उसे भी सपने आते थे. वो भी देखती थी सपने जबकि उसे मनाही थी सपने देखने की.
माँ के पेट के भीतर ही थी तब वो खूब लात चलाती, यह सोचकर कि माँ को लगेगा लड़का है. लेकिन माँ न जाने कैसे जान गई थी कि लड़की ही है. माँ ने उसे तभी हिदायत दे दी थी कि उसे सपने देखने की इजाजत नहीं है. अगर गलती से दिख भी जाये तो उनका जिक्र करने या उन्हें साकार करने की कोशिशों की तो कतई भी इजाजत नहीं. ऐसा सोचना भी एक पाप होगा.
जन्म के साथ साथ यही हिदायतें माँ लगातार दोहराती रही, लेकिन सपनों पर आजतक किसका जोर चला है जो अब उसका चल जाता… वो देखा करती थी सपने. मगर न जाने क्यों उसके सपनों का रंग होता हमेशा हरा, गहरा हरा....सपने....हाँ..वो देखा करती... हरे सपने. जितना वो सपनों में उतरती वो उतने ही ज्यादा और ज्यादा हरे होते जाते.
समय बीतता रहा. सपने अधिक और अधिक हरे होते चले गये. स्कूल जाती तो सहेलियाँ अपने सपनों के बारे में बताती, गुलाबी और नीले सपनों की बात करतीं. मगर वो चुप ही रहती. बस, सुना करती और मन ही मन आश्चर्य करती कि उसके सपने हमेशा हरे क्यूँ होते हैं? उसे गुलाबी और नीले सपने क्यूँ नहीं आते? उसके सपने रंग बिरंगे क्यूँ नहीं होते...हमेशा..बस..हरे...एकदम गहरे हरे.... हरे सपने... सपनों के बारे में बात करने या बताने की तो उसे सख्त मनाही थी. आज से नहीं, बल्कि तब से जब वो माँ की कोख में थी.
चार बेटों वाले घर की अकेली लड़की, बहन होती तो शायद चुपके से कुछ सपने बाँट लेती उसके साथ, लेकिन वो भी नहीं. माँ से बांटने का तो प्रश्न ही न था. उसने ही तो.. सपने देखने को भी सख्ती से मना कर रखा था. क्या पता वो खुद भी कभी सपने देखती थी या नहीं..मगर बहैसयित माँ....नहीं, उसने यह इज़ाजत उसे कभी नहीं दी...कभी नहीं...तब भी नहीं..जब वो कोख में थी.
बहुत मन करता था उसका...उन हरे सपनों को जागते हुए बांटने का. उन्हें जीने का. उन्हें साकार होता देखने का. यह सब होता तो था मगर उन्हीं हरे सपनों के भीतर... एक हरे सपने के भीतर बंटता... एक और दूसरा हरा सपना. एक हरे सपने के बीच... सपने में ही सच होता.. दूसरा हरा सपना. हरे के भीतर हरा, उस हरे को और गाढ़ा कर जाता. उसे लगता कि वो एक हरे पानी की झील में डूब रही है. एकदम स्थिर झील. कोई हलचल नहीं. जिसकी सीमा रेखा तय है. साहिल तो है ....मगर उसका कोई सहारा नहीं...डूब जाना ही मानों तकदीर हो उसकी...उस हरे पानी की झील में..
कई बार कोशिश की सपनों में दूसरा रंग खोजने की. शायद कभी गुलाबी या फिर नीला रंग दिख जाये. हल्का सा ही सही. जितना खोजती, उतना ज्यादा गहराता जाता हरा रंग और तब हार कर उसने छोड़ दिया था किसी भी और रंग की अपनी तलाश को सपनों में. सपने हरे ही रहे, गहरे हरे. रंग बिरंगे सपनों के सपने उसके भीतर ही कैद रहे.... कभी जुबान तक आने की हिम्मत न जुटा पाये और न कभी वह सोच पाई उन्हें साकार होते देखने की बात को. माँ की हिदायत हमेशा याद रहती.
स्कूल खत्म हुआ. कालेज जाने लगी लेकिन सपने पूर्ववत आते रहे वैसे ही हरे रंग के और दफन होते रहे उसके भीतर...क्योंकि उन्हें मनाही थी बाहर निकलने की, किसी से भी बताये जाने की... या कोई साकार रुप लेने की.
कालेज में एक नया माहौल मिला. नये दोस्त बने. सपनों के बाहर भी एक दुनिया बनी, जो हरी नहीं थी. वह रंग बिरंगी थी. वो उड़ चली उसमें. पहली बार जाना ...कि डूब कर कैसे उड़ा जाता है.. बिना पंखों के. वो भूल गई.. कि जिसे दरवाजा खोलने तक की इजाजत न हो ...उसे बाहर निकलने की अलग से मनाही की जरुरत कहाँ. वो तो स्वतः ही समझ लेने वाली बात है. किन्तु रंगों का आकर्षण ...उसे बहा ले गया.. अपने संग... उसे उड़ा ले गया अपने संग.
फिर वह दिन भी आया ...जब तह दर तह दमित सपनों का दबाव इतना बढ़ा.. कि वो एक ज्वालामुखी के विस्फोट की शक्ल में... लावा बनकर बाहर बह निकला.. सब कुछ जलाता और उस शाम वो अपने रंगों की दुनिया में समा गई ....और भाग निकली..... अपने सपनों से बाहर उग रहे.. एक ऐसे रंग के साथ, जो हरा नहीं था.
उस शाम बस्ती में कहर बरपा. दंगा घिर आया... सुबह के साथ ही दो लाशें बिछी मिली चौराहे पर. एक उसकी खुद की... और एक उसकी जिसके साथ वह भाग निकली थी. नहीं दिखा कहीं वो हरा रंग ....और न ही गुलाबी या नीला. बस दोनों रक्त की लालिमा में सने थे....
वो निकल पड़ी अपनी लाश को छोड़... उस दुनिया में जाने के लिए, जो रंग बिरंगी है. जहाँ सभी रंग सभी के लिए हैं. एक बार पलट कर उसने देखा था अपनी लाश की तरफ.... रक्त की लालिमा में लिपटा हरा रंग.... हरे सपनों की कब्रगाह...उसका खुद का बदन...अब वह जान चुकी थी अपने हरे सपनों का रहस्य.... उसका नाम था... शबाना ...
एक नजर उसने बगल में पड़ी लाश पर भी डाली. रोहित.. अपनी लाश के भीतर अब भी... जिन्दगी तलाश रहा था.
वह मुस्कराई उसकी नादानी पर ...और चल पड़ी अपनी नई दुनिया से अपना रिश्ता जोड़ने... उसे कोई मलाल न था.
आज बहुत खुश थी वो. ...अपने हरे सपनों को.. अपने ही बदन की कब्र में दफना कर...
सुनिये मेरी में:
बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करती यह रचना पढी और आपकी आवाज़ में सुनी. न जाने ऐसे विभिन्न रंगों के सपने कितनों में बसते हैं. किसी का भगवा भी हो सकता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर...सोचने पर मजबूर करती सार्थक कहानी...
जवाब देंहटाएंआज अड़ते दृष्टि सपने,
जवाब देंहटाएंविकट लड़ते सृष्टि सपने,
रंग सब धोकर रहेंगे,
बन उमड़ते वृष्टि सपने।
सपनों को अपना बनाना
जवाब देंहटाएंया
सपनों के कारण संसार छोड़ जाना
सपने तो सपने होते हैं ,,,,सभी कहाँ पूरे हो पाते हैं ..दिल को झकझोरती रचना ..
जवाब देंहटाएंजब सपनों का दमन किसी के द्वारा किया जाता है तो यही अंत होना तय है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ही मार्मिक और करूण अंत. अंदर तक दहला गई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कहानी पढने का अंदाज बहुत ही मार्मिक और भाव पूर्ण लगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Ek gahari aah nikli hai diki kisee dabi hui tahse...
जवाब देंहटाएंरंग कोई हो...सपने और खून एक जैसा ही था न ..
जवाब देंहटाएंमूर्खों ने यह दुनिया रहने लायक नहीं छोड़ी !!
शायद इस दर्द के साथ ही जाना होगा !!
.विचारणीय प्रस्तुति आभार . जनता की पहली पसंद -कौंग्रेस आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंये तो हमेशा से चल रहा है और चलेगा अपने देश में ... जब तक रंग मिलकियत रहेंगे ... ये दौर चलेगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहानी |
जवाब देंहटाएंbehtreen prstuti...
जवाब देंहटाएंKAHANI VIDHA MEIN BHEE AAPKEE LEKHNI KHOOB CHALTEE HAI . MARM
जवाब देंहटाएंSPARSHEE KAHANI KE LIYE MUBAARAQ .
सपने औऱ रिश्ते..कई जिंदा लाशे हैं...उनका क्या किया जाए।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव के मर्म को नमन...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज 20/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!
बहुत उम्दा लेख...
जवाब देंहटाएंबहुत उदास कहानी ,लेकिन सच से रूबरू कराती !
जवाब देंहटाएंइस उदासी के माहौल में कहानी और भी उदास कर जाती है. लेकिन सच्चाई से मुँह मोड़ लेने से सच्चाई बदल तो नहीं जाती. सुंदर मार्मिक कहानी.
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंread half the story in news paper and could not resist to open your blog. this is so nicely written.
जवाब देंहटाएंमन भीग आया यह कहानी पढ्/सुनकर।
जवाब देंहटाएंso touchy!
जवाब देंहटाएंमार्मिक कहानी...
जवाब देंहटाएंये सत्य कथा है लड़कियों का यही अंजाम है जब वोसपने देखती है और साकार करती है तो | कहीं बुर्का और कहीं पाबंदिया ..पता नहीं कब लडकिया बिना रोक टोक के सपने देखेंगी|सवा इच्छा से स्वछंद सपने ..
जवाब देंहटाएंअपना यान कभी हमारे दर पे भी लाइए इंधन की तो कमी नहीं है आपके पास ...
जवाब देंहटाएंवाह....अत्यंत मार्मिक रचना...सामाजिक विद्रूपता बाखूबी स्पष्ट करती हुई....वाह।
जवाब देंहटाएंमाँ कब चाहती है लडकी के सपनों को रोकना । वह तो चाहती है कि लडकी इस समाज के अनुरूप ढल जाये ताकि उसे जीना कठिन ना हो ।
जवाब देंहटाएंसामयिक और यथार्थ कहानी ।
दुःख की नगरी कौन सी नगरी
जवाब देंहटाएंआंसु की क्या ज़ात
सारे तारे दूर के तारे
सब के छोटे हाथ
फिर ये तो ख्वाब थे ......
मार्मिक सत्य !
Kayal ho gaya hun mai aapki lekhni ka
जवाब देंहटाएंkitne lambe arse ke baad aapki aawaz suni.....aapki rachna ko......??? nhi. nhi. ye rachnaaye nhi hoti.... aap hote hain....aapke bheetar jeene wali ek beti hoti hai jo hre sapnon se khlaafat chahti hai.
जवाब देंहटाएंek hi rng usko bchpan se dikhaya gayaa .haraa aur sirf haraa .wo kaise dusre rngo ko jaanti??
yuvti hui.........jo chuna wo kya sahi rang tha??? kisi ldke ke sath bhaag jana???
uffffff main budhaa gai hun ab mere khayaalaat puraane ho gaye hain. vidroh ka rang mujhe bhi psnd hai.....apni shrton pr jee hun aur iski pakshdhr hun pr... 'kaalikh' rng ki pakshdhr nhi.
aankhon ke kaajal si 'kaalima' hmesha chaahi.saraahi gai. usne 'kaalima' ko chuna hota. pgli ldki..kaalikh chun baithi.
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