२५ अगस्त को जब हमारी शादी की सालगिरह थी, तब बहुत से ईमेल और कमेंट से पाठकों ने अपनी बधाई प्रेषित करते हुए बहुत सी बातें कहीं. सभी का स्नेह हेतु आभार. जो नहीं कर पाये, उनका भी. आगे बने रहना, अभी और आयेंगे, इस हेतु.
किसी ने पूछा कि आपने क्या गिफ्ट दिया?
काहे भाई, गिफ्ट देने को हम ही बनें हैं क्या? उनका काहे नहीं पूछ रहे कि उन्होंने क्या दिया आपको, यू नारी सपोर्टर!! :)
वैसे सच बतायें...उन्होंने हमें हमारे हाल पर रहम खा कर चोरी गया अज़ारो परफ्यूम नया लाकर दे दिया. और हमने क्या दिया?? अरे, सामान तो हमारा चोरी हुआ था न..उनके पास तो है ही..फिर भी लंच पर ले गये और खाकर बड़ी प्यारी सी क्यूट वाली स्माईल दे आया हूँ. कैसी रही?? इससे अच्छी गिफ्ट और क्या दें भई इस उम्र में?
लेकिन क्या बतायें हमारे ही परफ्यूम वाले पैकेट में उससे तीन गुना मँहगा एक लेडीज़ परफ्यूम भी निकला-हमने पूछा कि ये किसके लिए? वो हसीन मुस्कराहट चेहरे पर लाकर बोलीं, जरा शरमाते हुए-ये आपकी तरफ से मेरे लिए. कैसी लगी? अब क्या कहे, हमारी तरफ से है तो खराब, मंहगा आदि कुछ कहने के काबिल तो बचे ही कहाँ..हाँ हाँ हें हें, बहुत बेहतरीन कहने के सिवाय क्या रास्ता रह बचा, सो कह कर चुप हो लिए. बहुते आत्म निर्भर बीबी टकरा गई है भई. हाँ हाँ हें हें की आदत तो खैर ब्लॉगजगत का टिप्पणी विश्व बखूबी डाल ही गया है. :)
कोई पूछता है कितने साल हो गये शादी के?
काहे बतायें जी? इन्श्योरेन्श एजेंट हो क्या? हमारे हिसाब से तो अभी अभी हुई है..साल भी नहीं बीता और सालगिरह मना लिए हैं..अब कहो? दिखा दो आज तक पर..सनसनी खेज खुलासा..साल के पहले सालगिरह मनाई...अमाँ यार, मिठाई खाओ और खुश रहो-काहे याद दिलाते हो!!
तुम्हारे चक्कर में एक सज्जन की बात याद आती है. बड़ा अपना सा लगता है वह भाई.
एक रात उसकी पत्नी की आँख खुली तो देखा, हर पत्नी की तरह आदतन टतोलते हुए,पतिदेव बाजू में नहीं हैं. खोजते खोजते नीचे उतर कर आई तो देखा, वो ड्राईंगरुम में बैठा सुबक सुबक कर रो रहा है.
पत्नी परेशान, पूछा कि अजी, आज हमारी शादी की २० वीं सालगिरह है खुशी का मौका है और आप रो रहे हैं?
पति बोला-डार्लिंग, तुम्हें याद है कि जब हम छिप छिप कर प्यार किया करते थे तो तुम्हारे पिता जी हमें रंगे हाथों पकड़ लिया था एक रात अस्विकार्य अवस्था में..
पत्नी बोली-हाँ हाँ, याद है.
फिर तुम्हारे कर्नल पिता जी ने बोला था कि मेरी लड़की से शादी करो वरना मैं अपने आपको गोली मार लूँगा. इल्जाम तुम सिर पर लिख जाऊँगा और तुमको आजीवन बीस साल की सजा पड़ेगी.
हाँ हाँ, याद है मगर रो क्यूँ रहे हो?
अरे, इसीलिए तो रो रहा हूँ कि आज तो मैं जेल से छूट गया होता... :)
लेकिन ये तो उस मित्र की बात है जो अपना सा लगता है, हमारी नहीं. हमें क्या लेना देना उससे. हम तो बंदी ही सही. आखिर, जीवन से समझौता भी तो एक चीज होती है.
किसी ने कहा कि हमें तो लगा था कि आज आप साधना जी पर कुछ गज़ल लिख कर पेश करेंगे मगर आप तो चुप मार गये.
अब क्या बतायें-शादी के इतने साल बाद अपने हाथ में कहाँ कुछ कि कुछ बोल पायें. जितना आदेश हो, उतना बोल लेते हैं. आपकी सूचना हमने उनको भी दे दी कि पाठक (हमने प्रशंसक बताया ताकि ऐठन बरकरार रहे) ऐसा चाहते हैं, तब जाकर एक दो दिन में परमिशन मिली और हम जुटे लिखने में.
लिखना तो क्या था, दिल के भाव है. बस, शब्द देने थे. कोशिश की और आप देखिये कि कोशिश कारगर रही कि नहीं. व्यवहार वैसा करो जो सरकार चाहे के आधार पर.
आपका एप्रूवल मिले तो फिर उनको सुनाई जाये.
तस्वीर सामने धर कर आँख बंद कर, तुलसी दास बने लिखे हैं. कुछ त्रुटि हो तो बंद आँख को याद करना वरना तो आप जानते ही हैं कि हमने लिखी है:
तुम...
शून्य में भी चेतना का पूर्ण एक आधार हो तुम
हर सुखद अनुभूतियों में, बसा एक संसार हो तुम.
अग्नि प्रज्जवलित हो चुकी, अब होम की बातें करें
यज्ञ की संपूर्णता में, तेज बन साकार हो तुम.
सात जन्मों तक रहेगा, साथ मेरा और तुम्हारा
इन प्रचारित रीतियों का, खुला मंगलद्वार हो तुम
मैं भटकता जा रहा था, जिन्दगी की राह पर
पथ दिखाती सूक्तियों का, स्वयं एक उच्चार हो तुम.
कुछ गढ़ा कुछ अनगढ़ा आकार है इन मूर्तियों का
अनगढ़ी इन मूर्तियों में प्रणय बन साकार हो तुम.
-समीर लाल ’समीर’