रविवार, जुलाई 05, 2009

मैं नॉन प्रेक्टिकल कहलाया..निहायत फालतू!!

पिछले हफ्ते किसी परिवारिक प्रयोजन में मॉन्ट्रियल जाना हुआ.

६०० किमी की यात्रा और ड्राईविंग लगभग ५ से सवा ५ घंटे की.

पत्नी बाजू में बैठे बतियाती हुई पूरे ५ से सवा ५ घंटे जागृत रखने में सक्षम फिर भी कॉफी साथ में रख ही ली कि आराम रहेगा.

हाईवे घर से बाजू में ही है तो ५ मिनट में पहुँच गये और स्पीड पूरे १२० किमी प्रति घंटे की रफ्तार से मिलाकर सामने और पीछे वाली गाड़ी से एक समदूरी बना कर जाँच लिया कि वो भी १२० पर हैं और क्रूज लगा कर गाना सुनने में मग्न हो गये. पत्नी की समझ से उसकी बात सुनने में, जिसमें मात्र हां हूं करना ही एकमात्र उपाय है. बहस या तू तकड़ की गुँजाईश ही नहीं. (डिटेल न पूछना)

क्रूज यह सुविधा दे देता है कि जिस स्पीड पर आपने क्रूज लगा दिया, गाड़ी उसी पर चलती रहेगी. अब आपको एक्सीलेटर या ब्रेक पर पाँव धरे रहने की जरुरत नहीं. सड़कें भी अधिकतर एकदम सिधाई में चलती हैं तो स्टेरिंग पर भी एक उँगली धरे रहना पर्याप्त है.

बीच बीच में पीछे वाली गाड़ी को बैक मिरर में देख ले रहे थे और सामने वाली तो दिख ही रही थी.

सामने ट्रक था, जिसमें ढेरों सुअर लदे चले जा रहे थे और पीछे नीले रंग की पोन्टियक. एक भद्र महिला उसे चला रही थी लगभग ३५ से ४० साल के बीच की. यह उम्र यूँ हीं नहीं लिख दी है. एक लम्बा अनुभव है इसे आँकने का, कम से कम महिलाओं के मामले में. अब तक तो ९९% सही ही गया है. यह बालों की सफेदी जो आप मेरे फोटो में देखते हैं वो घूप की वजह से नहीं है. अनुभव है मित्र. धूप ने तो सिर्फ चेहरे के रंग पर कहर बरपाया है.

सुअरों से लदा ट्रक

जब बैक मिरर में नज़र डालूँ वो देखती मिले. मैं मुस्कराऊँ ( अरे, संस्कार का तकाजा है और कुछ नहीं) और वो मुस्कराये. बस, और क्या?

सामने का ट्रक- सुअर लादे, सुअर की तरह घूँ घूँ की आवाज के साथ चला जा रहा है. हालांकि खिड़कियाँ बंद होने के कारण घूँ घूँ की आवाज डिस्टर्ब नहीं कर रही थी. उसके साईड मिरर में ड्राईवर नजर आ रहा है. उम्र न जाने क्या हो, पुरुष की उम्र, मैं आँकने में सक्षम नहीं क्यूँकि पुरुष तो किसी भी उम्र में कब क्या कर गुजरे, कहना मुश्किल है. विकट मानसिकता होती है उसकी और अजब फितरत.

कुछ ही समय में एक सबंध सा स्थापित हो गया. हमसफरों को रिश्ता. कुछ दूर ही सही, तुम मेरे साथ चलो..टाईप. सामने ट्रक देखने की आदत पड़ गई और पीछे उस महिला को. अरे, उसने तो सिगरेट जला ली. मन किया कि उसे मना करुँ, यह अच्छी आदत नहीं. मगर कैसे और किस अधिकार से? फिर भी एक जुड़ाव की भावना, मात्र कुछ देर कदम से कदम मिला कर चलने पर. लगता है कि डांटूं उसे. मगर सोचता हूँ कि बड़ी हो गई है. अच्छा बुरा समझती है, क्या कहना उससे. कहते हैं कि जब बेटे के पैर में अपने जूते आने लगे तो अधिकार छोड़ उसे दोस्त मान लेने में ही भलाई है. बुढ़ापा ठीक कटेगा. यही कुछ सोच कर जाने देता हूँ.

सामने ट्र्क को देखता हूँ. सुअर लदे हैं. एक छेद से मूँह निकाले ठंडी हवा की मौज लेने की फिराक में दिखा. उसे क्या पता कि गंतव्य पर पहुँचते ही मशीन उसे फाइनल नमस्ते कहने का इन्तजार कर रही है. उस पर गुलाबी निशान है और बहुतों की तरह. शायद गुलाबी मतलब, पहला स्टॉप. तो वहीं कटेगा और फैक्टरी में से दूसरी तरफ पैकेट में पैक निकलेगा पीसेस में बिकने को.

छेद से झाँकता सुअर

वैसे ये तो हमें भी पता नहीं कि कौन सा निशान हम पर लगा है, तभी तो गाना सुनते, कॉफी पीते, पत्नी की चैं चैं (सॉरी, बातचीत) सुनते, पिछली कार में महिला को ताकते, कोई बुरी नजर से नहीं, चले जा रहे हैं खुशी खुशी.

अगर निशान कब मिटेगा पता चल जाये तो आज जीना दुभर हो जाये एक पल को भी. सही है सुअर महाराज, लूटो मजे ठंडी हवा के. मस्त है यह पावन पवन और बहती समीर!!

३०० किमी पर ऑटवा को मुड़ने का एक्जिट आता है और ट्रक निकल लेता है उस पर. हमें सीधे जाना है मांट्रियाल की तरफ. मन में एक खालीपन सा आ जाता है कि कहाँ चला गया मेरा हमसफर. जाने किस हाल में चले जा रहा होगा. खैर, मिलना, बिछुड़ना जीवन का क्रम है, यह सोच मन को मना लेता हूँ और पीछे बैक मिरर पर नजर डालता हूँ.

वो मुस्कराती है, मैं मुस्कराता हूँ. वो सिगरेट पी रही है और मैं कॉफी. उसे शायद कॉफी के खतरे मालूम होंगे और वो भी मुझे रोकना चाहती हो. कौन जाने?

१०० किमी और बीते. इस बीच चार पाँच बार झूटमूठ मुस्कराये. फिर कोबर्ग आया और वो भी निकल गई उस राह और मै अकेला..मांट्रियल गंत्वय के लिए..आगे बढ़ता..और मन गुनगुना रहा है फुरसतिया जी के मित्र ’प्रमोद तिवारी’ का गीत:

राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं
ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं
आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं
अपने संग थोड़ी सैर कराते हैं।..... (बाकी लिंक पर पढ़ें, सुन्दर गीत हैं)


-कहाँ जा पाये मंजिल तक..राह में ही साथ छोड़ गये. मगर यह तय है कि एक रिश्ता कायम कर गये. उन्हें तव्वजो देना या न देना, यही सारी बात तो हमारा खुद का स्वभाव निर्धारित करता है. शायद साथ की मंजिल वही रही हो.

चाहें तो उसे भूल जाये, मगर मैं नहीं भूल पाता...भूल जाना बेहतर माना जाता है...कुछ लोग इसे प्रेक्टिकल होना कहते हैं.

-मैं नॉन प्रेक्टिकल कहलाया..निहायत फालतू विचारधारा का पालक!!



रिश्तों और नातों के
बीच कुछ
इस तरह से
बंट गया हूँ मैं..
कि
खुद से..
कट गया हूँ मैं....

-समीर लाल ’समीर’

81 टिप्‍पणियां:

  1. यही संवेदनशीलता ,सहजता लोगों को आम और ख़ास बनाती है और आप के तो कहने ही क्या !

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  2. बिलकुल ठीक आप एक्दमे नौन प्रेटिकल हैं जी...बताइये तो..तनी सुअरवा सब के साथ भी मुस्कुरा लेते...ता का बिगड़ जाता आपका..ई स्पीड्वा से तो इहाँ ट्रेनों नहीं चलता है जी..आप कार चला रहे थे...और ऊ भी उनका उम्र ताड़ के ..उनको सारी फिकर धुंए में उडाते हुए...तिस पर तुर्रा ई की साथ धरमपतनी भी थी...इत्ता तो कोई उड़नतश्तरी/एलियन ही कर सकता है... और ऊ नहीं बताये की उहाँ पहुँच कर का का हुआ..?अच्छा अच्छा ..फिर बताएँगे...ठीक है ..

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  3. एक सामान्य यात्रा अनुभवों से कैसे खास और मजेदार संस्मरण में तब्दील होती है यह कोई आपसे सीखे. मजा आया आपका चिटठा पढ़ कर. बधाई

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  4. आप फ़ालतू तो नहीं हैं जी , फ़ालतू हों आपके दुश्मन !

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  5. "हर फिक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया"....


    समीर जी...क्या कर रहे हैँ? जो काम नायक को करना चाहिए वो साईड करैक्टर से करवा रहे हैँ....इट्स नॉट फेयर

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  6. समीर जी, यह छोटी सी मुलाकात हर किसी के जीवन में बहुत बार होती है। और अक्सर जीवन भर याद आती रहती है। ठीक इसी तरह जीवन में बहुत लोग आते जाते हैं। लेकिन हर व्यक्ति के जीवन में ये छोटे छोटे लमहे न हों तो जीवन यात्रा अधूरी रह जाए।

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  7. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..:)
    कट गया हूँ मैं....

    बहुत खूब...मानना पड़ेगा कि आपके बालों की सफेदी धूप की वजह से नहीं है :)

    जवाब देंहटाएं
  8. बेनामी7/05/2009 10:43:00 pm

    इस निहायत फालतू विचारधारा में आप अकेले नहीं हैं, कारवाँ में हम भी शामिल हैं।

    रोचक प्रस्तुतिकरण

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  9. बेनामी7/05/2009 11:05:00 pm

    -मैं नॉन प्रेक्टिकल कहलाया..निहायत फालतू विचारधारा का पालक!!
    obselete bhi shyaad yahii hotaa haen anuj

    Rachna

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  10. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    " कुछ आम सा भी कितना ख़ास हो जाता है कभी कभी...."
    regards

    जवाब देंहटाएं
  11. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....
    अनुभव को सक्षमता से बाटना भी एक सफर ही है.

    जवाब देंहटाएं
  12. समीर जी आजकल तो बच्चे पैदायशी जहीन होते है । क्यों कि उनके बाल तो जन्म से सफेद हो रहे है । आप नोन प्रेक्टीकल है यह नोन प्रेक्टीकल होना भी महानता की निशानी ही है । लेख पढ़ कर अच्छा लगा यात्रा को बहुत ही अच्छे ढंग से एक सुन्दर पोस्ट के रूप मे ढाल दिया । अभार ।

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  13. समीर लाल जी!
    आपका सफर तो सुहाना सफर बन गया।

    जीवन एक सफर, इसमें यादें आती जाती है।
    रिश्तों की बुनियाद, राह में बनती जाती है।।

    सफर की यही खट्टी-मीठी यादें जाने की प्रेरणा देती हैं। परन्तु...

    जितना जख्म कुरेदोगे, उतना ही दर्द बढ़ेगा।
    जितनी धूल उड़ाओगे, उतना ही गर्द चढ़ेगा।।
    पोस्ट बढ़िया रही, आभार!

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  14. कुछ ही समय में एक सबंध सा स्थापित हो गया. हमसफरों को रिश्ता. कुछ दूर ही सही, तुम मेरे साथ चलो..टाईप. सामने ट्रक देखने की आदत पड़ गई और पीछे उस महिला को. अरे, उसने तो सिगरेट जला ली. मन किया कि उसे मना करुँ, यह अच्छी आदत नहीं. मगर कैसे और किस अधिकार से? फिर भी एक जुड़ाव की भावना, मात्र कुछ देर कदम से कदम मिला कर चलने पर. लगता है कि डांटूं उसे. मगर सोचता हूँ कि बड़ी हो गई है. अच्छा बुरा समझती है, क्या कहना उससे. कहते हैं कि जब बेटे के पैर में अपने जूते आने लगे तो अधिकार छोड़ उसे दोस्त मान लेने में ही भलाई है. बुढ़ापा ठीक कटेगा. यही कुछ सोच कर जाने देता हूँ........
    इस तरह का गति बद्ध लेखन सबके बस की बात नहीं ,यह कुछ ऐसा है जो कि व्यक्ति को ओरों से अलग स्थापित करता है.आपको इसके लिए बधाई -
    रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    जवाब देंहटाएं
  15. बेनामी7/06/2009 12:55:00 am

    क्माल कर दीया एक धोती बची थी उसे भी फाड़ के रुमाल कर दीया ।

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  16. खो जाना पड़ता है आपके ब्लॉग को पढ़ते हुए...देखते हैं कितने दिन लगते हैं खुद को ढूंढने में ...

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  17. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    बहुत कुछ ये चंद लाईने कह गई हैं. शुभकामनाएं

    रामराम.

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  18. सुन्दर बड़ा ही सुंदर यात्रा वृतांत

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  19. बहुत सुन्दर पोस्ट है
    रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....
    ये अभिव्यक्ति उससे भी सुन्दर आभार्

    जवाब देंहटाएं
  20. रियर व्यू मिरर में महिला को देख रहे थे और मुस्कुरा-मुस्कुरी चल रही थी।

    लम्बी लम्बी फ़ैंकने की भी कोई लिमिट होवै कि ना हौवे?

    १२० पर गाड़ियाँ चला रये हो, चलो भई हमने नहीं रोका, बिदेस हे चलती होएगी पर ये तो अपने हीयां ई होता है कि गाड़ियाँ इत्ती पास चलती हेगी कि पिछे वाला/वाली दिख भी जाये और इस्माईल-उस्माईल का लेन दे हो जाये।

    फ़ैंको फ़ैंको, लोगहोन हीयां बैठे ही हेंगे लपेटने को।

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  21. भई यहाँ के हाईवे पर तो क्रूज लगाने से पहले, हर रिक्शा, टंगा, टेंपो...पर क्रूज कोई कैसे लगवाए.

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  22. आपकी यात्रा अच्छी लगी हमारे यहाँ तो ६०० कि.मी . कम से कम १२ घंटे का समय चाहिए अगर जाम नहीं मिला तब . आज पता चला आपके बाल कैसे सफ़ेद हुए .

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  23. कहाँ नॉन-प्रैक्टिकल हैं आप , जबतक सड़क पर बाकी हमसफ़र दिख रहे थे , पत्नी की बातें आपको चै-चै लग रही थीं ,बड़े रोचक ढंग से मामूली बातों को पेश किया है , लिखने के लिए भी तो एक दृष्टिकोण चाहिए | नजर से नजारा हसीन हो जाता है |

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  24. आपकी पोस्ट पढ़ कर वो गाना याद आ गया....

    जिंदगी एक सफ़र है सुहाना...यहाँ कल क्या हो किसने जाना

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  25. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    वाह समीर भाई.......... मोंट्रियाल और दिल के जज्बातों के बीच की यात्रा से जुडा सम्बन्ध ........... अनुभवों की लम्बी सोच और सब को मिला कर तैयार किया गहरा वृतांत .......... छू गया दिल को .............. कमाल का लिखा है

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  26. अत्यन्त रोचक यात्रा आपकी,
    आपकी यादें ऐसी होती है की
    एक दम डूब जाते है, हम सब पढ़ते पढ़ते,
    बहुत बढ़िया समीर जी,
    बहुत बढ़िया...धन्यवाद..

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  27. अजीब बात है न समीर जी....की हम मनुष्यों के पास अब रहने खाने के लिए बेहतर विकल्प है फिर भी हम स्वाद की खातिर क्या प्रकति में असंतुलन नहीं ला रहे ?

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  28. आप जिसे फालतू कहते है वो भी बहुत कुछ सीखा जाता है,फालतू तो हो ही नही सकता है..

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  29. शायद कभी इस देश में भी एक्सप्रेस हाईवे बने !

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  30. अच्छा था. पूरा पढ़ गया. मज़ा आया.

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  31. समीर जी बिलकुल सही कहा आप ने, लेकिन हमारे यहां तो कोई लिम्ट नही स्पीट की, मन करे जितनी तेज चला सकते हो चलाओ, हर कोई एक दुसरे के पास से सर कर के निकल जाता है,
    बहुत सुंदर लिखा आप ने अपनी यात्रा का यह विवरण.
    धन्यवाद

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  32. आपका फ़ालतूपन बना रहे । आमीन ! यह Non-practicalness ही है जो दूसरों के कुछ काम आती है ।

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  33. सुन्दर लेख । बधाई !

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  34. बढ़िया जानकारी आभार !

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  35. श्रीमान, अगर बुरा न माने तो एक बात कहूँ, मुझे भी लग रहा है कि आप निहायत नॉन प्रेक्टिकल आदमी है ! आपने सिर्फ अपने साइड मिरर से पीछे-पीछे दौडे चली आ रही भद्र महिला को देखकर अपनी लाइन किलियर समझ ली, मगर यह जानने की तनिक भी कोशिश की कि उस महिला की बगल वाली सीट पर कौन बैठा है? अरे आपने तो यह भी देखने की कोशिश नहीं की कि आपके राइट हैण्ड सीट पर बैठी हमारी भाभीजी ने भी अपनी खिड़की वाला साईड मिरर खोला हुआ है !!!............................

    ......चक्षुपान को प्यासा हर एक मुसाफिर
    तुम भी सफ़र में, वो भी सफ़र में,

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  36. एक सामान्य से सफ़र को आपने यादगार साहित्यिक कृति बना दिया है...ये ही कमाल है आपकी कलम का जिसके सब दीवाने हैं...बेहतरीन शब्द चित्र...जिंदाबाद...समीर जी...
    नीरज

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  37. बहुत ही सुन्दर यात्रा वृत्तांत है .....रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..:)
    कट गया हूँ मैं....

    जवाब देंहटाएं
  38. सुन्दर लेख, सुंदर यात्रा वृतांत...

    जवाब देंहटाएं
  39. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    सच्ची बात।

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  40. "रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..:)
    कट गया हूँ मैं...."

    bahut hi vichaarniya baat kahi hai aapne...
    or aap kaha faaltu hai..?? hmm...

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  41. चेहरे और बाल दोनों के रंग का राज आज पता चला :)

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  42. "६०० किमी की यात्रा और ड्राईविंग लगभग ५ से सवा ५ घंटे की..."

    हम तो यहीं ढेर हो गये.. अगर एसा हो जाये तो हर वीकएंड घर जोधपुर जाऊं..

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  43. यहाँ इलाहाबाद से बनारस या कानपुर जाने के लिए जीटी रोड पर, जो अब स्वर्ण-चतुर्भुज का हिस्सा बन चुका है यानि देश की बेहतरीन सड़क पर भी कार से औसत गति अस्सी-नब्बे ही मिल पाती है। काँटा कुछ सेकेण्ड्स के लिए १२० पर पहुँचता है तब तक कोई साइकिल, ऑटो या तिपहिया वाला ऐसे आगे टपक पड़ता है कि पॉवर ब्रेक का जोरदार प्रयोग उसे २०-२५ पर ला पटकता है।

    ऐसे में आपका आख्यान सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे आप सही में एलिएन टाइप जीव हो गये हों।

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  44. ये सूअर वाले बेहतर हैं; कमसे कम निशान लगाते हैं। धर्मराज तो जाने कब किसे पकड़ ले जाते हैं।

    काम वाले को पहले पकड़ते हैं - फालतू को कम! :)

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  45. बहुत रोचक लगी यह लघु यात्रा बॄतांत.

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  46. बेनामी7/06/2009 02:24:00 pm

    सफ़र आये दिन हम भी करते हैं. सफ़र के दौरान आस पास बहुत कुछ घटता/होता रहता है. पर आपने जिस तरह से उसे महसूस किया है... कमाल है...

    और ६०० कि.मी. ५ घंटे में... हम तो नहीं कर सकते....

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  47. मै भी कल 450 किमी गाड़ी चला कर वापस लौटा हूं।इतना सफ़र करने मे आठ घण्टे लग गये।सफ़र मे बहुत कुछ घटा मगर यंहा तो नज़र हटी और दुर्घटना घटी वाला मामला है।सारा ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ गाड़ी चलाने पर आखिर जान है तो जहान है।

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  48. ६०० किमी की यात्रा और ड्राईविंग लगभग ५ से सवा ५ घंटे की

    घणी मौज है जी, यहाँ तो इतने समय में कोई 200-250 किलोमीटर का ही रास्ता तय हो पाता है, यानि कि जयपुर, आगरा या ऋषिकेश, और वह भी रात्रि के समय जब सड़कें ट्रैफिक से खाली हों और गाड़ियाँ बिना रूके आराम स्पीड पर चलें।

    क्रूज यह सुविधा दे देता है कि जिस स्पीड पर आपने क्रूज लगा दिया, गाड़ी उसी पर चलती रहेगी. अब आपको एक्सीलेटर या ब्रेक पर पाँव धरे रहने की जरुरत नहीं. सड़कें भी अधिकतर एकदम सिधाई में चलती हैं तो स्टेरिंग पर भी एक उँगली धरे रहना पर्याप्त है.

    तभी तो कहा कि उत्तरी अमेरिका, योरोप वालों की मौज है, तेज़ रफ़्तार वाली बड़ी और चौड़ी चिकनी सड़कें हैं, आबादी तुल्नात्मक रूप से कम है! :) यहाँ तो बिन गड्ढों की सड़कें और उन पर तमीज़दार लोग हो जाएँ तो वही बहुत बड़ी बात होगी!! ;)

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  49. और हाँ, यह तो कहना रह गया कि और घणी मौज जर्मनी वालों की है जो ऑटोबाह्न पर गाड़ी दौड़ा सकते हैं बिना किसी स्पीड लिमिट के, 120 किलोमीटर प्रति घंटा क्या, सौ मील प्रति घंटा (162 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ़्तार से भी! :)

    यहाँ भारत में तो कई लोग डिमॉलिशन डर्बी की भांति ड्राइव करते हैं, खासतौर से बड़ी गाड़ी और टम्पो वाले!!

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  50. मैं नॉन प्रेक्टिकल कहलाया..निहायत फालतू!!

    जी हां निहायत फालतू!!

    वीनस केसरी

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  51. सूअर और सुन्दरी के बीच फँसे समीर
    रोचक वृताँत

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  52. संस्मरण तो ऐसे ही होने चाहिए भाई साहब....बहुत ही अच्छे तरीके से पेश किया गया है। वाह|

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  53. सम्बन्ध भी जाने-अनजाने ही बनते हैं.
    मिरर के माध्यम से बना हमसफ़र का सम्बन्ध दस्ताने बयां अच्छा लगा.
    पढने के बाद सोचने की गलती का बैठा तो लगा की ये कैसा अजीब इत्तिफाक है की आगे- आगे निशानधारी काटने वाले हम सफ़र और पीछे-पीछे हर सोंच को मुस्कारा कर धुंवे में उडाती हमसफ़र. पर मंजिल तक साथ किसी का भी न मिला..................

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  54. छोटी छोटी घटनाओं से गुढ अर्थ निकालना और इस रोचकता से पेश करना आपसे सीखने योग्य है. यह सबके बस की बात नहीं है. बधाई.

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  55. वाह समीर भाई ! लगा की आपके साथ सफ़र कर रहा हूँ , गज़ब के जीवंत शब्द चित्रण के लिए मुबारक बाद !

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  56. "१०० किमी और बीते. इस बीच चार पाँच बार झूटमूठ मुस्कराये. फिर कोबर्ग आया और वो भी निकल गई उस राह और मै अकेला..मांट्रियल गंत्वय के लिए"........... अरे साहब क्या कह रहे है आप, पत्नी बगल मे और "उनके" जाने भर से आप "अकेले"; राम राम राम........................

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  57. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  58. अद्भुत नैरेशन. कैसे करते हैं भइया? मैंने सुना है हाई-वे यात्रा नीरस होती है. लेकिन इस तरह रस आप ही ला सकते हैं. दूसरी बार पढा. कमाल का लेखन है.

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  59. सर, थोड़ा थोड़ा झांक रहे थे या लगातार. हा-हा-हो-हो.

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  60. माफी चाहता हूँ थोडी देर से आने के लिये ............पर एक ही बात जो मेरे दिल और दिमाग से निकल रही है.........नतमस्तक

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  61. ese hi yatra vrataant me aanand aataa he, lagtaa he ham bhi vnhi he, aour kai saari jaankaari prapt hoti he.
    chand panktiyo ne bhi arth ke saath sochne par mazboor kar diya

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  62. यह मानते हुए भी की सबके कपाल पर यमराज ने जाने का दिन लिख दिया है,यह स्वीकारना बड़ा ही दुष्कर लगता है की मनुष्य किसी भी जीव के लिए यह तिथि नियत कर सकता है.........

    छेद से मुंह बाहर निकाल हवा खाते मासूमो ने ऐसा रिश्ता बाँध लिया है की उन्हें दिलो दिमाग से उतरना कठिन लग रहा है....

    मेरे छोटे भाई ने अपने कनाडा प्रवास के दौरान गायों के ऐसे ही पैकेट बनाने की पूरी प्रक्रिया का जो विवरण दिया था......बस दहल गयी......लगा क्या हम सचमुच मनुष्य हैं????

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  63. समीरजी नमस्कार!
    आप का लेख पढ़ा.
    आपने इस संस्मरण को अत्यंत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है.
    प्रचलित शब्दों के चयन ने इसमें और भी आकर्षण भर दिया है.
    आपके सफ़र में एक पुरुष रूप में महिला के प्रति नैसर्गिक लगाव
    तो साथ-साथ सूअर के माध्यम से जीवन के प्रति संवेदना का उच्च बिंदु
    दिखता है.
    सूअर कि संतुष्टि तात्कालिक है उसकी नियति तो तय है पर उसे पता भी नहीं.
    बहरहाल
    सूअर कि बात से मुझे सुकरात याद आ गया!!!!!!
    लेकिन आज मैं ये कहूँगा कि एक संतुष्ट सूअर से अच्चा एक असंतुष्ट
    समीर होना है,जो दूसरो के बारे में सोचता और सबको इसके लिए प्रेरित करता है.
    मैं ब्लॉग पर नया हूँ,अगर कोई भूल हो गयी हो तो. क्षमा!!!!!!..................

    सप्रेम आपका..........................

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  64. वाह बड्डे ६०० किमी. ५ घण्टे में !! यहाँ तो जबलपुर से पूना ९५० किमी जाने में दो नाइट हाल्ट मारना पड़ जाते हैं । क्रूज़ भी उपलब्ध नहीं। बाई गाड पीछे चलती लड़की की सिगरेट तक दिखती है वहाँ। यहाँ तो इतना देखने में सामने से आते डग्गे से गुफ़्तगूँ हो जाएगा और उसके बाद डायरेक्ट अल्ला मियाँ से। हा हा।
    और अपने यहाँ के सूअर तो फिर पूछिएगा मत। वो तो बीच बीच में पड़ने वाले गाँवों में सड़कों पर सैर करते मिल जावेंगे और गलती से यकबयक अरजेन्सी में सड़क पार गए तो फिर वही अल्ला मियाँ से .......।
    हा हा !
    बहुत संवेदनशील लेख !!

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  65. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    mujhe aapki ye panktiyan aur post bahut pyari lagi.badhai.

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  66. Bahut khoob SAMEER bhai ;-))
    What happened @ Montreal ?
    please continue ...........

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  67. Ap gadya aur padya ka sundar gathjod kar lete hain...tabhi to ek sidhi si bat ko bhi sochne wali bana dete hain.


    फ़िलहाल "शब्द-शिखर" पर आप भी बारिश के मौसम में भुट्टे का आनंद लें !!

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  68. "मस्त है यह पावन पवन और बहती समीर!!"
    व्याकरण की गलती लग रही है समीर जी, ज़रा फिर से चेक कर लें.
    -मैं नॉन प्रेक्टिकल कहलाया..निहायत फालतू विचारधारा का पालक!!
    अरे भैया, तीन घंटे और दस फ़ुट की दूरी के रिश्ते पर 72 टिप्पणियों वाली एक पूरी पोस्ट लिख डाली फिर भी अपने को नॉन-प्रैक्टिकल बता रहे हैं, यह तो "बहुत नाइंसाफी है."

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  69. aap ki sense of humour bhi gazab ki hai--
    jaise kuchhh panktiyan -
    -
    '......बतियाती हुई पूरे ५ से सवा ५ घंटे जागृत रखने में सक्षम '

    '-डांटूं उसे. मगर सोचता हूँ कि बड़ी हो गई है.'

    '-एक छेद से मूँह निकाले ठंडी हवा की मौज लेने की फिराक में दिखा. उसे क्या पता कि गंतव्य पर पहुँचते ही मशीन उसे फाइनल नमस्ते कहने का इन्तजार कर रही है. '

    -aur end mein darshanik element post ko special banaa gaya.

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  70. यह चिटठा अधिकतर समय रोड पर रहा ।
    फिर भी खिड़की से झांकते सूअर के सौन्दर्य
    और पीछे से उठते सिगरेट के धुंए से जुड़ गया।
    कहीं गहरे उस सम्बन्ध से प्रभावित
    मगर उसके प्रति सहमा हुआ सा ...
    आखिरी शब्द ' नॉन प्रैक्टिकल'।
    क्या इस 'नॉन प्रैक्टिकल' पर और कुछ 'प्रैक्टिकल' मिलेगा?

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  71. अच्छा जी, मांट्रियल तो पहुँच गए. अब आगे क्या होगा.

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  72. sameer ji

    aapne ek choti si baat ko itni acchi tarah se pesh kiya hai ki kya kahne .. emotional effect ban padhe hai sir..aapki lekhni ka to main kaayal ho gaya sir..

    Aabhar

    Vijay

    Pls read my new poem : man ki khidki
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html

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  73. ऐसा लगा जैसे साथ मैं भी चला जा रहा था, सरल शब्‍दों में बयान, यात्रा का यह बड़ा रास्‍ता कि‍तनी मदमस्‍त बना दी।
    अंत की कवि‍ता, दो-टुक कवि‍ता थी, सीधे दि‍ल में उतर गई।

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  74. Non practical log hee sahi mane men jindagee jeete hain. .Badhiya post.

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  75. बेहद खूबसूरती के किया गया वर्णन
    मज़ा आ गया

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  76. रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं....

    कितनी सच्चाई छिपी हुई है, इन पंक्तियों में!!!

    कभी अपने पाठकों की नजर से खुद को देखें तो शायद अपने आप को बहुत ऊंचाई पर खडा पाएंगे, ऎसा मेरा विश्वास है।

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  77. "रिश्तों और नातों के
    बीच कुछ
    इस तरह से
    बंट गया हूँ मैं..
    कि
    खुद से..
    कट गया हूँ मैं...."

    ऊपर से नीचे ताक हँसाते लाते हो सरकार और ये क्लाईमेक्स पर ला्कर एकदम से सेंटिया देते हो...
    आप और आपकी अदा...उफ़्फ़्फ़!

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