रविवार, मार्च 26, 2017

मेरा शहर -स्मार्ट सिटी बनने की राह पर



मैं जिस शहर का वाशिंदा रहा हूँ भारत में, वहाँ के अधिकतर लोगों की कुल जमा पूँजी ही फुरसत है याने कि आराम. मेरा शहर अजब से मिज़ाज के लोगों का शहर है.

साईकिल होते हुए भी उसे हाथ से लुढ़काते हुए पैदल चलने वालों का शहर. सब्जी भाजी खरीदने जाने को काम समझने  वालों का शहर और ऐसे घरेलु काम पर जाते वक्त भी १० मिनट पुलिया पर बैठ कर सुस्ताने वालों का शहर.

सुबह से चाय की दुकान पर बैठ अखबार पढ़कर उसकी खबरों का विश्लेषण करते करते शाम के अखबार के इन्तजार में दिन बिता देने वालों का शहर. बाप दादाओं के छोड़े मकान और दुकान से आने वाले किराये पर सारा जीवन गुजार देने वालों का शहर. मजबूरीवश सादा जीवन उच्च विचार के पालनकर्ताओं का शहर.

दोस्ती और रिश्तेदारी निभा ले जाने वालों का शहर. मुहल्ले और पहचान की हर शादी व्याह, मरनी करनी, पैदाईश में बिना घर द्वार की चिन्ता किये निस्वार्थ हफ्तों आहुत कर देने वालों का शहर.

शहर भर की खबरों को खबर बनाने वालों का शहर.

पुलिया, चबूतरा, पीपल की छांव में बने चौपाल, चाय की दुकान और चौराहों को सुबह से रात तक गुलजार बनाये रखने वालों का शहर.

ऐसे ठेकेदार, जो रेत गिट्टी मुरम स्पलाई से लेकर जमीन और घर को बिकवा व खरीदवा देने का हुनर रखते हैं मगर बस एक ठेका मिलने के इन्तजार में ही चबूतरे पर बैठे मुस्कराते हुए जिन्दगी बसर कर देने वाले ठेकेदारों का शहर.
मूँह में पीक भरे, तम्बाखू का जायका न खराब हो जाये इस हेतु मन के अनगीनित जज्बातों को शब्द दिये बिना उनकी भ्रूण हत्या कर देने वालों का शहर.

हर चेहरा एक चिन्तक का चेहरा..हर चेहरे के रंग हजार...मगर चिन्तन का विषय सदैव अनजान बनाये रखने वालों का शहर.

गंभीर से गंभीर परिस्तिथियों में मुस्कराते रहने और हास्य विनोद के विषयों पर गंभीरता धारण किये रहने वालों का शहर.

स्वच्छ भारत अभियान के लिए मूँह में भरी पान की पीक को बीच सड़क पर थूक कर चेहरे की स्वच्छ सेल्फी खिंचवाने वालों का शहर.

जरुरी से जरुरी काम के लिए भी मिस्ड काल मार कर फोन वापसी के इन्तजार में दिन गुजार देने वालों का शहर.
अपने द्वारा अपने बीच से चुने अपने ही जन प्रतिनिधी को खुदा मान कर सज़दे में शीश नवाते लोगों को शहर…

बारिश में नाला बनी सडक में बंसी लटकाये मछली फंस जाने का इन्तजार करते लोगों का शहर.भीषण गरमी में पट्टे वाला जाँघिया और बनियान पहन कर चौराहे तक चले आने वालों का शहर.

अब इतना कुछ पढ़ कर आपका सोचना स्वभाविक ही है कि मैं आखिर अपने इस शहर का इतना बखान करने में क्यूँ लगा हुआ हूँ?

आपकी सूचना के लिए बता दूँ कि हमारे इस शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चुना गया है. नई योजना है नये अरमान हैं!!

ऐसे में मुझे वो दिन याद आया जब हमारे शहर में ५.८ मेगनिट्य़ूड का भूकंप आया था और शहर का बच्चा बच्चा एकाएक ज्ञानी हो गया था कि एपि सेन्टर, मेगनिट्यूड, आफ्टर शॉक, सेस्मिक ज़ोन, रेक्टर स्केल आदि अर्थ क्वेक रीलेटेड शब्दावली क्या होती है. रिक्शे वाला तक किसी मोटे आदमी के रिक्शे में बैठ जाने से हुये रिक्शा दोलन को ऑफ्टर शॉक से तुलना करके देखने लगा था.

भूकम्प १९९७ में आया था मेरे शहर में. भूकम्प १९९७ में चला गया था मेरे शहर से. फिर सबको उस वक्त घरों के रिपेयर के लिए सरकारी मुआवजे के तौर पर ३००० रुपये के हिसाब से नगद बांट दिया गया था. रसूकदार पूरा ३००० हजार ले आये थे घर में एक इंच की आई दरार के लिए और गरीब जिसकी पूरी झोपड़ी नेस्तनाबूत होकर जमींदराज हो गई थी, वो ३००० रुपये पर अंगूठा लगा कर ३०० रुपये पाकर खुश हो लिया था.

मगर उस वक्त भी मुआवजा बांटने वालों की और अपने बीच से चुने हुए जन प्रतिनिधियों की पौ बारह हो ली थी. उनकी आयकर रिर्टन में उस वर्ष की कृषि से हुई आय को देखकर किसानी करने की इच्छा को गजब बल दिया था हमारे शहर के फुरसत में दिन गुजारते लोगों को मगर प्रश्न वही बना रहा कि आखिर पैसा ऊगायें तो ऊगायें कैसे? कृषि से आय दिखायें तो दिखायें कैसे?

कृषि से हुई आय आयकर मुक्त जो होती है,,,काहे नहीं रिझायेगी किसी को भी...

अब यह स्मार्ट सिटी का नया झटका किसको क्या देकर जाता है, कौन जाने!! मगर शहर भूकम्प के पहले जैसा था...वैसा ही भूकम्प के बाद भी रह आया..कहते हैं सरकार ने ३०० करोड़ का मुआवजा बांटा था.

स्मार्ट सिटी के लिए ितने का बजट प्रवाधान है, पता करता हूँ आज ही!! कृषि से हुई आय पर आयकर के कोई नियम तो बदले भी नहीं है..शायद कोई उपाय निकल आये!!


-समीर लाल ’समीर’

यह आलेख भोपाल से प्रकाशित होने वाले अखबार सुबह सवेरे के २६ मार्च २०१७ के अंक में:

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व रंगमंच दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. वाह! अद्भुत गाथा इस अनोखे शहर की..खुदा इसे ऐसे ही बना रहने दे..

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