रविवार, फ़रवरी 25, 2007

एक, दो, तीन........

एक, दो, तीन........चार, पाँच, छः...यह सब हम पर की गई प्रश्नों की बौछारे थीं, रचना और जीतू की. एक, दो, तीन........चार, पाँच, छः... सुन हम भी अपने आसान से उठे और माधुरी-तेजाब वाली को याद करते हुये एक दो ऐसे ठुमके लगाये और कमरा बैठ गई. बस क्या बतायें, ऐसी बैठी कि रचना जी और जीतू भाई के जबाब देना तो दूर, चुनाव जीते, उसकी शोभा यात्रा में भी नहीं नाच पाये. वैसे इसमें न तो एक, दो, तीन की गल्ती है और न ही माधुरी की. गल्ती हमारी ही कहलाई, शरीर देखा नहीं और लगे नाचने. यह फरक आया चिट्ठाकारी करने से अपने व्यक्तित्व में. जिस विषय से कुछ लेना देना नहीं, न समस्या समझ में आयी और न ही उस विषय का विशेष ज्ञान है, मगर लिखेंगे जरुर. एक विवाद तो भर हो जाने दो, सब ज्ञानी हो जाते हैं, लगे टिपा टिप्पणी करने, पोस्ट लिखने. अरे भाई, हर विवाद में हाजिरी लगाना तो जरुरी नहीं. मगर नहीं साहब, एक दो तीन पर माधुरी ने नाचा है तो हम क्यूँ न नाचें. फिर चाहे कमर टूटे या कमरा.

लेकिन फिर भी ऐसी लत पड़ी है कुछ न कुछ लिखते रहने की कि कितना भी दूर रहने का प्रयास करुँ भाग भाग कर वापस. लिखना, फिर पढ़वाना और फिर अगले के पढ़ने की पावती का इंतजार और वो ही दूसरे अखाड़े में पढ़ना और पावती पहुँचाना, यह सब दैनिक आदतों में शुमार हो गया है. चिट्ठाकारी का मायने शौक और खाली समय के उपयोग की बजाय जरुरत सा बन गया है. बिना इसके कुछ खालीपन सा लगने लगता है.अब मुझे नशाखोरों से कोई शिकायत नहीं है जिनकी बिना शराब मिले हालात बिगड़ने लगती है, जबकि मालूम है पी कर और बिगड़ेगी. उनके लिये तो दवाईयां है, पुनरुद्धार केन्द्र भी हैं. हमारे लिये तो वो भी नहीं.

इतने प्यारे प्यारे दोस्त बन गये हैं, सब कुछ एक बड़े परिवार के अहम हिस्से. सभी का इंतजार रहता है. कोई बातूनी है, तो कोई फुरसत में बैठा है. कोई तुनक मिजाजी, बात बात में बुरा मान जाता है, तो कोई ऐसा मसखरा कि हर समय मजाक. कुछ कह लो, बुरा ही नहीं मानता. कई बार तो उसके बुरा न मानने का बुरा लगने लगता है. कोई गाता है, कोई कविता सुनाता है, कोई प्रवचन पर प्रवचन, तो कोई अपना तकनिकी ज्ञान हासिल से ज्यादा बांटे दे रहा है और कोई संपूर्ण व्यवसायी . कोई धर्म की बात करता है तो कोई अंतरीक्ष के नीचे की बात करना ही नहीं चाहता. हर मजहब के एक छत के नीचे, यहाँ कांग्रेसी हैं, भाजापाई हैं, एक दो तो इतना ज्यादा वामपंथी विचारधारा के हो गये हैं कि चाहे कुछ हो, कुछ कह लो, कुछ कर लो, मगर वो विरोध करेंगे ही, यह तय है. ऐसा ही तो होता है एक भरा पूरा परिवार. सभी प्यारे होते हैं, हर एक की कमी खलती है. सबका अपना स्थान है-कोई चंचल तो कोई बचपन में ही बड़ा हो गया है, मगर परिवार है, हर तरह के सदस्य होते हैं. अरे, भारतीय हैं भाई हम लोग. हमारे यहाँ तो घर में रहने वाला जानवर भी परिवार का सदस्य होता है, उसी का इंतजार है परिवार पूरा करने को, उनकी कमी बहुत अखरती है.

परिवार के बीच घूमते घूमते भी कभी कभी एकांत की आवश्यता भी महसूस होती है, जो सबको ही होती है और स्वभाविक भी है. तब भरे पूरे परिवार की मनभावन हाहाकार के बीच ही किताब लेकर आंतरिक एकांत में खो जाता हूँ और बहुत कुछ पढ़ता हूँ-मगर जिन दो पुस्तकों की तरफ सबसे पहले हाथ बढ़ता है और बार बार बढ़ता है, वो है हरिशंकर परसाई के व्यंग्य संकलन और फिर अंग्रेजी में रिच डैड पूअर डैड. व्यंग्य तो मुझे शुरु से ही बहुत पसंद हैं और उस पर से जब व्यंग्य, व्यंग्य शिरोमणी हरि शंकर परसाई का तो क्या कहना. उनको पढ़ना मुझे बार बार मेरे शहर ले जाता है. वही जबलपुर जो मेरे मानस पटल पर इस तरह छाया रहता है कि नियाग्रा फाल्स जैसा विहंगम प्रपात भी मुझे धुंआधार, भेड़ाघाट जबलपुर के जल प्रपात की ही याद दिलाता है. मुझे ऐसा लगता है जिन्दगी के किसी भी राजपथ पर आप चलें, बचपन की पगडंडियाँ उन पर हमेशा काबिज ही रहती हैं और उनका महत्व आपके जीवन में हर राजपथ से ज्यादा होता है. फिर रिच डैड पूअर डैड मुझे एक तरह की जीवन शैली लगती है और अपने कैरियर शुरु कर रहे हर युवा को मैं इस पुस्तक को पढ़ने की सिफारिश करता हूँ. (Rich Dad, Poor Dad by Robert T. Kiyosaki). वैसे एक दिन जरुर आप लोगों को इस पुस्तक की कमेंट्रि पेश करुँगा, ऐसी मेरी हार्दिक इच्छा है. मेरी कई और हार्दिक इच्छायें थीं जो वक्त की मौत मारी गयीं मगर इसे मैं न मरने देने की कसम खा कर बैठा हूँ. फिर भी मर ही गई तो क्षमा मांग लूँगा कोई प्रापर्टी तो लिख नहीं दी है.

जब पुस्तक पढ़कर फुरसत पाऊँ तो फिर यही परिवार और कुछ अपने व्यक्तिगत दायित्यवों का निर्वहन, नौकरी, तकनीकि लेखन, तकनीकि और व्यवसायिक सलाहकारी, कविता, मित्रों से मेल मिलाप-बातचीत और फिर नये मित्रों से व्यक्तिगत मेल-मिलाप की इच्छा. चिट्ठाकारी में बहुत से नये मित्र बनें जिनसे मेरी व्यक्तिगत तौर पर मुलाकत भी हुई और अब तो लगता है, बरसों के मित्र हैं, सखा हैं, रिश्तेदार हैं. मैं जब भी मौका लगेगा, हर हिन्दी चिट्ठाकार से मिलना चाहूँगा, जब जब जैसे जैसे मौका आयेगा. बहुतों से फोन पर बात, चैट पर बात करते करते ही अब ऐसा लगता ही नहीं कि उनसे मैं कभी मिला ही नहीं हूँ. इतना सम्मान, उन सबके व्यक्तिगत परिवार में स्थान- सब इसी हिन्दी चिट्ठाकारी की देन है. बहुत कम समय में ऐसा विस्तार, ऐसी आत्मियता शायद और किसी भी तरह से संभव नहीं थी. बस सब ऐसे ही हँसते-खेलते, लड़ते-झगड़ते और फिर गले मिलते रहें, यही सफल और सुखी संयुक्त परिवार की निशानी है. ऐसा ज्ञान मुझे टी वी पर सिरियल देख देख कर प्राप्त हुआ है. साधुवाद!!

कोशिश हर वक्त रहती है कि शायद किसी को प्रेरित कर पाऊँ हिन्दी चिट्ठाकारी शुरु करने को, शायद कोई प्रेरित भी हुआ हो. मगर हमेशा आव्हान रहेगा कि आओ, लिखो, अच्छा लिखो और बहुत अच्छा लिखो. कौन पढ़ेगा, यह मत सोचो. मैं हूँ न!! पढ़ूँगा भी और शाबासी भी दूँगा. :) यह भी मेरी आदात का हिस्सा है. फिर भी नहीं लिखना तो यह तुम्हारी इच्छा है, तुम्हारी जगह लिखूँ भी मैं, यह नहीं हो पायेगा. भारत सरकार होता तो कर भी देता कि तुम कमरे में बैठो , सोचो और बाकि सारा ठीकरा अपने सर फुड़वाने के लिये मैं सरदार तो बैठा ही हूँ. आँ हा, यह यहाँ का नियम नहीं है.

मैं हर विषय पर लिखता हूँ. हल्के फुल्के माहौल में अपने दिल की बात कहता हूँ. कोशिश रहती है कि कोई मेरी लेखनी से आहत न हो और कोशिश करता हूँ कि कितनी भी संजीदा बात क्यूँ न हो, माहौल हल्का फुल्का बना रहे. बात बहते हुये कहूँ, लोग बहें और वैसे ही सुनें-बस, कोई डूबे न!! मैं हमेशा विवादित मुद्दों से बच कर चलना चाहता हूँ. न तो मैं ऐसे मुद्दों पर लिखता हूँ जिस पर मुझे ज्ञात है कि विवाद होगा और न ही ऐसे मुद्दों पर चल रही किसी बहस का हिस्सा बनना मुझे पसंद है. मैं इस तरह की पोस्टों पर टिप्पणी करना भी पसंद नहीं करता मगर आदतानुसार कभी एकाध बार कर ही देता हूँ, उसे सब लोग कृप्या मेरी भूल ही मानें. मेरा ज्ञान कम है, मैं ऐसे विषयों पर ज्ञान हाँसिल करने का आकांक्षी भी नहीं, तो आप को ही मुबारक!! बहुत बधाई!!

मेरे अधिक टिप्पणी, जिसके लिये में बदनाम हूँ, करने के पीछे भी यही उद्देश्य होता है कि लिखने वालों को प्रोत्साहन मिले. हर चिट्ठाकार अपनी नजर में अपना बेहतरीन ही परोसने की कोशिश करता है. जब वो इतनी मेहनत करता है तो उसकी लेखनी ही नहीं वरन प्रयास भी उसे तारीफ का हकदार बनाते हैं. बिना तारीफ के तो बड़ा से बड़ा शायर और साहित्यकार भी थक कर कट ले. मुझे लगता है कि तारीफ करके मैं जो प्रोत्साहन देता हूँ और जो औरों द्वारा की गई तारीफ से मुझे मिलता है, वही इस विकास की दर को बढ़ा रहा है, जिस दिशा में हम सब अग्रसर हैं. यही तो हम सबका उद्देश्य भी है. यहाँ की घूस यही है, तारीफ करो, तारीफ पाओ. वरना तो इमानदारी की ही बात करते रहोगे तो भारत का विकास ही रुक जायेगा.

हमेशा से और आज भी सबके सहयोग से और प्रोत्साहन से ही हम लिख रहे हैं और अन्य भी यही कर रहे हैं. सबका आभार व्यक्त करने को दिल करता है, वरना एक साल में तस्वीर मे इतना बदलाव और सदस्यों की संख्या में दो गुने से ज्यादा का इजाफा- यह सब यूँ ही संभव नहीं था. उम्मीद करता हूँ कि आगे भी सब यूँ ही समृद्ध होता रहे. नये लोग आयेंगे, कोई एम बी ए होगा, कोई पी एच डी...सबका सम्मान करना हमारा फ़र्ज है, न कि बराबरी करना कि उसकी कमीज हमारी कमीज से ज्यादा सफेद क्यूँ?

अपनी या किसी और की अच्छी खराब पोस्ट का तो क्या जिक्र करना. अच्छा खराब तो पढ़ने वाली नजरों का कमाल है, जैसे कि सुंदरता देखने वाले की आँखों मे होती है, वरना तो प्रयास हमारा और सबका अच्छे से अच्छा पेश करने का ही होता है. तकलीफ किसी की किसी बात से नहीं होती. बस थोड़ी कोफ्त होती है जब भाषा ज्ञानी कठीन शब्दों का इस्तेमाल कर नये आये कम भाषा ज्ञानियों पर अपनी सोच थोपने का प्रयास करते हैं और विवाद खड़े करते हैं. अरे समझो भाई उद्देश्य को, न कि आदर्श को. वो भी वहीं पहुँचने का प्रयास कर रहा है, जिस राह में तुम थोड़ा आगे हो. रास्ता दिखाओ- न कि आँख!!

मेरी नजर में अंतरजाल पर हिन्दी का विकास सामान्य बोलचाल की भाषा के इस्तेमाल से ही हो जायेगा, तो क्लिष्टता क्यूँ कर. यह महज विकास की राह में रोड़े का काम करेगा और आम लोगों को आने से रोकेगा. मुझे नहीं लगता कि अभी तीर्थंकरों और पीठाधीशों की आवश्यकता है. वह सब समृद्ध समाज में शोभित होते हैं तो पहले समृद्धता तो आ जाने दो. भूखे-नंगे को अध्यातम और योग सिखाओगे तो सिवाय फजियत के कुछ न मिलेगा. हाँ, अपना अनुभव बांटते रहो, भटको को राह दिखाओ, समाज को समृद्ध बनाने में योगदान करो, तो बात बनें. सिर्फ़ तुम्हारे मुगदर भाँजते रहने से पूरा मुहल्ला पहलवान नहीं हो जाता.

मुझे लगता है कि यह सब लिखते लिखते मैंने जाने आनजाने रचना जी और जीतू भाई के द्वारा उठाये गये सभी प्रश्नों के उत्तर अपनी तरह से दे दिये हैं, अब वो भी थोड़ी मेहनत करें और प्रश्न के जवाब उपर खोंजे, सभी मिल जायेंगे. प्रश्न दर प्रश्न जवाब देने में मुझे लगता है कि मैं किसी परीक्षा को दे रहा हूँ और उसमें तो अक्सर फेल हो जाता हूँ, सो नहीं दिया.

रही बात नये पाँच चिट्ठे, जिनसे मैं कुछ बताने को कहूँ तो बस परंपरा का निर्वहन कर रहा हूँ, वैसे तो लगभग सभी अटक चुके हैं, मगर मैं जीतू और रचना जी के प्रश्नों के कॉमन प्रश्न ही पूछ रहा हूँ:


१.आपके लिये चिट्ठाकारी के क्या मायने हैं?
२.क्या चिट्ठाकारी ने आपके जीवन/व्यक्तित्व को प्रभावित किया है?
३.आप किन विषयों पर लिखना पसन्द/झिझकते है?
४.यदि आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है?
५.आप किन विषयों पर लिखना पसन्द/झिझकते है?

जगदीश भाई ने इस प्रश्न के दो बार पूछे जाने की ध्यान दिलवाया, आभार.
५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं.


और जिन्हें मैं इसमे फंसाना चाहता हूँ कि जवाब दें वो हैं:

आशीष श्रीवास्तव: अंतरीक्ष वाले

लक्ष्मी गुप्ता जी

रंजू जी

प्रमेन्द्र प्रताप सिंह

डॉ भावना कुँवर

अब चला जाये.

चलते चलते: आज कुछ नहीं, सिर्फ़ इंडी ब्लागिज में मेरा समर्थन करने के लिये पुनः आभार!!

26 टिप्‍पणियां:

  1. https://www2.blogger.com/comment.g?blogID=8480538747877974976&postID=3316640070200234924
    मेरी टिप्‍पणी यहॉं देखिये

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  2. बेनामी2/24/2007 11:29:00 pm

    Without you're permission Bhai,I have 'dared' to include you as my 'favorite' hindi blogger.I am 'equally' audacious to put you on my main page too,Rok sako tou rok lo.
    Love,PI.

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  3. बेनामी2/25/2007 12:32:00 am

    अगर परीक्षा में इस प्रकार उत्तर देते तो फेल हो जाते, मगर यह चिट्ठा जगत है. आप पूरे अंको से पास होंगे. :)

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  4. वाह मान गये, जवाब हो तो ऐसा।

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  5. वाह लालाजी,

    खूब लिखे हो आप.. हमेशा की तरह.

    पर गिरफ्तार हो गए ना. :( मैने तो आपका नाम नही दिया. मुझे गिरफ्तारी से डर लगता है.

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  6. बेनामी2/25/2007 03:29:00 am

    स्टूडेंट तो आप अच्छे निकले, बहुत अच्छा जवाब भी दिया, मगर टीचर की तरह प्रशन पत्र सही नहीं बना, भाई साहब तीन और पांच नम्बर पर एक ही सवाल है, सेम टू सेम । स्माईले :)

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  7. बेनामी2/25/2007 03:31:00 am

    अच्छा लगा आपका जवाब देने का अंदाज़.. और मौलिकता भी...ma

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  8. बेनामी2/25/2007 03:34:00 am

    गुरु मुझे शिष्य बना लो आप तो बस्……और हां मुझे ना सुनाई नही देता। हा हा हा…।
    मस्त लिखा है आपने हमेशा की तरह। आपकी "मेरी नजर में अंतरजाल पर हिन्दी का विकास…………" इस बात से मैं सहमत हूं क्योंकि हिंदी इसीलिए बची हुई है या समृद्ध हुई है कि इसने समय समय पर अन्य भाषाओं के शब्दों को अपने मे समाहित किया है। क्लिष्ट हिन्दी की बजाय हिन्दुस्तानी भाषा जो आम बोलचाल की भाषा है ज्यादा अच्छी और प्रभावी लगती है , कम से कम मेरी नज़र में।

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  9. समीर जी, जबलपुर के पानी में कुछ तो जादू है, आपके लेखन में भी
    परसाईजी, रजनीश, महेश योगी, सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ गोविंद दास, रामेश्वर शुक्ल जैसे साहित्यकारों के गुण नजर आते हैं। बधाई!!

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  10. समीर जी

    आपने सत्य लिखा है कि लिखना भी एक नशा बन जाता है.....न लिखो तो मन उचाट होने लगता है और लिख्नने लगो तो सोचो कि किस विषय पर लिखा जाये....सब विषयों पर तकरीबन तकरीबन कुछ न कुछ लिखा जा चुका है
    किसी ने सच ही कहा है

    "किसी को दौलत, किसी को शौहरत किसी को इज्जत का नशा है
    तो फिर मय के नशे में क्या खराबी है
    मै सच कहता हूं ध्यान से सुनो दोस्तो
    आदतन हर आदमी शराबी है "

    तो हम चिट्ठाकार भी एक तरह के शराबी ही हुए.......लिखने के नशे में टुल ....

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  11. लिखी कहानी लाला बन कर, प्रवचन देते बन कर स्वामी
    हे महान चिट्ठा लेखन, यों लगता है हो अन्तर्यामी
    वसुधा एक कुटुम्बी, तुमने चिट्ठा जग आधार किया है
    आस बने अब चिट्ठाकारी, सहज तुम्हारी ही अनुगामी

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  12. विवरण और तर्क के साथ सम्पूर्ण उत्तर!

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  13. बेनामी2/26/2007 12:14:00 am

    एक बड़े कवि ने भी कहा है "जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख,और इसके बाद भी हम से बड़ा तू दिख"।
    समृद्धि पहले या समता?कभी विवेकानन्द,गाँधी,विनोबा और जयप्रकाश जैसों से कल्पना में भेंट हो जाए।दलित-वंचित का, हाट-बाजार का ब्रह्मज्ञान और मठी-तिकड़मी ब्रह्मज्ञान के बीच अभेद नहीं रह जाएगा।

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  14. वाह खूब दिल से जवाब दिए सब। आज की पोस्ट स्वामी समीरानन्द ने नहीं समीरलाल जी ने लिखी है।

    लेकिन हमारे प्रश्न नंबर १ और २ के उत्तर नहीं दिए आपने।

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  15. समीर जी परीवार बढा रहे हो, इस्तीहार भी निकाल दिया कि मैं एक गधा हूं, बडे काम का हूं जनाब. जिसके घर के बाहर बध जाता हूं उसके पौबारह हो जाते है.आपके बारे में पढा कि आप अवार्ड पा गए है. आपका साक्षातकार भी पढा, तो यह गधा आपका टेबल फैन बन गया. आपकी उडन तस्तरी पर भी जा पहूंचा. पढा, और विज्ञापन देखा तो लगा ढेंचू ढेंचू करने. ऐसा मालिक भी साहब किस्मत वाले गधों को ही नसीब होता है जो जनवरों को भी घर परीवार का हिस्सा मान ले. वर्ना आजकत तो भारत में जिस गाय का दूध पी कर खान्दान बनता थ उसे कसाई को बेच दिया जाता है, परीवा की धुरी रह बुजुर्ग घर में कुत्ते से भी गया गुजरा हो जता. अलीसेसन कुत्ता ब्रिटेनिया के बिस्किटा खात है और बुजुर्ग रोटी के एक टुकडे को गिडगिडाता है. फिर ऐसे में यदी आप जानवरों को भी परीवार का सदस्य मानते हैं तो आप महान हैं आपका नाम मेनका जी को मेल करन चाहिये मै. अखिल संसार गधा एकता मच की ओर से यह प्रस्ताव अवश्य भेजूंगा.

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  16. समीर भाई,
    अपने घर से दूर होने और व्यस्तता बढ़ जाने के कारण मैं नेट पर नहीं आ सका पर सर्व प्रथम बधाई स्वीकारे पुन: पुरस्कार प्राप्त करने के लिए…और यह मैं जानता था तो आश्वस्त था ही…।
    अब प्रवचन से लेकर परिचर्चा और प्रश्नोतरी सभी की
    उम्दा धारा आसे बहती है…।
    बहुत अच्छा लगा…बधाई…पुन: स्वीकारे!!!

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  17. समीर जी ने मुझे टैग किया है। उनके प्रश्नों के उत्तर देखने के लिये यहाँ क्लिक करें।

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  18. ये बहुत नाइन्साफ़ी है कि अभी तक आपकी इस पोस्ट की चर्चा नहीं हुयी। चिट्ठाखोरी भी एक नशा है
    और आप इसके चक्कर में फंस गये हैं। अब इससे मुक्ति का फिलहाल कोई उपाय भी नहीं है। ये जो भाषाई पहलवानी वाली बात कही आपने वह भी एक तरह की पहलवानी ही है महाराज! अरे कठिन लिखना सीखो न आपको कौन रोकता है! :)
    कामना है कि आपकी टिप्पणी करते रहने की बदनामी और होये और आप एक-एक पोस्ट पर दो-दो टिप्पणियां करने लगो!

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  19. समीर जी आपका लिखा दिल को बाँध लेता है ...बहुत ही भाव पूर्ण शेली में लिखते हैं आप ..
    पहले में चिट्ठाकारी के विषय में नही जानती थी
    ..लिखती कई जगह थी पर वोह संतुष्टि नही मिलती थी ..जो अब यहाँ लिखने में मिलती है ...

    आपके प्रश्नो का उतर देने की कोशिश करती हूँ :)
    १.आपके लिये चिट्ठाकारी के क्या मायने हैं?

    यह मेरे लिए सच में अब एक नशा बन चुका है ..यहाँ पर सब इतना अच्छा और भाव पूर्ण लिखते हैं की अब बिना पढ़े रहा नही जाता है ..रोज़ नयी बात पढ़ने को मिलती है ..रोज़ कुछ नया पढ़ने कि जो भूख थी वोह यहाँ आ के अब जैसे शांत हो जाती है

    २.क्या चिट्ठाकारी ने आपके जीवन/व्यक्तित्व को प्रभावित किया है?

    यहाँ सब एक परिवार की तरह हैं ..सो सबका लिखा हुआ पढ़ने से असर तो पड़ता ही है कई अच्छी बाते जानने को मिलती हैं ..कई के विचार हमे परभावित करते हैं ..अब यहाँ एक का नाम लेना मुश्किल है सच में कई के लिखा पड़ने से मेरे अंदर एक सकरात्मक सोच उत्पन हुई है ....

    ३.आप किन विषयों पर लिखना पसन्द/झिझकते है?

    मेरे पसंद के विषय कविता ही हैं मुझे ज़िंदगी की सचाई ,प्यार और दर्द पर लिखना बहुत पसंद है ...लिखना पसंद नही है तो किसी विवाद पर कुछ ऐसा नही लिखना चाहती की किसी का दिल दुखे ..क्यूँ की मेरे लिखने के मक़सद हमेशा दूसरो के दिल की बात अपने लफ़्ज़ो में कहना है .. अब इस में कितनी कामयाब हूँ यह नही जानती ..पर हमेशा दिल कि बात लिखने कि कोशिश रही है मेरी!

    ४.यदि आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है?

    यह सबसे मुश्किल सवाल है ...क्यूं कि जिनको मैं इतने दिन से पढ़ रही हूँ उन सबसे मिलने की इच्छा होना स्वभाविक है ..अब इनमें किसी एक का नाम नही लिया जा सकता है ..दिल में बस एक उमीद है कि एक दिन सबसे ज़रूर मुलाक़ात होगी ...:)

    ५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं.

    मेरी पसंद कि पुस्तके जो मैं बार -बार पढ़ती हूँ ..एक "अमृता प्रीतम" कि "रसिदी टिकट" और दूसरी "बशीर बद्र" कि "तुम्हारे लिए "

    और अंत में आप सबका दिल से शुक्रिया कि आप मेरे लिखे को बहुत ध्यान और बहुत प्यार से पढ़ते हैं .यही बात मुझे और अच्छा लिखने कि प्रेरणा देती है ..शुक्रिया

    रंजू

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  20. माफ करना समीर जी अपने सवालों में ऐसे उलझे की आपके लेख को पढ़ा तो बहुत स्वाद ले लेकर :)पर अपनी चिन्ता में आपको टिप्पणी देना भूल गये। समीर जी आपके विचार पढ़कर अच्छा लगा और अच्छा लगा ये "प्रोग्राम" जिससे हम सभी के व्यक्तित्व के बारे में जान सके। मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई!!!

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  21. बेनामी2/27/2007 06:40:00 am

    ye naya andaj pasand aayaa!! hamesha kee tarah ek seekh ke roop me is lekh ko bhi padh aur samajh liya! maaf kare hindi nahi likha pa rahi kuchch samasya hai.

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  22. आप तो व्‍यक्ति से संस्‍था हुए जा रहे हैं। आपके हर तेवर से कुछ सीखे जा सकने की गुंजाइश है।

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  23. समीर जी लीजिये हमने जिस परम्परा को तोड़ने का दुस्साहस किया था उसको फिर सम्मान पूर्वक जोड़ने का प्रयास कर रहे है। हमारे शिकार हैं-
    1.तुषार जोशी
    2.अनिल कुमार त्रिवेदी
    3.राजीव रंजन प्रसाद
    4.अनुपमा चौहान
    5.मोहिन्दर कुमार

    और जैसी की प्रथा है मैं भी प्रथा का पालन करते हुये कुछ प्रश्न पूछना चाहूँगी-

    प्रश्न १- साहित्यिक जगत से जुड़ा हुआ कोई अनुभव बतायें?
    प्रश्न २- किस साहित्यिक विभूति से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और मिलने की इच्छा रही?
    प्रश्न ३- किस उम्र के पड़ाव से लिखना प्रारम्भ किया और क्यों?
    प्रश्न ४- होली उल्लास को लिये हुये आपके दरवाजे पर दस्तक दे रही है उस सन्दर्भ में कुछ लिखें?
    प्रश्न ५- युवा वर्ग में अपनी भारतीय संस्कृति को जीवित बनाये रखने एवं उनमें साहित्यिक अभिरुचि
    पैदा करने के लिये क्या प्रयास होने चाहियें?
    प्रश्न ६- अपनी रुचि की ५ साईट जो ब्लॉग से अलग हों बतायें?

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  24. सच माने मे हिन्दी चिटठाकारी मे एकाकी पन कम और परिवार की भावना अधिक दिखती है। और असली हकदार तो आप का प्यार ही है जो बार -2 हमें यहाँ तक खींच लाता है।
    हरिशंकर परसाई की ही तर्ज पर मुझे लखनऊ के ही के पी सक्सेना जी की व्यंग्यात्मक शैली बहुत पसंन्द आती है, क्या ख्याल है के पी के बारे में।

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  25. बेनामी3/01/2007 06:18:00 am

    समीर जी,

    आपने भी मुझे लपेट दिया..... ये लो तीन दिन मे तीन लोगो ने शीकार कर लिया :)
    वैसे ये राहत की बात है कि आपके प्रश्नो का उत्तर मैने दो किश्तो मे दे दिये है... एक प्रत्यक्षाजी के सवोलो के जवाब मे दूसरे ईस्वामी जी के जवाब मे

    हमारे पुराने डोमेन से नारद जी नाराज थे इसलिये नयी दूकान खोली है, आपके जवाब वहीं है !
    नयी दूकान का पता है
    http://hindigram.org
    और आपके सवालो के जवाब है
    http://www.hindigram.org/index.php?option=com_content&task=view&id=17&Itemid=9
    http://www.hindigram.org/index.php?option=com_content&task=view&id=15&Itemid=9

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