(यह संस्मरणात्मक आलेख मेरे पिछले आलेख ’दो जूतों की सुरक्षित दूरी’ वाले आलेख पर आये कई जिज्ञासु पाठकों की उस जिज्ञासा निवारण के लिये लिखा जा रहा है जिसमें पूछा गया है कि हे गुरुवर, सुकन्या के पीछे चलते वक्त दो जूते की सुरक्षित दूरी का ज्ञान तो आपने दे दिया किन्तु उनके बाजू में चलने/बैठने के विषय में भी हमारा कुछ ज्ञानवर्धन करें. )
आज दफ्तर जाते समय थोड़ा सजने (यहाँ की भाषा में-ड्रेस अप) का मन हो लिया. होता है कभी कभी. युवा मन है, मचल उठता है. मैं भी बुरा नहीं मानता, मेरा ही तो है.
टॉमी की सफेद कमीज, कालर से झांकती लाल पट्टी वाली, जिसे मैं खास मौकों पर पहनता हूँ. लोगों ने बताया है कि इसमें मैं बहुत स्मार्ट नजर आता हूँ.
साथ में काली फुल पेन्ट, काले मोजे, सॉलिड पॉलिश किये लगभग नये से पिछले साल कानपुर से खरीदे जूते. थोड़ा पाउडर भी लगा लिया चेहरे पर और फिर फाईनल टच-अज़ारो का परफ्यूम-वाह. कभी उसका विज्ञापन देखना. उसमे बताया है कि महक ऐसी कि रुप खिंचा खिंचा चला आये. जब भी लगाता हूँ लोग पूछते हैं कि आज कौन सा परफ्यूम लगाया है. बड़े इम्प्रेस होते हैं. मुझे तो मालूम नहीं था, विज्ञापन में देखा था और लोगों ने बताया है.
निकलते निकलते वो काला चश्मा, वाह!! कितने ही लोग कह चुके हैं कि बहुत फबता है मेरे उपर. तभी तो अपना फोटो उसी चश्में को पहन कर खिंचाई है.
आकर ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गया हूँ. बाजू की सीट खाली है. बैग से परसाई जी की किताब ‘माटी कहे कुम्हार से’ निकाल कर पढ़ने लगता हूँ.
अगले ही स्टेशन मेरे बाजू वाली सीट एक सुपात्र को प्राप्त हुई. एक सुन्दर युवती, उम्र तो जरुर रही होगी गुजरते योवन वाली ३७-३८ वर्ष, मगर वह उसे ३० पार न होने देने के लिये सफलतापूर्वक संघर्षरत थी. उसके जज्बे और सफलता को देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ. यह सजगता और यह संघर्ष का जज्बा हर स्त्री पुरुष में रहना चाहिये, ऐसा मेरा मानना है.
उसने अपने आप को व्यवस्थित किया. मैने कनखियों से देखा था. मैं किताब पढ़ता रहा.
तब तक एकाएक बोली-’हैलो, कैसे हैं आप?"
आह्हा!! परफ्यूम का कमाल- रुप खिंचा खिंचा चला आये. मगर वह पूछते समय भी अपनी नजर सामने अखबार में गड़ाई रही. मैं समझ गया, संस्कारी कन्या है, नहीं चाहती कि किसी और को पता चले कि मुझसे बात कर रही है.
मैने भी किताब में ही झूठमूठ मन लगाये सकुचाते हुये कहा, "जी, मैं ठीक हूँ और आप?"
वो कहने लगी, "कब से सोच रही थी मगर आज बात हो पाई."
ह्म्म!! जरुर सफेद शर्ट लाल पट्टी के साथ कमाल दिखा रही है. लोग सही ही कह रहे थे. मैने धीरे से फुसफुसाते लहजे में ही कहा, "जी, चलिये कम से कम आज सिलसिला तो शुरु हुआ." मैं भी संस्कारी हूँ इसलिये फुसफुसा कर कहा.
वो हंसी. मैं मुस्कराया.
उसने कहा, "लंच पर मिलोगे?"
मैने कहा, ’जरुर, कहाँ मिलना है?" मुझे लगा कि जरुर चश्मे ने भी गजब ढ़हाया होगा. बाकी तो लंच पर मिलने पर उसका क्या हाल होगा जब मैं बताऊँगा कि मैं चिट्ठाकार हूँ और सन २००६-०७ का तरकश स्वर्ण कमल और इंडी ब्लॉगीज पुरुस्कार से नवाजा गया हूँ. यू ट्यूब के कवि सम्मेलन के विडियो लिंक जो दूँगा तो फूली न समायेगी कि किस सेलेब्रेटी से मुलाकात हो ली है.
वो बोली, "ठीक है, वहीं मिलते हैं जहाँ पिछली बार मिले थे. ठीक दो बजे."
अब मुझे लगा कि कुछ क्न्फ्यूजन है. मैं कब मिला इन मोहतरमा से. मैने उनकी तरफ पहली बार मूँह फिराया तो देखा वो कान में फंसाने वाले मोबाईल (अरे, ब्लू टूथ) पर किसी से बात करती हुई हंस रही थी. हद हो गई और मैं समझता रहा कि मुझसे बात चल रही है. एकाएक उसने मेरी तरफ मुखातिब होकर पूछा-"आपने कुछ कहा?"
मैने कहा,"नहीं तो."
अरे, मैं क्यूँ कुछ कहूँगा किसी अजनबी औरत से-अच्छा खासा शादीशुदा दो जवान बेटों का बाप-ऐसा सालिड एक्सक्यूज होते हुए भी. बस, समझो. किसी तरह बच निकले.वो तो लफड़ा मचा नहीं वरना तो सुरक्षाकवच ऐसे ऐसे थे कि जबाब न देते बनता उनसे. मैं तो तैयार ही था कहने को कि हम भारतीय है. हमारी संस्कृति में विवाहित महिलाये ऐसी नहीं होती कि पूछती फिरें –आपने कुछ कहा? अरे, हमारे यहाँ तो सही में भी अपरिचित महिला से कुछ पूछ लो तो कट के सर झुका के लज्जावश निकल लेती है. लज्जा को नारी के गहने का दर्जा दिया गया है. उस संस्कृति से आते हैं हम. तुम क्या जानो.
हद है भाई!! अफसोस होता है.
मैं तो खुश नहीं हूँ इन छोटे छोटे मोबाईल फोनों के आने से. ससूरे, साफ साफ दिखते भी नहीं हैं और कन्फ्यूजन क्रियेट करते हैं. आग लगे ऐसे छोटे मोबाईल के फैशन में.
सीख (ध्यान से पढ़ें): यदि कोई अजनबी सुन्दर कन्या, जो जन्म से अंधी नहीं है, आपकी काया, रंगरुप और उम्र की गवाही देते खिचड़ी बालों की प्रदर्शनी को देखते हुये भी, खुद से बढ़कर, आपसे अनायास अकारण आकर्षित होते हुये बात प्रारंभ करे (इस बात के होने की संभावना से कहीं ज्यादा प्रबल संभावना इस बात की है कि आप पर आकाश से बिजली गिर गई और आप सदगति को प्राप्त हुए (इस तरह की सदगति की संभावना करोंड़ों में एक आंकी गई है ज्ञानियों के द्वारा)), तब आप कम से कम दो बार उसे देखें और न हो तो बिना शरमाये पूछ लें कि क्या वो आप से मुखातिब हैं? कोई बुराई नहीं है पहले पूछ लेने में बनिस्पत कि बात में बेवकूफ बन इधर उधर बगलें ताकने के)
(प्रिय जिज्ञासु पाठक, यही ज्ञान आगे आगे चलने में भी काम आयेगा. जब आपको लगे कि पीछे से उसने आपको आवाज लगाई है. :))
पुनश्चः: मेरी व्यक्तिगत सुरक्षा की दृष्टी से इस कथा को काल्पनिक ही माना जाये.
चलिये कथा को तो काल्पनिक मान लिया लेकिन आप तो असली हैं...बाय गॉड की कसम क्या जंच रहे हैं..हम तो बिल्कुल खिचे चले आये.
जवाब देंहटाएंSameer Bhai
जवाब देंहटाएंहमेशा कन्या का नाम भी बताते हो. इसका नहीं बताया, शायद हमें ही मिल जायें कभी ट्रेन में तो सतर्क हो जायेंगे. फोटो तो देख ही ली है. गजब कर दिया भाई. क्या चीज हो-हर रोज नये रंग में. आपको मैं नहीं पहचान पाऊँगा शायद कभी भी. मगर फिर भी चाहता हूँ कि आप ऐसे ही रहें.
अपनी नजर सामने अखबार में गड़ाई रही.
जवाब देंहटाएंइसीसे शक हुआ था मुझे, और आगे वह सच सही ही निकला।
कोई नहीं हो सकता है कल करोड़वें आप ही हों!
आलोक
ये पंक्तियां मुझे अच्छी लगीं हैं आप ने बहुत कुशलता पूर्वक शब्दों का चयन किया है बलिक ये कहें कि बाजीगरी दिखाई है । मगर एक बात का ध्यान दें कि पूरा का पूरा व्यंग्य ही पठनीय होना चाहिये और ऐसा हो कि उसमें से न तो एक शब्द कम किया जा सके ना ज्यादा । आप परसाई जी को पढ़ते ही हैं मेरा विचार है कि आप ज्यादा शरद जोशी जी को पढ़ें । परसाई जी तो खैर एक ऐसा नाम है जो प्रात: स्मरणीय है । आपकी ये पंक्तियां मुझे अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंउम्र तो जरुर रही होगी गुजरते योवन वाली ३७-३८ वर्ष, मगर वह उसे ३० पार न होने देने के लिये सफलतापूर्वक संघर्षरत थी
वाह वाह ! क्या गज़ब पर्सनालिटी पाई है आपने । कन्या पहले से एन्गेज थी कही वर्ना आप पर ध्यान दिये बिना कोई कैसे रह सकता है । वैसे कन्याओ के मामले मे कोई रूल/नियम सौ फ़ीसद काम नही करता । यहां मामला हमेशा फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी रहता है ।
जवाब देंहटाएंपोस्ट झकाझक शुरू हुयी थी। लगा कि कुछ तकनीकी ज्ञान बढ़ेगा। पर अंत होते होते यह पोस्ट हमें हमारी उम्र का अहसास करा गयी! टाइम खोटा हुआ!
जवाब देंहटाएंआगे से आप पहले ही लिख दिया करें कि पोस्ट किस एज-बैण्ड (age-band) के लिये है! :-)
विवरण उत्तम है। सीख सर्वोत्तम है। वैसे तो मैं कभी ऐसे लफड़े में पड़ता ही नहीं। फिर काहे की परेशानी। पिता जी कहते थे और मानते थे कि बड़ा संस्कारी बच्चा है। असली बात या तो मैं जाणूं या ऊपर वाळा।
जवाब देंहटाएंदोनों फोटो अच्छी आई है,:)
जवाब देंहटाएंमजा आ गया।
हास्य से परिपूर्ण
वो हंसी. मैं मुस्कराया. ----- अरे आप भी ... "नारी नदिया सी चंचल" को पहचान न पाए....
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद खुल कर हँसें. कहना तो बहुत कुछ चाहते है लेकिन ....
"लज्जा को नारी के गहने का दर्जा दिया गया है. उस संस्कृति से आते हैं हम. तुम क्या जानो." :)
आपकी सुरक्षा हमारे लिए ज्यादा महत्त्कपूर्ण है, कहानी को सत्य मानने से. अतः भाभीजी को यह काल्पनिक कथा मेल कर दी गई है. :)
जवाब देंहटाएंकल आपको मेक-ओवर में निकलते देखना अच्छा लगेगा. :)
बड़ा रस था कथा में.
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंआजकल बाप ज्यादा डेंजरस हैं। रुकिये इस बापबीती को या पापबीती को आपके बेटे को मेल करता हूं।
जवाब देंहटाएंकाल्पनिक मान लिया. लेकिन इसकी शिक्षा वास्तविक है.
जवाब देंहटाएंमैं आजकल ग्वालियर में हूं. कोच्चि 8 तारीख को पहुंचूंगा. तब तक मुझे जाल के मामले में काफी असुविधा रहेगी. दैनिक लेख कोच्चि छोडने से पहले ही पोस्ट कर दिये थे. एकाछ यहा से लिखने का इरादा है.
आपके नियमित टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिये आभार. सचमुच में आप यह जो अलख जगाये हैं इसकी मिसाल और कहीं नहीं है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
बड़े मियां दीवाने जरा संभल के
जवाब देंहटाएंमजेदार..छोटे मोबाइल सचमुच दुविधा बढ़ाते हैं।
जवाब देंहटाएंसर जी, आप तो छा गये हैं इस तस्वीर में.. मुझे तो लगता है कि उस कन्या का दुर्भाग्य है जो वो आपसे बात नहीं कर रही थी...
जवाब देंहटाएंऔर हां, कभी गलती से भी AXE का DEO मत लगाईयेगा वरना ना जाने क्या हो जायेगा.. :D
मस्त है!!( फोटो वाली)
जवाब देंहटाएंगुरु की सीख गांठ बांध ली गई है
भाभी जी आपका ब्लॉग नही पढ़ती क्या...? ज़रा अपना फोन नं० दीजियेगा...! आखिर एक महिला का कर्तव्य है कि दूसरी को सावधान कर दे!
जवाब देंहटाएंआपके विचार ऑर अनुभवो को देखते हुए मेरा सुझाव है क़ि सुकन्याओ के बारे मे एक शोध ग्रंथ तैयार करना चाहिए जो भविष्य मे युवाओ के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगा ऑर युवा सचेत रहेंगे
जवाब देंहटाएंआप महिला के बात करने पर उड़नतश्तरी में सवार ना जाने क्या-क्या ख्वाब देख रहे होंगे उस समय. पर सुन्दरी आप को गच्चा दे गई. चलो ये नही तो कोई दूसरी टकरायेगी.
जवाब देंहटाएं"हमारी संस्कृति में विवाहित महिलाये ऐसी नहीं होती कि पूछती फिरें –आपने कुछ कहा?"
जवाब देंहटाएंहद कर दी समीर जी ...यह तो हम पर सरासर दबाव है।
बहुत अच्छा लगा आपका ये व्यंग्य और अन्त में हँसते-हँसते बुरा हाल हो गया बहुत-बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंमज़ेदार किस्सा सुनाया आपने... अच्छा है आज तक अपन के साथ ऐसा कुछ नहीं हुवा
जवाब देंहटाएंये हास्य में श्रृंगार ( आपका ) रस का मिश्रण बढिया रहा। मजेदार ॥
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपका ये व्यंग्य और अन्त में हँसते-हँसते बुरा हाल हो गया बहुत-बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंसमीर भाई,
जवाब देंहटाएंमुठभेड़ का अद्भुत वर्णन किया है आपने....बाकी ज्ञान हमने नोट करके रख लिया है....अगली बार से पहले युवती (?) के कान ही देखूँगा.
चलिये समीर जी,पहली बार आपने दिल की बात ब्लाग पर तो रखी। वरना कई ब्लागर तो महिलाओं के 'इस तरह से जुडे विषयों पर'टिप्पणी करना भी पसंद नहीं करते । यह मेरा अनुभव है। और आपके ब्लॉग पर इस विषय पर लिखे आलेख पर टिप्पणियों का अंबर यह बताता है कि ब्लॉगरों कि भी "इस विषय"…… में गहरी रूचि है।
जवाब देंहटाएंI really liked ur post, thanx for sharing. Keep writing. I discovered a good site for bloggers check out this www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.
जवाब देंहटाएंइस तरह दिन मे सपने वो देखते हैं जो रेगिस्तान मे रहते है और जिन्हे हरियाली नसीब नही होती. ;)
जवाब देंहटाएंअपने तो हरे भरे वर्षावन मे रहते हैं... यहाँ तो लडकी बडे प्यार से पूछती है, हाये कित्ते दिन हो गए कोफी पीने नहीं गए. हम तो टेस्ट भी नही करते कि ब्लू टूथ इयरपीस लगा है कि नहीं... कोंफीडेंस माय डियर यंग फेलो कोंफीडेंस!!!!
:)
क्या बात है क्या अंदाज़ है ..हम बलिहारी :) बहुत खूब :)हँसते हँसते पेट दर्द हो गया हमारा :)
जवाब देंहटाएंआप जैसा सुदर्शन ब्लॉग जगत में कोई नहीं है.....आप कितनों की धड़कन हैं.....खूब जम भी रहे हैं.....जमिए और उड़िए अपनी उड़न तश्तरी में
जवाब देंहटाएंपहले तस्वीर पर ही नजर गई व्यंग्य-फ्यंग्य का क्या है उस पर तो बाद में देखा। सुदर्शन तो खैर आप भी हमारी ही तरह हैं, पर हम आपकी तस्वीर की नहीं सुदर्शना की तस्वीर की कह रहे थे।
जवाब देंहटाएंतो पहलेपहल हमने तस्वीर देखी जी भर देखी फिर व्यंग्य पढ़ा (आखिर आपके बंधुआ पाठक हैं) तब ध्यान दिलाने के बाद फिर तस्वीर देखी, और तब मुश्किल से उस ब्ल्यू टूथ पी नजर गई। आप पता नहीं इतनी सुदर्शनाओं में अप्रासंगिक चीजें क्यों कर देख पाते हैं।:))
हम ऐसी स्थिति में फंसने पर भी जोखिम लेंगे और इस गलतफहमी के ही बहाने बात आगे बढ़ाएंगे।
पहले तो ये बताईये कि क्या घर में कोई नोंक झोंक हुई है? आजकल कन्याओं की पोस्ट बड़ी लिखी जा रही है। कहीं पीछे चल रहे हो कहीं पास बैठ रहे हो?
जवाब देंहटाएंक्या गड़बड़ है?
बरसों पहले एक विज्ञापन आता था जिसमें कविता कपूर होटल मैं वेटर के सामने किसी से, हथेली में छिपाये हुए मोबाईल से बात कर रही होती है, बेचारा वेटर बड़ा खुश हो कर उसके पास जाता है और वह कहती है one Black Coffee pls. तब उस वेटर का चेहरा देखने देखने लायक होता है। शायद कुछ आपका भी वहि हाल हुआ होगा।
:) ये है स्माईली, बकिया आप खुद समझ जायेंगे।
अच्छा लगा आपका व्यंग्य,आपने कुछ कहा?"
जवाब देंहटाएंये जानकारी हम युवाओं को बहुत मदद करेगी…
जवाब देंहटाएंसमीर जी, बिल्कुल असाधारण ,अद्वितीय, और न जाने क्या क्या विशेषण चस्पां हो सकते हैं इस व्यंग्य पर.
जवाब देंहटाएंमजा ही नही आया बल्कि मजे का बाप भी है तो वो भी आ गया.
बहुत ही अच्छे दिख रहे हैं आप समीर भाई…
जवाब देंहटाएंरचना की व्यापकता का ज्ञान सहसा ही हो जाता है…।
समीर जी
जवाब देंहटाएंइस सफ़ेद शर्ट में आप जंच रहे हैं ये तो मालूम है आप अको, अब ये बताइए कि अगर बात आगे नही बड़ी तो आप ने उसके कान की तस्वीर खीचीं ही कैसे…।बढ़े मियां दिवाने ऐसे न बनो हसीना क्या चाहे हमसे सुनो…ये आपने अपने बचाव में भारतीय संस्कृती की जो दुहाई दी है उसमें महिलाए हमारी संस्कृती में कैसी होती है ये मुद्दा कैसे आ गया जी, बोलना तो ये था कि मर्द हमारी संसकृती में कैसे होते है। ये जबर्दस्ती की सास्कृतिक बंधन हमारे ऊपर क्युं ठेल रहे है भाई
थोङे दिन हल्दी और गाय का मक्खन लगा के देखिए छोकरिया पंईयां न पङे तो हमार नां बदल देना
जवाब देंहटाएं'कालर से झांकती लाल पट्टी वाली' अब कुछ-कुछ समझ आया समीर 'लाल' का अर्थ।
जवाब देंहटाएंअरे भई! कल्पना मे तो अच्छा सोच सकते है। इसमे भी आपने असलियत को लाकर ठीक नही किया। लगे रहे हमारी दुआए आपके साथ है।
आपकी इस पोस्ट आया प्रतिक्रियाओं का अंबार देख कर जलन हो रही है...इस पर भी एक दीर्घ संवाद होना चाहिये की टिप्पणियाँ समीर भाई के प्रति प्रेम है या इस पोस्ट के प्रति......(तालियाँ)
जवाब देंहटाएंयह किस्सा तो खूब रहा! कदाचित वास्तविकता का हास्य के साथ प्रस्तुतिकरण ;)
जवाब देंहटाएंयह सोचता हूँ, कि यदि ठीक इसके विपरीत होता - यदि आप सेलफोन पर बात कर रहे होते और... तब क्या समानताएं होती और क्या विषमताएं, इस वाकये में।
चलिये आपकी व्यक्तिगत सुरक्षा के चलते इस कथा को काल्पनिक मान लेते हैं! पर लिखने का अंदाज़ तो इसे आपाबीती ही साबित करता है...
जवाब देंहटाएं--
अजय यादव
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://merekavimitra.blogspot.com/
समीर जी संस्कृति की ऒट ना लिजिये। मन में क्या लड्डु फूट रहें थे ये तो सब जानते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
सबक सीख लिया.
जवाब देंहटाएंगुरुदेव, मैं हमेशा हर पोस्ट पर उपस्थिति जरूर लगाता हूँ परन्तु कुछ तकनीकी समस्या के चलत्ते टिप्पणी नहीं कर पाता हूँ.
बॉस अगर लड़की के लमे खुले बाल हैं तो कैसे पता लगाया जाए कि कान पर हैण्डसैट लगा है या नहीं?
जवाब देंहटाएंक्या छू कर देख सकते हैं?
मज़ा आ गया.... बहुत बढ़िया लिखा है... बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी कथा बहुत ही सुपाच्य है गुरुदेव बच गये आप...तस्वीर वास्तव में खूबसूरत है...परफ़्यूम की खुशबू भी आ रही है...:)
जवाब देंहटाएंसुनीता(शानू)
शर्ट-वर्ट , स्मार्टनेस-वार्टनेस तो ठीक है भाई , पण असल बात ये कि अपुन बिना टैम खोटी किए सबसे पैले ये बताने का कि अपुन आज का पीस पड़ के फ्लैट हो गया , क्या ? किसी से लिखवाता है क्या बाप ? बोल न , अपुन किसी से नई केने का ?
जवाब देंहटाएंगुरुदेव नमामि,
जवाब देंहटाएंहो न हो आप कहीं न कहीं किसी न किसी डाक्टर से जरूर जुडे हैं..
लोगों के पेट में दर्द होगा तो कहाँ जायेंगे आखिर..
मैं भी एक पेट दर्द मरीज...
पुरुष अक्सर ऐसी खुशफहमियों का शिकार होते रहते है, जिसे लड़कियाँ अक्सर ताड़ भी जाती हैं और बाद में सहेलियों से मिल,बाँट, इकट्ठे होकर खूब खुश होती हैं कि क्या छकाया। यह तो भला हो मोबाईल का!इसलिए बात करने वाली लड़की से भी गफ़लत में आने की चूक न करें।यह अक्सर छकाने का बड़ा तरीका भी है।
जवाब देंहटाएंकोई कन्या आकर्षित न हो तो न सही, पर आप हैं तो सच मी ऐसे ही की आपसे आकर्षित हुए बिना रहा न जाए. "अच्छा खासा शादीशुदा दो जवान बेटों का बाप" ये जुमला आप कितने बार बोल चुके हैं आपको शायद याद न होगा. वैसे बड़ी पुरानी कहावत है की पकड़े जाने पर चोर ही अपनी सफ़ाई देता है जोर शोर से , न की इमानदार.
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसा ही वाक्या एक दिन मेरे साथ भी घट गया...
जवाब देंहटाएंट्रेन में सामने एक सुशील सी कन्या मुझे देख-देख म मंद-मंद मुस्काती जा रही थी.
एक-दो बार तो मैँ झिझका लेकिन फिर झिझक को त्यागते हुए मैँ भी मुस्कुरा दिया...
उसने इशारे-इशारे में मुझे इशारा किया कि वो मेरे पास बैठने को आ रही है...
बाँछे खिल उठी...
सोनीपत स्टेशन आते ही हमने हो-हल्ले के बीच झट से खाली हुई सीट पर बैग रख मानों उसे उसी के लिए आरक्षित कर दिया
लेकिन पास बैठे एक सज्जन से मेरा आने वाला सुख देखा न गया और भडक खडे हुए
गुस्से में शालीनता की सारी हदें लाँघने को तत्पर...
खैर!..कुछ देर बाद पता चला कि वो उन्ही सज्जन की बेटी थी और उन्ही से इशारे में बातें कर रही थी
मान लिया जी मान लिया. काल्पनिक ही मान लिया.
जवाब देंहटाएंassuming ki aap bura nahin maanenge, aapke blog ko padh ke anayas hi ye vichar aaya ki tarkash indibloggies ityadi puraskar jeetna itna mushkil na hoga.
जवाब देंहटाएंमुझे आपसे प्यार हो गया है।
जवाब देंहटाएं@. उसमे बताया है कि महक ऐसी कि रुप खिंचा खिंचा चला आये
जवाब देंहटाएंदादा यह हमारी मर्ज़ी कि काल्पनिक माने या सत्य ......... वैसे कल ही किसी ने कहा था - बोर कर दिया बूढ़े .... तो हमने भी तुरंत टाईप कर दिया था ... बूढ़ा होगा तेरा बाप.. :)
गजबे करते हैं आप तो.. भाभी जी को यह बात पता चली या पुनश्च से काम चल गया... :)
जवाब देंहटाएंऐसा सौभाग्य हमारे जैसे शूरवीर को कभी मिला ही नही... हम सिर्फ तरकस कमान लिए बैठे है...कि अब कोई मिले और हम.... :P
मेरा दुर्भाग्य है... :(