कल एक जरुरी काम से नेता जी के घर जाना हुआ. वहीं से उनकी डायरी का
पन्ना हाथ लग गया, साहित्यकार बनने की फिराक में लगा शिष्टाचारी लेखक हूँ सो इस मैदान
के सामान्य शिष्टाचारवश चुरा लाया. बहुत ही सज्जन पुरुष हैं. सच बोलना चाहते हैं
मगर बोल नहीं पाते. देखिये, उनका आत्म मंथन-उन्हीं की लेखनी से
(अभी साहित्यकार बनने की फिराक में लगा हूँ अतः ऐसा कहा अन्यथा लिखता मेरी लेखनी
से):
झूठ बोलते बोलते तंग आ गया हूँ. कब मुझे इससे छुटकारा मिलेगा. क्या
करुँ, प्रोफेशन की मजबूरियाँ हैं.
रोज सोचता हू कि झूठ को तिलांजलि दे दूँ. सच का दामन थाम लूँ. मगर कब
कर पाया है मानव अपने मन की.
कुछ महिने में चुनाव आने वाले हैं और ऐसे वक्त इस तरह के भाव-क्या हो
गया है मुझे? लुटिया ही डूब जायेगी चुनाव में अगर एक भी शब्द सच निकल गया तो.
क्या सच कह दूँ जनता से??
-यह कि तुम जैसे गरीब हो वैसे ही रह जाओगे, हमारे बस में
नहीं कि तुम्हें अमीर बनवा दें?
-यह कि मँहगाई बढती ही जायेगी. क्या आज तक कुछ भी सस्ता हुआ है जो अब
होगा.
-यह कि मैं तुम्हारे बीच ही रहूँगा? ( तो दिल्ली कौन
जायेगा, विदेशों में कौन घूमेगा?)
-यह कि तुम्हारी समस्यायों से मुझे कुछ लेना देना नहीं. तुम जानो,
तुम्हारा
काम जाने.
-यह कि मैं बिना घूस खाये अगर सब काम करता रहा तो चुनाव का खर्चा और
विदेशों में पढ़ रहे मेरे बच्चों का खर्चा क्या तुम्हारा बाप उठायेगा.
-यह कि मैँ हिन्दु मुसलमानों के बीच दरार डालूंगा ताकि मैं लगातार
चुनाव जीतता रहूँ.
- यह कि मुझे जब कुछ समझ न आयेगा तो
तुमको झुनझुना बजाने की सलाह दे कर उलझाये रखूंगा. तुम झुनझुना बजाते रहाने और
मेरे गुन गाते रहना.
-यह कि मेरे हर फैसले को, चाहे वो सही हो या गलत, अपने चेलों के
माध्यम से सही सिद्ध करवा ही लूंगा.
- यही कि तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम मुझे खुदा मानो
..यह कि..यह कि....
क्या क्या बताऊँ, लोग तो सभी ज्ञानी हैं, सब
समझते हैं. मेरी मजबूरी भी समझ ही गये होंगे.
फिर मैं ही क्यूँ अपराध बोध पालूँ?
आज इतना ही, एक विडियो कांफ्रेन्स में जाना है. देश
हित में एक सौदे की बात है. (लम्बी डील है, मोटा आसामी है.)
संपादकीय टिप्पणी: ध्यान दिया जाये कि नेता भाषण कितना भी लम्बा दे
ले, लिखता जरा सा ही है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल १२, २०२० के अंक में:
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बहुत खूब, अपने लेख में आप सारी बुराइयों का स्वतः को केंद्र दिखाकर सामाजिक विकृतियों की अभिव्यक्ति यह आपकी लेखनी की विशेषता है। यह किसी निरपेक्ष विचारधारा के व्यक्ति को हो संभव है, बहुत खूब.....
जवाब देंहटाएंहाहाहाहाहा यह तो फेसबुक पर पढ़ लिया था। बहुत अरसे बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ। 🌹🌹
जवाब देंहटाएंदादा आप कहर ढा देते हैं ,कतल कर डालते हैं। गजब ,गुरु अनूप शुक्ल जी के अंदाज़ में कहें तो सन्नाट
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट
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