पिछले कई दशकों में बहुत कुछ बदला मगर
जो न बदला वो है नेताओं का किरदार और दूसरा बारात में बजते बैंड पर दो
गाने – पहला ‘आज मेरे यार की शादी है’ और दूसरा ‘नागिन धुन’। तमाम गाने बज जायें
मगर जब तक ये दो गाने न बजें, तब तक बारात मुकम्मल नहीं मानी जाती।
आज घंसु की बारात निकल रही थी।
तिवारी जी ने, जैसा की इस खुशी के मौके का विधान है, शराब पी रखी थी और पीते ही जा
रहे थे। वो नागिन धुन पर कुछ ऐसे नाचे कि लगा सड़क पर नागिन खुद बल खाकर नाच रही हो। हालाँकि
तिवारी जी ने खुद कभी शादी नहीं की किन्तु बारात में जाने का तजुर्बा ऐसा कि घुड़
चढ़ी से लेकर द्वारचार के सभी रीति रिवाजों पर उनसे राय ली जाती। वैसे भी शिक्षा
मंत्री शिक्षित भी हो ऐसा तो कोई जरूरी नहीं। कुछ तो पहली बार विश्वविद्यालय ही तब पहुंचे जब शिक्षा मंत्री बनने के
बाद उन्हें भाषण देने बुलाया गया।
तिवारी जी ने शराब के नशे
में नाचते हुए बताया कि छोटे भाई की बारात में नाचने का आनंद ही अलग है। यह आनंद
वैसे वो सदियों से उठाते आ रहे हैं। आज तक वो जिस भी बारात में दिखे, सब में घोड़ी
पर उनका छोटा भाई ही होता था और वो शराब की नशे में धुत्त सड़क पर लोट लोट कर नागिन
नाच रहे होते थे। मोहल्ले की शादियों में तिवारी जी को वो ही दर्जा प्राप्त था जो
घोड़ी को होता है। बिना दोनों के बारात की कल्पना करना ही मुश्किल था। ऐसा नहीं था कि
कोई भी बारात उनके बिना नहीं निकली हो लेकिन उनमें वैसा ही सूनापन होता जैसा कोई नेता
खादी का कुर्ता पायजामा पहनने की जगह शर्ट पैन्ट में खड़ा भाषण दे रहा हो या कोई
दरोगा बुलेट मोटर साइकिल की जगह लूना लिए चले जा रहा हो।
बारात जब दरवाजे लगती तो तिवारी
जी लपक कर समधी से ऐसा गले लपटते कि अक्सर असली समधी वाली माला उनके गले में होती
और असल लड़के का बाप गैंदे की माला पहने घूमता नजर आता। ये लपक कर गले लपटने की आदत
उनको एक दिन राजनीति में विश्व स्तर पर विख्यात करायेगी, ऐसा आज के विश्व विख्यात नेता
को देखते हुए मेरा दावा है।
दावत खाते हुए तिवारी जी से
जब पूछा कि घंसु की भविष्य की क्या योजना है? तब उन्होंने बताया कि अब घंसु वंश
आगे बढ़ायेंगे। हालांकि मेरे पूछने का तात्पर्य यह था कि घंसु करते धरते तो कुछ हैं
नहीं, आगे जीवन कैसे चलायेंगे? लेकिन अपने यहाँ विडंबना यह रही है कि जो खुद को
आगे बढ़ाने तक में सक्षम नहीं है, वो भी वंश आगे बढ़ाने में जुटा है। जिनकी
अपनी कोई पहचान नहीं, वो भी न जाने किस वंश का नाम आगे बढ़ाने में लगे हैं। जो अपना
घर तक न चला पाया वो देश चलाने लग जाता है। जिससे अपना खुद का अपना परिवार न
संभला, वो भी आंखे मूंदे वसुधैव कुटुम्बकम् की माला जप रहा है। इन सबसे भी बड़ी
विडंबना यह है कि वंश आगे तभी बढ़ेगा जब लड़का पैदा हो, लड़की नहीं। ओलम्पिक में तीर
निशाने पर मार कर देश का नाम रोशन करने वाली लड़की वंश का नाम रोशन न कर पायेगी, यह
कैसी सोच है?
स्वाभाविक प्रश्न था अतः पूछ
लिया कि तिवारी जी, आपने अपना वंश क्यूँ नहीं आगे बढ़ाया? शादी क्यूँ नहीं की?
तिवारी जी अहंकार भाव से
मुस्कराये और कहने लगे कि तुम और बाकी लोग पैदा होते हैं। हम जैसे कम होते हैं, जो
जन्म लेते हैं। हमारे जन्म लेने का एक उद्देश्य होता है। हम वंश नहीं, देश चलाने के
लिए पैदा हुए हैं। हमारा जीवन बड़े उद्देश्य को ..... बोलते बोलते तिवारी जी बारात की
मेहमानी भूलकर नशे में तारी कुर्सी पर ही सो गए।
अब समझ में आया कि न सिर्फ देश
चलाने के नशे में इंसान मुख्य मुद्दे को भूल कर सो जाता है बल्कि देश चलाने का
सपना भी उतना ही मादक और नशे में चूर करने वाला होता है।
घंसु सात फेरे लेने में व्यस्त
थे ताकि वो वंश आगे बढ़ा पायें और मैं देश के भविष्य को कुर्सी पर सोता छोड़ कर घर
चला आया।
देश आज आगे बढ़ रहा है और देश
कल भी आगे बढ़ता रहेगा। सब सो भी जायें तब भी वक्त तो आगे बढ़ता ही रहता है।
-समीर लाल ‘लाल’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के
रविवार नवम्बर २२, २०२० के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/56505783
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