सर्दी की सुबह। घूप सेकने
आराम से बरामदे में बैठा हुआ अखबार पलट रहा था गरमागरम चाय की चुस्कियों के साथ।
भाई साहब, जरा अपने स्वास्थय का ध्यान रखिये। इतने मोटे होते जा रहे हैं। ऐसे में किसी दिन कोई
अनहोनी न घट जाये, आप मर भी सकते हैं। ये बात
हमसे तिवारी जी कह रहे हैं।
भला कैसे बर्दाश्त करें इस बात को। हमने भी पलट वार किया कि भई तिवारी जी, आप
दुबले पतले हैं तो क्या आप अमर हो लिये, कभी मरियेगा नहीं। खबरदार जो इस तरह की उल्टी सीधी बात हमसे की तो
और वो भी सुबह सुबह।
मैने उन्हें समझाया कि जब मिलो तो पहले नमस्ते बंदगी किया करो। हाल चाल पूछो, यह क्या नई आदत
पाल ली कि मिलते ही मरने की बात कहने लगते हो।
तिवारी जी इतने ढीठ कि जरा भी विचलित नहीं हुए। बस मुस्कराते रहे और कुर्सी खींच कर बैठ गये और
कहने लगे कि चाय तो पिलवाईये।
खैर, पत्नी उनके लिए चाय लेकर आई। नमस्कार चमत्कार हुआ और पत्नी भी वहीं बैठ गई।
अब तिवारी जी उनसे बातचीत करने लगे कि भाभी जी, आप
कोई नौकरी करती हैं क्या?
पत्नी से ना में जबाब पाकर उनकी मुद्रा एकदम चिन्तित बुजुर्ग की सी
हो गई और वह कह उठे कि भाभी जी, कहना तो नहीं चाहिये मगर यदि कल को भाई
साहब को कुछ हो जाये तो आपका क्या होगा? कैसे गुजर बसर होगी?
मेरा तो गुस्सा मानो सातवें आसमान पर कि सुबह सुबह यह क्या मनहूसियत
फैला कर बैठ गये तिवारी जी। मगर घर आये
मेहमान को कोई कितना कुछ कह सकता है भला और यदि गहराई में उतर कर सोचा जाये तो ऐसा
हो भी सकता है किसी के भी साथ, कभी भी।
मौत के नाम पर वैसे भी दार्शनिक विचार मन में आने लगते हैं इसलिए
मैने संयत स्वर में कहा कि जो उपर वाले की मरजी होगी सो होगा। उसकी छत्र छाया में दुनिया पल रही है तो इनका
क्या है? आपकी पत्नी भी तो नौकरी नहीं करती, कल को आपको ही
कुछ हो जाये तो उनका क्या होगा? इस प्रश्न से मैने अपनी कुटिल सोच का
परिचय दिया।
तिवारी जी तो मानो इसी बात को सुनना चाह रहे हों। बस एक चमक आ गई उनके चेहरे पर। कहने लगे भाई साहब, हमने पूरा
बंदोबस्त कर रखा है। मान लिजिये यदि कल को
हमें कुछ हो जाता है तो जिस आर्थिक स्थिति में हमारी पत्नी आज है, उससे
बेहतर स्थिति में हो जायेगी। इतनी बेहतरीन
बीमा पॉलिसी ली है कि मेरे मरते ही ५ करोड़ रुपये पत्नी के हाथ में होंगे।
बस, इतना सुनते ही अब तिवारी जी को बोलने की जरुरत न रही और हमारी पत्नी
हमारे पीछे पड़ गईं कि आप भी बीमा कराईये अपना और मानो तिवारी जी तो आये ही उसी
लिये थे। तुरंत झोले से फार्म निकाल कर
भरने लग गये। दोनों की तत्परता और अधीरता
देख जरा घबराहट भी होने लगी कि कहीं शाम तक निपट ही न जाने वाले हों और इन दोनों
को मालूम चल गया हो इसलिए हड़बड़ी मचाये हैं।
सारी कार्यवाही पूरी करके चैक आदि लेकर जब चलने को हुए तो तिवारी जी
ने पहली बार कायदे की बात की कि ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे। काश, ऐसी नौबत न आये कि भाभी जी को बीमा का
भुगतान लेना पड़े।
सोचता हूँ धंधा जो न करवाये सो कम। बीमा एजेन्ट अगर मौत का डर न दिखाये तो भला फिर
खाये क्या?
बीमा एजेन्ट का तो मैं मात्र इसलिए भी साधुवाद कहता हूँ कि वो अपने
धंधे को लाभदायी सिद्ध करने के लिए आपको कम से कम मार तो नहीं डालता। वरना तो एक धंधेबाज
वो कौम भी है जो जिस तंत्र से जीत कर जाते हैं, जीतते ही उन्हें वही लोकतंत्र खतरे में नजर
आने लगता है। देश सांप्रदायिक ताकतों में बंटता नजर आने लगता है। फिर अपनी बात
सिद्ध करने के लिए वो लोकतंत्र को न सिर्फ खतरे में डाल देते हैं बल्कि सांप्रदायिकता
और धर्म के नाम का ऐसा तांडव करवाते हैं कि आमजन दांतों तले उंगली दबाए सोचने को
मजबूर हो जाता है कि साहेब ने कितना सही कहा था।
-समीर
लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल 11, 2021 के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/59715369
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ये हैं सफल बीमा-एजेंट - क्या पकड़ा है!
जवाब देंहटाएंबीमा एजेंट तो फिर भी मौत का डर दिखाकर फ़ायदे की ही बात करता है। लेकिन लोकतंत्र को ख़तरे में डालने वाले डराते नहीं, मार ही डालते हैं। सच है अपना अपना धंधा है। बहुत रोचक कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंबहुआयामी तथ्यों को उजागर करती बढ़िया पोस्ट।
जवाब देंहटाएंExcellently blended approach pf insurance business and politics in unique humour.....
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट।
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