रविवार, अप्रैल 16, 2006

कंप्युटर कुण्डलियाँ

अब जब शुकुल जी कुण्डलियाँ लिखने की तैयारी कर ही रहे हैं और शायद मेरी कुण्डलियों की दुकान मंदी खा जाये, मैने सोचा कि उनके पहले ही एक बार फ़िर अवतरित हो जाऊं, बाद मे जाने क्या हाल हो. तो इस बार सुनें, कंप्युटर कुण्डलियाँ और हाँ, इस बार दोहे भी खुद के, न.३ कुण्डली जीतू भाई के लिये विशेष, वो फ़ुर्सत मे छतियाना से प्रभावित:)

कंप्युटर कुण्डलियाँ

//१//

विद्या ऐसी लिजिए जिसमे कंप्युटर का अभ्यास
खटर खटर करते रहो लोगन शिश झूकात.
लोगन शिश झूकात याकि बात रहि कुछ खास
इंजिनियर तुमको कहें हो भले टेंथ हि पास.
कह 'समीर' कि बाकी सब बेकार और मिथ्या
अमरिका झट पहूँचाये, है गज़ब की विद्या.

//२//

शादी ब्याह की साइट लाई गज़ब बहार
का करिहे माँ बाप भी जब बच्चे हि तैयार
जब बच्चे हि तैयार भई चैटन पर बातें
बैठ कंप्युटर खोलहि बीतीं जग जग रातें.
कह 'समीर' इंटरनेट ने एसि हवा चला दी
माँ बाप घरहिं रहें हम खुदहि करिहें शादी.

//३//

किताब मे लुकाई के, प्रेम पत्र पहूँचात
मार खाते घूम रहे जबहि पकड में आत.
जबहि पकड मे आत कि हम कैसे बच पाते
कंप्युटर ना आये थे जो ईमेल भिजाते
'समीर' अब तो पढने का नेटहि पर हिसाब
बेकग्राउंड मे चैट चले, सामने रहे किताब.


//४//

कंप्युटर के सामने तुम बैठो पांव पसार
समाचार खुब बांचियें पत्नि ना पाये भांप.
पत्नि ना पाये भांप मांगे चाय की करिये
सिर रात दबाये कहे अब काम मत करिये
कहे 'समीर' कि भईये बडा सफ़ल ये मंतर
उनको मेरा नमन जे बनाये ये कंप्युटर.


--समीर लाल 'समीर'

15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह समीर जी,

    क्या सही लिखते हो आप!!
    मजा आ जाता है आपकी कुँडली बाँच कर.


    आप लिखते रहो,
    हम बाँचते रहे,
    के मजा पढने का हमें यहीं आता है..
    के मजा पढने का हमें यहीं आता है..

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  2. दूर बैठे आपसे, कुण्डलियाँ पढ पाएं
    उनको किजे नमन जिसने, कमप्युटर बनाए, कमप्युटर बनाए, अब इण्टरनेट ने कहर ढाया
    गाँव बन गई दुनियां, गज़ब हैं इसकी माया
    कहे नौसिखीया, आप लिखते रहीये हुजूर
    रसास्वादन करते रहेंगे, भले हो आपसे दूर

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  3. वाह भई,

    विजय भाई और संजय भाई की काव्य प्रतिभा भी बहुत सुंदरता से सामने आई है, बधाई और धन्यवाद.

    समीर लाल

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  4. वाह! अब लगता है कुंडलिया पर भी कुंडली मारनी पड़ेगी!

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  5. अरे, हम तो समझे थे कि बस टाईपिंग चालू है, और अनूप भाई किसी समय भी धमाका करने वाले हैं अपनी कुण्डलियों से..इसी लिये जल्दी जल्दी लिख मारी, इसके पहले कि आपका धमाका हो.:)
    इंतजार है,
    समीर लाल

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  6. आभारी हूँ महावीर जी आपका.मात्र प्रयास करते रहते हैं.
    बहुत धन्यवाद.
    समीर लाल

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  7. वाह ! वाह !!

    इसे कहते हैं इंडक्शन इफ़ेक्ट!...

    लगता है मुझे भी अपनी व्यंज़ल की दुकान बंद कर कुंडली पे कुंडलियाँ या नहीं तो आल्हा का राग अलापना पड़ेगा. :)

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  8. समीर जी, हमारा कविता (पड़ोस वाली नही, हिन्दी कविता) मे हाथ थोड़ा तंग है, या तो कोई कविता सिखाने की पाठशाला बताओ, या फिर गद्य मे ही प्रशंसा सुन लो।

    बहुत सुन्दर कुन्डलियां है, अभी कुन्डली की विस्तृत परिभाषा लिखियेगा तो सही रहेगा। हमे तो पढने मे सही लग रही है, बहुत मजा आ रहा है।हिन्दुस्तान से शुकुल फ़ेंक रहे है और कनाडा से आप, हम बीच कुवैत मे दोनो को झेल रहे है, फिर भी सही है, मजा आ रहा है।

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  9. रवि भाई
    आपके व्यंज़ल की दुकान की छटा ही निराली है, उससे कोई तुलना ही नही बनती, उसे सज़ाये रहें, उसी नुक्कड पर हम भी अपनी कुण्डलियों की गुमटी धीरे धीरे चलाते रहेंगे.
    धन्यवाद
    समीर लाल

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  10. जीतू भाई
    फ़ेंकने का मज़ा भी तभी है, जब कोई झेलने वाला भी उसी तरह उसे झेले.आप अपना धर्म बखुबी निभा रहे हैं. गद्य प्रतिभा मे जो महारत आपको हांसिल है, वो अपने आप मे एक मिसाल है.
    बहुत जल्दी कुण्डलियों के नियम पर मसाला पेश करता हूँ. मसले की सब्जी उठाओ, मसाला मिलाओ और चटपटी कुण्डली तैयार.
    आपका धन्यवाद, आपको मेरी लेखनी पसंद आई.
    समीर लाल

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  11. धन्यवाद, मनीष जी और हितेन्द्र जी.

    समीर लाल

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  12. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है

    नयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -

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  13. सारी कुण्डलियाँ बहुत बढ़िया ...

    किताब मे लुकाई के, प्रेम पत्र पहूँचात
    मार खाते घूम रहे जबहि पकड में आत.

    लगता है तगड़ा अनुभव रहा है ..:):)

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  14. जय हो समीर कम्पूटर बाबा की जय हो ....
    इकदम मस्त. पर अपनी भी पोल पट्टी खोल दी है बच के रहिएगा

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