रविवार, मई 07, 2006

यह वही वाली पोस्ट है.......

अब पिछली पोस्ट जो आने वाली थी, पर टिप्प्णियाँ आ गई हैं, तो इसे अलग से पोस्ट कर देता हूँ :)

क्या बात है ये जुदा जुदा
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चमन सभी का एक, क्यूँ ज़ीनत इनकी जुदा जुदा
बागबां सभी का एक, क्यूँ रंगत इनकी जुदा जुदा.

धर्म ग्रंथ सिखलाते हमको, कैसी हो ये मानवता
सबब सभी का एक, क्यूँ बरकत इनकी जुदा जुदा.

भाई भाई को गोली मारे, किसकी कह दें इसे खता
पालन सभी का एक, क्यूँ हश्मत इनकी जुदा जुदा.

समीर हर पल खोजते, मिल जाये हमको भी खुदा
मुकाम सभी का एक, क्यूँ जन्नत इनकी जुदा जुदा.


--समीर लाल 'समीर'

//बरकत=वरदान
हश्मत-ठाटबाट,मर्यादा//

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, क्या बात है । कोशिश करूंगी इस सम्बन्ध में कुछ लिंखू ।

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  2. धन्यवाद, रत्ना जी.स्वागत है अगर कुछ सुझाव हों.

    समीर लाल

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  3. खूं एक है दिल एक है एक नाक है दो आंख है।
    रब ने बनाया एक सा, हम खुद हुए हैं जुदा जुदा।।

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  4. बहुत अच्छा खयाल है, युगल भाई।
    समीर लाल

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  5. शब्दों के माध्यम से बहुत सुंदर चित्र खींचा है, साधुवाद स्विकार करें :)

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  6. कर लिया, भाई साहब आपका साधुवाद.कल से दाड़ी बढाना शुरु.जल्दी ही साधु बन कर दर्शन दूँगा.

    धन्यवाद. :)

    समीर लाल

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  7. आपकी ये रचना पढ़ कर जगजीत की गाई इस गजल का ये शेर याद आ गया

    मैं न हिन्दू ना मुसलमान मुझे जीने दो
    दोस्ती हे मेरा ईमान, मुझे जीने दो


    अच्छा संदेश दिया है आपने इस कृति के माध्यम से !

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  8. बहुत धन्यवाद, मनीष जी.

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  9. बच्चनजी की मधुशाला की कुछ पंक्तिया याद आ रही है ..

    मंदिर मस्जिद बैर कराते ..

    भूल गया, कोइ पुरा कर दो यार ..

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  10. मंदिर मस्जिद बैर कराते
    मेल कराती मधुशाला.....

    पंकज भाई,

    धन्यवाद
    समीर लाल

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  11. समीर जी बहुत बढ़िया कविता है।
    ज़ीनत का मतलब क्या होता है?

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  12. बहुत धन्यवाद:

    ज़ीनत का मतलब सजावट या सुंदरता होता है.

    समीर लाल

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  13. आपकी कविता को मैंने अपनी छोटी सी पत्रिका के इस अँक में डाला है, लिंक के साथ। आशा है आपको बुरा नहीं लगेगा।
    http://www.geocities.com/rajneesh_mangla/basera_04.pdf

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  14. रजनीश भाई
    अरे, कविता छापना तो मेरा सौभाग्य है कि आपने इसे इस लायक समझा. पत्रिका का प्रयास बहुत अच्छा है, मेरी शुभकामनायें.

    धन्यवाद
    समीर लाल

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