मालूम तो था ही कि आ रहे हैं मगर कहाँ और कब मिलेंगे, यह आकर बताने वाले थे.
गुरुवार की सुबह बात हुई कि शुक्रवार की शाम को ७ बजे सिनेमा देखकर फुरसत होंगे, तब आ कर ले जाईये. टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भारत से पधारे हमारे चव्वनी चैप (छाप नहीं) ब्लॉग के मालिक अजय ब्रह्मात्मज को लेने हम पहुँचे घर से ८० किमी दूर, यही विचारते कि अभी खाना खिलवाकर फिर छोड़ने यहीं आना है फिर ८० किमी. ५ बजे शाम से रात १२.३० बजे के बीच हमारी ३६० किमी की ड्राईविंग किन्तु मिलकर इतना आनन्द आया कि पता ही नहीं चला.
८ बजे उनको घर लेकर पहुँचे और फिर जमीं महफिल हमारे बार में. कुछ जाम छलके, अनेको विषयों से लेकर ब्लॉगिंग और फिल्मों की बात चली, भोजन किया गया और फिर उनको होटल छोड़ आये. यादगार शाम थी. अपनी पुस्तक भी उसी दौर में उन्हें टिका दी. कह गये हैं कि पढ़ेंगे. :)
मुलाकात की कुछ तस्वीरें:
फिर कल शाम अनूप जलोटा जी के साथ गुजरी. एक से एक भजन सुने गये. नई बात जो देखने में आई वो यह कि आजकल उन्होंने भी बीच बीच में कुछ चुटकुले जोड़ना शुरु कर दिया है जिसे पब्लिक ने खूब मस्त होकर सुना. साथ ही चामुंडा स्वामी जी का प्रवचन भी था. तो कल की शाम भी मजेदार गुजरी. उनके चुटकुले की एक बानगी.भजन तो आप यू ट्यूब पर यूँ भी सुन सकते हैं.
आज सुबह से ही एक मित्र के घर जाना हो गया बार-बे-क्यू का इन्तजाम, शहर से १०० किमी दूर. अभी लौटे.
शाम अजय भाई भारत वापस निकल गये. फोन से बातचीत हो गई. उन्होंने हमारी तारीफ की, हमने उनकी. बाय बाय हो गई. अभी वो हवाई जहाज में होंगे.
ये सब इसलिए सुनाया कि इन सब के बीच कुछ लिखने का मौका नहीं लगा, तो आज ये ही. :)
तो आज के लिए:
चाहता
तो लिख देता
एक कविता
तुम्हारे लिए
लेकिन
जब कविता
कुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!!
-समीर लाल ’समीर’
इस बार बे क्यू का क्या मतलब है ?
जवाब देंहटाएंअच्छा तो बार-बे-क्यू...हम्म...हमें याद नहीं किया ..अकेले अकेले , चलिए कोई बात नहीं :)
जवाब देंहटाएंचुटकुला मस्त था :)
shubhprabhaat sameer ji.. vaah to kal baarbi- q kaa anad liya ..aur bhajan chtkule bhi.. vaah.. aur kavitaa na likhne ki majboori.. photo bhi achhi aur video to vaah......anup ji ki awaaj kaa hi anand liya..
जवाब देंहटाएंफिर से दबोच लिया एक और को तलघर में :)
जवाब देंहटाएंलग रहा है काफी मस्ती कर डाली इस वीक एंड पर - वैसे बनाता है गर्मियां जो जाने वाली हैं ...
आपकी किताब लेने ,कनाडा तक जाना पड़ा । मैं भी टिकट का जुगाड़ करता हूं ।
जवाब देंहटाएंबार बे क्यु में क्या क्या भूना गया ? लांग शाट लगा दिये हैं ।
बार बे क्यु का मतलब बिना क्यु वाला बार to nahi ,हा हा हा
@ राम
जवाब देंहटाएंफिर से दबोच लिया यानि?? हा हा!! तुम्हारे बाद पहला...देखो, आगे कौन अटकता है. :)
बारबेक्यू में पका क्या था?
जवाब देंहटाएं@अपनी ही टिकाते रहते हैं की किसी और की पढ़ते भी हैं !
जवाब देंहटाएंकमेन्ट करने से फुरसत मिले तब न :)
जब कविता कुछ कह ना पाए...
जवाब देंहटाएंबेहतर है चुप रहा जाए ...
ठीक ही है ..
बहुत अच्छी प्रस्तुति। एक शे’र अर्ज़ है-
जवाब देंहटाएंये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल है
यही है जुदाई यही मेल है
मैं मुड़ मुड़ के देखा किया दूर तक
बनी वो ख़ामोशी सदा देर से
राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।
एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें
Nice.. . beautiful blog.. Good wishes
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट को यूं ही लिख दिया मत कहो, बड़े काम की पोस्ट है। इसी से मालूम पड़ता है कि एक भारतीय कनाडा में रहकर किस प्रकार स्नेह बाँट रहा है। हमें हमेशा लगता है कि कोई अपना रहता है कनाडा में। इस पोस्ट के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छी मुलाकात । चित्र भी सुंदर । यही सच है जब कविता कुछ कह ही ना पाये तो फिर चुप्पी ही बेहतर ।
जवाब देंहटाएंजब कविता
जवाब देंहटाएंकुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!!
खुबसूरत पंक्तियाँ, और एक सुन्दर मुलाकात का सुन्दर चित्रण..
regards
हहहहह सुप्रभात समीर भाई,मै भी बस कुछ चिट्ठों को टिप्पणी कर जाने वाली थी की आपका चिट्ठा नजर आया। मुझे समझ नही आता इतनी कड़वी चीज आप लोगो को पीने-पिलाने मे आखिर मज़ा क्या आता है?खैर...:)
जवाब देंहटाएं... lutf-hi-lutf ... bharpoor aanand ... jay ho !!!
जवाब देंहटाएंसप्ताहंत खूब व्यस्त रहा ...आपकी पोस्ट ने यह बात अच्छे से समझा दी ....चित्र बढ़िया हैं ...और कविता नहीं लिखी गयी फिर भी कुछ कह गयी ...
जवाब देंहटाएंपता नहीं अपने को कब मौका मिलेगा कनैडा आने का :)
जवाब देंहटाएंअनूप जलोटा जी का चुटकला मजेदार है.. :)
जवाब देंहटाएंचैप ही सही पर कहने सुनने में छाप का कोई मुकाबला नहीं :)
जवाब देंहटाएंपार्टियां...माने दिन बढ़िया गुजर रहे हैं बेचारी कविता अब क्या कह सकेगी :)
दिल की गिरह खोल दो,
जवाब देंहटाएंचुप ना बैठो,
कोई गीत गाओ,
ब्लॉगिंग में अब कौन है अजनबी,
सबके पास आओ...
जय हिंद...
वैसे ये आपकी बहुत बड़ी खासियत है कि आप खिला पिलाकर ही झेलाते हैं(लाईव मामलों में), हा हा हा।
जवाब देंहटाएंआजकल सारे कविता बेचारी के पीछे क्यूं पड़ गये हैं जी? विचारशून्य पर कविता लंगड़ी सी है, आपके यहाँ बोलती नहीं लेकिन हमें तो अच्छी लगी कविता, वहां भी और यहां भी।
आज से बाबा का प्रणायाम बंद .
जवाब देंहटाएंचिकन की महक अच्छी आ रही है क्या उस पर वाइन भी डाली गई
बार-बे-क्यु में नायडू पक रहा है क्या?
जवाब देंहटाएंतब तो भैया हमारी सौ फ़ुट दूरी ही ठीक है।
मैने देख लिया था बार-बे-क्यु का हाल।
चुप रह के भी बहुत कुछ कह जाते है आप |
जवाब देंहटाएंजब कविता
जवाब देंहटाएंकुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये.... अब इसके आगे क्या कहें. शानदार अभिव्यक्ति...बधाई.
बहुत अच्छी गुज़री आपकी शाम। और आपका यह संस्मरण हमारे मन को स्फूर्तिमय बना गया। कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं। एक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!
bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..बेहतर है चुप रह जाए ...मुलाक़ात भी बढ़िया
जवाब देंहटाएंचुप रह कर भी बहुत कुछ कह गये समीर भाई ...
जवाब देंहटाएंखूब मज़ा ले रहे हो मौसम का .....
वैसे ब्रांड कौन सा था
जवाब देंहटाएंबार से भजन तक का अच्छा विवरण :)
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम बार-बे-क्यू मे भुने गये मुर्गों को मेरा नमन !
इसी प्रकार स्वयँ भुने जाकर भी वह आपकी ऊर्ज़ा बनाये रखें, ब्लॅड-प्रेशर का कुछ ख़्याल है ?
और एक दूसरी बात .....
वाह भाई जी, आपकी चुप्पी में भी 1151 शब्द !
( न भरोसा हो तो गिन कर देख लो )
यानि कि चुप्पी कुछ गहरी है । पब्लिक को बहलाने को फोटू लगा दिया, क्या यह हम नहीं जानते ? काहे की चुप्पी है भईया , बताय देयो । पहिरे तौ इत्ते सब्दन की चुप्पी नाय काढ़त रहे बच्चा ? बताय देयो, मुला रिसियाओ जिन.. नहीं त बार-बे-कियू मा दुई चार मुर्गन का अउर भून डरिहो ?
अच्छा... तो अजय भैया आपसे घर पर मिल लिए..क्या बात है....हम तो अब उनसे आँखों देखा हाल सुन लेंगे...(वो सब भी जो आपने पोस्ट में नहीं लिखा...:) )
जवाब देंहटाएंमुलाकात तो बहुत अच्छी लगी, लेकिन पेग शेग के बाद फ़िर आप ने ही ड्राईविंग की क्या? अरे हमारे यहां तो एक बीयर भी भी सख्त मना है पेग की बात तो बहुत दुर, बाकी समा तो बहुत सुंदर बीता यह आप की पोस्ट से ही लगता है
जवाब देंहटाएंवाह बार भी और बार बे क्यू भी..फुल वीकेंड मनाया आपने तो :) .
जवाब देंहटाएंहाय हुसैन, हम न हुए!
जवाब देंहटाएं;)
सब बढ़िया चकाचक रहा है ... बढ़िया अभिव्यक्ति.... आभार
जवाब देंहटाएंchaliye...hamara bhi din ban gaya.. :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब समीर जी , वैसे ये जो आपका टिपडा है ( मेरा मतलब वो अंगरेजी क्या बोलते है उसको बार ) वह भी किसी साकी से कम नहीं ! :)
जवाब देंहटाएंउम्दा कविता लिखा आपने...बधाई.
जवाब देंहटाएंचुप्प रह कर भी आप कविता लिख जाते हैं..
जवाब देंहटाएंवाह! कित्ती बैलंस्ड पोस्ट है...सब का ख्याल रखा गया है. भोगियों को जहाँ "मदिरा के प्याले" दिखाकर ललचाया जा रहा है तो वहीं योगियों को "भक्ति-रस" का पान कराकर :)
जवाब देंहटाएंअच्छी मुलाकात...जीवन भर की स्मृति.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चल रही हैं , शाम की रंगीनियाँ ।
जवाब देंहटाएंवैसे ये कविता कौन है ?
गजब रहा गुरु देव....
जवाब देंहटाएंहम भी आते हैं कभी... फिर आपके बार में चाय छलकायेंगे :)
जवाब देंहटाएंदूसरों को क्यूँ जलाते है??...
जवाब देंहटाएंअजय भाई के साथ जाम छलकाये, अभिषेक ओझा जी आपके साथ चाय छलकाने को बेता ब है तो हम सोच रहे हैं हम लस्सी छलकाने आ पडते हैं.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
जब कविता
जवाब देंहटाएंकुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!!
लगता है कलियुग में महाराज ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त होते जारहे हैं.:) संतो संगत का असर गहराना....
रामराम.
बार-बे-क्यू
जवाब देंहटाएं..क्या दूसरे बार में भी क्यू लगता है ?
इतनी व्यस्तता ळिख देने के बाद और क्या लिखना शेष रहता है।
जवाब देंहटाएंअपनी पुस्तक भी उसी दौर में उन्हें टिका दी. कह गये हैं कि पढ़ेंगे. :)
जवाब देंहटाएंबढिय़ा!
आपकी चुप्पी भी तो बहुत कुछ कह जाती है, भाई जी !!
जवाब देंहटाएंसमीर जी बहुत ही अच्छी तरह चित्रण किया है आपने अपनी मुलाकात का ! बिल्कुल आपकी कविता सी मधुर !
जवाब देंहटाएंbahut sunder mulakat ka chitran paish kiya hai aapne mubarak ho ji
जवाब देंहटाएंचाहता
जवाब देंहटाएंतो लिख देता
एक कविता
तुम्हारे लिए
लेकिन
जब कविता
कुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!!
bahut gahri duvidha hoti hai ye aur chupi hi uchit raah hai phir .sabhi kuchh shaandaar hai .
समीर जी मजा आ गया
जवाब देंहटाएंयूँ लगा श्याम को धीवरी के प्रकाश में ताऊ
किसी अपने ज़माने का किसा सुना रहे हों
सच में में मुझे एक दम बचपन में सुना किसा लगा
thanku so much
वाह,बढ़िया !
जवाब देंहटाएंआप की महमान नवाजी के किस्से पढ़ पढ़ कर दिल कर रहा है पहली फ्लाईट पकड़ कर टोरंटो चला आऊँ...फिर मेरी ग़ज़लें हों आपके कान हों और हाथों में जाम हो...अहहहहा...आनंद की कल्पना ही पागल किये दे रही है...
जवाब देंहटाएंमेरा नंबर कब आएगा...????
नीरज
मुलाक़ात बहुत अच्छी रही.....
जवाब देंहटाएंलगता है काफी खुशनुमा वक़्त बिताया ....
अच्छा है...
सुंदर चित्र सुंदर विवरण....
बहुत ही सुन्दर एवं बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअले, आप तो काफी मिलनसार हैं...कविता भी प्यारी.
जवाब देंहटाएंसमीर जी !
जवाब देंहटाएं''चाहती
तो लिख देती
एक कविता
तुम्हारे लिए
लेकिन
जब कविता
कुछ कह न पाये
तब सोचती हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!!''
:) :) :)
यानि कुल मिलाकर खूब आनंद किया आपने...
जवाब देंहटाएंहमारे साथ बांटने के लिए आभार..
समीर जी, हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ ! अभी दो दिन पहले ‘जनसत्ता’ में आपका लेख पढ़ा। बहुत खूबसूरत गद्य था। बधाई। और भी अधिक बधाई बढ़िया सप्ताहान्त मनाने की।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस पर आपका अभिनन्दन है .
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट से आपके बारे में काफी कुछ
जानने को मिला .
चंद पंक्तियों की कविता अच्छी लगी.
रपट अच्छी लगी.(कविता तो आप अच्छी लिखते ही हैं)
जवाब देंहटाएंEk acchi mulakaat ko is post ne aur bhi yaadgaar bana diya aur pictures bhi bahut acche hai ...aabhar
जवाब देंहटाएंSamay nikal kar Anushka ko bhi aashish pradan kijiyega
http://anushkajoshi.blogspot.com/
बहुत सुन्दर चित्र! अब भला मैं क्या कहूँ जब कविता ही कुछ न कह पाए! बढ़िया पोस्ट!
जवाब देंहटाएंरपट और कविता के लिये आभार.... हमारी टिप्प्णी पर है पिछली ७० टिप्पणीयों का भार...
जवाब देंहटाएंकहीं दब न जाये :)
आपकी वहाँ भी महफिल सजी है.
जवाब देंहटाएंबहुत से कवियों को आपकी कविता में दिए हुए संदेश पर ध्यान देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबड्डे-बड्डे लोगाँ बड्डी-बड्डी बाताँ जी.. :)
जवाब देंहटाएंbahut achha laga padkar .....
जवाब देंहटाएंजब कविता
जवाब देंहटाएंकुछ कह न पाये
तब सोचता हूँ
बेहतर है
चुप रह जाये!!
कितना अच्छा हो अगर सारे कवि आपकी इस अनमोल बात को समझ लें ।