रविवार, जून 02, 2013

देखता हूँ मुड़ कर

इसे पढ़िये और एक नया प्रयोग किया है तो सुनिये यू ट्यूब पर….

Stairs-small

देखता हूँ मुड़ कर

और

सोचता हूं उम्र की इस दहलीज़ तक

पहुँचने के लिए

सीढ़ी दर सीढ़ी का सफर

सीढ़ी कहूँ इन्हें या

कहूँ वक्त के साथ

नित बनते बिगड़ते रिश्तों की

कहानी की इक किताब के पन्ने

या कह दूँ इसे

कुछ पा लेने

और कुछ खो देने की

हिसाब की बही..

जी चाहता है

उन्हीं सीढ़ियों तक लौट

किसी सीढ़ी पर कुछ देर बैठूँ सुकूँ से

तनिक सुस्ताऊँ

कहीं कुछ याद कर मुस्कराऊँ और

कुछ सीढ़ियों को अनदेखा कर

बस यूँ ही लाँघ जाऊँ...

कितने पन्नों को सहेज

छिपा लूँ अपने दिल में

और कुछ पन्नों को

अलग कर दूँ किताब से..

याद आते हैं

कुछ अनायास दर्द देकर खो गये

और कुछ बेवजह निर्लज्ज मुझसे आ जुड़े पल

चलो!! मिटा दूँ इन्हें उस हिसाब की बही से

बस! अक्सर यूँ जी चाहता है मेरा...

मगर ये जिन्दगी!!

कुछ मिटता नहीं

कुछ भूलता नहीं

सब दर्ज रहता है

यहीं कहीं आस पास

उन्हीं सीढ़ियों में दफन

जिन्दा सांस लेता...

कि किताब के पन्ने

आँधी में फड़फड़ाते हों जैसे!!

-समीर लाल ’समीर’

लिंक यू ट्यूब का:

 

समीर लाल ’समीर’

47 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! शानदार रचना के साथ शानदार यूट्यूब प्रयोग !!
    ताऊ कौन ? पहेली में उलझी फेसबुक

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  2. जलवे दार।
    वैसे आंधी में किताब के पन्ने नहीं फ़ड़फ़ड़ाते। किताब ही उड़ जाती है। कोई छुई-मुई आंधी है क्या। नाजुक वाली?

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  3. यादें... याद आती हैं.

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  4. Kitna sach hai....na jane kitne rishte samay ke saath bane to nahi lekin bigade!

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  5. कहाँ चाह कर जा पाते हैं,
    सोयी स्मृति के हरकारे,
    रहने दें, उनको रहने दें,
    संग रहे सब राह बिसारे।

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..

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  6. ज़िंदगी की किताब के पन्ने कुछ भूले कुछ याद रहे ..... कुछ को फाड़ देना चाह कर भी आंखो से ओझल नहीं होते कुछ सुकून देती यादें .... बहुत कुछ समेटा है इस रचना में ।

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  7. क्या बात है , नया प्रयोग , एक बेहद खूबसूरत रचना के लिए बधाई समीर भाई !

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  8. नित बनते बिगड़ते रिश्तों की

    कहानी की इक किताब के पन्ने

    या कह दूँ इसे

    कुछ पा लेने

    और कुछ खो देने की

    हिसाब की बही..
    बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी आवाज़ में और मुखर हो गये ज़िन्दगी के पन्ने !

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  10. जिस द्वार के पार जाने की इच्छा लिए
    पका लिए मैनें अपने बाल
    आज उस दहलीज़ तक भी जाना हुआ मुहाल.

    यु ट्यूब का प्रयोग ! वाह

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  11. वाह समीर भई .. यादों का पुलिंदा हवा में खोल दिया ...

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  12. मन की तडप अभिव्यक्त हो रही है रचना में, बहुत ही सुंदर.

    रामराम.

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  13. यादों का पिटारा हमारे साथ-साथ चलता रहता है .. ...
    बहुत बढ़िया प्रयोग ..बढ़िया प्रस्तुति ..

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  14. Aapka ye style bahut pasand aaya eak shandaar aavaaz ke saath khubsurat shabdon se rachi basi ye rachna dil ko chhu gayi...meri hardik shubhkamnayen hamesha ki tarha ...aage bhi aavaj ke saath nayi rachna ka intjaar rahega..

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  15. सुंदर रचना, प्रयोग भी अच्छा लगा ।

    कहां संभव हो पाता है अनचाही सीठियां लांघ जाना या अनचाहे पन्ने फाडना । अच्छा बुरा सभी दर्ज हो जाता है हमेशा के लिये ।

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  16. चाक्षुष और श्रव्‍य - दोनों सुख एक साथ। आनन्‍द आ गया।

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  17. अभिनव प्रयोग के लिए बधाई।
    कविता आपकी अगली किताब की प्रस्तावना बन गई।
    अहसास है.. अनुभव का.. निचोड़
    ये पंक्तियां अद्भुत..
    कुछ मिटता नहीं/कुछ भूलता नहीं/
    सब दर्ज रहता है/यहीं कहीं आस पास
    उन्हीं सीढ़ियों में दफन/जिन्दा सांस लेता...

    वसीम बरेलवी भी याद आ गए..
    किताब-ए-माज़ी के औराक़ पलट के देख ज़रा
    ना जाने कौन-सा सफ़ा मुड़ा हुआ निकले

    जवाब देंहटाएं
  18. अभिनव प्रयोग के लिए बधाई।
    कविता आपकी अगली किताब की प्रस्तावना बन गई।
    अहसास है.. अनुभव का.. निचोड़
    ये पंक्तियां अद्भुत..
    कुछ मिटता नहीं/कुछ भूलता नहीं/
    सब दर्ज रहता है/यहीं कहीं आस पास
    उन्हीं सीढ़ियों में दफन/जिन्दा सांस लेता...

    वसीम बरेलवी भी याद आ गए..
    किताब-ए-माज़ी के औराक़ पलट के देख ज़रा
    ना जाने कौन-सा सफ़ा मुड़ा हुआ निकले

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  19. kash jo dafan hai, wo dafan hi rhta... par wo sab dafan hokar bhi zinda hai yaadon ki mitti mei...

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  20. अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया रचना
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्‍त करने के लिये एक बार अवश्‍य पधारें
    टिप्‍पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
    MY BIG GUIDE
    नई पोस्‍ट
    अब 2D वीडियो को देखें 3D में

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  21. किसी सीढी पर----कहीं कुछ याद कर,मुस्काराऊं
    यही फ़लसफ़ा है,जिंदगी के सफ़र का.
    और,हम सभी एक ही नांव में बैठे हैं,सो खेते रहिए
    ’ओ.माझी रे,ले चल उस पार,मुझे भी’
    शब्दों में भाव कि भावों में शब्द???

    जवाब देंहटाएं

  22. किसी सीढी पर----कहीं कुछ याद कर,मुस्काराऊं
    यही फ़लसफ़ा है,जिंदगी के सफ़र का.
    और,हम सभी एक ही नांव में बैठे हैं,सो खेते रहिए
    ’ओ.माझी रे,ले चल उस पार,मुझे भी’
    शब्दों में भाव कि भावों में शब्द???

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  23. वाह बहुत खूब.बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .

    जवाब देंहटाएं
  24. ऊंचाई भी जमीन से जुड़े रहने की सीख देती है. सुंदर कविता अनुपम प्रस्तुति.

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  25. अभिनव प्रयोग,मन की उलझनों की सुंदर अभिव्यक्ति!साधुवाद!

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  26. वाह......
    लाजवाब.......
    बधाई.

    सादर
    अनु

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  27. विचलित मन की करुण गाथा ! दर्द भरा naghma , बहुत कुछ याद दिल गया.

    [ मुड़-मुड़ के न देख मुड़-मुड़ के ,
    ज़िन्दगानी के सफ़र में ,
    संग तेरे जो चला है ,
    उससे ही तू रहले जुड़-जुड़ के. ]
    http://mansooralihashmi.blogspot.in

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  28. यादें जब दर्ज होती है पन्नो में
    तो पन्ने उड़ा नहीं करते
    दिल की किताब से,
    कुछ यादें भारी हो जाती हैं,शायद
    और पन्नों के फ़ट जानें पर भी
    वहीं रह जाती है दिल में ...

    जवाब देंहटाएं
  29. अपना प्रभाव छोड़ती पंक्तियाँ ....शब्दशः सत्य कहती ....
    हृदयस्पर्शी रचना ...

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  30. बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  31. aur ye silsila jaari hai...anvarat... behatreen rachna humesha ki tareh..

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  32. यादें उदास करती हैं तो जीने का सबब भी बनती है..आवाज़ में भी उदासी है...

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  33. Wow such great and effective guide
    Thank you so much for sharing this.
    Thenku AgainWow such great and effective guide
    Thank you so much for sharing this.
    Thenku Again

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  35. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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