बुधवार, सितंबर 15, 2010

जिन्दा सूखा गुलाब...

हरि बाबू, टूटती काया, माथे पर चिन्ता की लकीरें, मोटे चश्में से ताकती बुझी हुई आँखें, शायद ८४ बरस की उम्र रही होगी. हर दोपहर अपने अहाते में कुर्सी पर धूप में बैठे दिखते मानो किसी का इन्तजार कर रहे हों.

दो बेटे हैं. शहर में रहते हैं और हरि बाबू यहाँ अकेले. निश्चित ही बेटों का इन्तजार तो नहीं है, क्योंकि हरि बाबू जानते हैं कि वो कभी नहीं आयेंगे. बहु और बच्चों के लिए हरि बाबू देहाती हैं, तो इनके वहाँ जाने का भी प्रश्न नहीं. फिर आखिर किसका इन्तजार करती हैं वो आँखें?

उम्र की मार के कारण हरि बाबू की स्मृति धोखा देती है, पर बेटों से थोड़ा कम. आसपास देखी घटनायें ४-६ दिन तक याद रह जाती हैं. कुछ पुरानी यादें भी और कुछ पुरानी बातें भी, कुछ टीसें-नश्तर सी चुभती. इतना सा संसार बना हुआ है उनका जिसमें वो जिये जा रहे हैं. यही आधार है उनका और उनकी सोच का.

अकेले आदमी की भला कितनी जरुरतें, खुद से थोप थाप कर एक दो रोटी, कभी गुड़ तो कभी सब्जी के साथ खा लेते हैं और अहाते में बैठे-बैठे दिन गुजार देते हैं. बोलते कुछ नहीं.

जब नहीं रहा गया तो एक दिन उनके पास चला गया. पूछ बैठा कि ’चाचा, किसका इन्तजार करते हो?’

हरि बाबू पहले तो चुप रहे और फिर धीरे से बोले,’देश आजाद हो जाता तो चैन से मर पाता.’

मैं हँसा. मैने कहा कि ’चाचा, देश तो आजाद हो गया…. देश को आजाद हुए तो ६३ बरस हो गये. सन ४७ में ही आजाद हो गया था.’

देश तो आजाद हो गया…. सुनते ही एकाएक हरि बाबू के होंठों पर एक मुस्कान फैली और चेहरा बिल्कुल शांत.

हरि बाबू नहीं रहे.

oldman1

चलते चलते:

देखता हूँ जब

उस अँधेरे कमरे की

खिड़की पर रखा

बुझी लौ लिए एक दीपक,

जिन्दा सूखे हुए गुलाब

फंसे हुए गुलदस्ते में

और उस कोने वाली

दीवार से

टिका

टूटे तारों वाला

सितार....

तब दिखती है

इक रोशनी

उठती हुई दिये से

सुनाई देती है एक धुन

तारों से झंकृत

और

महक उठता है

गुलाब की खुशबू से

मेरा तन-मन!!

-समीर लाल ’समीर’

105 टिप्‍पणियां:

  1. हरि बाबू शांत हो गये....!
    हर इंसान के लिये बातों का मायना अलग अलग होता है
    ’चलते चलते’ बहुत अच्छी लगी।
    आभार।

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  2. उम्मीद पे दुनिआ क़ायम है,... या, क़ायम थी?

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  3. गजब का भाव लिए हुए है आपका आलेख… हरि बाबू को तो हरि गति मिल गया आपके अश्वत्थामा हतो हतः से, लेकिन देस में केतना हरि बाबू आजादी का बाट जोह रहा है... कविता बहुत सुंदर... टूटे सितार का धुन अऊर सूखा गुलाब का खुसबू.. अद्भुत!!

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  4. हम में से कई ने अभी वास्तविक आजादी का स्वाद चखा नहीं है। जो तथ्यगत रूप से अवगत हैं,वे भी अनेक रूपों में गुलाम हैं।

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  5. हरि बाबू फिर भी भ्रम पाले हुए ही गए ...

    सूखा गुलाब , टूटा सितार , बुझा दीपक
    महका गुलाब , सुरीली धुन , दीपक की लौ
    एहसास बदलते ही नजारा बदल जाता है ...!

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  6. भावपूर्ण आलेख ...अच्छा लगा पढकर !!

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  7. बेनामी9/15/2010 11:13:00 pm

    ohhhh !!!! pata nahi kyun lekin mujhe andar se kahin kachot gayi yeh rachna...
    kuch na kuch baat thi.......

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  8. वाणी जी ने सही कहा है, "एहसास बदलते ही नज़ारा बदल जाता है."
    कविता बहुत ही खूबसूरत है... सामान्य होते हुए भी असामान्य बिम्ब... सरल होते हुए भी गहरे अर्थ लिए हुए.

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  9. दिल को छू लेने वाली एक संवेदनशील लघु -कथा, जो
    आज के हालात पर बहुत कुछ सोचने को मजबूर
    कर देती है . सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई
    और शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  10. दिल को छू लेने वाली एक संवेदनशील लघु -कथा, जो
    आज के हालात पर बहुत कुछ सोचने को मजबूर
    कर देती है . सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई
    और शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  11. चलते चलते कुछ ठेलने के लिए हरी बाबू की भूमिका जानदार रही.

    जवाब देंहटाएं
  12. पता नहीं कितनों हरि बाबुओं को यह खबर सुनने की चाह है। पर क्या देश आजाद हो गया है?

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  13. वास्तव में आज भि सुदूर इलाको में ऐसे हालत है जिनसे लगता ही नहीं की हम आजाद भी है ...शायद हरी बाबू भी उन्ही हालातों के दायरे में रहे होंगे...संवेदनशील रचना

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  14. सच बोल गए हरी बाबू , काश की हम समझ पाते !उन्हें मेरी श्रद्धांजली !!

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  15. जिन्दा सूखे हुए गुलाब

    फंसे हुए गुलदस्ते में

    और उस कोने वाली

    दीवार से

    टिका

    टूटे तारों वाला

    सितार....

    तब दिखती है

    इक रोशनी

    उठती हुई दिये से

    सुनाई देती है एक धुन

    तारों से झंकृत

    और

    महक उठता है

    गुलाब की खुशबू से

    मेरा तन-मन!!

    बहुत खुब!!

    जवाब देंहटाएं
  16. हरिबाबू को झूठ बोलकर मार डाला आपने। देश की आजादी के इंतजार में और भी कई सांसें जिंदा है, उनके बीच गफलत फैला दी। चचा आप शातिर होते जा रहे हैं।

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  17. बहुत सुन्दर लघुकथा| अभी भी कितने ही हरिबाबू आज़ादी मिलने और इमेरजेंसी हटने का ख्वाब पाले हुए सांसें गिन रहे है| बहुत सुन्दर चित्रण| कविता भी बहुत सुन्दर लगी|
    ब्रह्माण्ड

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  18. सुन्दर , बस संवेदनशील मन चाहिए महसूस करने के लिये ।

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  19. कहानी या सत्य जो भी है, कविता पर भारी पड़ गया....

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  20. आम आदमी को कब पता चला कि देश आज़ाद हो गया उसे जब तक दो वक्त की रोटी नही मिलेगी और घर बाहर गुलामों जैसा व्यवहार होगा तो उसके लिये आज़ादी के क्या मायने । बहुत अच्छी लगी लघु कथा। और कविता। बधाई1

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  21. jaane aise kitane haribabu hai aajtak gaon mein,kash ye sukhe gulab phir se ji uthe.marmik post.

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  22. समीर जी, बड़े सुन्दर भाव व्यक्त किये आपने , संसार मे बहुत से हरी बाबू हैं' जिनके लक्ष्यों कि प्राप्ति नहीं हुई और वे भी अपनी सदगति के इंतजार मे भ्रम पाले बैठे हैं!

    मेरे ब्लॉग पर आपके सुझाव आमंत्रित हैं!

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  23. अरे बाबा ! उडी बाबा !!

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  24. संवेदनशील रचना.....
    _____________________________
    'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.

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  25. क्या कहूँ..?? कहने को शब्द नहीं मिल रहे...गले में कुछ अटक सा गया है..

    नीरज

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  26. तब दिखती है इक रोशनी उठती हुई दिये से सुनाई देती है एक धुन........बहुत खूब ..छु गयी दिल को आपकी लिखी यह पोस्ट शुक्रिया

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  27. बहुत ही ग़ज़ब का भाव लिए हुए कहानी बहुत अच्छी लगी.... कविता भी बहुत अच्छी लगी...

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  28. संवेदना ही संवेदना नज़र आ रही है समीर भाई .... कुछ सिरफिरे इन बातों को खूब समझते हैं ....

    जवाब देंहटाएं
  29. @ उम्र की मार के कारण हरि बाबू की स्मृति धोखा देती है, पर बेटों से थोड़ा कम.

    लगता है हमारे अंदर की इंसानियत भी हरी बाबू के साथ चली (शांत) गई।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

    जवाब देंहटाएं
  30. हरि बाबू को श्रद्धांजलि!
    --
    सूखे गुलाब और वह भी जिन्दा!
    कमाल की अभिव्यक्ति है!
    --
    बधाई!
    --
    दो दिनों तक नेट खराब रहा! आज कुछ ठीक है।
    शाम तक सबके यहाँ हाजिरी लगाने का विचार है!

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  31. सुंदर कविता.. मार्मिक चित्रण..

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  32. हरि बाबू पहले तो चुप रहे और फिर धीरे से बोले,’देश आजाद हो जाता तो चैन से मर पाता.’......
    सच ही तो कहा इस बुजुर्ग ने .... क्या आज सच मै देश आजाद है???

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  33. दिल को गहरे तक छूती हैं रचनाएँ.

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  34. achhi laghukatha.. jeevan ek intezaar hi to hai

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  35. कई बार पढ़ी .....
    लघुकथा भी ....नज़्म भी ......
    कहीं बहुत दूर ....बहुत दूर .... अंधेरों में कहीं .... खींच ले गयी ...
    बहुत देर बाद लौटी हूँ ......
    अब निःशब्द हूँ .....
    इस सफलता के लिए ....बधाई ....!!

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  36. तीर सी आकर लगी ह्रदय में.....

    आपकी लेखनी को नमन !!!

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  37. हरी बाबू की एक मुस्कान ने ही सब कह दिया... कविता जानदार रही..

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  38. उम्र की मार के कारण हरि बाबू की स्मृति धोखा देती है, पर बेटों से थोड़ा कम.

    बहुत सही ...बेटों को तो याद ही नहीं आती ...

    और कविता बहुत खूबसूरत ..

    जवाब देंहटाएं
  39. चलते चलते और हरिबाबू दोनों में ही एक कसक और पीड़ा है.. लेकिन ये पीड़ा बहुत पुरानी है जो अब तक खत्म नही हुई

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  40. बहुत ही सशक्त, हरि बाबू को नमन.

    रामराम.

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  41. हरि बाबू शांत हो गये....!
    हरी बाबू तो नहीं रहे पर जाते जाते हमारा ये भ्रम दूर कर गए की क्या देश आजाद है?
    ’चलते चलते’ बहुत अच्छी लगी।

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  42. सच में हरि बाबू ने तो पूरी देश की व्यथा को अपने भीतर समेट कर हरि गति प्राप्त कर ली । हमेशा की तरह ..अद्भुत पोस्ट ॥

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  43. सोचने को विवश करती पोस्ट।

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  44. बेचारे हरी बाबू बेटों ने तो नाम भी हैरी बाबू कर दिया होगा.

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  45. समीर जी!
    एक विचारणीय पोस्ट.....हरी बाबू तथाकथित आजादी के भ्रम के साथ चले गए....और "चलते-चलते" अपने बिम्बों के प्रयोग प्रभावी बन पडी है...

    शुभकामनाये...

    जवाब देंहटाएं
  46. उम्र की मार के कारण हरि बाबू की स्मृति धोखा देती है, पर बेटों से थोड़ा कम

    bada vyang haisameer ji ...

    ghazab ka ant hai is kahani ka sameer ji ...ummed ya iksha aadmi ke andar jeene kee tamanna zinda rakhti hain ..khair hari babu ki iksha poori hui...santusht hogi aatma


    is kahani ke baad khushbudar kavita kee jo image bani hai wo kafi achhi lagi ...:)

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  47. क्या देश सचमुच आजाद हो गया ...!

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  48. ` हरि बाबू की स्मृति धोखा देती है, पर बेटों से थोड़ा कम'
    सटीक एवं मर्मस्पर्शी :(

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  49. अकेले आदमी की भला कितनी जरुरतें, खुद से थोप थाप कर एक दो रोटी, कभी गुड़ तो कभी सब्जी के साथ खा लेते हैं और अहाते में बैठे-बैठे दिन गुजार देते हैं. बोलते कुछ नहीं.

    सार्थक ही नहीं मूल्यवान अभिव्यक्ति।

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  50. सर, कविता और लघुकथा दोनों ही प्रभावशाली हैं। हार्दिक शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  51. बहुत अच्छी रचना ..
    पढ़कर कुछ और हरी सिंह
    मेरी आँखों के सामने आ गए .
    आभार ....

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  52. jnaab aapki is udntshtri men kbhi hmen bhi bitha lo . akhtar khan akela kota rajsthan

    जवाब देंहटाएं
  53. यह पोस्ट निम्‍न नादस्‍वर से उच्‍च तार सप्‍तक तक समेटे हुए है। साथ ही बज रही है "एक धुन तारों से झंकृत"!!!
    सामाजिक विसंगतियों पर आपका खरा व्यंग्य प्रहार है। इस पोस्ट में जहां एक ओर टूटन, घुटन, निराशा, उदासी और मौन के बीच मानवता की पैरवी करती कहानी है वहीं दूसरी ओर संवेदना के कई तस्‍तरों का संस्‍पर्श करती हुई कविता जो जीवन के साथ चलते चलते मन की अवाज़ को पूरे आवेश के साथ व्‍यक्त करती है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

    अभिलाषा की तीव्रता एक समीक्षा आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

    जवाब देंहटाएं
  54. गुड्डोदादी9/16/2010 12:35:00 pm

    सुमीर जी
    आशीर्वाद
    हरी बाबू चाचा का दर्द सच्चा है ,मार्मिक घायल चाचा,
    कहाँ हुआ देश
    मेरा भी यही प्रश्नं है
    विचारों से तो अभी भी परतंत्र हैं

    जवाब देंहटाएं
  55. अरे कोई मुझे बताएगा की इस ब्लॉग पर इतनी भीड़ क्यों है। क्या राष्टमंडल खेल यहीं पर हो रहे है.......

    जवाब देंहटाएं
  56. सूरज को धरती तरसे,
    धरती को चंद्रमा,
    पानी में सीप जैसे प्यासी हर आत्मा,
    बूंद छिपी किस बादल में,
    कोई जाने ना...

    ओह रे ताल मिले नदी के जल में.
    नदी मिले सागर में,
    सागर मिले कौन से जल में,
    कोई जाने ना...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  57. क्या कहूं। कैसी आजादी। हरी बाबू का इंतजार कभी खत्म नहीं होता। मुझे अक्सर लगता है जैसे एक साथ करोड़ों पिताओं माताओं को देख रहा हूं ऐसी तस्वीरों में। जिन्होंने सादगी में अपना जीवन जी लिया। अब अंतिम समय में उनके बच्चे क्षितिज छूने जो निकले तो फिर क्षितिज की तलाश में ही रह गए। और इधर इंतजार में बेचारा पिता सूनी आंखों से जाने कैसे रस्ता तकता रह जाता है। इन आंखों में तटस्थता का भाव नजर आता है। पर कहीं अंदर बुरी तरह निराश। नहीं क्या।
    इस तस्वीर औऱ बात के जरिए किसी को याद किया है क्या समीरजी। इन आंखों और तस्वीर को देखकर मुझे हमेशा बैचेनी सी होती है। बिना शिकायत के बिना हेरफेर के जिंन लोगो ने जिदंगी गुजारी उनके अंत समय में एकांत की त्रासदी क्यों भगवान डाल देता है। किस बात की परीक्षा लेते हैं भगवान। ये लोग हताश होकर आत्महत्या जैसा कदम भी नहीं उठाते। पर जवान लोग हताश हो जाते हैं। आत्महत्या कर लेते हैं। पर ये लोग निराश होने के बाद भी, आशाहीन होने के बाद भी अकेलेपन की त्रासदी को झेलते हैं। किसी के आने की आस एकदम अंतर्मन में लिए हुए। ऊपर से निंसःग। लौट आए इन आंखों का मरकज। यही दुआ है ।

    जवाब देंहटाएं

  58. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

    जवाब देंहटाएं
  59. भावपूर्ण आलेख .......
    कविता गहरे भाव लिए हुए.....

    जवाब देंहटाएं
  60. अत्यंत संवेदनशील एवं प्रभावशाली ! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  61. तब दिखती है

    इक रोशनी

    उठती हुई दिये से

    सुनाई देती है एक धुन

    बेहतरीन लाइनें...नि:शब्द कर दिया आपने

    जवाब देंहटाएं
  62. कभी कभी एक आस ही काफ़ी होती है जीने के लिये ………………………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  63. संवेदना व्यक्त करता एक महत्वपूर्ण लेख तथा बहतरीन कविता। बहुत बहुत शुभकामनाये! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो..........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ।

    जवाब देंहटाएं
  64. हरि बाबू ने बड़ी आसानी से भरोसा कर लिया आपकी बातों पर ।

    इतनी बड़ी बात पर भरोसा करने से पहले काश थोड़ा जाँचा परखा होता ।

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  65. व्यंग्य प्रभावोत्पादक बन पड़ा है ।

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  66. कई दिनों बाद अवसर मिला,आपकी पोस्ट पढ़ी,सुकून मिला. कई बार ऐसा भी होता है कि जो आप सोचते हैं उसे कोई और आवाज़ दे देता है ! कुछ ऐसा ही सबक मिला....

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  67. बहुत ही संवेदनशील रचना ..लघु कथा और नज़्म दोनों ही ही गहरे तक उतर गए मन में.

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  68. bahut sundar ahsaash sameer ji man ko choo gayi .....
    rachna bhi ar lekh bhi ......

    जवाब देंहटाएं
  69. देखता हूँ जब

    उस अँधेरे कमरे की

    खिड़की पर रखा

    बुझी लौ लिए एक दीपक,

    जिन्दा सूखे हुए गुलाब

    फंसे हुए गुलदस्ते में

    और उस कोने वाली

    दीवार से

    टिका

    टूटे तारों वाला

    सितार....

    गलतफ़हमी में थे कि उन लाखों लोगों की लिस्ट में अपना भी नाम होगा जो इस नियती से बच निकले, काश ऐसा हो पाता…॥
    बहुत ही संवेदनशील रचना

    जवाब देंहटाएं
  70. आज आपकी कहानी के साथ साहिर साब का गीत याद आया .वोह सुबह कि भी तो आयेगी ...हरी बाबु तो आज़ादी का नाम सुन कर निश्चिंत हो सो गए .पर हम कमबख्त ज़िदाबचे जो हैं , गोरों कि गुलामी से छुट कर सफेदपोशों के गुलाम हो गए.ज़बान कि आज़ादी गालियाँ सुनने के लिए, पंथ कि आजादी दंगे -फजाद कि लिए ,जाति बंधनों से मुक्ति के स्थान पर जातियां ही टुकड़े ,अरक्षण कि केद में रोज़गार के सपने जकड़े .हरी बाबु ऐसा आजाद देश छोड गए हो कि जीने वाले मरने कि दुआ करते हैं .कविता में पंक्ति ज़िदा सूखे गुलाब से ही मज़ा आने लगता है. वाह विचार जिंदा सूखे गुलाब का .

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  71. ज़िन्दगी के कितने-कितने चेहरे उद्घाटित करनेवाली आपकी लेखनी को नमन !

    जवाब देंहटाएं
  72. भावपूर्ण रचना ....

    ----
    इसे भी पढ़े :- मजदूर

    http://coralsapphire.blogspot.com/2010/09/blog-post_17.html

    जवाब देंहटाएं
  73. kalam ki pakad bahut aacchi hai padh kar aacchha laga

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  74. क्या सिर्फ ये शब्द काफी होगा ??? बेहतरीन!

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  75. कविता बहुत ही खूबसूरत है..

    जवाब देंहटाएं
  76. सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई
    और शुभकामनाएं .

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  77. अद्भुत, झझोरने वाली रचना
    गद्य पद्य का एक साथ इतना सुन्दर प्रयोग आप ही कर सकते हो

    जवाब देंहटाएं
  78. बहुत ही बढ़िया और दिल को छू लेने वाली कहानी.साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  79. हरिबाबू के बहाने तमाम बुजुर्गों की कथा (कविता) सुना जाली आपने ।
    तब दिखती है

    इक रोशनी

    उठती हुई दिये से

    सुनाई देती है एक धुन

    तारों से झंकृत

    और

    महक उठता है

    गुलाब की खुशबू से

    मेरा तन-मन!!
    वाह ।

    जवाब देंहटाएं
  80. समीर साहब
    दिल को तीर सी लगी कविता........... सुन्दर भाव

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  81. जिन्दा सूखा गुलाब को प्रतीक बना कर लिखी गई कहानी और उस पर आजादी का दर्शन और फिर चलते-चलते में एक सुखद अहसास को जन्म देकर जीवन के सबरंग जोड़ दिए हैं आपने इस कहानी और कविता में ।

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  82. बेनामी9/19/2010 12:53:00 am

    bahut khoob likha
    sach main shandar soch hain aapaki

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  83. सुन्दर लघुकथा. जब भी ऐसा कुछ पढती या देखती हूं, कुछ और विरक्त हो जाती हूं... सुन्दर कविता भी.

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  84. जिन्दा सूखे हुए गुलाब
    फंसे हुए गुलदस्ते में
    और उस कोने वाली
    दीवार से
    टिका
    टूटे तारों वाला
    सितार....
    सुन्दर पंक्तियाँ ! शानदार और ज़बरदस्त आलेख! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  85. मर चुके रिश्तों की मार्मिक दास्तान ।

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  86. A few lines of your n i got goose bumps... very influential...

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  87. हरि बाबू नहीं रहे..
    ..इन चार शब्दों में गज़ब की मारक क्षमता है।

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  88. नमस्कार,
    जन्मदिन की शुभकामनायें हम तक प्रेम, स्नेह में लिपट पर पहुँचीं.
    मित्रों की शुभकामनायें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं.
    आभार

    जवाब देंहटाएं

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