सब आदत की ही तो बात होती. कोई भी आदत शुरु में शौक या मजबूरी से
एन्ट्री लेती है पर बाद में लत बन जाती है. अच्छी या बुरी दोनों ही बातें अगर लत
बन जायें और फिर न उपलब्ध हों तो फिर तकलीफदायी हो चलती हैं. इन्सान छटपटाने लगता
है. कुछ भी कर गुजरने को आतुर हो जाता है.
किसी ड्रग के आदी, शराब के लती, सिगरेटबाज और
यहाँ तक कि शतरंजी को अपने व्यसन की उपलब्धता के आभाव में तड़पते तो सभी ने देखा ही
होगा. शायद शुरु में चार दोस्तों के बीच फैशन में या स्टेटस बघारने को एक पैग
स्कॉच ले ली होगी. नशे की किक में मजा आया होगा. फिर कभी कभार और, फिर
महीने में एक बार, फिर हफ्ते में, फिर एक दिन छोड़ एक दिन और फिर रोज पीने
लग गये होंगे. बस, लग गई लत. अब एक दिन न मिले, तो बिस्तर में उलटते पलटते नजर आयें.
नींद न पड़े. बेबात बीबी बच्चों पर बरसने लगें.
तब देखा कि फेसबुक कुछ देर को क्या बैठा, लगे लोग ट्विटर
पर ट्विटियाने,व्हाटसएप भर गया - हाय, फेसबुक नहीं चल रहा. क्या आपका भी नहीं
चल रहा? जबकि फेसबुक की साईट साफ साफ लिख कर बता रही थी कि मेन्टेनेन्स चल
रहा है, अभी आते हैं. मगर लतियों को चैन कहाँ? वो तो लगे यहाँ
वहाँ भड़भड़ाहट मचाने. यहाँ तक कि जब कुछ ही देर में फेसबुक चालू हुआ तो फिर हल्ला
मचा और कम से कम १०० ट्विट और व्हाटसएप अपडेट
मिले कि हुर्रे, चालू हो गया!! अच्छा है यहाँ चीयर बालाओं का चलन नहीं है वरना तो
क्या नाच होता कि देखने वाले देखते ही रह जाते.
लम्बे समय तक कोई आदत रहे तो लत बन जाने पर क्या हालत होती है,
उसका
जो जायजा आज मिला उसे देख कर एकाएक परेशान हो उठा. सोचने लगा कि भारत का क्या होगा?
सुनते हैं कि साहब किसी भी तरह हार मानने को तैयार नहीं. लगे हैं कि न
खाऊँगा न खाने दूंगा. भ्रष्ट्राचार बंद हो ही जाना चाहिये. उनकी इस हठ से और आज के
अनुभव से मुझे डर लगने लगा है. न सिर्फ भ्रष्ट्राचारियों से बल्कि उनसे भी जो इतने
सालों तक भ्रष्ट्राचार झेलने के आदी हो गये हैं.
यूँ भी पूरे भारत में मात्र दो पार्टियाँ ही हैं जिन्हें मिलाकार
भारत को भारत कहा जाता है. एक जो भ्रष्ट्राचार करते हैं और एक वो जो भ्रष्ट्राचार झेलते
हैं.
एकाएक चुनाव के नतीजे आते ही भ्रष्ट्राचार बंद हो जायेगा तो इन दोनों
पार्टियों की क्या हालत होगी, ये भी तो सोचो. पूरे देश में हर तरफ
अफरा तफरी मच जायेगी. हाहाकार का माहौल होगा. आदमी स्टेशन पहुँचेगा, बिना
रिश्वत दिये रिजर्वेशन मिल जाने पर भी ट्रेन में चढ़ने की हिम्मत न जुटा पायेगा कि
जरुर कुछ घपला है. ऐसे भला रिजर्वेशन मिलता है क्या कहीं? ट्रेन का कन्फर्म टिकिट
लिए वो बौखलाया सा बस में बैठ जायेगा और भी इसी तरह की कितनी विकट स्थितियाँ
निर्मित हो जायेंगी-सोच सोच कर माथे की नसें फटी जा रही हैं.
साहब, मान जाओ, प्लीज़. कुछ तो सीख लो आज के इस फेसबुक भीषण कांड से. क्या अच्छा
लगेगा जब सब कहेंगे कि पूरा देश जो तांडव कर रहा है, उसके जिम्मेदार आप
हैं? नाहक इतना बड़ा इल्जाम क्यूँ अपने माथे लगवाना चाहते हैं?
मान जाइये न प्लीज़!!! चलने दो जैसा चल रहा है? कुछ घंटों के
लिए मेनटेनेन्स टाईप भ्रष्ट्राचार रुकवाना हो तो पूर्व सूचना देकर रुकवा लो,
दोनों
पार्टियाँ झेल लेंगी किसी तरह,आपकी भी बात रह जायेगी- मगर इसे पूरे
से खात्मे की जिद न ही करो तो ठीक.
विकास का वादा भी तो आपका ही है- फिर भ्रष्ट्राचार के विकास में आप
क्यूँ बाधक बन रहे हैं?
सदियाँ बीती – विकास ही तो भ्रष्ट्राचार
की गंगोत्री रहा है.
हे गंगा पुत्र, अपने उदगम (गंगोत्री) का तो ध्यान धरो.
समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल 4, 2021 के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/59540993
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माँ गंगा और गंगा-पुत्र भीष्म पितामह सोचते होंगे हमें इस घोर भ्रष्टाचारी कलियुग मैं समकालिक क्यों बना दिया ...
जवाब देंहटाएंExcellent humour...
बात तो सही है। हम भारतवासी लतखोर बन गए हैं। सारे गंगापुत्र या हिमालय पुत्र भ्रष्टाचार मिटाने के लिए भ्रष्टाचार करते हैं। अब हम जनता इतना काहे को सोचें। सोचने का लत भी तो नहीं जाता। क्या किया जाए।
जवाब देंहटाएंरोचक व्यंग्य... अब आदत है वह तो जाते जाते जाएगी...
जवाब देंहटाएंnice post.
जवाब देंहटाएंकरारा व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर् और सार्थक।
जवाब देंहटाएंवाह सार्थक पोस्ट
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