बुधवार, फ़रवरी 27, 2013

जीत: अब लौट भी तुम आओ

एक लघु कथा - जीत:
वह सफेद कार में था...
उसने रफ्तार बढ़ा दी...नीली कार पीछे छूटी..फिर पीली वाली...
एक धुन सी सवार हुई कि सबसे जीत जाना है.
वह रफ्तार बढ़ाता गया. जाने कितनी कारें पीछे छूटती चली गईं.
कुछ देर बाद एक मोड़ पर उसकी कार और उसका शरीर क्षत विक्षत पड़ा मिला.
मृत शरीर रह गया, वो सबसे आगे निकल गया- जाने कहाँ?
ये कैसी जीत?
win
एक कविता- अब लौट भी तुम आओ:
मेरी बाँसुरी की सरगम
वो भी हो गई है मद्धम
कोई जाकर उसे बता दे
कि रुठा हुआ है मौसम....
अब लौट भी तुम आओ
कि ठहरा हुआ है सावन!!
-समीर लाल ’समीर’

53 टिप्‍पणियां:

  1. अब लौट भी तुम आओ कि ठहरा हुआ है सावन


    होली को लेकर ऐसा गीत है, आज ही फेसबुक पर शेयर किया है...

    मारवाड़ी में है.. :)

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  2. कम शब्द और बात बड़ी ...

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  3. डरा दिए दद्दा... :-( हम कंट्रोल में ही गाडी चलाएंगे...

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  4. ऐसी रफ़्तार वाले कहाँ लौट पते हैं..... अर्थपूर्ण पोस्ट

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  5. मोबाइल एस.एम.एस. के जमाने किसी के भरोसे क्यों हैं जी? एक ठो काल मार दीजिये।

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  6. जीत भी एक नशा जो,और-और चढ़ता चला जाता है!
    काव्य-पंक्तियाँ सुन्दर हैं.

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  7. यह रफ़्तार किस काम की ...
    मौसम का कहर बांसुरी पर भी टूटा है !

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  8. Kuch hi panktiyon men badi baat kah daali ... Hardik badhai....

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  9. भारत में पहली किस्म के वीर पुरुष बहुत हैं जो अपने के साथ दूसरों को भी जिता देते हैं.

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  10. इस तरह जीतने की ख्वाहिश रखने वाले को आगे निकल जाने से कौन रुक सकता है भला?

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  11. इस तरह जीतने की ख्वाहिश रखने वाले को आगे निकल जाने से कौन रोक सकता है भला?

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  12. रफ़्तार बढ़ाने के कारण जहाँ नहीं जाना था वह पहुँच गए |

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  13. उधर फुथपाथ पै चलते हुए राहगीर ने इत्मीनान की सांस ली, थैंक्स गौड ! आज तो बाल-बाल बचे ........
    इस ठहरे हुए सावन में पथराई हुई आँखों में इन्तेजार की कसक ...............!
    सुंदर प्रस्तुति !

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  14. लघुकथा व कविता दोनों बेहतरीन है। धन्यवाद।

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  15. लघुकथा व कविता दोनों बेहतरीन है। धन्यवाद।

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  16. जीतने की रफ़्तार में अपने छूट गए
    आ अब लौट चलें

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  17. जबरदस्त कहानी औए लाजवाब पंक्तियाँ ... मीठी फुहार लिए शब्द ...

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  18. अंधी और अंधाधुन्द दौड़ की यही परिणिति होती है .
    सुन्दर प्रेरणा दायी पोस्ट के लिए प्रणाम .

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  19. ‘ज़िंदगी की कार‘ का भी यही अंजाम होता है।
    सरल शब्दों में गहरी बात !

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  20. ‘ज़िंदगी की कार‘ का भी यही अंजाम होता है।
    सरल शब्दों में गहरी बात !

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  21. अक्सर जरूरत से ज्यादा रफ़्तार रखने वालों का हश्र यही होता है फिर चाहे वो रफ़्तार कार की हो या ज़िंदगी की...हमेशा की तरह उम्दा रचना।

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  22. लघु कथा और कविता दोनों ही सुपर.

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  23. रफ़्तार से जरूरी जिन्दगी.
    याद रखिये घर पर कोई आपका इंतज़ार कर रहा है.

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  24. JEEWAN KEE YAHEE SACHCHAAEE KO UKERTEE HAI LAGHU KATHA .

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  25. लघुकथा प्रभावी है।
    भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
    होकर असीर दाबते हैं राहज़न के पाँव (ग़ालिब)

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  26. लघुकथा और कविता दोनों एक दूसरे की पूरक है...

    जय हिंद...

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  27. लौट कर न सही, कुछ देर के लिए ही आ जाओ तुम, रतलाम ठहरा हुआ है - तुम्‍हारे दिलाए भरोसे पर भरोसा करते हुए।

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  28. बेनामी3/01/2013 01:12:00 am

    अद्भुत,, शुभकामनाएं

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  29. बेनामी3/01/2013 01:18:00 am

    अद्भुत,, शुभकामनाएं

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  30. तेज़ रफ़्तार कार दुर्घटना का दृश्य सामने आ गया.

    किसी से लौट आने आने की गुजारिश...

    दोनों रचना मन को छू गई. शुभकामनाएँ.

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  31. recently कहीं सडक किनारे एक होर्डिंग पर पढा था.. जिन्हें जल्दी थी, वो चले गये...

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  32. उफ़ ऐसा भी होता है

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  33. जब ध्येय की समझ न हो तो जीत ऐसी ही क्षत विक्षत हो जाती है।

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  34. अंधी दौड़ किसी न किसी मोड़ पर ऐसे ही खत्म हो जाता करती है....और इंतजार करने वाले इतंजार करते रहते हैं....इतंजार करने वालों को लोग बेवकूफ कहते हैं.....

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  35. बहुत खूब सोचने को मज़बूर करती कथा

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  36. जीवन की दौड़ से उप्स्जी संवेदनाएँ.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  37. समीर जी...दोनों ही रचनाएँ मर्मस्पर्शी लगी... बहुत खूब!

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  38. अब लौट भी तुम आओ
    कि ठहरा हुआ है सावन!!kya baat hai badhai

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  39. वाह आदरणीय ,दोनों लाजवाब रचनाएँ
    आगे भी इंतजार है ....

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  40. बहुत दर्दीला सच। और सच होकर भी उपेक्षित। "ठहरा हुआ है फागुन" सम सामयिक हो शायद।

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  41. लघु कथा और कविता दोनों साथ साथ, अति सुंदर और प्रभावशाली.

    रामराम.

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  42. आपकी ये लघु कथा...मेरे साथ हुए हादसे को एक बार फिर से याद करवा गई ..

    पर ये सच है ..कि सावधानी बहुत जरुरी है

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