यह पोस्ट कुछ देर मे वापस आ रही है...कृप्या इन्तजार करें.
--समीर लाल 'समीर'
--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
गुरुवार, अप्रैल 27, 2006
प्रभु से बडा प्रभु का नाम: चुनाव संग्राम
प्रभु से बडा प्रभु का नाम: चुनाव संग्राम- दोहे-कुण्डलियों के साथ
"प्रभु से बडा प्रभु का नाम
जपते रहो परिवार का नाम
कृपा अगर तुम पर हो जाये
पाओगे एक टिकट ईनाम."
//१// रायबरेली चुनाव
भईया खडे चुनाव मे, कौनो मुद्दा ना मिल पाय
विदेशी बहू के राग मे, पहिले भी मुँह की खाय.
पहिले भी मुँह की खाय कि कैसे अब जीत सकेंगे
मंदिर वहीं बनाने का क्या फ़िर फ़िर मंत्र जपेंगे
कह 'समीर' कि रथ का भी अब चले है उल्टा पहिया
जमानत बस बच जाये तो समझो जीते रे भईया.
//२// उत्तर प्रदेश चुनाव
अब यूपी के चुनाव की बिटवा सम्हालेंगे कमान
बाकी सब बस बैठ कर, उन पर धर रहे ध्यान.
उन पर धर रहे ध्यान कि नाव अब पार कराओ
बाकी सब तो थक गये तुमहि कुछ उद्धार कराओ
कह 'समीर' कि विपक्ष की हालत हो रही है अजब
कहते जे नादान लईका है का हमे हरायेगा अब.
//३// अब एक कबीर दास जी के दोहे के साथ
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर
फल लागे अति दूर कि हमरे छुटके भईया
यूपी की क्या बात देश की खे दो नईया
नेता लोगन सब दर पे तेरे पंजा लिये खडा
टिकट बस दिलवा दे रे बिटवा लायक हूँ बडा.
//४// बस चलते चलते एक क्रिकेट के नाम
धोनी ने है धुन दिया,चऊआ छक्का मार
सबके दिल मे बस गया, क्या मारत है यार.
क्या मारत है यार कि जरा संभल कर मारो
जे हि उतारेंगे भद्द, अगर तुम कहीं पे हारो
कहे 'समीर' कविराय कि करो आहिस्ता बोहनी
लम्बी दौड लगईओ जरा थम थम के धोनी.
--समीर लाल 'समीर'
"प्रभु से बडा प्रभु का नाम
जपते रहो परिवार का नाम
कृपा अगर तुम पर हो जाये
पाओगे एक टिकट ईनाम."
//१// रायबरेली चुनाव
भईया खडे चुनाव मे, कौनो मुद्दा ना मिल पाय
विदेशी बहू के राग मे, पहिले भी मुँह की खाय.
पहिले भी मुँह की खाय कि कैसे अब जीत सकेंगे
मंदिर वहीं बनाने का क्या फ़िर फ़िर मंत्र जपेंगे
कह 'समीर' कि रथ का भी अब चले है उल्टा पहिया
जमानत बस बच जाये तो समझो जीते रे भईया.
//२// उत्तर प्रदेश चुनाव
अब यूपी के चुनाव की बिटवा सम्हालेंगे कमान
बाकी सब बस बैठ कर, उन पर धर रहे ध्यान.
उन पर धर रहे ध्यान कि नाव अब पार कराओ
बाकी सब तो थक गये तुमहि कुछ उद्धार कराओ
कह 'समीर' कि विपक्ष की हालत हो रही है अजब
कहते जे नादान लईका है का हमे हरायेगा अब.
//३// अब एक कबीर दास जी के दोहे के साथ
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर
फल लागे अति दूर कि हमरे छुटके भईया
यूपी की क्या बात देश की खे दो नईया
नेता लोगन सब दर पे तेरे पंजा लिये खडा
टिकट बस दिलवा दे रे बिटवा लायक हूँ बडा.
//४// बस चलते चलते एक क्रिकेट के नाम
धोनी ने है धुन दिया,चऊआ छक्का मार
सबके दिल मे बस गया, क्या मारत है यार.
क्या मारत है यार कि जरा संभल कर मारो
जे हि उतारेंगे भद्द, अगर तुम कहीं पे हारो
कहे 'समीर' कविराय कि करो आहिस्ता बोहनी
लम्बी दौड लगईओ जरा थम थम के धोनी.
--समीर लाल 'समीर'
ब्लागर डाट काम के नखरे- कुछ शरमाता है
ब्लागर डाट काम ने खाई सिस्ट्म से कुछ मात
नारद पर है पोस्ट दिखे, ब्लाग पर नज़र ना आत.
ब्लाग पर नज़र ना आत कि लगे जैसे शरमाये
सोचा हमहि टेस्ट करें आखिर क्यों नही छ्पाये
इसी वास्ते ये लिखा देखें चिटका लगवा कर
नारद जी क्षमा करें टेस्ट कर रहा एक ब्लागर.
<<इस पोस्ट का उद्देश्य टेस्टिंग मात्र है, सीधा ब्लाग का पता लिखने पर http://udantashtari.blogspot.com/ सबसे नई चुनाव संग्राम वाली पोस्ट नही दिख रही है, साथ ही जब नारद के लिंक पर क्लिक करो http://udantashtari.blogspot.com/2006/04/blog-post_26.html तो पोस्ट तो दिखती है, मगर टिप्पणी जैसा(पोस्ट से भी ज्यादा महत्वपूर्ण :)) पन्ना काम नही कर रहा है.किसी को ब्लागर डाट काम के इस नखरे को झेलने की विधी मालूम हो, तो कृप्या ईमेल द्वारा मदद रवाना करें. sameer.lal AT gmail DOT com>>
--समीर लाल 'समीर'
नारद पर है पोस्ट दिखे, ब्लाग पर नज़र ना आत.
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सोचा हमहि टेस्ट करें आखिर क्यों नही छ्पाये
इसी वास्ते ये लिखा देखें चिटका लगवा कर
नारद जी क्षमा करें टेस्ट कर रहा एक ब्लागर.
<<इस पोस्ट का उद्देश्य टेस्टिंग मात्र है, सीधा ब्लाग का पता लिखने पर http://udantashtari.blogspot.com/ सबसे नई चुनाव संग्राम वाली पोस्ट नही दिख रही है, साथ ही जब नारद के लिंक पर क्लिक करो http://udantashtari.blogspot.com/2006/04/blog-post_26.html तो पोस्ट तो दिखती है, मगर टिप्पणी जैसा(पोस्ट से भी ज्यादा महत्वपूर्ण :)) पन्ना काम नही कर रहा है.किसी को ब्लागर डाट काम के इस नखरे को झेलने की विधी मालूम हो, तो कृप्या ईमेल द्वारा मदद रवाना करें. sameer.lal AT gmail DOT com>>
--समीर लाल 'समीर'
मंगलवार, अप्रैल 25, 2006
एक भोजपुरी टाईप की गज़ल लिखने का प्रयास
मेरा ननिहाल और ददिहाल दोनो ही गोरखपुर, उ.प्र., है मगर मै पैदाईश से लेकर हमेशा जबलपुर, मध्य प्रदेश मे रहा. हमेशा दादी के मुँह से भोजपुरी सुनते थे या माँ पिता जी से, जब वो दादी से बात करें या कोई रिश्तेदार गहन यू.पी. से आया हो.जब कभी गोरखपुर जाना हुआ, तब थोडा और सुना.बस, इतना ही जानता हूँ भोजपुरी के बारे मे. मगर है यह मेरी भाषा, और मुझे अच्छी भी लगती है. अब जितनी भी जानकारी है और जैसी भोजपुरी (हिन्दी मिक्स) मै बोल सकता हूँ, के आधार पर, बस सोचा क्यूँ ना कुछ अलग सा किया जाये और फ़िर उठाई कलम, और शुरु.बतायें, कैसा रहा यह प्रयास:
नज़रन के तुहरे तीर
-------------------------
नज़रन के तुहरे तीर इहर दिलवा मा लगेला
धडकन मे भईल पीर बरत जियरा सा लगेला
ठुमका लगावत चाल की है बात का कहिन
वनवा मे नाचत जेसन कौनो मयूरा सा लगेला
छतियन पे खडी टिकुर टिकुर ताकती रहिन
रतिया मे वो चमकत कौनो चंदरा सा लगेला
जुल्फ़ि उडत हवाओं मा हररहरर करत रहिन
बदरी उठी है किल्लोल कौनो बदरा का लगेला
खुशबु तोहरे बदन की यूँ छितरात जा बसिन
गेंदा चमेली से सजत कौनो गज़रा सा लगेला
नाम सुन 'समीर' का भौं सिकोड सी लिहिन
हमका तो बुझात तुहार कौनो नखरा सा लगेला.
--समीर लाल 'समीर'
नज़रन के तुहरे तीर
-------------------------
नज़रन के तुहरे तीर इहर दिलवा मा लगेला
धडकन मे भईल पीर बरत जियरा सा लगेला
ठुमका लगावत चाल की है बात का कहिन
वनवा मे नाचत जेसन कौनो मयूरा सा लगेला
छतियन पे खडी टिकुर टिकुर ताकती रहिन
रतिया मे वो चमकत कौनो चंदरा सा लगेला
जुल्फ़ि उडत हवाओं मा हररहरर करत रहिन
बदरी उठी है किल्लोल कौनो बदरा का लगेला
खुशबु तोहरे बदन की यूँ छितरात जा बसिन
गेंदा चमेली से सजत कौनो गज़रा सा लगेला
नाम सुन 'समीर' का भौं सिकोड सी लिहिन
हमका तो बुझात तुहार कौनो नखरा सा लगेला.
--समीर लाल 'समीर'
सोमवार, अप्रैल 24, 2006
कुण्डलियों की सी प्रस्तुति: एक राजनीति के नाम
पुनः भावनाओं को आहत न करें, मेरा कोई भी प्रयास इस दिशा मे नही है और न ही किसी राजनीति के तरीके के समर्थन या विरोध मे,.
//१// रथ यात्रा-पार्ट १
रथ यात्रा देखन पहुँचे हम मित्रन के साथ
गधे गधे तो खुब दिखे घोडे नजर ना आत.
घोडे नजर ना आत कि रथ पर बैठे ले जंतर
घुटी बनात पिलात सबहिं को देश सुरक्षा मंतर
अब आने वाली पीढी को सिखला दो ये सत
पाठ्य पुस्तकों मे बदला दो क्या होता है रथ.
//२// रथ यात्रा-पार्ट २
घर पितामह रह रये घुटनन खुब पिरात
चेलन देश भर घुमते लेकर रथ को साथ
लेकर रथ को साथ कि बिल्कुल भीड न आई
पितामह के आशिष बिन सबने मूँह की खाई
चलते जाते सोचते अब तो ओखल मे है सर
कैसे मुँह दिखायेंगे बीच मे लौट जाये जो घर.
//३// एक नायक पर कातिलाना हमले पर
नायक एक लड रहा, काल के संग मे आज,
दुआ तुम्हारे संग है, तू जीते हो हमको नाज.
तू जीते हो हमको नाज कि तुझको चुनाव हरायें
बीच बाज़ार खडा कर एकदम सिर को झुकवायें
मगर आज तेरे जीवन गीत के हम हैं एक गायक
तुझसे ही है हर मज़ा वरन ये क्या खेल है नायक.
<<धिक्कार है इस कातिलाना हमले पर, और ईश्वर से शीघ्र स्वास्थय लाभ की प्रार्थना>>
--समीर लाल 'समीर'
//१// रथ यात्रा-पार्ट १
रथ यात्रा देखन पहुँचे हम मित्रन के साथ
गधे गधे तो खुब दिखे घोडे नजर ना आत.
घोडे नजर ना आत कि रथ पर बैठे ले जंतर
घुटी बनात पिलात सबहिं को देश सुरक्षा मंतर
अब आने वाली पीढी को सिखला दो ये सत
पाठ्य पुस्तकों मे बदला दो क्या होता है रथ.
//२// रथ यात्रा-पार्ट २
घर पितामह रह रये घुटनन खुब पिरात
चेलन देश भर घुमते लेकर रथ को साथ
लेकर रथ को साथ कि बिल्कुल भीड न आई
पितामह के आशिष बिन सबने मूँह की खाई
चलते जाते सोचते अब तो ओखल मे है सर
कैसे मुँह दिखायेंगे बीच मे लौट जाये जो घर.
//३// एक नायक पर कातिलाना हमले पर
नायक एक लड रहा, काल के संग मे आज,
दुआ तुम्हारे संग है, तू जीते हो हमको नाज.
तू जीते हो हमको नाज कि तुझको चुनाव हरायें
बीच बाज़ार खडा कर एकदम सिर को झुकवायें
मगर आज तेरे जीवन गीत के हम हैं एक गायक
तुझसे ही है हर मज़ा वरन ये क्या खेल है नायक.
<<धिक्कार है इस कातिलाना हमले पर, और ईश्वर से शीघ्र स्वास्थय लाभ की प्रार्थना>>
--समीर लाल 'समीर'
शुक्रवार, अप्रैल 21, 2006
कुछ नेतागिरी की चाहत मे कुण्डलियाँ
आज फिर जाग उठी नेता बनने की चाहत, कई बार लगता है यही एक रास्ता है ऐश के साथ देश वापस आने का:(मात्राओं की गल्ती मत निकालियेगा, नेतागिरी के हिसाब से ये नगण्य टाईप की गल्ती है, वो भी अगर मानें तब) :) :
//१//
कल रात सपने मे मेरे, आये परम पीठाधीश
हाथ धर सिर पर हमरे, दिन्हें खुब आशीष.
दिन्हें खुब आशीष,कि बोले भारत आ जाओ
नेक कर्म कुछ करो, कि नेता बन जाओ.
हम पूछें कि कैसे करें वोट जुगाड का हल
नोट बाँध कर ले आना बाकि देखेंगे कल.
//२//
नोट बाँध कर आये हैं अब बतलाओ कुछ चाल
कैसे चुनाव निकालें अब तुम्हि संभालो हाल.
अब तुम्हि संभालो हाल कि बेटा रिक्शा मंगवा ले
बैठ शहर भर घूम और उको रथ नाम दिला दे
कहो शहर सुरक्षा को है पहुँची बहूत जबरस्त चोट
वोट उसहि को देना भईये जौन पहूँचाये है नोट.
//३//
भईया की पहचान का नारा, लिये हुये है नाम
इनको जानो ऐसे जैसे, पेट मे बच्चा मूँह मे पान.
पेट मे बच्चा मूँह मे पान जरा कुछ फ़ितरत जानो
करवा देंगे ऐश अगर तुम हमें अपना नेता मानो.
किसी को तो दोगे तुम अपने वोट का लगईया
हम भी बुरे नही हैं फ़िर क्यूँ नाराज़ हो भईया.
--समीर लाल 'समीर'
अप्रेल, २००६
//१//
कल रात सपने मे मेरे, आये परम पीठाधीश
हाथ धर सिर पर हमरे, दिन्हें खुब आशीष.
दिन्हें खुब आशीष,कि बोले भारत आ जाओ
नेक कर्म कुछ करो, कि नेता बन जाओ.
हम पूछें कि कैसे करें वोट जुगाड का हल
नोट बाँध कर ले आना बाकि देखेंगे कल.
//२//
नोट बाँध कर आये हैं अब बतलाओ कुछ चाल
कैसे चुनाव निकालें अब तुम्हि संभालो हाल.
अब तुम्हि संभालो हाल कि बेटा रिक्शा मंगवा ले
बैठ शहर भर घूम और उको रथ नाम दिला दे
कहो शहर सुरक्षा को है पहुँची बहूत जबरस्त चोट
वोट उसहि को देना भईये जौन पहूँचाये है नोट.
//३//
भईया की पहचान का नारा, लिये हुये है नाम
इनको जानो ऐसे जैसे, पेट मे बच्चा मूँह मे पान.
पेट मे बच्चा मूँह मे पान जरा कुछ फ़ितरत जानो
करवा देंगे ऐश अगर तुम हमें अपना नेता मानो.
किसी को तो दोगे तुम अपने वोट का लगईया
हम भी बुरे नही हैं फ़िर क्यूँ नाराज़ हो भईया.
--समीर लाल 'समीर'
अप्रेल, २००६
सोमवार, अप्रैल 17, 2006
चलो आज़ पीते हैं...
मज़हब, मज़हब के ठेकेदार...सब अपने आप मे पूरी वज़ह हैं कि हम पीते हैं.
रुप हंस 'हबीब' जी, जो आज की गज़ल की दुनिया के एक सम्मानित हस्ताक्षर हैं,
ने मुझे इस गज़ल की जमीन दी और फ़िर इस गज़ल को विशेष आशिष;
आप भी गौर फ़रमायें:
चलो आज़ पीते हैं...
उठाओ जाम मोहब्बत के नाम पीते है <(हबीब जी की पंक्ति)>
बहके उन हसीं लम्हों के नाम पीते हैं.
चमन मे यूँ ही बहकी मदहोश बहार रहे
हर फ़ूल से आती खुशबू के नाम पीते हैं.
मानवता की कहीं अब न बाकी उधार रहे
जपते मंत्रित उन मनको के नाम पीते हैं.
जुडते हर एक मिसरों से दिल को करार रहे
तेरे मिसरे से बनी गज़ल के नाम पीते हैं.
गली मे बसते झूठे मज़हब के ठेकेदार रहे
उनको होश मे लाने की कोशिश के नाम पीते हैं.
आती नसल को याद वो खंडहर मज़ार रहे
फ़र्जी मज़हब की मिटती हस्ती के नाम पीते हैं.
--समीर लाल 'समीर'
रुप हंस 'हबीब' जी, जो आज की गज़ल की दुनिया के एक सम्मानित हस्ताक्षर हैं,
ने मुझे इस गज़ल की जमीन दी और फ़िर इस गज़ल को विशेष आशिष;
आप भी गौर फ़रमायें:
चलो आज़ पीते हैं...
उठाओ जाम मोहब्बत के नाम पीते है <(हबीब जी की पंक्ति)>
बहके उन हसीं लम्हों के नाम पीते हैं.
चमन मे यूँ ही बहकी मदहोश बहार रहे
हर फ़ूल से आती खुशबू के नाम पीते हैं.
मानवता की कहीं अब न बाकी उधार रहे
जपते मंत्रित उन मनको के नाम पीते हैं.
जुडते हर एक मिसरों से दिल को करार रहे
तेरे मिसरे से बनी गज़ल के नाम पीते हैं.
गली मे बसते झूठे मज़हब के ठेकेदार रहे
उनको होश मे लाने की कोशिश के नाम पीते हैं.
आती नसल को याद वो खंडहर मज़ार रहे
फ़र्जी मज़हब की मिटती हस्ती के नाम पीते हैं.
--समीर लाल 'समीर'
रविवार, अप्रैल 16, 2006
कंप्युटर कुण्डलियाँ
अब जब शुकुल जी कुण्डलियाँ लिखने की तैयारी कर ही रहे हैं और शायद मेरी कुण्डलियों की दुकान मंदी खा जाये, मैने सोचा कि उनके पहले ही एक बार फ़िर अवतरित हो जाऊं, बाद मे जाने क्या हाल हो. तो इस बार सुनें, कंप्युटर कुण्डलियाँ और हाँ, इस बार दोहे भी खुद के, न.३ कुण्डली जीतू भाई के लिये विशेष, वो फ़ुर्सत मे छतियाना से प्रभावित:)
कंप्युटर कुण्डलियाँ
//१//
विद्या ऐसी लिजिए जिसमे कंप्युटर का अभ्यास
खटर खटर करते रहो लोगन शिश झूकात.
लोगन शिश झूकात याकि बात रहि कुछ खास
इंजिनियर तुमको कहें हो भले टेंथ हि पास.
कह 'समीर' कि बाकी सब बेकार और मिथ्या
अमरिका झट पहूँचाये, है गज़ब की विद्या.
//२//
शादी ब्याह की साइट लाई गज़ब बहार
का करिहे माँ बाप भी जब बच्चे हि तैयार
जब बच्चे हि तैयार भई चैटन पर बातें
बैठ कंप्युटर खोलहि बीतीं जग जग रातें.
कह 'समीर' इंटरनेट ने एसि हवा चला दी
माँ बाप घरहिं रहें हम खुदहि करिहें शादी.
//३//
किताब मे लुकाई के, प्रेम पत्र पहूँचात
मार खाते घूम रहे जबहि पकड में आत.
जबहि पकड मे आत कि हम कैसे बच पाते
कंप्युटर ना आये थे जो ईमेल भिजाते
'समीर' अब तो पढने का नेटहि पर हिसाब
बेकग्राउंड मे चैट चले, सामने रहे किताब.
//४//
कंप्युटर के सामने तुम बैठो पांव पसार
समाचार खुब बांचियें पत्नि ना पाये भांप.
पत्नि ना पाये भांप मांगे चाय की करिये
सिर रात दबाये कहे अब काम मत करिये
कहे 'समीर' कि भईये बडा सफ़ल ये मंतर
उनको मेरा नमन जे बनाये ये कंप्युटर.
--समीर लाल 'समीर'
कंप्युटर कुण्डलियाँ
//१//
विद्या ऐसी लिजिए जिसमे कंप्युटर का अभ्यास
खटर खटर करते रहो लोगन शिश झूकात.
लोगन शिश झूकात याकि बात रहि कुछ खास
इंजिनियर तुमको कहें हो भले टेंथ हि पास.
कह 'समीर' कि बाकी सब बेकार और मिथ्या
अमरिका झट पहूँचाये, है गज़ब की विद्या.
//२//
शादी ब्याह की साइट लाई गज़ब बहार
का करिहे माँ बाप भी जब बच्चे हि तैयार
जब बच्चे हि तैयार भई चैटन पर बातें
बैठ कंप्युटर खोलहि बीतीं जग जग रातें.
कह 'समीर' इंटरनेट ने एसि हवा चला दी
माँ बाप घरहिं रहें हम खुदहि करिहें शादी.
//३//
किताब मे लुकाई के, प्रेम पत्र पहूँचात
मार खाते घूम रहे जबहि पकड में आत.
जबहि पकड मे आत कि हम कैसे बच पाते
कंप्युटर ना आये थे जो ईमेल भिजाते
'समीर' अब तो पढने का नेटहि पर हिसाब
बेकग्राउंड मे चैट चले, सामने रहे किताब.
//४//
कंप्युटर के सामने तुम बैठो पांव पसार
समाचार खुब बांचियें पत्नि ना पाये भांप.
पत्नि ना पाये भांप मांगे चाय की करिये
सिर रात दबाये कहे अब काम मत करिये
कहे 'समीर' कि भईये बडा सफ़ल ये मंतर
उनको मेरा नमन जे बनाये ये कंप्युटर.
--समीर लाल 'समीर'
शुक्रवार, अप्रैल 14, 2006
मंदिर से अज़ान
आज़ फ़िर एक धमाका, अबकी मज्जिद मे.
एक महिने के भीतर,
कभी मंदिर और कभी मज्जिद,
मगर मरेंगे तो पहले इंसान,
फ़िर ही तो होंगे वो हिंदू या मुसलमान:
मंदिर से अज़ान
अमन की चाह मे
दुनिया नई बना दी जाये
रामायण और कुरान छोड के
इन्सानियत आज पढा दी जाये.
जहां मे रोशनी करता
चिरांगा आसमां का है
सरहद को बांटती रेखा
क्यूँ ना आज मिटा दी जाये.
रिश्तों मे दरार डालती
सियासी ये किताबें हैं
ईद के इस मौके पे इनकी
होली आज जला दी जाये.
आपस मे बैर रखना
धर्म नही सिखाता है
मंदिर के कमरे से 'समीर'
अज़ान आज लगा दी जाये.
--समीर लाल 'समीर'
एक महिने के भीतर,
कभी मंदिर और कभी मज्जिद,
मगर मरेंगे तो पहले इंसान,
फ़िर ही तो होंगे वो हिंदू या मुसलमान:
मंदिर से अज़ान
अमन की चाह मे
दुनिया नई बना दी जाये
रामायण और कुरान छोड के
इन्सानियत आज पढा दी जाये.
जहां मे रोशनी करता
चिरांगा आसमां का है
सरहद को बांटती रेखा
क्यूँ ना आज मिटा दी जाये.
रिश्तों मे दरार डालती
सियासी ये किताबें हैं
ईद के इस मौके पे इनकी
होली आज जला दी जाये.
आपस मे बैर रखना
धर्म नही सिखाता है
मंदिर के कमरे से 'समीर'
अज़ान आज लगा दी जाये.
--समीर लाल 'समीर'
मंगलवार, अप्रैल 11, 2006
अनुगूँज १८: मेरे जीवन में धर्म का महत्व: अपना धर्म चलायें
यह अनुगूँज मे मेरा पहला प्रयास है, वो भी कुण्डली के माध्यम से, एकदम नया तरीका: :)
कबीर मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर
पाछे पाछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर
कहत कबीर कबीर कि भईये ये कैसा जंतर
धर्म बना सिर्फ़ नाम और साधू सब बंदर
कह समीर टीवी पर हम खेलें रंग अबीर
अपना धर्म चलायें किनारे खडे रहें कबीर.
--समीर लाल 'समीर'
कबीर मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर
पाछे पाछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर
कहत कबीर कबीर कि भईये ये कैसा जंतर
धर्म बना सिर्फ़ नाम और साधू सब बंदर
कह समीर टीवी पर हम खेलें रंग अबीर
अपना धर्म चलायें किनारे खडे रहें कबीर.
--समीर लाल 'समीर'
दुआ के वास्ते जिस मुकां पे आया हूँ
दुआ के वास्ते जिस मुकां पे आया हूँ
वो तेरा घर है जिस मकां पे आया हूँ.
गुजारी तन्हा रातें बिछुड कर कितनी
हिसाब उन रातों का तमाम ले आया हूँ.
ज़ब्त बातें इस जुबां पर कितनी
गज़ल मे ढाल तेरे नाम ले आया हूँ.
फ़िर ना होगी 'समीर' जुदाई अपनी
साथ अपने यकीने-जहान ले आया हूँ.
--समीर लाल 'समीर'
वो तेरा घर है जिस मकां पे आया हूँ.
गुजारी तन्हा रातें बिछुड कर कितनी
हिसाब उन रातों का तमाम ले आया हूँ.
ज़ब्त बातें इस जुबां पर कितनी
गज़ल मे ढाल तेरे नाम ले आया हूँ.
फ़िर ना होगी 'समीर' जुदाई अपनी
साथ अपने यकीने-जहान ले आया हूँ.
--समीर लाल 'समीर'
सोमवार, अप्रैल 10, 2006
चिंकारा बनाम इंसान -कुण्डली
आज सलमान खान को चिंकारा के शिकार के आरोप मे ५ साल की जोधपुर मे सजा सुनाई गई। सलमान जोधपुर जेल मे भेज दिये गये।उसी के मद्देनज़र ये कुण्डलीः
चिंकारा बनाम इंसान
चिंकारा की फोटुआ दई पूजा मे टांग
भूले से गोली चले प्राण तजे श्रीमान
प्राण तजे श्रीमान पांच सालों को अंदर
जोधपुर की गरमी से डर जाये सिकंदर
बचें वो जिनने कितने इंसानों को मारा
तुझको हम न छुडहिं तूने तो मारा चिंकारा।
बचाव कवचः मेरा उद्देश्य किसी ग्रुप या संप्रदाय या व्यवस्था को ठेस पहूँचाना नही है।
यदि मेरी लेखनी से किसी की भावनायें आहत हुई हों,तो क्षमापार्थी हूँ।
चिंकारा बनाम इंसान
चिंकारा की फोटुआ दई पूजा मे टांग
भूले से गोली चले प्राण तजे श्रीमान
प्राण तजे श्रीमान पांच सालों को अंदर
जोधपुर की गरमी से डर जाये सिकंदर
बचें वो जिनने कितने इंसानों को मारा
तुझको हम न छुडहिं तूने तो मारा चिंकारा।
बचाव कवचः मेरा उद्देश्य किसी ग्रुप या संप्रदाय या व्यवस्था को ठेस पहूँचाना नही है।
यदि मेरी लेखनी से किसी की भावनायें आहत हुई हों,तो क्षमापार्थी हूँ।
शनिवार, अप्रैल 08, 2006
मेरा ऊँचा साहित्य पढने का प्रयास क्या कर गया!
आज़कल जब भी कुछ पढता हूँ, दिमाग दिशा ही बदल लेता है.अब देखिये, आज़ स्नान ध्यान कर के सोचा कुछ ऊँचा साहित्य पढूँ और लगा पढने "अमीर खुसरो" को. देखिये, क्या मैने पढा:
अब दिमाग तो दिमाग, चल पडा अपनी रफ़्तार से, बहुत समझाया, नही माना. आप भी देखें कि बिल्कुल हाथ से निकला जा रहा है और क्या क्या लिखता है कुण्डलियाँ टाईप, कुण्डलियाँ इसलिये नही कि मात्रा का टोटल (सही मात्रा की जानकारी के लिये यहाँ http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/Chhand.htm देखें, बडी सरलता से समझाया है पूर्णिमा जी ने) नही बैठ पा रहा है(वैसे ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ ही नही हो रहा, अच्छे अच्छे दिग्गजों के साथ यही हुआ है)...बस वहीं चुक गये. :):
//१//
कनाडा की ठंड
खुसरो दरया प्रेम का उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डुब गया जो डुबा सो पार
जो डुबा सो पार हम तो तैर ना पायें
नाव खडी हो पास तबही डुबकी लगवायें
कहे 'समीर' कविराय इस मौसम मे उतरो
ठंड नही क्या वहां जहां रहते हैं खुसरो.
//२//
हेयर स्टाईल
गोरी सोवय सेज पै मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने सांझ भइ चहुं देस
सांझ भइ चहुं देस यहाँ तो भया सबेरा
अमरीका है भाई नही ये देस वो तेरा
कहे 'समीर' कविराय लगे है देसी छोरी
छोटे रखते केस यहां तो सबहिं गोरी.
//३//
खीर की चाह
खीर पकाइ जतन से चरखा दिया जला
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा
तू बैठी ढोल बजा और मै गाऊँ गाना
फ़िर कब खीर बनाओगी बतलाओ जाना
कहे 'समीर' कविराय कि तेरी कोहू न समझे पीर
कुत्ते ने जो छोडी है उसहि से गटका ले कुछ खीर.
//४//
नुस्खा
खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग
तन मेरो मन पीउ को दोऊ भये एक रंग
दोऊ भये एक रंग पढहिं हम गोरी से ब्याहे
जागत हर एक रैन रंग श्यामल ही पाये
कहे 'समीर' कविराय रंग ऐसे ना उजरो
धरे और कोई नुस्खा हो तो दे दो खुसरो.
बस, बहुत हो गया...तो मैने किताब बंद कर दी..नई किताब खोली और अबके हाथ लगे 'कबीर'..हर दोहा पढूँ और एक ताजी खबर याद आये और बने एक और कुण्डली..पढें:
अब ताज़ा हेड लाईन्स के साथ कुण्डली:
//१//
योगा महात्म
कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय.
बहरा हुआ खुदाय उन्हे हरिद्वार भिजाओ
बिन दवा के योगा से उपचार कराओ.
कहे 'समीर' कविराय कि ऐ भोले शंकर
जो योगा ना कर पाये उसे तुम मारो कंकर.
(// योगा=योग का अंग्रेजी स्वरुप//)
//२//
बुश की भारत यात्रा
जाति न पुछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का पडा रहने दो म्यान.
पडा रहने दो म्यान ये अब ना काम करेगी
अमरीकी मिसाईल से आखिर कहाँ लडेगी
कहे 'समीर' कविराय कि भुनाओ अपनी पाती
साहब से तुम डील कराओ ना पूछो जाति.
//३//
मेरठ मे मज़नू
पोथी पढ पढ जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय.
पढे सो पंडित होय नही तो रोते रहना
जो रस्ते मिल जाये उसी से इलू कहना
कहे 'समीर' कविराय कि कथा मेरठ की होती
तब मै भी कहता कि बेटा तू पढ ले पोथी.
(// इलू=I love you..://))
//४//
बनारस मे बम धमाका
ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोये
अपना तन शीतल करे औरन को सुख होए.
औरन को सुख होए इसी से लूटिया डुबी
हिम्मत इतनी बढी कि बम बन कर के फूटी
कहे 'समीर' कविराय कि ये हरकत है जैसी
आतंक भी कंप जाये सजा दो इनको ऐसी.
और लिख्नना था मगर दोहा कहाँ कहाँ से लाऊँ.कुछ गैरत ने भी झकझोरा कि कब तक उधार लेते रहोगे, मन कहने लगा:
दोहे खुद के सीखिये, कब तक लिखें कबीर
खुसरो भी अब ना रहे,अब का करें समीर.
अब का करें समीर कि अब खुद ही सीखेंगे
यहाँ वहाँ से टीप कछहु तो लिख ही लेंगे
कहे 'समीर' कविराय तबहि हम मनहिं लोहा
कुण्डलियां जब लिखें लगा कर अपना दोहा.
अब आगे से खुद के दोहे भी लिखूँगा, झेलने तैयार रहिये.
-----------------------------------------------
बचाव कवच: इस पोस्ट से अगर किसी की भावना को ठेस पहुँची हो ( मय बुश के) तो माफ़ करियेगा. बिना माफ़ी मांगे गुजारा भी तो नही है.
बस अब आज के लिये इतना ही .बाकी फ़िर कभी.
अब दिमाग तो दिमाग, चल पडा अपनी रफ़्तार से, बहुत समझाया, नही माना. आप भी देखें कि बिल्कुल हाथ से निकला जा रहा है और क्या क्या लिखता है कुण्डलियाँ टाईप, कुण्डलियाँ इसलिये नही कि मात्रा का टोटल (सही मात्रा की जानकारी के लिये यहाँ http://www.anubhuti-hindi.org/kavyacharcha/Chhand.htm देखें, बडी सरलता से समझाया है पूर्णिमा जी ने) नही बैठ पा रहा है(वैसे ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ ही नही हो रहा, अच्छे अच्छे दिग्गजों के साथ यही हुआ है)...बस वहीं चुक गये. :):
//१//
कनाडा की ठंड
खुसरो दरया प्रेम का उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डुब गया जो डुबा सो पार
जो डुबा सो पार हम तो तैर ना पायें
नाव खडी हो पास तबही डुबकी लगवायें
कहे 'समीर' कविराय इस मौसम मे उतरो
ठंड नही क्या वहां जहां रहते हैं खुसरो.
//२//
हेयर स्टाईल
गोरी सोवय सेज पै मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने सांझ भइ चहुं देस
सांझ भइ चहुं देस यहाँ तो भया सबेरा
अमरीका है भाई नही ये देस वो तेरा
कहे 'समीर' कविराय लगे है देसी छोरी
छोटे रखते केस यहां तो सबहिं गोरी.
//३//
खीर की चाह
खीर पकाइ जतन से चरखा दिया जला
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा
तू बैठी ढोल बजा और मै गाऊँ गाना
फ़िर कब खीर बनाओगी बतलाओ जाना
कहे 'समीर' कविराय कि तेरी कोहू न समझे पीर
कुत्ते ने जो छोडी है उसहि से गटका ले कुछ खीर.
//४//
नुस्खा
खुसरो रैन सुहाग की जागी पी के संग
तन मेरो मन पीउ को दोऊ भये एक रंग
दोऊ भये एक रंग पढहिं हम गोरी से ब्याहे
जागत हर एक रैन रंग श्यामल ही पाये
कहे 'समीर' कविराय रंग ऐसे ना उजरो
धरे और कोई नुस्खा हो तो दे दो खुसरो.
बस, बहुत हो गया...तो मैने किताब बंद कर दी..नई किताब खोली और अबके हाथ लगे 'कबीर'..हर दोहा पढूँ और एक ताजी खबर याद आये और बने एक और कुण्डली..पढें:
अब ताज़ा हेड लाईन्स के साथ कुण्डली:
//१//
योगा महात्म
कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय.
बहरा हुआ खुदाय उन्हे हरिद्वार भिजाओ
बिन दवा के योगा से उपचार कराओ.
कहे 'समीर' कविराय कि ऐ भोले शंकर
जो योगा ना कर पाये उसे तुम मारो कंकर.
(// योगा=योग का अंग्रेजी स्वरुप//)
//२//
बुश की भारत यात्रा
जाति न पुछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का पडा रहने दो म्यान.
पडा रहने दो म्यान ये अब ना काम करेगी
अमरीकी मिसाईल से आखिर कहाँ लडेगी
कहे 'समीर' कविराय कि भुनाओ अपनी पाती
साहब से तुम डील कराओ ना पूछो जाति.
//३//
मेरठ मे मज़नू
पोथी पढ पढ जग मुआ पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय.
पढे सो पंडित होय नही तो रोते रहना
जो रस्ते मिल जाये उसी से इलू कहना
कहे 'समीर' कविराय कि कथा मेरठ की होती
तब मै भी कहता कि बेटा तू पढ ले पोथी.
(// इलू=I love you..://))
//४//
बनारस मे बम धमाका
ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोये
अपना तन शीतल करे औरन को सुख होए.
औरन को सुख होए इसी से लूटिया डुबी
हिम्मत इतनी बढी कि बम बन कर के फूटी
कहे 'समीर' कविराय कि ये हरकत है जैसी
आतंक भी कंप जाये सजा दो इनको ऐसी.
और लिख्नना था मगर दोहा कहाँ कहाँ से लाऊँ.कुछ गैरत ने भी झकझोरा कि कब तक उधार लेते रहोगे, मन कहने लगा:
दोहे खुद के सीखिये, कब तक लिखें कबीर
खुसरो भी अब ना रहे,अब का करें समीर.
अब का करें समीर कि अब खुद ही सीखेंगे
यहाँ वहाँ से टीप कछहु तो लिख ही लेंगे
कहे 'समीर' कविराय तबहि हम मनहिं लोहा
कुण्डलियां जब लिखें लगा कर अपना दोहा.
अब आगे से खुद के दोहे भी लिखूँगा, झेलने तैयार रहिये.
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बचाव कवच: इस पोस्ट से अगर किसी की भावना को ठेस पहुँची हो ( मय बुश के) तो माफ़ करियेगा. बिना माफ़ी मांगे गुजारा भी तो नही है.
बस अब आज के लिये इतना ही .बाकी फ़िर कभी.
गुरुवार, अप्रैल 06, 2006
महाकवि Robert Frost भाग ४: महा तपस्वी-एक नज़रिया
मेरे अंग्रेजी के सबसे पसंदीदा कवि Robert Frost की एक और कविता "Devotion" ने फ़िर दरवाज़ा खटखटाया. १९२८ मे ४ लाईन मे यह लिख गये. देखा, पढा, फ़िर से पढा और फ़िर से पढा-संदेशा तलाशा और 'समीर' चल पडे आपको बताने. मात्र मेरी समझ या नज़रिया है, गहराई मे छिपे संदेशों को खोजने की.इसी लिहाज़ से कविता पढता हूँ कि भईया आखिर क्या कहना चाह रहे हैं, क्या अंर्तद्वंद चल रहा था, उस वक्त उनके मन मे.
Devotion
The heart can think of no devotion
Greater than being shore to the ocean--
Holding the curve of one position,
Counting an endless repetition.
--Robert Frost
अब मेरा नज़रिया देखें(चेतावनी: सहमत होना आवश्यक नही है):
महातपी (महा तपस्वी)
महासागर के तट से जाना
महातप क्या कहलाता है.
लहरों का तांता लगता है
हर व्यथा नई सुनाता है.
सबके दुख को आत्मसात कर
हँसना उन्हे सिखाता है
जीने का विश्वास दिला कर
घर वापस भिजवाता है.
तटस्थ महातपी सागर का तट
जीवन सुख इसमे पाता है.
मानव इससे कुछ तो सिखो
'समीर' हूंकार लगाता है.
--समीर लाल 'समीर'
अपना नज़रिया बताना ना भूलें, कि आप Devotion की चार लाइनों मे छिपे संदेश पर क्या सोचते है.
Devotion
The heart can think of no devotion
Greater than being shore to the ocean--
Holding the curve of one position,
Counting an endless repetition.
--Robert Frost
अब मेरा नज़रिया देखें(चेतावनी: सहमत होना आवश्यक नही है):
महातपी (महा तपस्वी)
महासागर के तट से जाना
महातप क्या कहलाता है.
लहरों का तांता लगता है
हर व्यथा नई सुनाता है.
सबके दुख को आत्मसात कर
हँसना उन्हे सिखाता है
जीने का विश्वास दिला कर
घर वापस भिजवाता है.
तटस्थ महातपी सागर का तट
जीवन सुख इसमे पाता है.
मानव इससे कुछ तो सिखो
'समीर' हूंकार लगाता है.
--समीर लाल 'समीर'
अपना नज़रिया बताना ना भूलें, कि आप Devotion की चार लाइनों मे छिपे संदेश पर क्या सोचते है.
सोमवार, अप्रैल 03, 2006
पश्चिम मे देशी: विडंबना के दो चित्र
पश्चिम मे पढाई कुछ इस कदर मंहगी है और साथ ही पढाई के लिये लोन मिलने का सिलसिला इतना सरल, कि अधिकतर बच्चे लोन लेकर ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.वैसे ये एक फ़ैशन भी है...ऎसे मे बिटिया की शादी मे नये आयाम इस लोन को लेकर जुड जाते है, क्योंकि हम कितना भी पश्चिम मे रहें, हैं तो देशी ही, दो चित्रों के माध्यम से अपनी दो विरोधाभाषी बात पेश कर रहा हूँ, आशा है, सब कवर हो जायेंगे.
//चित्र १//
लडके के पिता ने
लडकी के पिता से कहा
लडकी तो आपकी नायाब है
नौकरी मे भी कामयाब है
पसंद वो एकदम हमारी है
इस घर मे उसी की इंतजारी है.
मगर हमे सिर्फ़ नौकरी पेशा
लडकी ही चाहिये...
उसकी पढाई का लोन
आप ही चुकाईये...
जब चुक जाये तब आइयेगा,
फ़िर आगे बात चलाइयेगा.
//चित्र २//
लडके के पिता ने
लडकी के पिता से कहा
लोन की आप चिंता ना करें
बिटिया ने पढा है,
वही तो चुकायेगी,
नौकरी करती है अपनी
जिम्मेदारी उठायेगी.
लडकी के पिता को
बात कुछ जम गई...
और सोच यहाँ थम गई..
चलो अपना लोन भी
बिटिया के नाम कराते हैं..
ऎसॆ रिश्ते बार बार
कहाँ मिल पाते हैं.
--समीर लाल 'समीर'
आपके पास कोई नया नज़रिया हो तो बतायें.
//चित्र १//
लडके के पिता ने
लडकी के पिता से कहा
लडकी तो आपकी नायाब है
नौकरी मे भी कामयाब है
पसंद वो एकदम हमारी है
इस घर मे उसी की इंतजारी है.
मगर हमे सिर्फ़ नौकरी पेशा
लडकी ही चाहिये...
उसकी पढाई का लोन
आप ही चुकाईये...
जब चुक जाये तब आइयेगा,
फ़िर आगे बात चलाइयेगा.
//चित्र २//
लडके के पिता ने
लडकी के पिता से कहा
लोन की आप चिंता ना करें
बिटिया ने पढा है,
वही तो चुकायेगी,
नौकरी करती है अपनी
जिम्मेदारी उठायेगी.
लडकी के पिता को
बात कुछ जम गई...
और सोच यहाँ थम गई..
चलो अपना लोन भी
बिटिया के नाम कराते हैं..
ऎसॆ रिश्ते बार बार
कहाँ मिल पाते हैं.
--समीर लाल 'समीर'
आपके पास कोई नया नज़रिया हो तो बतायें.