बुधवार, फ़रवरी 21, 2007

कवि-क्यूँ, कैसे और आप: प्रवचन माला २-३

एक ही प्रवचन माला में भाग २ और ३ एक ही साथ - ताकि लेख की लम्बाई सिद्ध कहलाये:

भाग-२

कवि कई प्रकार के होते हैं. इस लेख में मैं अपनी पहुँच को ध्यान में रखकर निम्नलिखीत श्रेणी के कवियों को नहीं कवर कर रहा हूँ:

ये वो कवि है जो अधिकतर कुर्ते पैजामें में पाये जाते हैं, अपनी बैठक से बारामदे के बीच तन से विचरण करते हुये. मगर मन से यह संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करते हैं. इनके ५ से ६ दोस्त होते हैं और वो भी इसी श्रेणी के कवि होते हैं. सब शाम को किसी एक के घर में इक्कठे होकर गोष्ठी के रुप में एक दूसरे को अपनी कवितायें सुनाते हैं, चाय पीते हैं और बस वापस. कवि सम्मेलनों में भी नहीं जाते हैं या बहुत ही कम जाते हैं. ये अधिकतर या तो शिक्षा जगत से जुड़े पाये जाते हैं या पत्रकारिता से. इनका समाज में बहुत नाम रहता है और किताबें अक्सर कालजयी. कभी कभी तो शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा भी.

साथ ही इनको पढ़ने वाला वर्ग भी अलग है जो कमरे में बंद होकर चुपचाप इनको पढ़कर सो जाता है. न आह करना है, न वाह. समझ आ गया तो बढ़ियां और न आया तो भी बढ़ियां.

मेरा लेख इनकी बात नहीं कर रहा है. मैं अन्य श्रेणियों के कवियों की बात कर रहा हूँ. मगर जिनकी मैं बात कर रहा हूँ, उनमें भी भरपूर अपवाद हैं. जिनको कोई भी बात ऐसी लगे कि यह गलत है, वो ततक्षण अपने को अपवाद मान लेने को स्वतंत्र हैं.

एक दिन रवि भाई का लतीफा सुन रहा था:


कवि सम्मेलन के मंच से उतर रहे कवि से श्रोता ने कहा - मैं जब भी आपकी कविताएँ
सुनता हूँ, बहुत ही आश्चर्य करता हूँ।
कवि ने गदगद होकर कहा - आपका मतलब है, मैं इन्हें कैसे लिखता हूँ।
श्रोता - जी नहीं, मेरा मतलब है, आप इन्हें क्यों लिखते हैं?


तो यही सवाल मैने किया कुछ नार्मल और कुछ ब्लागर कवियों से: आप आखिर कविता लिखते क्यूँ हैं? इसके जो जवाब आये, वो इस तरह हैं;

-क्योंकि हमें कविता लिखना आती है.
-क्योंकि हमें लगता है कि जो भी भाव हमने कागज पर उतारे हैं, वो कविता हैं.
-क्योंकि हम गाते अच्छा हैं मगर उतना अच्छा भी नहीं कि गाना गा दें तो कविता गाते हैं और इसीलिये लिखते हैं.
-क्योंकि हमें इससे मंच से बोलने का मौका हाथ लगता है.
-क्योंकि हमें लेख लिखना नहीं आता.
-क्योंकि लेख लंबे होते हैं, और उतना टंकण हमारे बस का नहीं.
-क्योंकि मित्र और सखा बताते हैं कि हम अच्छी कविता कर लेते हैं.
-क्योंकि हमारे हाथ एक किताब लग गई है, जिसमें हिन्दी के कठिन कठिन शब्द बड़े आसान भाषा में समझाये गये हैं.
-(मेरी पसंद) क्योंकि जब हमने पहली चिट्ठा प्रविष्टी की तो नये होने के कारण कॉमा-फुल स्टाप आदि उपयोग नहीं कर पाये और पंक्तियाँ भी इधर उधर हो गईं. हाँलाकि छोटा सा आगमन संदेश गद्य में लिखा था, मगर सबने उसे मुक्तक समझ कर खुब तारीफी कशीदे पढ़े और हमें मुक्तक बहादुर की पदवी दे डाली, तब से मुक्तक लिखते आ रहे हैं. हमने यह लिखा था:


महफिल में तेरी देखिये, अब हम भी आ गये
नारद को कर सलाम, नाम अंकित करा गये
कल से उडेंगी रोज यहाँ भावों की तितलियाँ
जो भी लिखा था आज, वही सबको पढ़ा गये.


खैर, और भी कई कारण होंगे, जो लोग कविता लिखते/सुनाते हैं. मगर जो भी वजह हो, सुनना और पढ़ना तो दूसरों को पड़ता है, जैसा कि मैने अपनी प्रथम प्रवचन माला में समझाया था. अब आपको बतायें कि सुनने और पढ़ने वालों का क्या कहना है कि लोग कविता सुनते और पढ़ते क्यूँ हैं:

-क्योंकि हमें कविता समझ में आती है.
-क्योंकि उन्हें सुनना/पढ़ना हमारी मजबूरी है, आखिर सुनाने / लिखने वाले हमारे खास मित्र हैं.
-क्योंकि इससे हम साहित्यिक टाइप के नजर आते हैं और समाज में इज्जत बढ़ती है.
-क्योंकि जिस कंपनी में हम नौकरी करते हैं, वहाँ के बॉस को कवि सम्मेलन करवाना अच्छा लगता है, जैसे सहारा. तो नौकरी की खातिर सुनते हैं.
-क्योंकि वहाँ सुनने आये अन्य बड़े लोगों से मुलाकत हो जाती है.
-क्योंकि हम घोर आशावादी हैं और हमें हर बार लगता है कि शायद इस बार कोई कायदे की कविता लिखी होगी.
-क्योंकि एक लेख पढ़ने में लगने वाले समय में पाँच कविता पढ़ी और टिपियायी जा सकती है.
-क्योंकि वो भी हमारे लिखे लेख बड़े चाव से पढ़ते हैं तो हम उनकी कवितायें.

इन साहब से हमने पूछा कि आपको कैसे पता कि वो आपके लेख चाव से पढ़ते हैं. तब वो कहने लगे कि उनकी टिप्पणी देख कर. हमने कहा कि टिप्पणी तो दूसरों की टिप्पणी के आधार पर भी कर गये हों बजाय आपके ऊबाऊ लेख पढ़ने के, इस बात की क्या गारंटी है. तब वो हँस दिये बोले हम ही कौन उनकी कविता पढ़कर करते हैं, हम भी टिप्पणियों से माहौल समझ कर लिख आते हैं.

अब सुनने वाले तो फिर भी सरलता से निपट जाते है, मौके के हिसाब से सामुहिक ताली वाली बजा ली, बीच बीच में आह वाह कर ली. बहुत ध्यान आकर्षित करना है तो बीच में चिल्ला कर बोल दिये, बहुत अच्छे आदि. ज्यादा है तो चुपचाप बैठे रहे.

अब सुनने वाले तो फिर भी सरलता से निपट जाते है, मौके के हिसाब से सामुहिक ताली वाली बजा ली, बीच बीच में आह वाह कर ली. बहुत ध्यान आकर्षित करना है तो बीच में चिल्ला कर बोल दिये, बहुत अच्छे आदि. ज्यादा है तो चुपचाप बैठे रहे.


भाग-३

मगर ब्लाग पर पढ़ने वालों की सोचो, अब पढ़ तो लिया ही, तो यह बताना भी एक काम ही है कि हमने पढ़ लिया. वरना कवि को सपना तो आयेगा नहीं कि आपने पढ़ लिया. इस पावती को चिट्ठे की साहित्यिक भाषा में टिप्पणी कहा जाता है और चलती फिरती भाषा में लोग इसे दाद कहते हैं. कवि कवि होता है, सब समझता है कि आपने पढ़ कर टिप्पणी की है कि बस करने को की है, जैसे:

-बढ़िया है या क्या खुब या फिर वाह भई वाह, मजा आ गया.

यह अभी तक चल जा रहा था, अब नहीं चलेगा. अब खुब कवि आ गये हैं मैदान में. दाद पर तक दाद मिल रही है.कविता तो छोड़ो, कविता की टिप्पणी कविता से बढ़ चढ़ कर हैं. तारीफों के उपवन खिले हैं, तरह तरह के फूल लगे है, एक से एक महक वाले. इसमें अब आपके ये गंधरहित कागजी फूल नहीं चल पायेंगे. बात मानिये, पुराने लोगों को वक्त के साथ साथ बदलना होगा. नये जमाने का नया मिजाज अपनाना होगा. नये पैंतरे अजमाने होंगे, टिप्पणी देने और पाने में सामंजस्य बनाये रखने के लिये.

बढ़िया है या क्या खुब या वाह भई वाह, मजा आ गया :यह बार बार लिखते रहोगे तो वो कवि समझ जाता है कि महज टिप्पणी पाने के लिये की गई झटकेबाजी है और टिप्पणी कर्ता अपनी साख खो देता है. अब अगर परिवार के भीतर ही साख खो जाये तो बाहर क्या हाल होगा, तब तो आप गये काम से और वो भी हमारे रहते हुये, यह हमसे नहीं देखा जायेगा. इससे बचने के कुछ सुगम उपाय आपको बताये जा रहे हैं. समय बदल रहा है. नये नये शोध हो रहे हैं. यहाँ उपलब्ध सभी उपाय आसपास के वातावरण से बहुत गहरे शोध के बाद लाये गये हैं और अभी एकदम ताजे हैं, शायद कल थोड़ी प्रासंगिगता खो दें, मगर उसमें काफी वक्त लगेगा. हम तो हैं ही, तब फिर नया शोधपत्र जारी कर देंगे मगर आपकी साख पर आँच नहीं आने देंगे. आखिर इस हेतु हम अपने मात्र ८ माह पुराने शोधपत्र को निरस्त करते हुये यह नया शोधपत्र लाये ही हैं, फिर ले आयेंगे.

इन उपायों में फेर बदल करना है या यूँ ही कट-पेस्ट कर देना है, यह पूर्णतः आपके सोये स्व-विवेक, काव्यत्मक नासमझी और फोकटिया समय की उपलब्धता पर निर्भर करता है.


इन उपायों में फेर बदल करना है या यूँ ही कट-पेस्ट कर देना है, यह पूर्णतः आपके सोये स्व-विवेक, काव्यत्मक नासमझी और फोकटिया समय की उपलब्धता पर निर्भर करता है.


तो सुनो, अगर छोटी सी क्षणिका है या हाईकु या फिर मुक्तक टाईप की रचना है, तो टिप्पणी भी छोटी करना ही जायज होता है, ऐसा चिट्ठा कवित्त के विद्वानों का मानना है. वरना कई बार देखा गया है पोस्ट से बड़ी टिप्पणी हो जाती है और भटकाव की स्थिती उत्पन्न हो जाती है. कम से कम इस भटकाव के आप निमित्त न बनें. बस इअनमें से कोई भी एक छोटी सी सुंदर सी टिप्पणी करें, इसी ब्लाग पर अपनी पिछली टिप्पणी से अलग:

-मनमोहक ; मनभावनी पंक्तियां; सुनहरे भाव; शीतल बयार; हृदय स्पर्शी;
अनुपम अहसास;एक खुबसूरत अभिव्यक्ति;मार्मिक चित्रण; या
अनोखा शब्दचित्र ....


और लोगों की टिप्पणियों पर भी ध्यान दें. कोई नया शब्द या छोटा सा वाक्य मिल जाये, तो कट पेस्ट कर भविष्य के लिये अपने कम्प्यूटर पर सुरक्षित रख लें और मौका देखकर इस्तेमाल चालू.

अब यदि कविता चार छः लाईनों से बड़ी है तो बस आपको यह देखना होगा कि किस बाबत है, जैसे कि राजनीति पर, किसी विभिषिका पर, कोई ज्वलंत मुद्दे पर, प्रेम पर या किसी त्यौहार पर. इसके लिये कतई आवश्यक नहीं कि आप कविता पढ़ें. अन्य ढ़ेरों लोग उपलब्ध हैं इस झुझारु कार्य को करने के लिये, जो मन लगाकर पढ़ेगे. आप काहे जहमत लेते हैं. थोड़ा ठहर कर जायें, कुछ टिप्पणियां आ जाने दें, उन्हें पढ़कर आप आसानी से अंदाजा लगा लेंगे कि किस बाबत लिखा गया है. टिप्पणी की साईज मायने नहीं रखती वो फार्मूला आप यहाँ इस्तेमाल कर सकते हैं.

कुछ सेंपल टिप्पणियां तो कविता के मूड के हिसाब से यहाँ दे रहा हूँ. माहौल समझकर और उसके हिसाब से टिप्पणी यहाँ से उठाकर सीधे चेप दें बिना किसी फेर बदल के:

१.प्रेम के भाव जगाती एक अच्छी कविता।आप अनुपम गीतकार हैं| बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिये|
जो पंक्तियाँ मैनें सर्वाधिक पसंद की वे हैं:
xxxxxxxxxxxxxxxxxx
(यहाँ x की जगह कविता की कोई सी भी चार पंक्तियाँ बिना पढ़े, पढ़ोगे तो एक तो कन्फ्यूज हो जाओगे और दूसरे, यह उपाय अपनी सार्थकता खो देगा)

२.मार्मिक चित्रण ....आँखें भीग गईं,उद्वेलित कर गयी यह कविता तो.
कितनी वेदना है इस कविता में,जो आक्रोशित भी करती है, अत्यन्त अद्भुत एवं उत्कृष्ट, बहुत धन्यवाद आपको
सजल श्रद्धा इस कविता को.
(दूसरी बार उसी ब्लाग पर जब यह टिप्पणी फिर करने का मौका आये, तो लाईनों को उपर नीचे कर दें, सब लाईनें अपने आप में पूर्ण है, प्रवाह में कोई अंतर नहीं पड़ेगा, तीसरी बार में कुछ लाईन अलग कर दें और फिर जैसा मर्जी आये, बहुत काम्बिनेशन बनेंगे)

३.रचना बहुत अच्छी व मार्मिक है । सत्याता को दरशाती हुई, और, और भी बहुत से प्रश्न पूछती हुई ( सरलता से)।यहाँ पर बधाई देना कुछ विचित्र सा लग रहा है । भावनाओं का बहुत सटीक व हृदयविदारक वर्णन किया है आपने । हम सबकी आत्मा को जगाने के लिए धन्यवाद । आपकी प्रतिभा को मैं नमन करता हूँ।
(इसे भी टुकड़े किये जा सकते हैं और पंक्तियों का क्रम भी बेहिचक बदल लें)

४.यह कविता एक साथ कई रसों का अद्भुत मिश्रण है।मैं व्यक्तिगत रूप से यह मानता हूँ कि यह कविता नहीं है अपितु एक आंदोलन है.कविता मन के हर तंतु छूती है| सोई इंसानियत के कान पर आपने नगाड़ा डालने का काम किया है। बहुत हीं सराहनीय प्रयास है यह।
बधाई स्वीकारें।

५.आपकी काव्य-प्रतिभा कविता को और भी मार्मिक बना देती है। संस्कृतनिष्ठ भाषा कतिपय लोगों को मुश्किल लग सकती है पर उसका भी अपना महत्व तथा माधुर्य है। कुल मिलाकर एक ह्रदयस्पर्शी रचना है, प्रत्येक कवि का काव्य रचने का अपना अंदाज होता है और उसी के अनुरूप उनका शब्द चयन। आपका शब्द्कोश निश्चित ही अत्यन्त समृद्ध है, बधाई आपको.
(इसे वहाँ दें जहाँ ज्यादा टिप्पणी न दिखें और पढ़ने के बाद भी, आधे शब्द का अर्थ न समझ आये और कविता पूरी ही समझ न आ पाये)

६. टिप्पणी ५ की ही तर्ज पर इसे भी इस्तेमाल करें खुले आम:
जिस भाषा में आपने इतना मार्मिक विषय उठाया है वह सुग्राह्य नहीं है| बड़ी ही पीड़ा दीखती है, आपकी इस कविता में। ताजे हालातों पर करारा प्रहार !
एक नंगे सच को आपने सामने रखा है |यह विद्वानों के लिये लिखी गयी कविता है|आपकी हिन्दी पर इतनी अच्छी पकड के लिये बधाई..

७.समाजिक दशा पर प्रहार करती हुई कविता ,कड़वे सच जीवान के दिखाती हुई .कविता एक तमाचा है व्यवस्था के मुख पर..कविता इसके अधिक और कुछ नहीं कह सकती।
मैं कविता पढते हुए महसूस कर रहा था कि भीतर कोई पिघला शीशा प्रवेश कर रहा है..
xxxxxxxxxxxxx
आपको कोटिश्: बधाई..
(x स्थान पर कविता की कोई सी भी चार पंक्तियाँ.)

८.मैं आपकी किसी भी पंक्ति को उल्लेखित नहीं कर सकता क्योंकि पूरी कि पूरी रचना उल्लेखित हो जाएगी। भाव के हिसाब से इसका कोई तोड़ नहीं है।गीत पढ़ते पढ़ते मन गुनगुनाने लगा.
आपने इतनी आसानी से मनोभावों को प्रेम-गीत में बदल दिया है. कहीं-कहीं तुकबंदी से बाहर गई है, फिर भी गज़ल का मूल बरकरार है। आपके विचार प्रभावित करते हैं|विरह का भी सटीक वर्णन है।कविता की छटपटाहट भीतर तक बेधती है| बधाई स्वीकार करें।

बाकी समय समय पर विद्वानों वाली टिप्पणियाँ छुट्टी वाले दिन कट पेस्ट करके रख लें, हफ्ते भर काम आती रहेगी. कुछ करने की जरुरत नहीं है. जरुरत है तो सजगता की, कट पेस्ट करने की कर्मठता की.

आठ दस तुलसी दास जी की चौपाईयाँ और संस्कृत के श्लोक भी अपने पास रखे रहें और किसी भी टिप्पणी के बीच में इस्तेमाल कर लें, यह कहते हुये कि कविता पढ़कर यह याद आया: xxxxxxxxxxxxx और फिर x के स्थान पर आपका श्लोक या चौपाई. ३ आपकी सेवा में हम दे देते हैं बाकि अपने विवेक से इंटरनेट पर खोज लें.


आठ दस तुलसी दास जी की चौपाईयाँ और संस्कृत के श्लोक भी अपने पास रखे रहें और किसी भी टिप्पणी के बीच में इस्तेमाल कर लें, यह कहते हुये कि कविता पढ़कर यह याद आया: xxxxxxxxxxxxx और फिर x के स्थान पर आपका श्लोक या चौपाई. ३ आपकी सेवा में हम दे देते हैं बाकि अपने विवेक से इंटरनेट पर खोज लें.


१. श्रवनामॄत जेहि काव्य सुनाई
सन्मुख प्रगट होति किन भाई

२.कवितां शेषां पहंसि,तुष्टा रुष्टा सु कामान सकलान भीष्टान
त्वामाश्रितानां न विपन्न राणां, काव्यात्मिनां ह्याश्रितां प्रयान्ति

३.गिरा अनयन, नयन बिनु बानी
प्रतिभा जावे नाहिं बखानी

कोई नहीं पूछता कि इसका यहाँ क्या अर्थ है या इसका क्या औचित्य. अव्वल तो आधे लोगों को समझ ही नहीं आयेगा और अगर आ भी गया, तो कोई इस डर से पूछेगा नहीं कि शायद फिट हो रहा हो और उसे ही न बाद में मूर्ख बनना पड़े. कवि तो आपके टिप्पणी के अहसान तले यूँ ही दबा है तो उसके पलटवार का तो सवाल ही नहीं, उससे आप निश्चित रहें और जब कर्ता और प्राप्तकर्ता को कोई आपत्ती नहीं कोई काहे बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना बनेगा. कई बार तो लोग आपका ज्ञान देख आपको सम्मान की दृष्टी से देखने लगेंगे और आपके नाम के साथ जी लगाकर बात करने लगते हैं.

हमारा काम था समझाना तो समझा दिया. आगे आप सबका विवेक जो कहता हो, वैसा करें. आज तक तो कर ही रहे थे, कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.

चलते-चलते:

इस व्याख्यान माला में जो टिप्पणियों के नमूने जनहित में दिये गये हैं ,वो यहीं विभिन्न कविताओं के ब्लाग से बटोर कर थोड़ा बहुत संपादन के साथ परोसा गया है, इसमें जिन ब्लागों का साभार मुझे करना चाहिये वो हैं, हिन्द युग्म , डिवाइन इंडिया, मान्या , बेजी इत्यादि. कृप्या कोई इन्हें अन्यथा न ले, सब तो जग जाहिर है यूँ भी. :) :)

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत काम की प्रविष्टि लिखी है, गुरू। आगे टिप्पणियाँ लिखने का काम सरल हो गया। शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी2/21/2007 11:18:00 pm

    नेक सलाह देता हूँ, फूर्सतिया की संगत छोड़ दें.

    लेख लम्बा देख थोड़ा सकपकाए, मगर पढ़ना तो था ही, अन्यथा हमारे उच्च कोटी के लेख आप के अलावा कौन पढ़-समझ सकेगा :) :)

    लेख की शुरुआत सामान्य रही, मगर अंत तक आते-आते अपने पुरे रंग में आ गया. हम हँसी दबाने की कोशिश करते पढ़ रहे थे, और खुशी हमें घूर रही थी. होली दूर तो है, मगर हमने भाँग पी ली क्या?

    मन आनन्दीत हुआ.

    जवाब देंहटाएं
  3. @ भाग-२

    समीर भाई,

    कवियों/ब्लॉगर-कवियों के ऊपर आपने यह अध्ययन कब किया? लग रहा है इसमें बड़े-२ नामवाले शामिल किये गये थे तभी तो मुझसे या मेरे किसी साथी से नहीं पूछा गया!

    वैसे वयंग्य-लेखन में इतना फेंकना चलता है।

    @ भाग-३

    आपने पाठकों को तो टिप्पणी के तरीके सीखाये हैं, मगर खुद बहुत चालाकी से 'बहुत खूब, बहुत अच्छे, वाह मज़ा आ गया' लिखकर भाग जाते हो। आप तो दूसरों को कुएँ में धकेलने वाले मालूम पड़ते हो।

    & अशुद्धियाँ- बहुत सारी हैं, कितना बताऊँ? चलो फिर भी कुछ गिना देता हूँ-

    इक्कठे- इकट्ठे

    रुप- रूप

    बढ़ियां- बढ़िया

    ततक्षण- तत्क्षण

    -क्योंकि हमें कविता लिखना आती है- क्योंकि हमें कविता लिखना आता है।

    खुब- खूब

    सामुहिक- सामूहिक

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रवचनमालाएं अच्छी लिखी गईं हैं । अब तो टिप्प्णी देने मैं भी यही खतरा लग रहा है कि उसे कहीं से चेपा हुआ न मान लिया जाए..... व्यंग्य की विधा हर एक के बस की बात नहीं पर आपकी लेखनी काफी परिपक्व है ।साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. समीर जी बहुत ज्ञानवर्धक बातें लिखी हैं परन्तु मैं तो दुविधा में ही पड़ी रही कि इनमें से ये टिप्पणी दूँ या ये दूँ बस उलझ कर ही रह गयी तो सोचा आज तो ऐसे ही काम चला लेते हैं समझ में नहीं आ रहा बधाई भी देनी चाहिये या नहीं :)

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह गुरुजी मान गए, आजकल कवियों की बाड़ आने से टिप्पणी करने की बोत टेन्शन हो गई थी। आपने काम एकदम आसान कर दिया।

    अभी तो हिन्दी जगत बढ़ता जाएगा, एक दिन आएगा जब यहाँ हजारों कवि होंगे। उस दिन आपके इस शोध के लिए लोग आपको याद करेंगे।

    उपरोक्त टिप्पणी ऊपर लक्ष्मी जी की टिप्पणी पढ़कर उसके आधार पर की गई है, कोई गलती हो तो दोष लक्ष्मी जी का होगा हमारा नहीं। :)

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह भाई वाह.समीरजी आपका जवाब नहीं.

    "टिप्पणियों का सारा राज़ अब समझ में आया है
    लिखने का भी कितना सरल उपाय सुझाया है
    मैं भी सोचूँ टिप्पणी में क्या सुन्दर भाव दर्शाया है
    अब समझी ,यह तो सारी'कट पेस्ट' की माया है!"

    जवाब देंहटाएं
  8. मैने भी सोचा आज कनाडा से यह साहब मेरे ब्लाग क्यूँ पधार गये....मैने तो नया भी कुछ नहीं लिखा....अब समझ आया....

    "कृप्या कोई इन्हें अन्यथा न ले, सब तो जग जाहिर है यूँ भी. :) :) "
    चोरी ऊपर से सीनाजोरी....हम तो इसे अन्यथा लेंगे...आप भी सचेत रहें...हमने तैफ्ट इनश्योरन्स करवा रखा है....

    यह जान कर भी बहुत दुख हुआ हम किस श्रेणी के कवि नहीं हैं.....

    अगर आप वादा करे कि ऐसा आगे नहीं करेंगे तो इस बार अन्यथा नहीं लेंगे.....नहीं तो....

    जवाब देंहटाएं
  9. ये तो आपने बड़ी गड़बड़ कर दी, अब किसी कवि/कवियत्री के चिट्ठे पर टिप्पणी करने से पहले सोचना पड़ेगा, नहीं तो वह ऐसा मानेगा कि ये तो समीर लाल जी के चिट्ठे से कॉपी-पेस्ट लिया है, ऐसा भी हो सकता है कि आपका पन्ना खोलकर देख ले।
    बड़े धर्म संकट में फँसा दिया आपने!!
    @ शैलेष भाई समीर जी की गलतियाँ निकालते- निकालते आपने भी एक गलती कर ही दी
    वयंग्य की बजाय व्यंग्य होना चाहिये :)

    ॥दस्तक॥

    जवाब देंहटाएं
  10. बेनामी2/22/2007 07:08:00 am

    अब पता चला कि राज क्या है. मुझे तो टिप्पणी करते समय शब्द नहीं सूझते. बहुत मज़ा आया.

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी बात मैं कुछ यूँ समझा

    हे प्रभु सुन्दर लेख बखानी
    टिप्पणियों की गाथा जानी
    तुलसी दास यही बतलाते
    कछु भी लिखो नहीं कछु हानी

    जवाब देंहटाएं
  12. लगता है कविता लिखना छोड़ना पडेगा, आपको मेरी कविताऐ पंसद नही आ रही है।

    मुझे तो नही लगता कि मेरे लिखने मे खोट है, लगता है आपके ऐनक का नम्‍बर बढ़ गया है इसलिये हमारी कविता, कविता नही लगती है।

    :)

    कविता लिखों या गघ इसका पता तो पढने के तरीके से होता है।

    शैलेश भाई कुछ नाराज हो गये है।

    कृप्या कोई इन्हें अन्यथा न ले, सब तो जग जाहिर है :)

    जवाब देंहटाएं
  13. समीर जी - आप वाकई में गुरु देव हैं। मजा आ गया प्रविष्टि पढ कर!

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह क्या दिव्य ज्ञान दिया आपने ! अगली बार आपकी की कविताओं पर यह कट पेस्ट का फ़ार्मूला अपनाऊँगा :) । वैसे सच बात यह है कि कविता मुझे बहूत पल्ले नहीं पडती, सिवाय हास्य- व्यंग्य की छोड कर जैसे बालों वाली कविता जिसको पढते समय रामदेव के नाखून घिसने का फ़ार्मूला भूलकर मै बालों की आरती मे ही खोया रहा।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.