आज सबेरे जब कम्प्यूटर खोला तो देखा हमारे न्यूज चैनेल वाले भाई साहब के गुगल चैट पर नोटिस बोर्ड टंगा है, फ्लैशिंग न्यूज टाइप:
ब्लागर्स में मार-पीट, चुनावी हिंसा
हम भागे कि क्या कहाँ हो गया. हमें डाऊट तो अपनी पोस्ट पर भी आया, मगर नारद पर सब शांति थी. सब मजे में थे. नवागंतुक ऐसा आये, ऐसा लाये कि बाकि सब गायब पहले पन्ने से, नौ दस पोस्ट लेकर. खैर, हमें मालूम है, यही विजेता की पहचान और लक्षण हैं कि हर तरफ वही वही. तो हमारे भाई आलोक शंकर जी और बड़े विजेता हैं, हिन्दी युग्म के पिछले माह के न सिर्फ़ लिखने के बल्कि पढ़ने के भी, दोनों . तो बनती भी है कि हम सब पीछे चले जायें. न जायेंगे तो भगा दिये जायेंगे इसलिये बेहतर है गति को पहचानें और सटक लें.
सही है, हम तो अगले पन्ने से ही थोड़ा थोड़ा झांकते रहें तो भी काफी. आप नवागंतुक हैं , आपका अधिकार बनता है, हमें पीछे ठेलने का. बहुत बधाई और शुभकामना. यही आज का प्रचलन भी है, वरना राहूल गाँधी को अटल बिहारी के सामने कौन पूछे.
यह स्थान आपके लिये ही है कि तर्ज पर हम हट गये और चले उस दरवाजे, जहाँ फ्लैशिंग न्यूज का बोर्ड टंगा था. हमने द्वार खटखटकाया और पूछा कि भई, कहाँ मारपीट हो गई, हमें तो दिखी नहीं कहीं चुनावी हिंसा.
तब भाई जी बोले: "चुनावी बयार है.. कहीं तो हुई होगी.. मैं तो बिना सोचे समझे ब्रेकिंग न्यूज़ चला देता हूं.. टीआरपी के लिए .यही तेज चैनलों का तरीका है. शाम तक नहीं हुआ तो करवा देंगे.". तब हम समझे कि कैसे चलते हैं यह सारे चैनल ब्रेकिंग न्यूज के साथ. वाह यार, हम यह भी नहीं जानते थे, हम तो पाषाण युगीन कहलाये.
हमें लगने लगा कि हम कितना पिछड़े हैं और दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई है. हम बस सोच रहे हैं और वो सोच भी रहे हैं और जो सोच लिया उसे क्रियांवित भी कर रहे हैं. क्या बात है, उनको साधुवाद और हमें धिक्कार, अब भी जागो, समय है.
लगता है, यही सच है:
"सचमुच बहुत देर तक सोये,
लोगों नें सींची फुलवारी,
हमने अब तक बीज न बोये.
सचमुच बहुत देर तक सोये, "
वाकई, इस सब विस्तार को विस्तार से विश्लेषित करता हूँ तो लगता है कि क्या कुछ नहीं बदल गया. सब कुछ पुराने जैसा है मगर है नया. पुराने रवाजों का अब कोई मुल्य नहीं. आपकी औकात क्या है यह आपकी योग्यता नहीं ,आपकी पब्लिसिटी इंडेक्स बताती है जो दूसरे तय करते हैं, इस पर हमारा कोई जोर नहीं. (यह शेर पता नहीं किसका है):
इस भीड़ में जिस शक्स का कद सबसे बड़ा है
वो शक्स किसी और के कंधे पे खड़ा है
हमें तो कोई ऐसा कंधा भी नहीं मिल रहा तो बस चलते हैं. आप ढ़ूढ़िये कोई कंधा.
और हाँ, चलते चलते: तरकश पर हमें भी थोडी कवरेज मिली है (किसी और के कंधे पर ), खुशी नया पॉड कास्ट लेकर आई है हिन्दी ब्लागर हाट लाईन. एकदम नया प्रयास है और बड़ा गजब का. धीरे धीरे इसके माध्यम से सब चिट्ठाकार कितने करीब हो जायेंगे एक दूसरे को जानकर. वाह खुशी, बहुत खुब. तुम्हें और तरकश परिवार को अनेकों बधाई.
ये रिपोटर कौण है? लागे है नीरजबाबु होंगे, अभी खबर लेते हैं
जवाब देंहटाएंआपकी शैली दिनों दिन फुरसतिया होती जा रही है, मजा आ रहा है पढ़ने में, लगे रहिए।
जवाब देंहटाएंलपेटने की विद्या कोई आपसे सीखे…।सब कहते भी और दिखते है हमने कुछ नहीं कहा…
जवाब देंहटाएंबधाई अच्छा लगा।
कहा आपने मैं भी सोचूँ, हाँ तब ही से सोच रहा हूँ
जवाब देंहटाएंलेकिन किसको सोचूँ, इतना मैं उस पल से खोज रहा हूँ
सोच सोच कर थका मगर क्या सोचूँ अब तक समझ न पाया
इसीलिये बस विधा आपकी अपनाऊं ये सोच रहा हूँ