गरमी का मौसम तो बस चार
महिने में निकल लेता है फिर अगले बरस ही लौट कर आता है. इससे क्या डरना और क्या
परवाह करना. मानव मष्तिक अति खुराफाती होता है, इसने इसको तो चकमा देना सीख ही लिया है. जिससे जो बन पड़ता है वो अखबार से पंखा
झलने से लेकर एसी में सारा समय गुजार राहत पा ही लेता है.
साधन सम्पन्न लोग इसे छुट्टी का मौसम मान कर ठंड़े
पहाड़ों से लेकर ठंड़े विदेशी शहरों में समय बिता आते हैं.
साधन सम्पन्न होने के लिए भी पैसों की या पावर की
गरमी चाहिये. यूँ भी पैसों की और पावर की गरमी की आपसी संगाबीत्ती तो जग जाहिर है ही. मगर ये गरमी इतने आसानी से नहीं जाती. इस गरमी के भोगी इस गरमी से निकलना ही नहीं चाहते. उनके मोह मोह के
धागे रेशमी होते हैं – टूटे नहीं टूटते.
पावर की गरमी बचाये
रखने के लिए दल बदल से लेकर घर बदल तक से उन्हें गुरेज
नहीं रहता. इन्हीं को देख कर एक शायर ने कहा है कि जैसे आग और पानी का कोई साथ
नहीं वैसे ही पावर और शरम का कोई साथ नहीं. कब किसका हाथ थाम लें और कब किसको गले
लगा लें, कौन जाने!! पावर न जाये भले ही बाप और चाचा को गाली बकना पड़ जाये.
दूसरी तरफ पैसे की गरमी. वो भी जो न करा जाये..इस
गरमी को गले से चिपकाये इन्सान का मद और अहंकार उस मुकाम पर पहुँच जाता है जहाँ वो
सोचने लगता है कि मैं तो दुनिया में कुछ भी खरीद सकता हूँ. फिर वो कानून हो, देश हो या देश की सरकार. मगर ये पैसे की गरमी भी जब एक दिन उतरने
लगती है तब या तो लंदन भाग जाना याद आता है वरना तिहाड़ निवास बन जाता है.
एक गरमी और भी होती है जिसे जवानी की गरमी कहते हैं. वो भी उतरते उतरते ही उतरती है और कईयों की ८८ साल की उमर में भी नहीं उतरती. इस गरमी से बौराये
लोगों को हिन्दी साहित्य में दीवाना कहा गया है और सरकारी भाषा में रोमियो.
आजकल एक प्रदेश विशेष में
इस रोमियोयी गरमी को उतारने के वैसे ही विशेष प्रबंध किये गये हैं जैसे मौसम की
गरमी उतारने के लिए जगह जगह सरकारी ठंड़े पीने के पानी की व्यवस्था की जाती है. अतः
ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में यह गरमी कंट्रोल में रहेगी. वो
शायद ये भूल रहे हैं कि सरकारी ठंड़े पानी की मशीनें लगाई तो जरुर जाती है मगर वो
चलती भी हों और उनसे ठंडा पानी भी आता हो, ऐसा अजूबा कब देखने में आता है?
वैसे तो हम बताने निकलें तो
पूरा गरमी का मौसम बीत जाये तरह तरह की गरमियाँ बताते बताते मगर जनहित में बता
नहीं रहे हैं कि हर गरमी के लिए कहीं एक एक नया कानून न चला आये उस गरमी को उतारने
के लिए..
बेहतर हो कि गरमी के मौसम
की गरमी उतारने पर सरकार ध्यान दे ताकि कोई लू से न मरे और कोई किसान सूखे से
परेशान होकर आत्म हत्या न कर ले.
हर घर बिजली, हर घर
पानी...का नारा बुलंद हो तो बात बनें!!
-समीर लाल ’समीर’
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
सुन्दर।
जवाब देंहटाएंनारों में हमारा कोई सानी नहीं है दुनिया में
.. बहुत सही सामयिक प्रस्तुति
सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति महादेवी वर्मा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंवाह ! गर्मी से निजात दिलाने के नायाब नुस्खे..
जवाब देंहटाएंबिलजी पानी का नारा भी दे दिया है अब तो ... ये तो सबसे आसान नारा है देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंपूरा हो तो बात है ...
bahut sundar bahut bahut badhai...
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