दिवाली आ रही है। सभी साफ
सफाई और रंग रोगन में लगे हैं। तिवारी जी भी दो दिन से चौराहे पर नजर नहीं आ रहे।
पता चला कि साफ सफाई में व्यस्त हैं।
कुछ लोगों का व्यक्तित्व ऐसा
होता है जिनके लिए कहावत बनी है कि ‘कनुआ देखे मूड पिराए, कनुआ बिना रहा न जाए’ यानि
कि वो दिख जाए तो सर दुखने लगे और न दिखे तो मन भी न लगे। अतः तय पाया गया कि उनके
घर चल कर मिल लिया जाए।
घर पर तिवारी जी अपने लैपटॉप
में सर धँसाए बैठे थे। नौकर ने बताया कि दो दिन से सारा दिन बस चाय पर चाय पी रहे हैं
और लैपटॉप पर बैठे जाने क्या कर रहे हैं।
मैंने तिवारी जी से पूछा कि
चौराहे पर तो खबर है कि आप साफ सफाई में व्यस्त हैं और आप तो यहाँ लैपटॉप लिए बैठे
हैं। घर बिखरा पड़ा है और रंग पुताई का भी कुछ पता नहीं है। क्या चक्कर है? आप भी
राजनीतिज्ञों की तरह ही व्यवहार करने लग गए हैं। खबर में कुछ और असल में कुछ?
कहने लगे कि तुम नहीं
समझोगे। दरअसल हम अपना घर ही साफ कर रहे हैं। अब हम वर्चुअल दुनिया के वाशिंदे हैं।
यूँ चौराहे पर और मोहल्ले भर में मिला जुला कर हमको से ३०० – ४०० लोग जानते होंगे।
उनमें से भी १००-१५० तो सिर्फ बहस करने और मजाक उड़ाने वाले लोग हैं। मगर फेसबुक पर
देखो – पूरे पाँच हजार मित्रों से खाता भरा हुआ है। न जाने कितने मित्र निवेदन
स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ये फेसबुक की वर्चुअल दुनिया बस यहीं एक मामले
में असल दुनिया जैसी है। हमारे चाहने वालों की तादाद देख कर जलती है। पाँच हजार के
ऊपर मित्र बनाने ही नहीं देती। अब किसी को नया मित्र बनाना है तो पुराने किसी से
मित्रता खत्म करो। बस, उसी साफ सफाई में लगे हैं। जिन लोगों ने हमसे बहुत दिनों से
नमस्ते बंदगी नहीं की है, उन्हें अलग कर दे रहे हैं। ऐसे दोस्तों का क्या फायदा
जिन्हें आपके हाल चाल लेने की भी सुध न हो।
बात तो सही है। असल जिन्दगी
में भी ऐसे मित्रों का क्या फायदा जो आपके सुख दुख में साथ न आयें। मैं तिवारी जी
से सहमत था। मगर आश्चर्य बस इस बात का था कि जिनसे साक्षात मिलने से दुनिया कतराती
हो उनके फेसबुक पर पाँच हजार मित्र और उसके बाद भी अनेक मित्रता निवेदन प्रतीक्षारत
हैं! न तो वो कोई ऐसी ज्ञान की बात करना जानते हैं, न ही कोई साहित्यकार हैं, फिर
आखिर लोग किस बात की भीड़ लगाए हैं उनके वर्चुअल दर पर?
साफ सफाई करते हुए वो बात
करते जा रहे थे। मैंने उनसे निवेदन किया कि आप मुझे भी अपना लिंक भेज दीजिए तो हम
भी आपके वर्चुअल दोस्त बना जाएँ। उन्होंने हामी भरते हुए कहा कि ठीक है, भेज
देंगे। तुम निवेदन भेज देना। अभी तो बहुत सारे प्रतीक्षा में हैं, जब तुम्हारा
नंबर आएगा तब देखेंगे। आशा है तुम मेरी मजबूरी समझोगे और अन्यथा न लोगे। मेरा
व्यवहार तो तुम जानते हो। मैं परिवारवाद और व्यक्तिगत संबंधों को अलग से बिना
मेरिट के फायदा पहुंचाने वाली मानसिकता से परे रहना चाहता हूँ। इससे वर्चुअल
दुनिया में मेरी सेलीब्रेटी स्टेटस को आघात पहुँच सकता है। उनकी वाणी से ठीक वैसा
ही अहसास हो रहा था जैसा कि जब आपका जानने वाला एकाएक मंत्री हो जाता है। वो
संबंधों के चलते आपसे पैसा खा नहीं सकता, अतः एकाएक आपके लिए वह अपने को सिद्धांतवादी
घोषित कर देता है।
घर आकर देखा तो व्हाट्सएप पर
उनका लिंक आया हुआ था। जिज्ञासा थी कि देखा जाए ऐसा क्या कर रहे हैं तिवारी जी कि सेलीब्रेटी
हो गए हैं?
उनका फेसबुक का पन्ना खोल कर
देखा तो रोज सुबह गुड मार्निंग की तस्वीर और रात में गुड नाइट की तस्वीर के सिवाय कुछ
था ही नहीं, फिर भी इतने मित्र!
तभी एकाएक उनकी प्रोफाइल पर
नजर पड़ी और सारा माजरा एक पल में साफ हो गया। जिस तरह राम और कृष्ण अंग्रेजी में
रामा और कृष्णा हो जाते हैं, उसी तरह कमल तिवारी जी फेसबुक प्रोफाइल पर अंगरजी में
कमला तिवारी हो गए थे और कमला नाम से गूगल सर्च करके जो तस्वीर मिली, उसे अपनी
प्रोफाइल में लगाए हुए थे। मुझे यह भी ज्ञात है कि तिवारी जी ने यह जानबूझ नहीं
किया होगा। उनको तो जब उन्होंने फेसबुक का खाता खोला होगा, प्रोफाइल पिक्चर का अर्थ
भी नहीं मालूम रहा होगा। अतः गूगल सर्च कर ली होगी कि कमला की प्रोफाइल पिक्चर और
लगा दी होगी।
सेलीब्रेटी का ज्ञानी होना
कहाँ जरूरी है? फिर वो चाहें वर्चुअल दुनिया हो या असली।
-समीर
लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के
रविवार नवम्बर ८, २०२० के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/56216407
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Bahut hi Sundar laga.. Thanks..
जवाब देंहटाएंदिवाली पर निबंध Diwali Essay in Hindi
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