शुक्रवार, अप्रैल 21, 2006

कुछ नेतागिरी की चाहत मे कुण्डलियाँ

आज फिर जाग उठी नेता बनने की चाहत, कई बार लगता है यही एक रास्ता है ऐश के साथ देश वापस आने का:(मात्राओं की गल्ती मत निकालियेगा, नेतागिरी के हिसाब से ये नगण्य टाईप की गल्ती है, वो भी अगर मानें तब) :) :


//१//

कल रात सपने मे मेरे, आये परम पीठाधीश
हाथ धर सिर पर हमरे, दिन्हें खुब आशीष.
दिन्हें खुब आशीष,कि बोले भारत आ जाओ
नेक कर्म कुछ करो, कि नेता बन जाओ.
हम पूछें कि कैसे करें वोट जुगाड का हल
नोट बाँध कर ले आना बाकि देखेंगे कल.


//२//

नोट बाँध कर आये हैं अब बतलाओ कुछ चाल
कैसे चुनाव निकालें अब तुम्हि संभालो हाल.
अब तुम्हि संभालो हाल कि बेटा रिक्शा मंगवा ले
बैठ शहर भर घूम और उको रथ नाम दिला दे
कहो शहर सुरक्षा को है पहुँची बहूत जबरस्त चोट
वोट उसहि को देना भईये जौन पहूँचाये है नोट.


//३//

भईया की पहचान का नारा, लिये हुये है नाम
इनको जानो ऐसे जैसे, पेट मे बच्चा मूँह मे पान.
पेट मे बच्चा मूँह मे पान जरा कुछ फ़ितरत जानो
करवा देंगे ऐश अगर तुम हमें अपना नेता मानो.
किसी को तो दोगे तुम अपने वोट का लगईया
हम भी बुरे नही हैं फ़िर क्यूँ नाराज़ हो भईया.

--समीर लाल 'समीर'
अप्रेल, २००६

4 टिप्‍पणियां:

  1. मस्त हो जाओगे गर नेता तुम बन जाओ
    काटो बस तुम फ़ीता, और माल तर खाओ.
    और माल तर खाओ, हो स्विस बैंक में खाता
    खाके माल जो ना ले डकार नेता वही कहलाता.
    वोटर के सामने फ़िर करना तुम एक्टिंग जबरदस्त
    दिन में रहना सद्पुरुष और रात में पी के मस्त.

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  2. बहुत बढिया, विजय भाई.

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  3. neta to hum banjayenge
    lekin na kuch kar jayenge
    sirf jama inn punjiyon ka
    jo ke hoga tumhare hee pasine ki
    kamaiyon se :)

    Wah ! aapki kavita chandon mein waqai bahut acchi lagi...daad hazir hai janab

    cheers
    fiza

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  4. शुक्रिया, फ़िजा जी.
    समीर

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