम में क्या रखा है ..बहुत मार्मिक लगी हर पंक्ति ...आपने जिस तरह इस दर्द को ब्यान किया है वह कभी नहीं भूलेगा ...

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  51. ये चार लाइने सारी लाईनों पर भारी लगी, और पूरा का पूरा चिट्ठा तो वजनदार है ही|

    आत्मा तो हमेशा पाक होती है..
    ये मुए कर्म हैं
    जो परिभाषित होते हैं -
    सतकर्म और दुष्कर्म में.

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  52. वही..नैरेशन वाली बात. क्या कहूँ? किन शब्दों में तारीफ़ करूं?
    गजब पोस्ट है, भैया..विल्स कार्ड में क्या-क्या लिखा हुआ है.

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  53. बस एक शब्द: 'शानदार ! '

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  54. सब कुछ एक साथ समेटना मुश्किल है....बहुत मुश्किल...आपने उस दौर में वो दौर देखा है .एक दर ओर उत्सुक निगाहों से हमने उन्हें सिसकते ..मौत के करीब जाते देखा है .आहिस्ता आहिस्ता ...घिसटते हुए.....आखिर के ढेरो शब्द है जिनके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता...शब्द खुद एक चीख है.....या मौन अपनी मौत का........

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  55. आपने जो अपने एक्सपीरिंय्न्स लिखे है उसे देखकरर दिल कभी कभी पसीज उठता है। लेकिन ये एक ऐसा दर्द है जिसका कोई हल नहीं है। कोई कुछ नहीं कर सकता है, कोई हल नहीं निकाला भी तो नहीं जा सकता

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  56. तब भी इतनी सशक्त- अभिव्यक्ति!!!
    गहनतम-भाव!

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  57. आज फिर भावना से लबरेज एक उत्क्रिस्ट पोस्ट ,
    आत्मा तो हमेशा पाक होती है..
    ये मुए कर्म हैं
    जो परिभाषित होते हैं -
    सतकर्म और दुष्कर्म में.
    यह निवेदन कि कार्ड श्रृंखला जारी रखें.

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  58. समीर जी, कविताएँ क्या हैं? सीधे सीधे भावनाओं को उतार दिया है। इन में यथार्थ पूर्ण मादरजात रूप में मौजूद है।
    विल्स कार्ड संकलन छापने की गुंजाइश बन रही है।

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  59. विल्स कार्ड तो जिन्दगी का फलसफा से बन गए है . तमाम हकीकत को दर्द सहित उतार दिया विल्स कार्ड में आपने

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  60. आज हमें आपके पर्सनालटा में झाँकने का मौका मिला. कद काठी के अनुरूप बड़े विशाल ह्रदय के प्रतीत हुए. बहुत सुन्दर प्रस्तुति रही. हमेशा ही रहती है. आभार.

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  61. सारी क्षणिकाएँ और उन दिनों के संस्मरण दिल को छू गए। बेहतरीन पोस्ट !

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  62. समीर भाई, आज आपने इस निट्ठल्ले से दँडवत करवा लिया ।
    हृदयग्राही और मर्माँतक चीख है इन लाइनों में... हाय क्यों याद दिला रहे हो यूँ,
    उसकी इतनी छोटी उम्र.. जो बरबस दिलाती है अपने अस्तित्व के नपुँसकता का एहसास !
    कई दिनों तक डिस्टर्ब्ड रहूँगा ।
    इन गवेषणाओं में मैं भी मूलगँज़ में समय बिता आया हूँ,
    आदमियत को पेट की आग के नाम पर आदमजात हालत में ही पाया है ।
    इन बेबसों का चलन देख, मैं सचमुच ही नपुँसक हो गया था,
    कल्पना करें वह रातो दिन जब किसी पर एक लिजलिजापन छाया रहे,
    इन हालात में, इस कायनात की शरीयतें भी शरीर और मन से नपुँसक ठहरती हैं, मेरी तो बिसात ही क्या रही होगी ?
    कई दिनों तक डिस्टर्ब्ड रहूँगा ।

    पर एक बात है कि, मुझे अब बोल्ड और वीभत्स साझा करने का हौसला भी मिल रहा है !

    ओह माई.. हे ईश्वर, मत याद दिलाओ वह 6 X 6 का स्पेस और यह कि,
    उन सूनी आँखों की बरबस चँचलता में छुपे रहा करते चँद सुनहरे सपने
    चाह कर भी जिन्हें कभी ताबिर ना मिल सकी, यह कुछ और बात है !
    समीर भाई, आज आपको दँडवत !

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  63. कुछ दृश्‍य ऐसे होते हैं समीर जी जो ऑंखों से चिपक कर रह जाते है। ऐसे ही कुछ दृश्‍य मेरी ऑंखों से भी चिपके हुये हैं। सालों पहले देखे थे पर अभी तक धुंधले नहीं हुये।
    बहुत ही संवेदनशील लेख है, सआदत हसन मंटो की याद दिलाता है।

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  64. Kuch kahane ki Isthiti mein nahi hoon.

    Behtareen kavitayen, jo dil ko Chooti hi nahi balki antarAtma ko Jhakjor ti bhi hein..

    Zehar ki pudiya mein samaj ka zehar samet kar rakha hai apne.
    Badhai.

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  65. हमारे शहर मे भी बीच बाज़ार एक बाज़ार हुआ करता था।पुलिस ने उसे जबरिया बंद करवा दिया और अब गली-मुहल्ले मे दुकाने खु गई हैं।

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  66. हमारे शहर मे भी बीच बाज़ार एक बाज़ार हुआ करता था।पुलिस ने उसे जबरिया बंद करवा दिया और अब गली-मुहल्ले मे दुकाने खु गई हैं।

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  67. njriya acha ho dekhne ka to har jgh gnga ho jati hai .jaisaki aapki post ahsas krvati hai .
    dhnywad

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  68. मार्मिक संस्मरण हैं। बाँटने के लिए धन्यवाद।

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  69. अब क्या रुला ही देने का इरादा है, चुप भी करिएगा। लाल साहब ये चित्र तो ऐसे लग रहे हैं जैसे अभी अभी पूना में मैनें अपने कैमरे में क़ैद किए हों। बहुत बहुत बहुत ही संजीदा पोस्ट। सच है आप का कोई जवाब नहीं। गहनतम प्रस्तुति। आज बहुत याद आ गई आपकी। जल्द लौट आओ यार अकेला हो गया हूँ।

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  70. जबर्दस्त अभिव्यक्ति। बहुत बढ़िया है यह श्रंखला।
    यादों के दरीचे फिर खुले हैं।

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  71. कुछ सपने
    वहाँ भी दिखते होंगे
    कुछ अरमान
    वहाँ भी जगते होंगे
    जो दम तोड़ते होंगे
    उस ६ बाई ६ के कमरे में
    हर नये ग्राहक के
    बोझ तले दब कर!!

    हाय! कितनी छोटी उम्र है...

    उन सपनों की
    उन अरमानों की
    बिल्कुल
    उस ६ बाई ६ के
    कमरे की तरह!!
    बेहद मार्मिक...
    दिल करता है की यह विल्स कार्ड कभी खत्म ना हों...
    मीत

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  72. "बाज़ार से गुजरा था खरीददार नहीं था"
    करीब से देखे हुए समाज के एक पक्ष को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है. साधुवाद.

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  73. ये रियाज़ बढ़ाने वाली बात तो कमाल ही है साहब! ग़मों की इन्तिहाँ है. पूरी पोस्ट एक सांस में पढ़ गया. क्या बात है समीर जी! जय हो!

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  74. आत्मा तो पाक होती है दाग तो तन पे हैं !! न जाने कितनी मज़बूरी और बेबसी होती है उनकी !!

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  75. वो फूलों की महक
    और
    इत्र की तीखी खुशबू..

    वो खामोश उदासी..

    वो मजबूरी की सड़ांध...

    -बाज़ार से गुजरा हूँ आज!!

    jaise ki un ankhon ka dard chalak aaya ho lafzon mein.har rachana apne aap mein us bazar ki ek kahani,shayad majburi ki kahani.bahut hi marmik lekh.

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  76. ऐसी जगहों के बारे में बहुत अच्छी तरह जानता हूँ ! बहुत गहराई से उन जिंदगियों को देखा है !

    काका का हाता (कानपुर) , हाथीपुर (लखीमपुर), शिवदास पुरी (बनारस ), सोनागाछी (कोलकाता) का , कमाठीपुरा (मुंबई) ....

    हर जगह एक सी कहानी ... कोई इनके बारे में सोचना नहीं चाहता ... मंगल ग्रह से टपके हुए .. समाज का नासूर ... सर्वथा अवांछित ...

    बस हर बार विल्स कार्ड नंबर दो की पंक्तियों का भाव मन में उठता रहा ...


    आज की आवाज

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  77. विल्स कार्ड श्रंखला भाग ४ बहुत बढ़िया लगी आभार.

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  78. क्या कहूं कि कहने को शब्द नही हैं,
    मेरी अभिव्यक्ति को भाषा उपलब्ध नही है!!
    अच्छी तो आपकी कई पोस्ट होती है, लेकिन ये ’खास’ है!

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  79. आपने साहिर को पुन: जीवन्त कर दिया

    सना ख्वाने .......

    टिप्पणी कमजोर लगती है इस पोस्ट पर

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  80. बेनामी7/10/2009 09:34:00 pm

    मैं तो स्तब्ध, ठगा सा खड़ा रह गया

    वो
    कातर निगाहें
    जाने किस आशा से
    खिड़की पर खड़ी
    मुझे देखती रहीं ..
    और
    मैं
    पूर्ण स्वस्थ
    युवा
    एकाएक
    कर पाया
    अपनी नपुंसकता का अहसास!!

    रियाज़ कुछ बढ़ाना होगा!!

    शेक्सपीअर याद आते हैं!!


    यादें उन्हीं विल्स कार्डों पर सहेजी गईं, शायद मौसी भी ये न जानती थी वरना कभी मना न करती.

    बेहद संवेदनशील पोस्ट, श्रंखला जारी रखें

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  81. आजकल कुछ अलग ही घणे विकट मूड में हैं।

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  82. क्या बात है?! बालगंगाधर तिलक ने गीता रहस्य टॉयलेट पेपर पर लिखी थी (मांडले जेल में उन्हे पर्याप्त कागज नहीं मिलता था)।
    और आपने यह विल्स कार्ड को फेमस कर दिया।

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  83. only a good human being can be a good writer,you proved it.I Like the way u pen down things.

    TC.

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  84. श्री समीर लाल जी,

    आपने सच कहा है, उन गलियों से मेरा भी आना जाना हुआ है और जो लिखा है वो संवेदना है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  85. 'नहीं आती तो बस

    मुई!! मौत नहीं आती...

    रियाज़ कुछ बढ़ाना होगा!!'
    - मुझे लगता है ये विल्स कार्ड का गट्ठा नहीं क्लासिक रचनाओं का खजाना है.

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  86. समीर जी,
    बहुत सुंदर!भावनात्मक प्रस्तुति बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  87. बेनामी7/11/2009 03:42:00 pm

    विल्स कार्ड के ज़रिये आपने अपने जीवन के जो अनुभव हमसे बांटे हैं, वो हमारे लिए सौभाग्य और सम्मान की बात है....इतना अपनापन और कहीं मिल सकता है क्या ??

    साभार
    प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
    हमसफ़र यादों का.......

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  88. आपका लेख बहुत ही भावनाक्तापूरण है. कभी कभी हम अपनी कलम से थोड़ा लिखना कर भी ज्यादा समझा जाते हैँ जिन्दगी के अनुभवोँ क़ॉ बडी खूबसूरती सॆ पन्नो पर उतारा है आत्मा और दिल तो सभी का है बस राहे अलग हैँ .

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  89. गँगा मौसी
    कई औरो की तरह
    समय के अँधेरोँ मेँ
    खो गईँ
    रह गईँ ये यादेँ
    विल्स कार्ड पर
    और जीवन आगे बढ गया -
    जिन लडकियोँ की कथा आपने यहाँ उकेरी हैँ ,
    उन् के लिये
    सहानुभूति और अपार करुणा है
    - हे ईश्वर !
    उबार लेना उन्हेँ
    :-(
    स्नेह,
    - लावण्या

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  90. kya baat hai? pichhe vaale din kaahe yaad aa rahe hain?

    un tashveeron me ek alag jhalak dikhi....

    aapka 100 phir poora karte hain...

    mithai to milne se rahi.. :)

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  91. kya baat hai? pichhe vaale din kaahe yaad aa rahe hain?

    un tashveeron me ek alag jhalak dikhi....

    aapka 100 phir poora karte hain...

    mithai to milne se rahi.. :)

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  92. kuchh gadbad lag rahi hai aapke blog comment option ko kholne me .. 5 baar tippiyaane ke baad ...tippiya sakaa hoon...

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  93. हर रचना का क्लाईमेक्स...अद्‍भुत है।

    कहाँ से लाते हो सरकार इतना कुछ? ये निगाहें और इन निगाहों से देखने को दिल तक ले जाना और फिर उन्हें शब्दों में ढ़ाल देना...वो भी विल्स-कार्ड पर?

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  94. is dard ko samajhna har kisi ke baski baat nhi hoti..........jisne dekha hai shayad wo bhi utna nhi jaan sakta jitna ki jis par gujri ho phir bhi aapne us dard ko apni kavitaon mein jivant kar diya hai jaise kisi bhuktbhogi ne shabdon mein dard ko dhal diya ho.

    जवाब देंहटाएं
  95. आपके विल्स कार्ड बेशकीमती हैं जनाब !
    ये सिलसिला चलता रहे यूँ ही ....:)

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  96. गुरुदेव - नतमस्तक हू़.

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.