शनिवार, अप्रैल 18, 2020

मास्क पहन कर बोलना मना है



कोरोना ने सबको चपेट में लिया है. जनता से सरकार तक सभी अपने अपने हिसाब से जुटे हैं इसका सामना करने में. सरकार सुनिश्चित करने में लगी है कि लोगों को बहुत परेशानी न हो और जहाँ तक हो सके, जनता को नुकसान न हो. न जाने कितनों की नौकरियाँ चली गई, कितनों के धंधे बंद हो गये. उसकी भरपाई करने सरकार तरह तरह की सहायता की नित घोषणा कर रही है.
निश्चित ही जिन्हें जरुरत है, जिनकी नौकरी, धंधे और आय के अन्य साधन चले गये हैं, उनको यह सब सुविधायें मिलना ही चाहिये मगर ऐसे वक्त में मौकापरस्तों की एक बड़ी तादाद दिखाई देने लगी है. जिनकी नौकरी जैसी थी वैसे ही चल रही है. आमदनी में कोई फरक नहीं पड़ा है वो भी हर योजना का फायदा लेने निकल पड़े हैं.
बड़ी पुरानी कहावत है - बैठा बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी करे. खाली बैठा दिमाग क्या क्या तरीके खोज रहा है?
घर में दो गाड़ियाँ हैं. अब दफ्तर तो जाना नहीं है, सभी घर से काम कर रहे हैं. सिर्फ एक गाड़ी वो भी हफ्ते में एक बार ग्रोसरी लाने तक के सीमित उपयोग में आनी है. अतः एक गाड़ी का इन्श्योरेन्स तो तुरंत सिर्फ चोरी और आग को कवर करने वाला करवा कर लगभग नहीं के बराबर प्रिमियम पर करा लेना तो फिर भी समझ में आता है. लेकिन अब दूसरी वाली गाड़ी पर भी इन्श्योरेन्स कम्पनी डिसकाऊन्ट दे, क्यूँकि इतना कम इस्तेमाल हो रहा है तो दुर्घटना की संभावना न के बराबर है. ये भी तो विचार कर लो कि अब गाड़ी न चलने के कारण तुम्हारे भी तो पैट्रोल ऑयल के, टायर का घिसना, टूट फूट आदि की बचत हो रही है. इस बचत के बारे में पूछो तो मौन धर लेते हैं और कहते हैं कि मास्क पहन कर बोलना मना है.
जिनके धंधे इस महामारी के चलते बंद हो गये हैं, उनको मदद करने के लिए सरकार ने एक सस्ता लोन, जिसका २५% अनुदान है एवं लौटाना भी नहीं है, लोग उसे लेने के तरीके निकाल रहे हैं. .क्या करना है उससे? कुछ नहीं, जो हिस्सा नहीं लौटना है, उसे छोड़ कर बाकी किश्तों में वापस कर देंगे.
घर से काम कर रहे हैं अतः घर का एक हिस्सा, जो यूँ भी खाली पड़ा होता था और जहाँ भूत लोट रहे होते थे, इन्कम टैक्स में होम ऑफिस के तौर पर क्लेम करने के तरीके खोज रहे हैं. कहीं जाना नहीं है तो बिजली, टीवी, इन्टरनेट आदि का खर्च बढ़ गया है, सरकार बिजली के दाम कम करे, सो कर भी दिये. अब उनको इन्टरनेट बिल पर डिस्काऊन्ट चाहिये. मगर दफ्तर न जाने के कारण चाय, कॉफी, नाश्ता जो खरीद कर खाते थे, आने जाने में ट्रेन आदि पर बेहिसाब खर्च करते थे, न कपड़े रोज के नये, न मेकअप, न जूता, न परफ्यूम के कोई खर्चे. इस पर बात करो तो कहते हैं कि यह तो हमारी बचत है इससे सरकार को क्या?
६५ साल के ऊपर वालों को सरकार की तरफ से ग्रोसेरी, अन्य सामग्री, डेलीज और दवाई आदि दुकान से लेकर घर पहुँचाई जा रही है ताकि बुजुर्गों को घर से न निकलना पड़े. तो बुढ़ी अम्मा के नाम से ही सब शॉपिंग हो रही है ताकि होम डिलवरी हो जाये और निकलना न पड़े. आज पहली बार फायदा दिखा अम्मा को ओल्ड एज होम न भेजने का, तो वो तो ले ही लो. शॉपिंग में मुन्ने की चाकलेट, अपनी वाईन और बीबी के मेकअप का सामान भी धरवा ही लेना, वरना अगर उसे लेने निकलना ही पड़ा तो क्या फायदा हुआ अम्मा को घर पर रखने का?
आने वाले समय में, जब लोग निकलना शुरु करेंगे तब शायद कुछ पीर यह न मांग उठा दें कि घर में रह रह कर मेरा वजन बढ़ गया है, अतः सरकार जब तक मैं पुनः पूर्वास्था में न आ जाऊँ , मेरे जिम और हैल्दी डाईट का खर्च ऊठावे.
कभी वर्क लाईफ के बैलेन्स एवं क्वालिटी फैमिली टाईम न बिता पाने के लिए सदा नौकरी को कोसने वाले, आज जब दफ्तर से आवाजाही से बचा समय हाथ में लिए २४ घंटे घर पर हैं, तो बोरियत का नारा लगा रहे हैं और उम्मीद है कि सरकार नेटफ्लिक्स फ्री में दिलवा दे.
लगता है कि तुमने कहीं सुन लिया होगा कि नींबू का पानी कोरोना में फायदा करता है और तुम सरकार को भी नींबू की तरह निचोड़ कोरोना में फायदा उठाने की फिराक में लगे हो.
अरे तुम्हारा ही पैसा है जो तुमने टैक्स के माध्यम से सरकार को दिया है. खजाना खाली करा लोगे तब भी तुमको ही बाद में उस खजाने को भरना है देश को चलते रहने के लिए किन्तु आज तुम्हारी यह बेजा मांग कहीं जरुरतमंदो को उचित मांग से भी न वंचित कर दे.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल १९, २०२० के अंक में:
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब और अतितीक्ष अवलोकन लोगों के गैर जिम्मेदार व्यवहार का जिसमें वे भूल रहे हैं कि परिस्थितिवश व्यवस्था का शोषण जरूरतमंद लोगों को किस तरह हानिकारक है।
    बहुत खूब समीर जी, आपकी कनाडा में रहते हुए भी यहां की परिस्थिति की कल्पना अद्वितीय हैं .....

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  2. ये तो कुछ लोगों की पुरानी आदत है । कोरोना में ही कयों सूखा पड़ जाए, अतिवृष्टि हो , बस जिनके नाम खेती है और दूसरा धंधा कर रहे हैं मुआवजा के लिए सबसे आगे खड़े है । ये मानसिकता अपने अपने तरीके से अवसरानुकूल लाभ उठाने के लिए होती है ।

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  3. आज पहली बार फायदा दिखा अम्मा को ओल्ड एज होम न भेजने का.... अच्छा कटाक्ष है... लिखते रहें !

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  4. बेबाक टिप्पणी है आज के समाज पर, जो ज़रूरतमंद का हक़ मारकर अपना घ4 भर रहे हैं, वह इंसान कहलाने लायक बचे नहीं हैं।

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  5. समय अनुकूल जरूरी महत्वपूर्ण मजेदार

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  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 19 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. कारों के टायरों की अदला-बदली करके भी बहुत से लोग समय काट रहे होंगे

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  8. कोई बहाना चाहिये न आपको संमीर जी ,रेशमलपेटा जूता मारने का ,अबकी बार कोरोना मिल गया !

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  9. अपने अपने घरों में रहने वाले ही अगड़म बगड़म माँग कर रहे. आज पेपर में पढी कि कुछ लोग परेशान हैं कि गर्मी बढ़ गई है, ए सी ठीक करने वाले मिस्त्री नहीं मिल रहे. मुझे तो लगा कि ये लोग सरकार से यह न माँग ले कि सबको नया ए सी दिया जाए, क्योंकि घर में बैठकर वे भी तो कोरोना से युद्ध कर रहे हैं.
    बहुत अच्छा व्यंग्य.

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  10. समाज पर चुटीली टिप्पणी के साथ बहुत दूर की कह जाते हैं आप !

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.