गुरुवार, मई 11, 2006

'लेकिन' का बम या.....

इधर काफ़ी दिनों से, जबसे, लिखने का शौक जाग उठा है, अपनी रचनाओं पर काफ़ी समीक्षायें होती देख रहा हूँ:

  • आपकी कविता बहुत अच्छी लगी लेकिन वर्तनी की त्रुटियों पर ध्यान दें, इस वजह से, आप क्या कहना चाह रहे हैं, समझ नही आ पाया.बधाई स्विकारें.
  • बहुत ही सुंदर लिखा है, मज़ा आ गया लेकिन लय और तुक का आभाव नज़र आया, शब्दों के चयन मे भी सतर्कता बरतें. लिखते रहें.
  • वाह भाई वाह, क्या दोहे और कुण्डलियां लिखी है, लेकिन दोहे के अपने नियम होते है, मात्राओं के और कुण्डलियों के अपने, कृप्या उनका ध्यान रखें अन्यथा बहुत बढिया है. कभी समय मिले तो बताईयेगा, क्या कहना चाह रहे थे.
  • क्या हास्य कविता लिखी है लेकिन जरा इस तरह..... जरा बदल कर पढें, आई ना हँसीं. बहुत बधाई
  • बहुत अच्छा लिखे हैं, मजा आ गया लेकिन ऎसा लगा फ़ास्ट फ़ूड के स्टाल पर खडे हैं, जरा सोच सोच कर लिखा करें, अन्यथा प्रयास सफ़ल है, बहुत बधाई.



आदि आदि आदि...ये 'लेकिन' शब्द तो बिल्कुल बम है...और हमारी रचनाओं की समीक्षाओं मे सर्वव्यापी. तारीफ़ सुन हम उडते उडते चले और बस 'लेकिन' का बम...धम्म्म्म्म...और गिरे मूँह के बल. सारे ख्याल हवा और जान ली अपनी औकात.कुछ विख्यात कविताओं के समूहों, जिन पर मेरी रचनाओं पर यह समीक्षायें की जाती है , पर सरकार से कार्यवाही करने की गुहार करूँगा. भारत सरकार, कम से कम हल्ला मचाने मे, तो हमारा साथ खुले आम देगी क्योंकि इन विख्यात समूहों मे विदेशी शक्तियों का हाथ है और वो हम भारतीयों को कतई रास नही आता.


अब तो मेरी जिन रचनाओं की समीक्षा मे लेकिन शब्द नही दिखता है तो उसके मात्र तीन कारण नज़र आते हैं:

  • या तो समीक्षक ने पढा नही और यूँ ही रिवाज़वश समीक्षा कर दी.
  • या तो उसको रचना समझ नही आई.
  • या उसका हमसे कोई जरुरी काम अटका है.



कल रात देर तक जाग कर, बल्कि यूँ कहें, रात भर जाग कर, अपनी समझ से गज़ल लिखी, रदीफ़, काफ़िया, माकता और मतला, यहाँ तक कि , जो कि जरुरी नही है, फ़िर भी जैसा कि एक दो नम्बर की कमाई वाले रईस बाप की बेटी की शादी मे होता है, अगर रिवाज़ है तो अदायगी होगी, भले ही जरुरी ना हो, की तर्ज़ पर, तख्खलुस का भी ध्यान रखा. मगर बकौल फ़ुरसतिया जी, जैसा कि होता है, कुछ छूट ही गया. अब देखिये:


सुबह उठते ही याहू देवता पर मेरे खाते मे एक ई मेल चहक उठीं, भविष्य वक्तिनी कवित्री की: अरे, आपकी रचना पढी, भाव अच्छे लगे लेकिन आपकी गज़ल मे मीटर नही है, अरे भई, मीटर कहाँ से लाऊँ, जो कार मे है, वो काम नही करता. जो बिजली के लिये लगा है, वो तेज चलता है और पानी वाला चलता ही नही.किस को पूजों, किस को कोसो. नगर निगम का दफ़्तर तो हूँ नहीं जो सब पर सम दृश्टि बनाये रहूँ. आगे तंद्रा भंग करने के लिये छीटें स्वरुप ज्ञान वर्षा कि कैसे आप मीटर के बारे मे विस्तृत ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, कौन सी किताब पढें, कहाँ मिलेगी, और उदाहरण के लिये शेर भी, मीटर के तार से लिपटा हुआ. साथ मे सम्वेदनशील शब्दों मे छिपी भविष्य वाणी: मैने यह किताब बहुत दिन पहले पूरी पढी थी, फ़िर कई और(उनके नाम नही बताये, ट्रेड सिक्रेट) मगर अब भी गज़ल नही लिख पाती हूँ.( शब्दॊं को पडताला, भविष्य वाणी: जब हम इतना करके कुछ नही कर पा रहे हैं गज़ल मे, तो तुम क्या कर लोगे, जबकि बाकी किताबें तो तुम्हे पता ही नही हैं, कुछ दिन कोशिश कर लो, जोश ठंडा पड जायेगा).अब बडे जोरों से सोच रहा हूँ कि कुछ पढाई लिखाई फ़िर चालू की जाये, तभी इस लेकिन बम से कुछ निजात मिलेगी, शायद.

वैसे तो अब इस बम से अब चोली दामन का साथ हो गया है, कि रचना लिखने की देर है और लेकिन का धमाका...अब तो Send दबाते ही दोनो हाथों से कान बंद कर लेता हूँ.और इतने 'लेकिन' के पदक इस वीर की छाती पर टकें है, कि कई बार मानव बम होने का एहसास होने लगता है.


इस लेकिन से निज़ात पाने के लिये उपाय सोच ही रहा था, मन विरक्ति से भरा हुआ था, सब कुछ अपनी रचनाओं की तरह अर्थहीन सा लग रहा था, वही भाव जो सिद्धार्थ को बाह्य भ्रमण के बाद आये और बाद मे उन्हे बुद्ध बनाने मे सहायक सिद्ध हुये.बस फ़िर क्या था, हमने भी ठान लिया कि बोध प्राप्त करना है.अब घर तो क्या, घर के दस किलोमीटर के दायरे मे भी बरगद का पेड नही था.फ़िर ख्याल आया कि छत पर एक गमले मे बरगद का बोनज़ाई लगा है.अंधेरा और बिजली गायब.टटोलते छत पर पहूँचे, और ले आये गमला ड्रांईग रुम मे. एक रस्सी मे बांध कर सोफ़े के उपर टांगा और बैठ गये सोफ़े पर आंख बन्द कर तपस्या मे.मुश्किल से १५ मिनट मे बिजली आ गई, लट्टू जल उठा और हमे लगा, जैसे बोध टाइप कुछ प्राप्त हो रहा है:


दिल के भीतर से आवाज आने लगी(आत्म-बोध) और ले चला उडा कर हमको हमारे कालेज के जमाने मे:
तभी से ये लेकिन शब्द मेरे साथ साथ है.उस जमाने मे प्रेम निवेदन के हमारे बेबाकीपन की चर्चा पूरे क्षेत्र मे थी( सिर्फ़ कालेज के जमाने मे, बाद मे तो इतना बदल गया, कि अब तो शराफ़त का माईल स्टोन जैसा हो गया हूँ), प्रेम निवेदन तो हाथ मे लिये फ़िरता था, और स्वभाव से इतना उदार कि थोडी भी ठीक ठाक कन्या से परिचय हुआ, और निवेदन हाजिर.मगर जवाब हरदम समीक्षा टाईप के ही मिले, थोडा सा शब्द इधर उधर, अर्थ एक:


'आप बहुत अच्छे लगते हो लेकिन एक तो थोडा हाईट काफ़ी कम है, और उस पर से आप इतने मोटे हो, और रंग भी दबा हुआ है, और...और...इसके आगे हम से नही सुना जाता, बस चलते चलते अंतिम शब्द गूँजते रहते कानो मे...'सोरी, बुरा मत मानियेगा, बट मेरा इस विषय मे प्रसपेक्टिव अलग है' कह कर वो तो चलीं जाती और मै खडा सोचता रहता कि अगर लेकिन के बाद वाली बात सत्य है, जो कि मै जानता था कि सत्य है तो फ़िर पहले वाली क्या है कि 'आप बहुत अच्छे लगते हो'...


वो तो आज बरगद के नीचे आत्मबोध ना करता तो यह बोझ लिये एक दिन नमस्ते हो जाता.आत्मबोध ने इस लेकिन की परिभाषा इस तरह बताई:


' लेकिन शिष्टाचार और सत्यता के बीच का सेतु (पुल) है'. लेकिन शब्द के एक तरफ़ शिष्टाचार और दूसरी तरफ़ सत्यता निवास करती है.


इस ज्ञान प्राप्ति के बाद इस परिभाषा के आधार पर पुन: उपर लिखी समस्त समीक्षाओं को फ़िर पढा और भ्रम टूटा कि यह लेकिन कोई बम नही बल्कि सेतु है.मन से बडा बोझ टाइप का उतर गया कि हम मानव बम नही हैं.


मगर, आपको बता दे रहे हैं कि हम ठहरे जबरी स्वभाव के आदमी.इतने प्रेम निवेदन ठुकराये जाने के बाद भी हार नही मानी, बस लगे रहे और कालान्तर मे हम एक गौर वर्णिय( साथ ही बोनस मे सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत) पत्नी की प्राप्ति कर सुखमय जीवन व्यतित करने लगे.

तो अब लेखनी मे भी पीछे नही हटूँगा, किताब पढूँगा, रोज लिखूँगा (बकौल फ़ुरसतिया जी 'हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?') और एक वो मुकाम हासिल करुँगा जहाँ दोनों तरफ़ शिष्टाचार सत्यता से हाथ मिला रहा होगा और हमारी रचनाओं को समीक्षा के लिये 'लेकिन' सेतु की बैसाखियों की जरुरत ही नही रह जायेगी.


चलते चलते देवी नागरानी जी का शेर याद आ रहा है:


फ़िक्र क्या, बहर क्या, क्या गज़ल गीत ये
मै तो शब्दों के मोती सजाती रही.
--देवी


कथा समाप्त: जल्दी फ़िर लिखता हूँ लेकिन समय मिलने पर. :)


--समीर लाल 'समीर'

21 टिप्‍पणियां:

  1. :-) :-) :-)
    आपसे एक जरूरी काम है वह अगली बार

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  2. बढ़िया लिखा है, समीर जी लेकिन ज़रा लम्बा है। हा! हा!

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  3. ऐसा तो सबके साथ होता है लेकिन जरूरी नही कि हर कोई आप की तरह सोचे, पर यह भी तो हो सकता है ना की लोग सोचकर भी किसी के आगे जाहिर ना करे लेकिन फिर भी सोचते तो हैं ना.

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  4. हमें तो आपके सभी लेख अच्छे लगते हैं

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  5. लेकिन शिष्टाचार और सत्यता के बीच का सेतु (पुल) है'. लेकिन शब्द के एक तरफ़ शिष्टाचार और दूसरी तरफ़ सत्यता निवास करती है.

    जी बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुँचे आप! किसी भी आलोचना को सकारात्मक ढ़ंग से अगर हम स्वीकार ना करें तो फिर लेखनी में सुधार की गुंजाइश ही कहाँ रह जाती है ।

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  6. समीर भाई भाव पहले जन्मे, छंद बाद में।
    छंद मुक्त सृजना तो महाकवि निराला और अज्ञेय जैसे अमिट छाप छोड़ने वाले युग-निर्माताओं ने भी की हैं। शब्द तो माध्यम हैं,भाव सर्वोपरि हैं।
    हिंदी को स्वछंदता देकर ही व्यापकता प्रदान कर सकते हैं। शुभकामनाएं।
    प्रेमलता

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  7. बहुत अच्‍छे समीर जी, बहुत मजा आया लेकिन....... ना ना ना घबरायें नही.. लेकिन कुछ भी नही

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  8. समीर जी, आप का लेख पढ़ा, लेकिन------
    क्या कहें----- तारीफ़ के लिए शब्द नहीं है ।

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  9. लेख मजेदार है लेकिन ....

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  10. ज्ञान प्राप्ति तो हो चुकी फिर डर काहे का
    :-)

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  11. भई लेख तो हमें भी अच्छा लगा लेकिन............. :) :) :)

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  12. उन्मुक्त जी

    बहुत धन्यवाद, काम जरुर हो कर रहेगा. :)


    लक्ष्मी जी

    मुझे अहसास हुआ कि आपने लेकिन के दोनो तरफ़ शिष्टाचार का ही इस्तेमाल कर डाला, अरे भाई साहब, जरा नही जरुरत से ज्यादा लम्बा हो गया है.:)
    धन्यवाद आपके पधारने का.

    पंकज भाई

    यह तो सिर्फ़ मनोरंजन के लिये लिखा है, मै जानता हूँ बिना समीक्षाओं के हम क्या सीख पायेंगे और समिक्षाऎं तो चाहने वालों का स्नेह है, वरना किसके पास फालतू समय है, कि मुझे अँगुली पकड कर चलना सिखाये.
    आपकी बात से हमेशा की तरह आज फिर मै सहमत हूँ. :)
    आप पधारे, धन्यवाद.

    --समीर लाल

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  13. मनीष भाई
    आपकी बात से मै सहमत हूँ. :) बिना इसके लेखनी में सुधार की गुंजाइश नही.
    आप के यहां पधारने का धन्यवाद.

    प्रेमलता जी
    आप तो शुरू से मुझे प्रेरणा देती आई हैं, मै आपको साधुवाद देता हूँ.
    आप जो भी कह रही है, मैं पूर्णतः सहमत हूँ.यह तो सिर्फ़ मनोरंजन के लिये लिखा है.
    मुझे आशा है सभी मनोरंजन को मनोरंजन की दृष्टि से ही लेंगे.
    आप मुझे पढती हैं, आभारी हूँ.

    आहा, छाया भाई,
    आपका आना सौभाग्य की बात है, घबराने की नही.आप आते रहें, तो किसी से नही घबराऊँगा. धन्यवाद.

    --समीर लाल

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  14. रत्ना जी
    अरे कहीं से कापी पेस्ट करो शब्द, अगर नही मिल रहे हैं, :)
    आप के यहां पधारने का धन्यवाद.

    आशिष भाई
    मजा आया बस लिखना सफ़ल हुआ, लेकिन का हिसाब फ़िर कभी..:)
    पधारने का धन्यवाद.

    प्रत्यक्षा जी,
    नही डर रहा हूँ, आप जो साथ हैं, वाकई बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है, मजाक अलग करके. आते रहने का धन्यवाद.

    सागर भाई जी,
    आप तो हमेशा मेरी तारीफ़ कर देते हैं बस, कभी लेकिन के बाद का पूरा करें :). पढने के लिये धन्यवाद.कुछ ज्यादा ही लम्बा लिख गया.

    --समीर लाल

    जवाब देंहटाएं
  15. रत्ना जी
    अरे कहीं से कापी पेस्ट करो शब्द, अगर नही मिल रहे हैं, :)
    आप के यहां पधारने का धन्यवाद.

    आशिष भाई
    मजा आया बस लिखना सफ़ल हुआ, लेकिन का हिसाब फ़िर कभी..:)
    पधारने का धन्यवाद.

    प्रत्यक्षा जी,
    नही डर रहा हूँ, आप जो साथ हैं, वाकई बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है, मजाक अलग करके. आते रहने का धन्यवाद.

    सागर भाई जी,
    आप तो हमेशा मेरी तारीफ़ कर देते हैं बस, कभी लेकिन के बाद का पूरा करें :). पढने के लिये धन्यवाद.कुछ ज्यादा ही लम्बा लिख गया.

    --समीर लाल

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  16. अतुल भाई

    "हमें तो आपके सभी लेख अच्छे लगते हैं" इसमे लेकिन तो है ही नही, क्या बात है, लम्बा जरुर है, मगर समझ तो आ जाना चाहिये था...:)

    आप आते रहते हो, अच्छा लगता है.

    धन्यवाद

    समीर लाल

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  17. आपकी सुंदर व गौरवर्णीय पत्नी निश्चित तौर पर धन्यवाद की पात्रा हैं जिन्होंने आपके जीवन का सबसे बड़ा लेकिन हटा दिया। लेख के बारे में क्या कहें,धासूँ है। हमें खुशी भी है कि हमारे एक लेख का शीर्षक जिसे स्वामीजी ने हमारे माथे पर चिपका दिया वह आपको अच्छा लगा तथा उसका अनुकरण करने का इरादा है।और जब खुद ही हंस लिये अपने पर तो दूसरा क्या हँसेगा। बधाई!

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  18. अनूप जी

    लेख पसंद करने के लिये मेरा धन्यवाद स्विकारें एवं मेरी पत्नी की तरफ़ से उनकी तारीफ़ करने के लिये आभार.:)

    ऎसा ही स्नेह बनाये रखें.

    समीर लाल

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  19. समीर जी, बहुत मज्जेदार लिखते हैं आप। बहुत हंसी आती है।

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  20. आज के इस जमाने मे अगर मेरी लेखनी आपको थोडा भी हँसा पाये, तो लिखना सफ़ल हुआ.
    धन्यवाद, रजनीश भाई.

    समीर लाल

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  21. Sameer Bhai , aapka blog sach puccho to aaj hi dekha bahut hi accha hai . aur apki photo bhi pahli bar hi dekhi sach pooccho
    to dil dhakkk se rah gaya .Bhabi ji ka bhi yahi haal hua hoga. kaho to shayeri men likhoon ? na jane deta hun kisi ka dil aa jayega aap par sheyer sun kar.apka kaya khayal hai Laxmi Gupta ji, kucch aap hi likh do.
    apka
    apna dost 'Habeeb'

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