एक लघु कथा - जीत:
वह सफेद कार में था...
उसने रफ्तार बढ़ा दी...नीली कार पीछे छूटी..फिर पीली वाली...
एक धुन सी सवार हुई कि सबसे जीत जाना है.
वह रफ्तार बढ़ाता गया. जाने कितनी कारें पीछे छूटती चली गईं.
कुछ देर बाद एक मोड़ पर उसकी कार और उसका शरीर क्षत विक्षत पड़ा मिला.
मृत शरीर रह गया, वो सबसे आगे निकल गया- जाने कहाँ?
ये कैसी जीत?
एक कविता- अब लौट भी तुम आओ:
मेरी बाँसुरी की सरगम
वो भी हो गई है मद्धम
कोई जाकर उसे बता दे
कि रुठा हुआ है मौसम....
अब लौट भी तुम आओ
कि ठहरा हुआ है सावन!!
-समीर लाल ’समीर’
अब लौट भी तुम आओ कि ठहरा हुआ है सावन
जवाब देंहटाएंहोली को लेकर ऐसा गीत है, आज ही फेसबुक पर शेयर किया है...
मारवाड़ी में है.. :)
कम शब्द और बात बड़ी ...
जवाब देंहटाएंडरा दिए दद्दा... :-( हम कंट्रोल में ही गाडी चलाएंगे...
जवाब देंहटाएंऐसी रफ़्तार वाले कहाँ लौट पते हैं..... अर्थपूर्ण पोस्ट
जवाब देंहटाएंमोबाइल एस.एम.एस. के जमाने किसी के भरोसे क्यों हैं जी? एक ठो काल मार दीजिये।
जवाब देंहटाएंये कैसी जीत?
जवाब देंहटाएंजीत भी एक नशा जो,और-और चढ़ता चला जाता है!
जवाब देंहटाएंकाव्य-पंक्तियाँ सुन्दर हैं.
यह रफ़्तार किस काम की ...
जवाब देंहटाएंमौसम का कहर बांसुरी पर भी टूटा है !
speed kills..
जवाब देंहटाएंKuch hi panktiyon men badi baat kah daali ... Hardik badhai....
जवाब देंहटाएंभारत में पहली किस्म के वीर पुरुष बहुत हैं जो अपने के साथ दूसरों को भी जिता देते हैं.
जवाब देंहटाएंइस तरह जीतने की ख्वाहिश रखने वाले को आगे निकल जाने से कौन रुक सकता है भला?
जवाब देंहटाएंइस तरह जीतने की ख्वाहिश रखने वाले को आगे निकल जाने से कौन रोक सकता है भला?
जवाब देंहटाएंरफ़्तार बढ़ाने के कारण जहाँ नहीं जाना था वह पहुँच गए |
जवाब देंहटाएंउधर फुथपाथ पै चलते हुए राहगीर ने इत्मीनान की सांस ली, थैंक्स गौड ! आज तो बाल-बाल बचे ........
जवाब देंहटाएंइस ठहरे हुए सावन में पथराई हुई आँखों में इन्तेजार की कसक ...............!
सुंदर प्रस्तुति !
लघुकथा व कविता दोनों बेहतरीन है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंलघुकथा व कविता दोनों बेहतरीन है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंजीतने की रफ़्तार में अपने छूट गए
जवाब देंहटाएंआ अब लौट चलें
जबरदस्त कहानी औए लाजवाब पंक्तियाँ ... मीठी फुहार लिए शब्द ...
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR LAGI YAH KAM LAFZONE MEIN BADI BAAT ..
जवाब देंहटाएंअंधी और अंधाधुन्द दौड़ की यही परिणिति होती है .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेरणा दायी पोस्ट के लिए प्रणाम .
‘ज़िंदगी की कार‘ का भी यही अंजाम होता है।
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में गहरी बात !
‘ज़िंदगी की कार‘ का भी यही अंजाम होता है।
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में गहरी बात !
गागर में सागर
जवाब देंहटाएंअक्सर जरूरत से ज्यादा रफ़्तार रखने वालों का हश्र यही होता है फिर चाहे वो रफ़्तार कार की हो या ज़िंदगी की...हमेशा की तरह उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंलघु कथा और कविता दोनों ही सुपर.
जवाब देंहटाएंरफ़्तार से जरूरी जिन्दगी.
जवाब देंहटाएंयाद रखिये घर पर कोई आपका इंतज़ार कर रहा है.
JEEWAN KEE YAHEE SACHCHAAEE KO UKERTEE HAI LAGHU KATHA .
जवाब देंहटाएंलघुकथा प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंभागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
होकर असीर दाबते हैं राहज़न के पाँव (ग़ालिब)
बिलकुल सही कह रहे हैं आप .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति आभार क्या हैदराबाद आतंकी हमला भारत की पक्षपात भरी नीति का परिणाम है ?नहीं ये ईर्ष्या की कार्यवाही . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
जवाब देंहटाएंraftar ko break lagati rachana
जवाब देंहटाएंलघुकथा और कविता दोनों एक दूसरे की पूरक है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
लौट कर न सही, कुछ देर के लिए ही आ जाओ तुम, रतलाम ठहरा हुआ है - तुम्हारे दिलाए भरोसे पर भरोसा करते हुए।
जवाब देंहटाएंअद्भुत,, शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअद्भुत,, शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंतेज़ रफ़्तार कार दुर्घटना का दृश्य सामने आ गया.
जवाब देंहटाएंकिसी से लौट आने आने की गुजारिश...
दोनों रचना मन को छू गई. शुभकामनाएँ.
recently कहीं सडक किनारे एक होर्डिंग पर पढा था.. जिन्हें जल्दी थी, वो चले गये...
जवाब देंहटाएंउफ़ ऐसा भी होता है
जवाब देंहटाएंजब ध्येय की समझ न हो तो जीत ऐसी ही क्षत विक्षत हो जाती है।
जवाब देंहटाएंअंधी दौड़ किसी न किसी मोड़ पर ऐसे ही खत्म हो जाता करती है....और इंतजार करने वाले इतंजार करते रहते हैं....इतंजार करने वालों को लोग बेवकूफ कहते हैं.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सोचने को मज़बूर करती कथा
जवाब देंहटाएंजीवन की दौड़ से उप्स्जी संवेदनाएँ.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
सुन्दर लघु कथा
जवाब देंहटाएंसमीर जी...दोनों ही रचनाएँ मर्मस्पर्शी लगी... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंअब लौट भी तुम आओ
जवाब देंहटाएंकि ठहरा हुआ है सावन!!kya baat hai badhai
वाह आदरणीय ,दोनों लाजवाब रचनाएँ
जवाब देंहटाएंआगे भी इंतजार है ....
बहुत दर्दीला सच। और सच होकर भी उपेक्षित। "ठहरा हुआ है फागुन" सम सामयिक हो शायद।
जवाब देंहटाएंये कैसी जीत?
जवाब देंहटाएंलघु कथा और कविता दोनों साथ साथ, अति सुंदर और प्रभावशाली.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Katha aur kavita,dono hi lajawab...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंआपकी ये लघु कथा...मेरे साथ हुए हादसे को एक बार फिर से याद करवा गई ..
जवाब देंहटाएंपर ये सच है ..कि सावधानी बहुत जरुरी है
BAHUT KHUB PADHKAR SAMAY KA SADUPYOG HUA
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